५ जनवरी २०२० रविवार का दिन
था । रविवार को आम तौर पर छुट्टी रहती है। शाम को कुछ नकाबपोशों ने जेएनयू के कुछ छात्रावासों और अलग अलग जगहों में घुस
कर हमले किये। कुल मिलाकर १८ छात्र एक टीचर एक स्टूडेंट युनियन की
अध्यक्ष और कुछ दूसरे लोग एम्स
में भरती कराए गये हैं।
पुलिस ने कैंपस में फ्लैग मार्च किया है । गृह
मंत्रालय ने इस पूरे प्रकरण पर दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट तलब कर ली है ।
लेफ्टिनेंट कमीशनर ने भी पुलिस को जरूरी दिशा निर्देश दिए हैं। डी राजा, सीताराम येचूरी योगेंद्र यादव आदि
आनन फानन में जेएनयू के गेट पर पहुच गये । प्रियंका वाडरा एम्स पहुची। उन्होंने
दिल्ली पुलिस पर आरोप चस्पा कर दिया कि पुलिस ने छात्रों के साथ मारपीट की है ।
राहुल गांधीने आरोप लगाया कि सरकार अपनी विचार धारा जेएनयू पर थोप रही है। जेएनयू
को राजनीति का अखड़ा बनाने की कोशिश की जा रही है।
इनका एक
विंग है जो मानवाधिकार का रोना रोता है।
अब मिनटों में ही जेएनयू के गेट पर योगेंद्र यादव पहुच जाते हैं। मोहम्मद
जिसान अयूब एक्टर लोगों केा जेएनयू के गेट पर जमा होने के लिए कहता है। इसी बीच
में स्वरा भासकर का रोने धोने वाला विडियो आता है और वह आरोप लगाती है कि यह AVBP के गुंस
और RSS के गुडे हैं जो होस्टल में घुस कर मार पिटाई कर रहे
हैं। अनुराग कश्यप प्रशांत भूषण सब इतनी जल्दी एक्टिव हो जाते हैं और यह सब आनन
फानन में होता है। इसका साफ मतलब है कि यह सब प्रीप्लैंड था । ये सब मिलकर AVBP और RSS को बदनाम
करने का षडयंत्र किया और उसी में राज खुल गया।
हिंसा जेएनयू के वाम पंथी, कांग्रेसी छात्रों द्वारा प्रायोजित थी
जेएनयू की हिंसा पर
तथाकथित वुद्धिजीवी, वामपंथी, कांग्रेस पार्टी के
साथ तमाम विपक्षी दलों ने विना किसी जांच के रिपोर्ट पेश कर दी है। यह दंगा
एबीवीपी ने की है और यह सब मोदी और अमित शाह के इशारे पर हुआ है।
मगर अब यह तथ्य सामने आया है कि यह
हिंसा पूरी तरह जेएनयू के वाम पंथी छात्रों ने की है। अगर यह
हिंसा एबीवीपी के छात्रों ने की तो जिन छात्रों की पिटाई की गयी और अस्पताल में
भर्ती होना पड़ा, उसमें अधिकांश छात्र तो एबीवीपी के
ही हैं। फिर जो लोग अपना चेहरा छुपा कर होस्टलों में घुसकर मारपीट कर रहे थे उसकी
अगुआई बामदल के लीडर आयसी घोष ही कर
रही थी। वरखा दत्त का वो वाट्सऐप ट्विट भी सामने आया है जिसमें इस मारपीट अभियान
के लिए लोगों को जेएनयू में जमा होने के निर्देश दिए जा रहे हैं। बरखा दत्त ने जो
वाट्सऐप ग्रुप में जो स्क्रीन शौट ट्विट किया था, उसमें
लिखा था कि जेएनयू के मेन गेट पर कुछ करना है। उसने यह भी लिखा था कि जेएनयू के
समर्थन में कुछ लोग जेएनयू के मेन गेट पर आ रहे हैं। वहां कुछ करना है। उसने यह भी
लिखा था कि यह चैट जिस ग्रुप का है उसका नाम युनाइट अगैंस्ट लेफ्ट (अर्थात
एबीवीपी) है।
लेकिन बरखा का यह प्रोपेगैंडा तब उल्टा पड़ गया जब
जिसने यह मैसेज किया था उसका नम्बर स्क्रीन
शौट में दिखा और यह नम्बर है ७००५७ ५०७७०
