मुंबई: श्री संजय पांडे ने भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री बहुत
बड़ा मुकाम हासिल किया है। श्री पांडे का १२
सालों के बाद हिंदी सीरियलों में कम बैक हुआ है।
कलर्स पर आने वाले सीरियल विद्या के सेट पर फिल्मी फिल्मोनिया परिवार के प्रमुख श्री दर्पन श्रीवास्तव ने श्री संजय पांडे से एक्सक्लूसिब इंटरव्यू किया, जिसका मुख्य अंश इस लेख में प्रस्तुत है।
कलर्स पर आने वाले सीरियल विद्या के सेट पर फिल्मी फिल्मोनिया परिवार के प्रमुख श्री दर्पन श्रीवास्तव ने श्री संजय पांडे से एक्सक्लूसिब इंटरव्यू किया, जिसका मुख्य अंश इस लेख में प्रस्तुत है।
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित विलेन बनने की कहानी
श्री संजय पांडे भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में
२००० से बतौर एक स्थापित विलेन कार्यरत हैं। इनकी फिल्म इंडस्ट्री में कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही है। वे कहते हैं कि सात पुस्तों में मुबई आने वाला मैं
पहला आदमी हूँ। मुझे बचपन से नाटकों को शौक था। एक्टिंग की तरफ झुकाव था। मैं आठ
आठ किमी दूर जाकर नौटंकी दखने चला जाता था। मैं घर के पीछे जानवरों के घर में नाटक
करता था, रिहलसल करता था। मैं इंटरमिडिएट कम्पीट करके मुंबई आया।
मैं ९० के दशक में यहां आकर घूमा। मैंने सोचा कि उस कुरूक्षेत्र को देखूं जहा मुझे
जाना है, ताकि मुझे पता चले मुझे किस तैयारी के साथ जाना पड़ेगा। फिर मैं पापा से
परमिसन लेकर आया । मैं डोम्बीवली २ महींने घूमा। मैं सूटिंग देखने और पृथ्वी
थिएटर रोज जाता था। इन सब जगह घूम के मैंने आकलन निकाला कि हमे तीन चीजें
चाहिए। या तो हमारे पास इतना पैसा हो कि हम
खुद को लांचकर सकें, या कोई गॉड फादर हो, या हममें इतना टैलेंट हो कि हमें कोई एक मौका दे तो फिर हम चूंकें नहीं।
मैने सोचा कि दो तो मेरे पास नहीं है। मेरे पास बस तीसरा रास्ता रह जाता है। १९९०
में वापस गया और १० साल इधर की तरफ देखा नहीं। मैंने दिमाग के नक्से से मुंबई शहर
को हटा दिया। मुझे लगा सिर्फ मुझे सीखना है। यही मुझे काम आएगा। मैं १० साल तक बस
सीखता रहा। मुझे थिएटर गुरू जो मिला उसी से सीखता रहा। उसके बाद मैं २००० में
मुबई आया। आने के बाद भी मुझे लगा कि कुछ बाकी है। मुझे भाग्यसे पंडित सत्यदेव दूवे बतौर थिएटर गुरू
मिल गये। मुझे उनके ग्रुप में एंट्री मिल गयी।
फिर मैं भूल गया कि मुझे सीरियल या फिल्म भी करना है। फिर मैंने उनसे सीखा
। वे बहुत बड़े गुरू थे । फिर एक समय आया कि मैंने दूवे जी से परमीसन लिया कि अब
मैं थिएटर तब करूंगा जब मेरी माली हालत ठीक हो जाएगी। मैं उनके पैर छूके
निकला। गुरु और माता पिता का आशिर्वाद और
अपनी मिहनत काम आया और आज मैं इस मुकाम पर खड़ा हूँ।
भोजपुरी से हिंदी फिल्म की तरफ सफर
श्री पांडे कहते हैं कि आया था तो हिंदी सीरियल और
फिल्म ही कर रहा था। भगत सिंह फिल्म में काम किाया मगर वो रिलिज नहीं हुयी। मेरी
शादी हो गयी थी । हालात तोड़ने लगे थे। हिंदी फिल्में कर रहा था मगर काम पर्याप्त
मिल नहीं रहा था। मेरे ऐसे एप्रोच नहीं थे। मैं थकने लगा था। ऐसी लौबी होती है जो
आपके बात को आगे तक पहुचाती है। मगर मेरी वो लौबी नहीं बन पायी। जो डायरेक्टर और
प्रोड्यूसर तक यह बता सके कि यह एक अच्छा कलाकार है।
उस वक्त आसानी से ससम्मान जो काम मिला वो मैंने
किया । वो मुझे भोजपुरी में मिला। भोजपुरी मेरी मातृभाषा थी। मुझे करना तो निगेटिव
कैरेक्टर ही था। काम मिलता गया और काम एप्रीसिएट होता गया। उन दिनो मैं सीरियल
करता रहा। महुआ और डीडी वन पर कुछ काम करता रहा। बाला जी का शो किया। मगर उस तरह
का काम उधर नहीं मिला कि संतोष मिले । दूसरी ओर भाजपुरी में सीढ़ी दर सीढ़ी चढता
गया । आज भोजपुरी में सबसे ज्यादा फिल्में करने वाला विलेन मैं हूँ। मैं अबतक
