राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत का वस्तविक अर्थ एक ही है। अंग्रेजी
में भले ही राष्ट्र गीत को नेश्नल सौंग और राष्ट्र गान को नेश्नल एंदेम कहते
हैं। मगर दुनियां भर के देशों में दोनों को एक ही समझा जाता है। भारत में जन गण मन को राष्ट्र गीत और बंदे मातरम को राष्ट्र गान कहा
जाता है। पहले तो बंदे मातरम ही स्तित्व में आया। तब यही
राष्ट्र गीत हुआ करता था। जन गण मन तो १९११ में तब स्तित्व में आया जब इसे पहली
बार जौर्ज पंचम की भारत आगवानी पर उसको महिमा मंडित किया गया।
बंदे मातरम की रचना प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिम चंद्र चटर्जी ने की। जो बाद मे राष्ट्र गान बना। जन गन मन को राष्ट्र गीत का दर्जा मिला और इसपर विद्रोह न हो इसलिए बंदे मातरम को राष्ट्र गान का दर्जा दिया गया। इसकी एक लम्बी कहानी है।
बंकिम चंद्र चटर्जी ने १८८२ में अंग्रेजी सरकार तथा उन राजाओं महराजाओं, जो किसी भी तरह अंग्रेजों का सहयोग करते थे, के विरोध में बगाबत की पृष्ठभूमि पर आनंद मठ नामक उपन्यास की रचना की। तब यह गाना लोगों के सामने आया। इस पुस्तक ने क्रांतिकारियों में जोश भरने का काम किया। अंग्रेजी सरकार ने बार बार इस पुस्तक पर पावंदी लगायी। कई बार इसके अंश काट छांट दिए गये। कई बार इसे जलाया गया।
१९०५ में अंग्रेजों की सरकार के गवर्नर जेनेरल लॉर्ड करजन ने बंगाल को दो हिस्सों में पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल की शक्ल में हिंदू और मुस्लिम धर्म के आधार पर बटवारा कर दिया।
इस बंग भंग के विरोध में आंदोलन शुरू हुआ। इसके प्रमुख नेता थे लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल और लोकमान बाल गंगाधर तिलक। इस आंदोलन के प्रमुख एजेंडा था, अंग्रेजों भारत छोड़ो, अंग्रेजी सरकार से असहयोग करो, अंग्रेजी कपड़े मत पहनो, अंग्रेजी वस्तुओं का वहिस्कार करो। भारत में स्वदेशी का निर्माण करो। स्वदेशी के पथ पर आगे बढो। तिलक साहब ने इस आंदोलन को स्वदेशी आंदोलन कहा। यह आंदोलन ६ साल चला। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल के इस आंदोलन को पूरे भारत का सहयोग मिला। लोगों ने अंग्रेजी कपड़े पहनना बंद कर दिया। नाइयों ने अंग्रेजी ब्लेड का इस्तेमाल बंद कर दिया। तब देशी उस्तरा भारत में लौटा। लोगों ने अंग्रेजी चीनी, जो इंगलैंड से बनकर आती थी को खाना बंद कर दिया। लाखों हलवाइयों ने गुड़ डालकर मिठाइयां बनाना शुरु कर दिया। धाबियों ने अंग्रेजी साबुन का इस्तेमाल करना बंद कर दिया। पुरोहितों ने सूट पैंट पहननेवाले दुल्हों का वहिस्कार कर दिया। इतने व्यापक स्तर पर यह आंदोलन फैला। ६ साल के अंदर जब अंग्रेजी माल बिकना बंद हो गया, ईस्ट इंडिया कम्पनी का धंधा चौपट हो गया, तो सरकार घबड़ा गयी। फिर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अंग्रेजी सरकार पर दबाव बनाया कि इनकी मांग आप मान लें। और अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। और सरकार ने बंगाल का बटवारा, जो हिंदू मुसलमान सम्प्रदाय के आधार पर किया था, उसको वापस लेना पड़ा। १९११ में डिविजन ऑफ बंगाल एक्ट वापस लेना पड़ा। तब लोकमान्य तिलक को महसूस हुआ कि यदि अंग्रेजों को झुकाना है तो बहिष्कार ही सबसे अच्छा रास्ता है।