। यह आदमी कांग्रेस के लिए पैसा उगाने का काम करता है। मगर यह एक मात्र सबूत नहीं
हैं जो इस हिंसा के सूनियोजित होने का सबूत देते हैं। इसे हम आपको पूरे संदर्भ के
साथ इस लेख में पेश करेंगे।
जेएनयू के अंदर इवेंट के क्रोनोलौजी
वामपंथियों के इस साजिश
को समझने के लिए इन घटनाओं की क्रोनोलॉजी जानना पड़ेगा। २५ मार्च २०१९ को वायस चांसलर
के घर को एटैक किया गया। उनके बीवी बाल बच्चों के सामने स्लोगन रेज किए गये। २८
अक्टूवर को डीन के एम्बीएंस को ब्लोक करने की कोशिश की। जेएनयू के फेकैल्टी
मेंबर बंदना मिश्रा को इलीगल कैप्टीवीटी में रखा गया। विश्वविद्यालय
प्रसान ने फीस हाइक के अधिकांश को वापस ले लिया। सिर्फ रूम रेंट ३०० रूपया प्रतिमाह
वापस नहीं लिया गया। फिरभी वाम दलों ने अपना आंदोलन जारी रखा।
इन्हीं के
वायरल विडियो ने खोला इनका राज
२ महीने से फीस
बढातरी के विरोध में स्ट्राइक चल रहा था। वाम पंथी को पढने वाले छात्रों का सपोर्ट खत्म हो गया। वे लम्बा प्रदर्शन
नहीं चाहते थे। वाम पंथी छात्रों ने पहले परीक्षा बायकौट करवाना चाहा। फिर क्लासरूम
बायकौट करवाना चाहा। अब नया सेमेस्टर आ गया। तब नया सेमेस्टर में रजिस्ट्रेशन
का बायकौट करवाना चाहा। जब आम छात्रों ने तय कर लिया कि वे अपना रजिस्ट्रेश
करवाएंगे और उनकी बात नहीं मानेंगे। एबीवीपी ने भी इसमें आम छात्रों का साथ दिया
कि रजिस्ट्रेशन कराओ। क्योंकि काफी छात्र उनके पास गये थे कि रजिस्ट्रेशन
करवाइए। तब वे सेंट्रलाइज्ड सरवर रूम पर कब्जा कर लिया। मास्क बांधे लड़कियां
वहां दिख सकती हैं । विडियो वायरल हुआ है । जिन छात्रों ने रजिस्ट्रेशन करवाया
उसकी लिस्ट बनाकर और जिन एबीवीपी वालों ने सहायता की उनके होस्टल में रूम में
घुस कर २, ३, और ४ जनवरी को उनको
मारा गया।
किन लोगों ने मारा, इसका खुलासा
इन्होने अपना जो
वाट्स ऐप ग्रुप बनाया हुआ है। उसी से प्लान को कार्यान्वित किया मगर इसी में इनकी
चलाकी पकड़ में आती है। कोर ग्रुप नाम से उनका एप हे जिससे यह सारा कारनामे को अंजाम
दिया गया । मगर पकड़े जाने के डर से पहले अब्दुल कबीर ने इसका नाम बदल कर रखा संघी गुन्स मुरदाबाद। फिर सज्जाद अंसारी ने इसे
बदल कर रखा एबीवीपी छीछी।
मगर इससे यह स्पष्ट हो रहा था कि यह लेफ्टिस्टों का ग्रुप है, फिर तो फिर इसका नाम उबैद नामक व्यक्ति ने बदल कर रखा लेफ्ट टेरर डाउन डाउन। इसका स्क्रीन शॉट बरखा दत्त
को भेजा गया। उसने इसको ग्रुप में फैलाना शुरू किया। बरखा ट्विट वायरल कराने का
धंधा करती है। कटुआ वाले मामले में भी इसी ने यह काम किया था।
बरखा ने इसे जब ब्रोडकास्ट किया तो उसने इसमें
जोड़ा This
message is from a whatsapp called unity against left. आगे वह
उसी में लिखती है, I have edited out the group because of privacy laws
showing number, but the operative message retained. Main gate par kuchh
karna hai ( मेन गेट पर कुछ करना है) against those who support JNU. VC apnaa
hai (वीसी अपना है).
