जब आदमी झूठ बोलता है तो उसके झूठ से सच की एक झलक दीखती रहती है। झूठ का पर्दा इतना पतला होता है कि उसके उस तरफ का सच पता चलता है।
राहुल गांधी ने कल संसद में तीनों कृषि कानून पर विस्तृत टिप्पणी की। इसका २१ मिनट का विडियों कांग्रेस के वेबसाइट पर उपलब्ध है। इसमें उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि यह कृषि कानून ने भूख बेरोजगारी और आत्महत्या का कारण बनेगा।
वे किसानों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ये काले कानून है। ये आपकी जमीन छीन लेंगे। कल उन्होंने संसद में इस तीनों कानूनों की अपनी जाती व्याख्या की जो इस प्रकार है।
पहले कानून का कंटेंट (विषयवस्तु)
राहुल गांधी बोले : पहले कानून का कंटेंट (विषयवस्तु) है कि कोई भी व्यक्ति देश में कहीं भी कितना भी अनाज, सब्जी, फल ख़रीद सकता है। अगर देश में अनलिमिटेड ख़रीदी होगी तो मंडी में कौन जाके खरीदेगा? पहले कानून का इंटेंट(इरादा) मंडी को खत्म करने का है। यह राहुल बाबा का तर्क था पहले कानून के लिए।
किसान भाइयों को एक सरल बात समझनी चाहिए। आज का किसान तो इसलिए परेशान है, कि उगाउंगा, तो बेच पाउंगा, या नहीं। मंडी जाउंगा तो बिकेगा कि नहीं और बिकेगा तो न जाने किस रेट पर बिकेगा। इसका मतलब। राहुल बाबा कहते हैं, कि अनलिमिटेट खरीद होगी। इसका मतलब यह निकलता है कि हर किसान की उपज बिकेगी।
किसान मंडी में बिकने न बिकने की आशंका से, टेंशन से, तो वह बच जाएगा। हर किसान की फसल बिकेगी। हर किसान के पास बायर जाएगा। हर किसान को पैसे मिलेंगे। मंडी के लिए उसकी निर्भता कम होगी। उसको जो असली रकम मिलनी चाहिए, वो मिल पाएगी।
इसमें राहुल बाबा ने एक तर्क जोड़ा कि फिर मंडी का क्या होगा? हमे यह तय करना है, कि हम मंडियों की परवाह करें या किसानों की परवाह करें। समस्या तो किसानों की हैं। इसके चलते लाखों किसानों ने आत्म हत्या की है। आज तक किसी मंडीवालों ने तो आत्महत्या नहीं की?
मंडी तो किसानो के लिए बनी है । किसान तो मंडी के लिए नहीं बना है। अब आप तय करें कि आपको मंडी के बारे में चिंता है, या किसानों की चिंता है?
किसानों को बेचने में सहूलियत हो, इसलिए मंडी बनी थी। मगर वही मंडियां राजनीति और पैसे कमाने का गिरोह बन गया। गरीब किसानो का उन्होंने शोषन किया। खुद अमीर से अमीरतर होते गये। अगर किसानों के पास विकल्प होगा तो वह मंडी क्यों जाएगा ?
किसान महत्वपूर्ण है मंडी नहीं
मंडी को सरवाइब करना है, तो मंडियों को अपने को सुधारना होगा। मंडी यदि किसानों को वाजिब रकम दे पाती तो यह समस्या ही नहीं उत्पन्न होती। मंडी के पास बेचने की कोई समस्या नहीं है,
जो राहुल जी पूछते हैं कि इस कानून के लागू होने के बाद मंडी से कौन खरीदेगा? मंडी से तो सरकार खरीदती है। सरकार जो मुफ्त में अनाज बांटती है, वह कहीं से तो खरीदना है। सरकार तो कह रही है कि वो मंडी से ही खरीदती थी, खरीदती है और आगे भी खरीदेगी। तो मंडी खत्म कैसे होगी?