१९०५ से १९११ तक चलनेवाले इस आंदोलन का मूल मंत्र था बंदे मातरम। लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या १२०००० से ज्यादा थी। वे हर कार्यक्रम में बंदे मातरम का उदधोष करते थे। यह कार्यक्रम के आरम्भ में और अंत में गाया जाने लगा। इस आंदोलन का बंगाल में ऐसा असर हुआ कि अंग्रेजों ने भारत की राजधानी को कलकता से दिल्ली सिफ्ट कर दिया।
अंग्रेजों को लगने लगा कि अब हम कलकत्ता में सुरक्षित नहीं हैं। क्योंकि बंगाल इस आंदोलन का केंद्र था। और इस तरह १९११ में दिल्ली भारत की राजधानी बन गयी। उसके बाद अंग्रेजों ने एक दूसरा काम किया। अंग्रेजी राजा को भारत में आमत्रित किया गया ताकि विद्रोह का स्वर ठंढा पड़े।
सन १९११ में जार्ज पंचम भारत आया। अंग्रेज अधिकारियों ने जार्ज पंचम के स्वागत के लिए रविंद्र नाथ टैगोर से एक गीत लिखवाया। वह गीत है जन गण मन अधिनायक जय है भरत भग्य विधाता। यह गीत अंग्रेजी राजा जार्ज पंचम की स्तुति का गान है। इसका मुख्य भाव है कि आप भारत के जनता के मन का सुपर हीरो हैं।
टैगोर ने अपने बहनोई सुरेंद्र नाथ बैनर्जी जो, जो आइ सी एस आफिसर थे, लंडन में रहते थे, को एक पत्र लिखा कि मुझपर अंग्रेज अधिकारियों ने दबाव डलबाकर, बंदे मातरम के समांतर यह लिखवाया है।
बंदे मातरम को ज्यादा लोकप्रियता तब मिली जब खुदी राम बोस यह गीत गाते हुए फांसी के फंदे पर चढा। उसके बाद सभी क्रांतिकारियों ने इसका अनुसरण किया। भगत सिंह, अस्फाकुल्ला, उधम सिंह, सचिंद्र नाथ सान्याल, आदि अनेक महानुभावों ने ऐसा ही किया।
रविंद्रनाथ के भाई अवनिंद्र नाथ ईस्ट इंडिया कम्पनी के कलकत्ता में बंगाल डिविजन के प्रमुख थे। उनका लगभग पूरा परिवार ईस्ट इंडिया कम्पनी में कार्यरत था। वे शायद इन्हीं कारणो से अंग्रेजों से सहानुभूति रखते थे। १९१९ जब जालियावाला बाग मेसैकर हुआ तो महात्मा गांधी ने रविंद्रनाथ को दुत्कारा था कि अभी भी तुम्हारे आखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरा है तो कब उतरेगा। तुम अंग्रेजों के ऐसे चाटुकार और समर्थक कैसे हो गय।
१९४१ में जब रविंद्र नाथ टैगोर की मृत्यु हो गयी तो उसके बहनोई ने वह पत्र प्रकासित किया जो रविंद्रनाथ ने उन्हें १९११ में लिखा था। इस पत्र का मजबून यह था कि यह गान मैंने अंग्रेजों के कहने और दबाव पर लिखा है। इनमें इस्तेमाल लफ्जों का अर्थ अच्छा नहीं है। इसे न गाया जाय तो अच्छा है। यह चिट्ठी मैं बस आप तक सिमित रखना चाहता हूं। इसे किसी को न दिखाएं जबतक मेरी मौत न हो जाय। १९४१ में सुरेंद्रनाथ बैनर्जी ने इसे प्रकासित करवाया और लोगों से अपील की इसे न गाया जाय।