जो नम्बर उसने रहने दिया
वो सर्च हो गया और पता चला कि इसमें कांग्रेस का लिक है। यह नम्बर ७००५७५०७७० आनंद
मंगनाले का नम्बर है जो कांग्रस के लिए फंड रेज करता था। कांग्रेस ने स्विकार
किया कि यह हमारे लिए फंड रेज करता है। मगर अब हमारे साथ काम नहीं करता है। कांग्रसे
का कबूल नामा यह है, The social media
team of Indian National Congress had hired the service of several private venders to run the crowd funding
campaign for a limited period before Lok Sabha election after which he was
discontinued. This number belongs to the vendor and has nothing to do with INC.
सच यह है कि यह आदमी आज भी
कांग्रेस के लिए काम भी करता है और जेएनयू में अराजकता फैलाने में इसकी सकृयता का सबूत स्पष्ट है। यह आदमी प्रसांत
किशोर के लिए भी काम करता था। प्रसांत
किशोर के सलाह पर ही कांग्रेस जहां भी राज्य सरकारों में हैं, यह दावा
कर रही है कि वे सीएए लागू नहीं होने देंगे। स्पष्ट है कि इसमें कांग्रेस का हाथ
तो है।
दूसरा लिंक
यह है कि जेएनयू के लेफ्ट विंग
छात्र संध का अध्यक्ष है आशिष सेन। बरखा दत्त ने एक विडियो वायरल किया जिसमें
मास्क वाले लोगों की तसवीर है और आवाज है आशिष सेन की । इसमें आशिष सेन मास्क
वाले लोगों को कह रहा है कि What is
this? Who are you? Step back. Why are you trying to threaten? AVBP go back, go
back. बरखा ने जो विडियो वायरल किया उसमें उसकी
मंसा तो यह थी कि यह स्थापित किया जाय कि
ये मास्क वाले लोग एवीबीपी के गुंडे हैं।
मगर वे लेफ्ट और कांग्रेस के गूंस निकले। एक और विडियो वायरल हुआ जिसमें दिख रहा
है कि आइसी घोष उन्हीं मास्क मेन को लेकर होस्टल में प्रवेश कर रही है। इन मास्क
मेन के हाथ में रौड, डंडे, हौक्की स्टिक और दूसरे हथियार हैं। इसी आइसी घोष ने इन आरोपों
से बचने के लिए शाम में सूर्यास्त के करीब रंग, सियाही
आदि की मदद से कुछ मेक अप ऐसा किया जैसे उसपर एवीबीपी के द्वारा हमला हुआ है, जबकि वह
किसी अस्पताल में भरती नहीं हुयी।
तीसरी कड़ी
यह है कि सरवर रूम के बाहर बैठे
सभी लेफ्ट विंग के छात्राएं मास्क में हैं। और वे किसी को रजिस्ट्रेशन नहीं करने
दे रहे हैं। आयसा और
एसएफआई ग्रुप के वायरल वाट्सऐप चाट में कुछ बातें सामने आयी हैं। वे इस तरह लिखे हैं, The IASA and SFI have formed a gang armed with stick
roaming around the hostels with a intention of beating AVBP. उसी वाट्सऐप चाट में डीएलएफ नामक बाम छात्र संगठन कहता
है कि हम इस मारपीट की योजना में आप का साथ नहीं दे सकेंगे। उसी वाट्सऐप चाट में
लिखा है कि AVBP के गुंस की खूब पिटाई की गयी है। उसी वाट्सऐप चाट में
लिखा है कि ५० प्लस कौमरेड डीयू और
जामियां से आ गये हैं, उनकी एंट्री कराओ।