मंडी तभी ख़त्म होगी, जब वह किसान का भला नहीं सोचेगी। और तब उसे खत्म होना भी चाहिए। मौजूदा आंदोलन में यह बात नुमाया हो रही है।
दिख गया कि आज की मंडियां तो किसानों के शोषण पर टिकी हैं। सभी मंडी वाले धनाढ्य हो गये हैं। किसान बेचारा गरीब से गरीबतर हो रहा है।
इस फर्जी किसान आंदोलन के दौरान इन्होंने जो आलीशान जीवन जिया है, आज तक किसी आंदोलन में ऐसा नहीं देखा गया। दूध और पिस्ते बांटे जाते थे। शाम को शराब बांटा जाता था। आंदोलनकारियों की मशीन से मालिस होती थी। शानदार लौंड्री सजे थे। गाने बजाने भी होते थे। कवियों और फिल्मी कलाकारों की सभा भी होती थी। लाठी और तलवार भांजे जाते थे। भारत विरोधी नारे लगाए जाते थे, फ़ैज़ के तराने गाए जाते थे। इन्हें दुनियां के बदनाम महिलाओं का समर्थन भी मिला। बाद में पता चला कि ये लोग तो किसान थे ही नहीं। मगर फिर भी राहुल गांधी इनकी तरफ से संसद में जोरदार वकालत की।
ज्ञातव्य है कि यह लड़ाई जो कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने गरीब किसानों के लिए लड़ी और ये कानून जो नरेद्र मोदी की सरकार ने लाया वह तो किसान को बचाने के लिए हैं। मंडी को बचाने के लिए नहीं।
दूसरे कानून, एसेंसियल कमोडीटी एक्ट का कंटेंट (विषयवस्तु)
राहुल जी ने जो दूसरी प्रमुख बात उठायी वे इस तरह हैं। राहुल गांधी बोले: दूसरे कानून एसेंसियल कमोडीटी एक्ट का कंटेंट (विषयवस्तु) है कि बड़े से बड़ा उद्योगपति जितना भी अनाज, सब्जी, फल, स्टोर करना चाहते हैं, वह स्टोर कर सकते हैं। कोई लिमिट नहीं।
राहुल जी कहते हैं कि सरकार ने एसेंसियल कामोडिटी एक्ट में बदलाव कर दिया है। सरकार ने कहा है कि आपको जितना चाहिए आप स्टोर करें। इसकी वजह से जमाख़ोड़ी बढ़ जाएगी। सरकार ने स्टोरेज की अनुमति दे दी है कि आपको जितना चाहिए आप स्टोर कर सकते हैं।
कोई व्यापारी माल खरीदता है तो उसको तो स्टोर करने ही इजाज़त तो होनी ही चाहिए। वह पैसा लगाकर, माल खरीदकर, उसे खुले में सड़ा तो नहीं सकता है। वह कहीं तो उसे स्टोर करेगा।
इस देश में सरकार जो अनाज खरीद कर खुले में रख देती है और वह सड़ जाता है, उसकी मात्रा इतनी है, कि एक छोटा देश साल भर खा सकता है।
७० सालों मे सरकारें स्टोरेज सिस्टम नहीं बना पायी। नेहरू जी के बाद शास्त्री जी आए थे सत्ता में। उन्होंने जो किसान की दशा में सुधार के लिए जो सुधार किए उसके बाद अब नरेंद्र मोदी की सरकार में आने से फिर शुरू हुआ ।
आज जो एमएसपी पर अनाजो की खरीद होते है उसका एका बड़ा हिस्सा खुले में सड़ जाता है। बाद में उसे शराब बनाने वाली कंपनियां सस्ते में खरीदती हैं।
इसीलिए सरकार ने एसेंसियल कमोडिटी एक्ट में बदलाव किया। ताकि प्राइवेट प्लेयर्स आएं। वह किसानो से अनाज खरीदें, उसे स्टोर करें, और बाद में उसे बेचे सकें।
तीसरे कानून का कंटेंट (विषयवस्तु)
