Header Ads Widget

 Textile Post

कोरोना महामारी से टेक्‍सटाइल और गारमेंट इंडस्‍ट्री सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुई है: कीर्ति शाह (Zola)



Kirti Shah, Pragati Fashions, Zola
Kirti Shah, Pragati Fashions, Zola



मुंबई: कोरोना महामारी ने पूरे भारत देश को भारी नुकसान पहुचाया है। अगर टेक्‍सटाइल जगत की बात करें तो यह देश में कृषि के बाद सबसे ज्‍यादा रोजगार देने वाला सेक्‍टर है। टेक्‍सटाइल और गारमेंट  इंडस्‍ट्री लेबर इंटेसिव इंडस्‍ट्री है। इसने भारत में मजदूरों की एक बड़ी संख्‍या को रोजगार दे रखा है। इसलिए इस सेक्‍टर को इस महामारी से सबसे ज्‍यादा नुकसान हुआ है। प्रगति फैशन्‍स प्रा.लि. के डायरेक्‍टर श्री कीर्ति शाह ने यह जानकारी दी। प्रगति फैशन्‍स प्रा.लि. भारत में फिमेल फैशन वेयर उत्‍पादन की एक अग्रणी कम्‍पनी है। इसका उत्‍पाद जोला (Zola) ब्रांड के अंतर्गत देश भर में बिकता है। यह ब्रांड लेडिज इंडो वेस्‍टर्न वेयर में भारतीय महिलाओं की सबसे पहली पसंद है। इनका दूसरा ब्रांड जोला किड्स (Zola Kids) बच्‍चों में बहुत पसंद की जाती है।


श्री कीर्ति शाह ने कहा कि हम स्थिति के सुधरने का इंतजार कर रहे हैं। टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री के मजदूरों पर इस कोरोना एपीडैमिक की सबसे बड़ी मार पड़ी है। उन्‍होंने आशंका जतायी कि अगर यह संक्रमण का मामला नहीं सुधरा तो कहीं न कहीं सरकार को भी इन मजदूरों को कोई वैकल्पिक रोजगार देना भारी पड़ेगा। इस महामारी के कारण तात्‍कालिक रूप से टेक्‍सटाइल और गारमेंट इंडस्‍ट्री के मजदूर सबसे ज्‍यादा प्रभावित हुए हैं। गारमेंट इंडस्‍ट्री के मजदूर सबसे ज्‍यदा  संख्‍या में बेरोजगार हुए हैं। इस महामारी के कारण जो लॉकडाउन लागू किया गया उससे टेक्‍सटाइल और गारमेंट इंडस्‍ट्री सबसे ज्‍यादा प्रभावित हुयी।

उन्‍होंने कहा कि लॉकडाउन लागू किए जाने के तीन महीने बाद जब अनलॉक वन लागू हुआ तो भी मुश्किल से कै‍जुअल वेयर  का माल कुछ हद तक बिक रहा है। आज भी इंडियन कलचर के हिसाब से जो माल बिकना चाहिए वो बिक नहीं रहा है।

प्रगति फैशन्‍स प्रा.लि. के डायरेक्‍टर ने कहा कि मजदूरों को केंद्र सरकार ने और विशेषकर हमारे प्रधान मंत्री ने आश्‍वासन दिया था कि जो जहां हैं वे वहीं रहें। हम उनके खाने पीन का सारा बंदोबस्‍त करेंगे। फिर उन्‍होंने उसके लिए पर्याप्‍त धन भी आवंटित किया। यह राशि लोगों की उम्‍मीद से कहीं अधिक थी। उन्‍होंने इसके लिए २० लाख करोड़ का पैकेज भी दिया। बेशक यह धन बतौर राहत राशि पर्याप्‍त था। मैं इसके लिए उनकी प्रशंसा करता हूं। उन्‍होंने इस महामारी से लड़ने में जो सक्रियता दिखायी उसकी दुनिया भर में प्रशंसा हुयी। यह हमारे प्रधान मंत्री का कुशल नेतृत्‍व है जिसके कारण कोरोना भारत में ज्‍यादा नुकसान नहीं पहुचा पाया। ३६ करोड़ आवादी वाले अमेरिका जैसे विकसित देश में जहां एक लाख से ज्‍यादा लोग इस महामारी के कारण अपनी जान गवा चुके हैं वहीं १३० करोड़ आवादी वाले भारत में कोरोना के कारण मरने वालो की संख्‍या १६००० के नीचे है।   