पांचवी कड़ी यह है कि इनका एक विंग है जो मानवाधिकार का रोना रोता है। अब मिनटों में ही जेएनयू के गेट पर योगेंद्र यादव पहुच जाते हैं। मोहम्मद जिसान अयूब एक्टर लोगों केा जेएनयू के गेट पर जमा होने के लिए कहता है। इसी बीच में स्वरा भासकर का रोने धोने वाला विडियो आता है और वह आरोप लगाती है कि यह AVBP के गुंस और RSS के गुडे हैं जो होस्टल में घुस कर मार पिटाई कर रहे हैं। अनुराग कश्यप प्रशांत भूषण सब इतनी जल्दी एक्टिव हो जाते हैं और यह सब आनन फानन में कैसे सम्भव है। इसका मतलब है कि यह सब प्रीप्लैंड था । ये सब मिलकर AVBP और RSS को बदनाम करने का षडयंत्र किया और उसी में राज खुल गया।
यह पूरा बवाल तब
शुरू हुआ जब नवंबर में फीस वृद्धि के विरूद्ध छात्रों ने जेएनयू प्रशासन के खिलाफ
लामवंदी शुरू की। उस आंदोलन में लगभग सभी छात्र दलों ने भाग लिया जिसमें एबीवीपी, आएसा, एसएफआई आदि सभी छात्र संगठन शामिल थे।
लेफ्ट का विरोध जारी रहा
बाकी सभी संगठनो ने आंदोलन खत्म कर दिया मगर सरकार
के विरूद्ध लेफ्ट का विरोध जारी रहा। इनलोगों ने क्लासेस बंद करवा दिए थे। मगर मात्र
साइंस के क्लासेस चल रहे थे। सोशल साइंसेस और इंटरनैशनल स्टडीज आदि विभागों में
इसका ज्यादा असर दिख रहा था। जेएनयू में ६-६ महीने को सेमिस्टर
वाइज पढाई होती है। इसलिए छात्र हर ६ महीने में अपना रजिस्ट्रेशन करवाते हैं। जब
एंड सेमिस्टर आने लगा तो परीक्षा की घोषणा हुयी। तब लेफ्ट वाले स्टुडेंट यनियनों
ने इसका विरोध किया। उनका स्टैंड था कि कोई परीक्षा नहीं देगा। वामपंथी संगठन ने
यह रणनीति अपनायी कि रजिस्ट्रेशन ही नहीं होने देंगे। उनकी रननीति थी कि यदि
रजिस्ट्रेशन वे रजिस्ट्रेशन रोकने में कामयाब हो गये तो वायस चांसलर को झुकना
पड़ेगा। लेकिन युनिवरसिटी प्रशासन ने कहा कि १ से ५ जनवरी तक रजिस्ट्रेशन जारी
रहेगा। अब यहां से मसला शुरू होता है।
अधिकांश छात्र राजनीति से दूर
पूरे जेएन यू में करीब ८००० स्टूडेंट्स हैं। मगर
जो स्टूडेंट्स राजनैतिक दृष्टि से सकृय हैं,(जिसमें यदि सभी
राजनैतिक दलों के छात्र विंग को शामिल कर लिया जाय तो भी)
उनकी संख्यां बमुश्किल १००० है। आज भी वहां ७००० ऐसे छात्र छात्राएं हैं, जिनको पढाई से मतलब है, और राजनीति से कोई मतलब
नहीं है। वे ऐसे छात्र हैं जो जे एन यू की फैसिलिटी जो शायद देश में सबसे बढियां
है उसका इस्तेमाल करते हैं, अर्थात वे सिनसियर छात्र हैं।
साइंस के छात्रों का लैब तो रात रात भर खुला रहता है।
वामपंथी संगठन की रणनीति
वामपंथी संगठन ने यह रणनीति अपनायी कि रजिस्ट्रेशन
ही नहीं होने देंगे। मगर नन
पोलिटिकल छात्र और एबीवीपी के छात्रों ने कहा कि रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस नहीं
रोका जाना चाहिए। इनलोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाना शुरू कर दिया। लगभग २२०० छात्रों
ने अबतक रजिस्ट्रेशन करवा चुके थे। रजिस्ट्रेशन का जैसे ही माहौल बनने लगा वैसे