राहुल गांधी बोले: तीसरे कानून का कंटेंट (विषयवस्तु) है कि जब किसाने भारत के सबसे बड़े उद्योगपति के सामने जाकर अपने अनाज फल या सब्जी के लिए सही दाम मांगेंगे तो उसे अदालत में नहीं जाने दिया जाएगा।
मगर राहुल गांधी जो तीसरे कानून का कांटेंट पढ़ रहे थे वह पंजाब तक सिमित है। वहां कांग्रेस की सरकार है। वहां यही कानून है कि किसान कंट्रैक्ट कानून के मामले में अदालत नहीं जा सकते हैं। वहां तो यह भी कानून है कि यदि किसान कंट्रैक्ट से दाएं बाएं करता है तो उसे जेल हो सकती है। और ५ लाख का जुर्माना हो सकता है।
केंद्र सरकार ने जो कानून लाया है उसमें ऐसा नहीं है। इसमें यह सुनिश्चित किया गया है कि कंट्रैक्ट फारमिंग में आपको क्या रकम मिलेगी।
इसमें एसडीएम कोर्ट में टाइम बाउंड निपटारे का प्रावधान इसलिए किया गया कि किसान वकीलों के चक्कर से और अदालतों में सालों साल लड़ने से बचे। एसडीएम के यहां जल्दी निपटेगा मामला। वकीलों की फीस नहीं भरनी पड़ेगी। किसान को फायदा होगा।
राहुल बाबा की चौथी बात सुनिए। मोदी साहब ने अपने दो व्यापारी मित्रों में से एक को पूरे देश के अनाज, सब्जी, और फल बेचने का अधिकार दिया है। इसमें नुकसान ठेलेवाले का होगा। नुकसान छोटे व्यापारियों का होगा। जो लाखों लोग मंडियों में काम करते हैं उनका नुकसान होगा। दूसरे कानून का इंटेंट (अर्थात इरादा) मोदी जी के दूसरे मित्र की मदद करने का है। दूसरे मित्र को देश में अनाज फल और सब्जी की मोनोपोली दी जा रही है। दूसरा मित्र देश का ४० प्रतिशत अनाज अपने साइलॉज में रखता है।
राहुल बाबा की शंका यह है कि प्रधान मंत्री के दो मित्र अडानी और अंबानी पूरे देश का अनाज खरीद लेंगे। फिर उसको स्टोर कर लेंगे और फिर कहेंगे कि जो हम कीमत तय करेंगे वही चलेगा।
न अडानी कंट्रैक्ट फार्मिंग में हैं, न अंबानी कंट्रैक्ट फार्मिंग में हैं
जरा सोचिए कि आज भी इस देश में कई जगह कंट्रैक्ट फार्मिंग चल रहे हैं। न अडानी कंट्रैक्ट फार्मिंग में हैं, न अंबानी कंट्रैक्ट फार्मिंग में हैं। कंट्रैक्ट फार्मिंग में तो छोटे छोटे स्टार्टअप्स आएं हैं।
अडानी और अंबानी दोनो ही कांग्रेस के जमाने में फले फूले। राहुल जी कह रहे हैं कि वे दोनो देश भर के किसानों का अनाज खरीद लेंगे।
आगे राहुल जी कहते हैं कि किसानी ४० लाख करोड़ का धंधा है। यह पूरा ४० लाख करोड़ का धंधा मोदी जी अडानी और अंबानी को देने के लिए यह कानून लायी है।
सोचिए कि राहुल खुद कह रहे हैं यह ४० लाख करोड़ का बिजनेस है। अभी अडानी और अंबानी तो वह बिजनेस नहीं कर रहे हैं। तो यह ४० लाख करोड़ का धंधा कौन खाता है कि किसान आत्महत्या को मजबूर हैं।
हर मंडी में लूटने के लिए मिडिल मैन बैठा हुआ है। उनका पोलिटिकल नेक्सस है। वहां सरकार भी कमीशन लेती है, एजेंट भी कमीशन लेता है। और किसान को ठेंगा मिलता है।
Credit to Jaurnalist Sushant Sinha (Satya) whom I watched and carried his view to write this news story.




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