श्री कीर्ति शाह ने कहा दुख इस बात का है कि प्रधान मंत्री के बेहतरीन काम काज के विपरीत ज्‍यादातर राज्‍य सरकारों ने लोगों को निराश किया। वे इस आवंटन को जरूरतमंदों के पास पहुचाने में असफल रहीं। राज्‍य सरकारों को यह सम्‍भालना चाहिए था। अगर उनसे यह काम नहीं हो पा रहा था तो उन्‍हें केंद्र सरकार से यह अपील करनी चाहिए थी कि हम लोगों तक इसे नहीं पहुचा पा रहें हैं हमारी मदद करो। जैसा कि बाढ़ या अन्‍य प्राकृतिक आपदा काल में होता है कि सेना आकर लोगों की मदद करती है। क्‍योंकि वह काम आम आदमी के लिए काफी मुश्किल और दुरूह होता है। तो इस स्थिति में भी यदि राज्‍य सरकारें खुद से काम सम्‍भाल नहीं पा रही थी तो उन्‍हें केंद्र सरकार से अपील करनी चाहिए थी। और हमे पूरी उम्‍मीद है कि तब केंद्र सरकार अपना सहयोग जरूर देती। इसका सबसे हालिया उदाहरण दिल्‍ली राज्‍य है। जब अरविंद केजरीवाल से स्थिति नहीं संभली और वह गृह मंत्री अमित शाह के शरण में पहुचे और अमित शाह ने ४ दिनों के भीतर हजारों बेड का कोरेंटाइन सेंटर का इतना व्‍यापक प्रवंध कर दिया जो केजरीवाल के लिए तो असंभव था। महाराष्‍ट्र सरकार को भी ऐसा ही करना चाहिए था जब उन्‍हें लगा कि अब यह उनके हाथ से निकला जा रहा है।

प्रगति फैशन्‍स प्रा.लि. के डायरेक्‍टर ने कहा कि केंद्र सरकार को भी कुछ हद तक इस मामले में नाकामी मिली है। उन्‍हें राज्‍य सरकारों पर वाच रखना चाहिए था। केंद्र सरकार निश्चिंत हो गयी कि राज्‍य सरकारें मामले को संभाल लेंगी। मगर ऐसा हुआ नहीं।

उन्‍होंने कहा कि घर लौटने वाले मजदूरों के जितने फोटो वायरल हो रहे थे उसको देखकर आंखों में आंसू आ रहे थे। किसी के पावों में छाले पड़े हैं। कोई औरत अपने बच्‍चे को बैग पर सुला कर ले जा रही है। किसी को खाने की तकलीफ है। किसी को परिवहन की तकलीफ है। इसमें राज्‍य सरकारों की बहुत बड़ी नकामी हुयी है। मगर केंद्र सरकार की भी मैं नाकामी मानता हूं। केंद्र सरकार को वाच करना चाहिए था कि राज्‍य सरकारें क्‍या व्‍यवस्‍था कर रही है और वह कहां नाकाम हो रही है।
                                             

ज़ोला (Zola) ब्रांड के डायरेक्‍टर ने कहा कि टेक्‍सटाइल उत्‍पादकों ने अपने मजदूरों का एक हद तक ख्‍याल रखा। और वे आज भी उनका ख्‍याल रख रहे हैं। मैं ऐसे कई  लोगों को जानता हूं जो आज भी अपने वर्करों के खाने पीने का खयाल रख रहे हैं। हम चाहते हैं कि कोई आदमी भूखा नहीं रहे।

श्री कीर्ति शाह ने कहा कि जबतक इसकी कोई वैक्सिन नहीं बनेगी तबतक तो यह हालत नहीं सुधरेगी। आज भी डर बना हुआ है। आज भी कई जगह अस्‍पतालों में जगह नहीं है। कई अस्‍पतालों में अत्‍यधिक बिल वसूला जा रहा है। इन सब बातों के देखते हुए यह जजमेंट करना मुश्किल है कि कब तक हालात काबू में आएंगे। इस बात की आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता है कि शायद लाइफ टाइम तक यह एपीडेमिक हमारे साथ चलता रहे। या साल, दो साल, पांच साल भी लग जाय हालात को सामान्‍य होने में। जबतक प्रोपर तरीके से दबाई नहीं आएगी तबतक हम कुछ नहीं बोल सकते हैं।

उन्‍होंने कहा जो माल घर पर बैठकर पहना जाता है जैसे केजुअल वेयर, नाइट वेयर, नाइट सूट, उसका थोड़ा बहुत बिजनेस शुरू हुआ है। बांकी फैशन इंडस्‍ट्री का काम धाम तो जीरो है।  

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