वैसे वामपंथियों को यह नागवार गुजरा। आम छात्र जो रजिस्ट्रेशन करवा रहे थे। वामपंथियों
ने उनका विरोध किया । यहां तक कि उन छात्रों को मारने पीटने लगे। इसका विडियो यू
ट्यूब पर उपलब्ध है। दुर्भाग्य से ये गोदी मिडिया इसे नहीं दिखा रहे हैं मगर कुछ
टीवी हाउसेस ने इसे प्रसारित किया है। एसआइएस के गेट के पास यह देखा जा सकता है कि
किस तरह वामपंथी संगठनके लोग रजिस्ट्रेशन करवाले वाले छात्रों को मार पीट कर रहे
हैं। एबीवीपी के लोगों ने उन छात्रों की मदद भी की।
बदले में वामपंथी दल के छात्रों ने एबीवीपी के छात्रों की बाजाप्ता पिटाई कर दी।
यहीं से हिंसा का आगाज हुआ। विश्वविद्यालय ने
इनलोगों द्वारा छात्रों को हैरासमेंट से बचाने के लिए औनलाइन रजिस्ट्रेशन प्रोसेस
आरम्भ कर दिया। अब वामपंथियों ने सरवर रूप को जाकर घेर लिया और उसको डिस्टर्व कर
दिया। बामपंथी छात्र और विशेष रूप से लड़कियों का समूह सर्वर रूम के सामने जत्थे
में बैठ गये। बाद में किसी तरह से युनिवरसिटी प्रशासन ने उसको रेस्टोर किया। फिर
अगले दिन कुछ नकाबपोश लोग सर्वर रूम में घुसकर पूरी व्यवस्था को तोड़ फोड़ कर
बरबाद कर देते हैं। जब सेकुरिटी वाले उन्हें रोकने जाते हैं तो उनके साथ भी
वामपंथियों ने मार पिटाई की। वहां उपस्थित महिला सेकुरिटी ने टीवी के सामने आकर
बताया कि किस तरह उनलोगों ने सेकुरिटी स्टाफ तक की पिटाई की। परिणामस्वरूप कई
लोग कैम्पस छोड़ कर भाग गये और कई लोग एम्स में भरती हुए। इनलोगों ने चुन चुन
कर विद्यार्थी परिषद के छात्रों को मारा। इसके बाद वे लोग मास्क पहनकर डंडे और
लोहे का रौड लेकर लगभग २०० की संख्यां
में आए और छात्र छात्राओं को पीटा। यह सब दिन दहारे हो जाता है। इसके बाद शाम के
अंधेरे में कुछ लोग मास्क पहनकर कैंपस के अंदर घुसते हैं और वामपंथी संगठन के स्टूडेंट
लीडरों की पिटाई करते हैं। उसके बाद यह बवाल मचता है ।
यह सब है लेफ्ट के एक्टिविस्टों का फ्रस्ट्रेशन
यह सब क्यों हो रहा
है। दरअसल कांग्रेस सरकार के दौरान जेएनयू में जो एप्वाइंटमेंट होते रहे हैं वे
सब का जिम्मा वामपंथियों को दे रखा था। यह सारा अधिकार कुछ गिने चुने लोगों के
हाथ में था। मोदी सरकार के आने से पहले जो भी अप्वाइंटमेंट हुए हैं उसकी जांच
होनी चाहिए। काफी लोग इसकी मांग कर रहे हैं। उसमें काफी घपले हुए हैं। कुछ लोगों
ने मांग की है कि उसपर एक ह्वाइट पेपर आना चाहिए। वहां जो ७० से ८० प्रतिशत अप्वाइंटमेंट
हुए हैं वे लेफ्ट के एक्टिविस्टों के अप्वाइंटमेंट हुए हैं।
नये वायस चांस्लर से वामपंथियों की दुश्मनी क्यों
ये जो नये वायस
चांस्लर आएं हैं उन्होंने इस गोरखधंधे पर रोक लगा दी है। इसलिए वहां के
प्राफेसर्स छात्रों को वीसी के खिलाफ भड़काते रहते हैं। आने वाले दिनों में भारी
संख्यां में प्रोफेसर्स का अप्वाइंटमेंट होने वाला है। वाम गिरोह उसको डिरेल