३५० फिल्में कर चुका हूँ। वैसे मुझे अभी भी लग रहा है कि मैं लड़ ही रहा हूँ, जूझ ही रहा हूँ। अभी भी मेरी ललक है कि मुझे पूरा देश जाने, पूरा विश्व जाने। आजकल मैं महींने में एक फिल्म कर लेता हूँ।
गर्दिश के दिन
दो साल तो मेरे पास काम ही नहीं था। उन दिनों मैंने
दुबे जी के साथ थिएटर ज्वाइन कर लिया था। मगर उन दो सालों में मैने कोई कैमरा
देखा नहीं। उसके बाद मुझे स्टार प्लस का सीरियल मिला अंतराल। उसमें मेन रोल में थे ओम पुरी। फिर सीरियल में रोल मिलते
रहे। मैंने २००२ में पहली भोजपुरी फिल्म की । उसके बाद हर साल दो दो फिल्में
करता रहा। २०१० से रेगुलर फिल्में करना आरम्भ हुआ। आजकल साल में १७ फिल्में कर
लेता हूँ। लोग मुझपर ट्रस्ट करते हैं। मैं भी जो कमिट करता हूं, वह पूरा करता हूँ। मैं जब सेट पर जाता हूँ, तो मेरा
ही सूट लगता है। क्योंकि मैं रियली बीजी होता हूँ, यह कोई
फेक बात नहीं है। इसलिए प्रोड्यूसर मुझे प्रायोरिटी देते हैं।
भोजपूरी फिल्मों के औडिशन
भोजपूरी फिल्मों के औडिशन नहीं होते। उसमें जो एक्टर
लिए जाते हैं वे सीरियलों से या फिल्मों से या किसी के लिंक से लिए जाते हैं।मुबई में भोजपुरी के दो बड़े इंसटीच्यूट खुले हैं
एक तो हमारे ही नाम से चल रहा है एक्टिंग विथ कैमरा जो प्रकाश झा , सुशील सिंह और मैं चला रहे हैं।
भोजपुरी में काम मिलना सबसे आसान है
श्री पांडे कहते हैं कि आप प्रोपरली आएं, काम सीखें। भोजपुरी में काम मिलना सबसे आसान है। क्योंकि भोजपुरी वाले
पैसा नहीं देते। जो स्थापित हो जाते हैं, उनको पैसा मिलता
है। हिंदी में मौका आसानी से नहीं मिलता। जो भोजपुरी फिल्मों में आना चाहते हैं, उनसे मेरा कहना है कि यह कठिन भी नहीं है और आसान भी नहीं है।
सिनेमा और
सीरियल का अंतर
श्री पांडे सिनेमा
और सीरियल का अंतर बताते हैं कि सिनेमा थोड़ा आराम से बनता है, टेलीविजन में टेलीकास्ट का प्रेसर रहता है, टाइम की पावंदी रहती है।
भोजपुरी
और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अंतर
भोजपुरी और हिंदी
फिल्म इंडस्ट्री में क्या अंतर है, इसके उत्तर में वे
कहते हैं कि भोजपुरी और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जमीन और आसमान का फर्क है।
भोजपुरी में थोड़ा अनप्रोफेशनलिज़्म है। मेरी उससे यह शिकायत भी है कि जब यह एक
इंडस्ट्री बन ही गयी है, इतने लोगों का रोजगार है, तो उसे एक प्रोपर वे में किया
जाय। हम सबों की जिम्मेवारी है। यहां एक इंडस्ट्री का नाम है, मगर चीजें उस हिसाब
से सिस्टेमेटिक नहीं हैं। एक अलिखित नियम कानून तो होना ही चाहिए। यहां वो दिखता
नहीं है। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री
अव्यवस्थित और अव्यवसायिक है। इसका अबतक व्यवसायीकरण नहीं हुआ है । इसका कारण
है कि यहां आय कम है।
नये कलाकारों को नसीहत
श्री पांडे कहते हैं कि आप जब मुंबई पहुंचे तो इतने
तैयार होकर आएं, कि जो पहला मौका मिले उसे आप जाया न होने दें।
आजकल के लड़कों की प्रोबलैम है कि उनकी तैयारी नहीं होती। आप में यदि टैलैंट है, तो मौका मिलेगा। मुंबई समंदर का शहर है। डुबोने से पहले यह आपको तीन बार
उछालता है। यह शहर आपको तीन मौका देता है। अगर उन तीन मौकों में आप नहीं सिद्ध कर
पाए तो मान लीजिए कि आप में टैलेंट नहीं है। अब आप घर वापस जायें। अब खुद को भ्रम
में मत रखो।
मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की खासियत
यह शहर सबको मौका देता है। टिकता वही है जिसके पास
हुनर होता है। हुनर ही काम आता है। इस फिल्ड में किसी की पैरवी नहीं चलती। आरक्षण
नहीं चलता। सोर्स नहीं चलता। पुस्तैनी नहीं चलती। पिता बड़े एक्टर होता है मगर
बेटा नहीं चलता है, ऐसे भी उदाहरण हैं । यहां काम मिलने
के लिए बाहर का दवाब नहीं चलता है। यहां पौलिटिक्स नहीं चलती है। ग्रुपवाजी नहीं
भी नहीं चलती है।







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