कांग्रेस में जबतक लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल थे, तकतक बंदे मातरम ही गाया गया। बाद में लोकमान्य तिलक का कांग्रेस के नेताओं से मतभेद हुआ, और सबसे ज्यादा मतभेद मोतीलाल नेहरु से हुआ। मोतीलाल अंग्रेजों के साथ को एलीशन सरकार बनाना चाहते थे। तिलक कहते थे कि अंग्रेजों के साथ सरकार बनाना भारत के लोगों के साथ धोखा देने के बाराबर है। इसके बाद तिलक ने कांग्रेस से निकलकर गरम दल बनाया। अब कांग्रेस के दो हिस्से हो गये नरम दल और गरम दल। गरम दल के नेता गण थे लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल, आदि। ये हर जगह बंदे मातरम गाते थे।
वहीं नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजों के साथ रहते थे। वे उनकी मिटिंगों में जाते थे, उन्हीं की बात कहते और सुनते थे। १९११ के बाद नरम दल वाले यही गान जन गण मन गाते थे। उन्होंने एक और काम यह किया कि उन्होंने फिजा में यह भायरस छोड़ दिया कि यह मुसलमानों को नहीं गाना चाहिए। क्योंकि इसमें बुतपरस्ती है।
इस मुद्दे पर जब १९४१ के बाद सारा भेद खुल गया तो भी कांग्रेस का नरम दल और मुस्लिम लीग जन गण मन ही गाते रहे। १९४७ में कांस्टीच्युएंट एसेंबली की बहस हुयी। इसमें ३१९ लोग थे। इसमें एकमात्र पंडित नेहरू को छोड़कर सबने माना कि राष्ट्रगीत बंदे मातरम ही होना चाहिए।
मगर पडित नेहरू का कहना था कि मुसलमानों के दिल को इससे चोट पहुंचती है। फिर बात गांधी तक पहुची। गांधी ने कहा कि जन गण मन के पक्ष में मैं भी नहीं हूं और बंदे मातरम का विरोध नेहरू कर रहे हैं, तो कोई तीसरा गाना बनाइए। तो विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा उंचा रहे हमारा को गांधी ने राष्ट्र गीत के रूप में सुझाया। नेहरू उसपर भी तैयार नहीं हुए। नेहरू का तर्क था कि यह गाना आरकेस्ट्रा पर नहीं बज सकता, और जन गण मन आरकेस्ट्रा पर बज सकता है।
जौर्ज पंचम ने जब जन गन मन सुना तो उसे तो उसका अर्थ नहीं लगा। जब उसे इसका अनुवाद बताया गया कि इसका अर्थ है कि तुम भारत के भाग्य के विधाता हो, हम तुम्हारी जय गान करते हैं। हम तुम्हारे नाम की शुभकामना करते हैं। हम आशीष मांगते हैं। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो। जॉर्ज ने जब उसका अंग्रेजी में ट्रांस्लेशन करवाया। तो उसने कहा कि मेरी इतनी खुसामद तो इंगलैंड में भी कोई नहीं करता। वह बहुत खुश हुआ। पूछा कौन है रविंद्र नाथ, उसको मेरे पास लेकर आओ। तब उनका परिचय कराया गया। जब जौर्ज विदा हुआ, उस समय वह नोबुल प्राइज कमीटी का चेयरमैन भी था। तो उसने रविंद्र नाथ टैगोर का नाम नोबल प्राइज के लिए रिकोमेंड कर दिया। रविंद्र नाथ ने अंग्रेज अधिकारियों को कहा कि कम से कम एक कृपा मुझपर करो। पूरे देश में यह प्रचारित करो कि मुझे ये प्राइज गीतांजलि पर मिल रहा है।
जन गन मन का राष्ट्रगान घोषित करवाने में पंडित नेहरू की जिद थी। विद्रोह की स्थिति न पैदा हो इसलिए बंदे मातरम को राष्ट्र गीत घोषित किया गया। अन्यथा किसी देश में राष्ट्र गीत और राष्ट्र गान जैसी समांतर गीतों की परंपरा नहीं है।


.jpg)

.jpg)








.jpg)
0 टिप्पणियाँ
Please do not enter any spam links in the comment box.