करना चाहता है। क्योंकि इस वायस चांसलर के रहते सबकुछ मेरिट पर होगा और वामपंथी
रैकेट के लोग इसमें नहीं घुस पाएंगे। इससे जेएनयू के अंदर उनकी पकड़ कमजोर होगी।
पूरे देश में बदलाव हो रहा है। और जेएनयू अभी भी १९७० के दौर में फंसा है क्योंकि
वहां वामपथियों का गिरोह काम करता है, जो उसे अपनी बपौती
समझते हैं। वहां के टीचर्स स्टूडेंट के बहाने अपने एजेन्डा को चलाते हैं। वे
अपनी रोटियां सेकते हैं।
मीडिया भी इस खेल का है एक पार्टनर
जेएनयू में जो हुआ
उसको मिडिया खुलकर नहीं बता रही है क्योंकि मीडिया भी इस
खेल का एक पार्टनर है। कई बड़े मिडिया
हाउस और उसके पत्रकारों ने संगठित तरीके से इसे हवा दी है। जेएनयू अरबन नक्सल का
अड्डा है।
डिया खुलकर नहीं बता रही है क्योंकि मीडिया भी इस खेल का एक पार्टनर है। कई बड़े मिडिया हाउस और उसके पत्रकारों ने संगठित तरीके से इसे हवा दी है। जेएनयू अरबन नक्सल का अड्डा है।
डिया खुलकर नहीं बता रही है क्योंकि मीडिया भी इस खेल का एक पार्टनर है। कई बड़े मिडिया हाउस और उसके पत्रकारों ने संगठित तरीके से इसे हवा दी है। जेएनयू अरबन नक्सल का अड्डा है।

मोदी, शाह विरोध नहीं, ये पूरी तरह से भारत विरोध का मामला है
आज भारत वर्ल्ड लीडर बनने की तरफ अग्रसर है। मोदी जी
के प्रधान मंत्री बनने के बाद भारत का रूतबा पूरी दुनियां में बढा है। हमारा सपना है कि भारत वर्ल्ड लीडर बने। हमारी विजडम, हमारी
स्पिरिचुएलीटी, हमारा कलचर, हमारी हिस्ट्री, हमरी हेरिटेज, को विश्व रिकोगनाइज करे। भारत को
विश्व में वही स्थान मिले जो विश्व के मजबूत, प्रगतिशील, और ताकतवर देशों को मिलता है। मगर क्यों
नहीं मिल रहा है। वह इसलिए नहीं मिल रहा है क्योंकि देश के लोग ही देश के दुश्मन
हो गये हैं।
जेएनयू में जो हुआ उसके लिए स्टूडेंट विलकुल जिम्मेदार
नहीं हैं। इन स्टूडेंट्स को तो यूज किया जा रहा है। यहां
३ महत्वपूर्ण बातें आपको समझनी होगी।
पहला, ये अरबन नक्सल्स ये कौम्यूनिस्ट, लेनिनिस्ट, मारकिस्ट, आदि घटिया कम्युनिस्टिक आइडिओलॉजी को भारत में रिप्रजेंट करते हैं। इनको चीन से टेरर फंडिंग होती है। इनको पाकिस्तन से इस्लामिक फंडिंग आती है। इनका एक डक्यूमेंट है जो ८ से १० साल पहले लिखा गया था। जिसका नाम ही है स्ट्रैटेजिक डक्यूमेंट विथ अरबन प्रोस्पेक्टिव। उसमें इन्होंने माना है कि अगर इन्हें भारत से लोकतंत्र हटाना है, पारलियामेंट को टेक ओवर करना है तो उसके लिए शहरों को टेक आवर करना आवश्यक है। शहरों को टेक आवर करने के लिए इन्होंने तीन लोगों को चिन्हित किया। लेबर, विमेन और स्टूडेंट। इन्होंने सरकार को बदनाम करने के लिए जो भी अफवाह फैलाया वो सब फेल करता चला गया। इन्होंने पहले अफवाह फैलाया कि फारमर स्विसाइट कर रहे हैं, यह फेल कर गया। इन्होंने मीटू कैम्पेन चलाया, वह भी फेल कर गया। इनका नजरिया है कि स्टूडेंट चलते फिरते बम हैं, इन्हें आर्म्स और एमुनेशन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। यही इन्होंने हमारे देश के कुछ स्टूडेंट्स के साथ करने की कोशिश की।

आज स्टूडेंट्स का नाम जुड़ गया है सीएए, एनआरसी, आदि मुद्दों से। जबकि सीएए से उनका कोई लेना देना नहीं है। एन आर सी का अभी ड्राफ्ट भी नहीं बना है। भारत में ७८९ युनीवरसीटी हैं, ३७२०० कॉलेज हैं, ११४४४ ऐसी संस्थाएं है जो अपने तरह से शिक्षा से जुड़े हैं। २ ८५ ६० ००० ( दो करोड़ ८५ लाख ६० हज़ार छात्र कालेजों और विश्वविद्यालयों में पढते हैं। कितने स्टूडेंट प्रोटेस्ट कर रहे हैं। और प्रोटेस्ट कर रहे हैं चंद युनिवरसिटीज, जेएनयू के चंद लोग, जामियां के चंद लोग, जादवपुर में चंद लोग, एएमयू में चंद लोग। ये वे युनिवरसिटीज हैं जहां के छात्र सबसीटी पाते हैं। औसतन एक छात्र पर सरकार का सलाना खर्च ५ लाख रूपया है। ये सुविधा अन्य छात्र छात्राओं को उपलब्ध नहीं है और उल्टे ये छात्र भारत विरोधी एजेंडे पर काम कर रहे हैं। ये चंद लोग अरबन नक्सल के कैडर हैं। ये कन्हैया, शैला, स्वरा, आदि एक ही थाली के चट्टे वट्टे हैं। ये थोड़े से पैसे के लालच में, और हिंदुइज्म से आरएसएस से और नरेंद्र मोदी से नफरत के कारण भारत को तोड़ने का काम अंजाने में कर रहे हैं।
दूसरी बात आप देखिए। ये लोग कब से यह कोशिश कर रहे हैं सरकार अस्थिर हो जाय। और हर बार ये लोग मात खा रहे हैं। पूर्व से देखें तो सरकार के विरूद्ध इन्होंने जो भी अफवाह फैलाया सब फेल होता गया। इंटौलरेंज फेल, अवार्ड वापसी फेल, बीफ कैंम्पेन फेल, रोहित बेमुला कैम्पेन फेल, आजादी और भारत के टुकड़े कैम्पेन फेल, रफेज कैम्पेन फेल, राहुल गांडू इमरजिंग एज ए न्यू लीडर कैम्पेन फेल, प्रियंका बाड्रा इमरजिंग एज ए न्यू लीडर कैम्पेन फेल, अरविंद केजरीवाल इज औनेस्ट एंड ही विल ब्रिंग ए न्यू पौलिटिक्स कैम्पेन फेल, सीएए कैम्पेन फेल, एनआरसी कैम्पेन फेल, ट्रिपल तलाक कैम्पेन फेल, मुस्लिम डरा हुआ है कैम्पेन फेल, ३७० एंड कश्मीर कैम्पेन फेल, राम जन्म भूमि कैम्पेन फेल। ये एक के बाद एक कैंपेन चलाते रहे और और इनका हर दाव उल्टा पड़ता चला गया। लोगों का इनपर से विश्वास उठता चला गया और उल्टे नरेंद्र मोदी सरकार की की शाख बढती चली गयी। अल्टीमेटली फ्रस्टेट होकर ये ऐसे कैम्पेन चला रहे हैं जिससे ये सावित करना चाहते हैं कि हिंदू भी आतंक वादी होते हैं।
ये इनकी पौलिटिकल कमपलसन है कि ये हिंदुओं को
आतंकवादी सावित करें। इनके इन कैंपेन में काफी सारा पैसा इन्वौल्व है। इसमें
बहुत सारी एजेंसी, मीडिया हाउसेस, बहुत सारे विदेशी एजेंसीज काम कर रहे हैं। लेकिन ये हर जगह नाकाम हो रहे है।
मगर हैं ये खतड़नाक। इनकी पहचान जाहिर कर इनके विरूद्ध कठोर कारवाई होनी चाहिए।



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