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जब तक मुंबई की लोकल ट्रेने चालू नहीं होगी तब तक टेक्‍सटाइल के व्‍यापार में फर्क पड़ेगा: परेश सोट्टानी


Paresh Sottany, A P Textile (India)
Paresh Sottany, A P Textile (India)



मुंबई: कोरोना महामारी ने हर इंडस्‍ट्री को नुकसान पहुचाया है। कोई भी ऐसी इंडस्‍ट्री ऐसी नहीं है जो इसकी मार से बची रह गयी हो। A P Textile (India) के डायरेक्‍टर श्री परेश सोट्टानी ने यह जानकारी दी। श्री सोट्टानी इस कम्‍पनी के अलावा Ratan Rayon (India)  तथा Bhairav Jee Cot Fab के भी डायरेक्‍टर हैं।

उन्‍होंने कहा कि हमारी अवश्‍यकताओं की प्राथमिकता की फेहरिस्‍त में कपड़ा सबसे बाद में आता है। जब शादी व्‍याह और समारोह होते थे तो लोग नये कपड़े पहन कर जाते थे। फिलहाल कोरोना महामारी के कारण शादी व्‍याह और समारोह हो नहीं रहे हैं। और आने वाले कितने समय तक ये स्‍थगित रहेंगे यह कहना मुश्किल है। इस तरह कपड़े की खपत ही रुक गयी है। सबसे ज्‍यादा इसका दुष्‍प्रभाव एथनिक वेयर पर पड़ा है। फैंसी फैब्रिकों का ज्‍यदा रूझान युवाओं में है। यह काम चलता रहेगा। मगर इसको समय लगेगा। लोग घर से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं तो वे क्‍या कपड़े पहनेंगे?

श्री परेश सोट्टानी ने कहा कि अनलॉक वन चालू हो गया है मगर कुछ रिटेल शॉप के अलावा कुछ नहीं खुल रही हैं। जब तक मुंबई की लोकल ट्रेने चालू नहीं होती है तब तक मुंबई के व्‍यापार में बहुत फर्क पड़ेगा। हमारे स्‍टाफ आ जा नहीं सकते हैं। बाहर से ब्रोकर आ जा नहीं सकते हैं। जैसे होलसेलरों और मैनुफैक्‍चरों के काम काज बंद ही हैं। कहने भर के लिए हमलोगों ने अपने वर्क शॉप खोले हैं। काम काज पटरी पर नहीं चल रहे हैं। एक तो मजदूरों का अभाव चल रहा है। अधिकांश मजदूर घर जा चुके हैं। मगर उनके यहां जॉब है नहीं। वहां खाने पीने की भी समस्‍या है। कुछ मजदूर लौटे जरूर हैं। उनकी संख्‍या मात्र २० प्रतिशत है।

A P Textile (India) के डायरेक्‍टर ने कहा कि जो फैक्ट्रियां चलने लगी हैं वह महज २० प्रतिशत प्रोडक्‍शन कर पा रही है। इससे उनका उत्‍पादन लागत बढ़ गया। डाइंग हाउस में पहले सातो दिन डे नाइट डाइंग चलती थी वहां अब एक शिफ्ट डाइंग चलती है। इसमें मजदूरों का भी अभाव है। ग्रे का उत्‍पादन भी रुका है । आर्डर आ नहीं रहा है।

श्री परेश सोट्टानी ने कहा कि लॉक डाउन वन के खुलने के दस बारह दिनो के भीतर थोड़ा बहुत पेमेंट भी आए हैं। थोड़ा बहुत आर्डर भी आए हैं। मगर उसके आगे फिर कुछ काम नहीं है। आर्डर भी नहीं हैं। काम काज वापस से ठप हो गया है। उन्‍होंने कहा कि WHO बता रहा है जुलाई से अगस्‍त तक पीक प्‍वाइंट आएगा। टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री के लोगों के अंदर डर बैठा हुआ है। अब तक इसकी कोई वैक्सिन या दबाई नहीं आयी है।

A P Textile (India) के डायरेक्‍टर ने कहा कि मुझे दिवाली से पहले टेक्‍सटाइल व्‍यापार के चलने की कोई उम्‍मीद नहीं लगती है। उसमें भी कोई ज्‍यादा मांग होने की उम्‍मीद नहीं है। उन्‍होंने कहा कि कोरोना महामारी के कारण बिजनेस का स्‍टाइल बदलना पड़ेगा।  अब उस स्‍टाइल में बिजनेस नहीं होगा जिस स्‍टाइल में पहले बिजनेस होता था। पहले सीजन आने के पहले फुलफ्लेज में व्‍यापारियों की लाइन लग जाती थी। ट्रेनों में भीड़ बढ़ जाती थी। होटलों में भीड़ बढ़ जाती थी। अब ज्‍यादातर व्‍यापारी नहीं आएंगे। अब बगैर आने जाने के एलेक्‍ट्रोनिक मेडिया और वाट्सएप बेस्‍ड व्‍यापार होगा। इसमें जो अपनी क्‍वालिटी मेनटेन रखेगा उसका व्‍यापार अच्‍छा चलेगा। जो हलका कपड़ा बनाते थे उनको ज्‍यादा धक्‍का लगेगा। अब आगे जैसे व्‍यापार चालू होगा तो ब्रांड वालों का काम बेहतर होगा। अनब्रांड प्रोडक्‍ट के लिए सर्वाइवल का खतरा आने वाला है।  जिनके कस्‍टमर्स फिक्‍स हैं उनका लाभ होने वाला है।

श्री परेश सोट्टानी ने कहा कि यार्न उत्‍पादकों से गारमेंट बेचने वालों तक टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री में एक चेन काम करता है। इस चेन का हर प्‍लेयर चाहता है कि उसका काम काज चले। इन तीन चार महीनो में सबको नुकसान हुआ है।
A P Textile (India) के डायरेक्‍टर ने कहा कि चीन पर जो प्रतिबंध लगाया जा रहा है ये भारत के स्‍वर्णिम भविष्‍य को आमंत्रित कर रहा है। यह एक अच्‍छा संकेत है। इससे दूसरी इंडस्‍ट्रीज को तो लाभ होगा ही साथ साथ कपड़ा इंडस्‍टी को सबसे ज्‍यादा लाभ मिलेगा। पूरी दुनिया को चीन के बाद भारत ही सर्वाधिक कपड़ा सप्‍लाई करता है। भारत क्‍वालिटी मेकर बनेगा और पूरी दुनिया में इसका डंका बजेगा। हमे बस टाइम से डिलेवरी देनी होगी। गुणवत्‍ता को बनाए रखना होगा। वो हमको सीखना भी पड़ेगा। इस बात का टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री को बहुत फायदा मिलेगा। ऐसा हो सकता है कि भारत का टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री का नाम दुनिया में नम्‍बर वन पर आएगा।

श्री परेश सोट्टानी ने कहा कि मजदूरों को मैं अपने परिवार के सदस्‍य की तरह मानता हूं। हमारा और उनका जो नुकसान हुआ है उसमें हमदोनो को कुछ सेटलमेंट करना होगा। उनको नकरा नहीं जा सकता। उनके काम करने से ही तो हमारी फैक्‍ट्री चल रही थी। हमे उनका ध्‍यान रखना चाहिए और उन्‍हें भी समझौता करना होगा कि हमारा बौस इस स्थिति में उतना सैलरी नहीं दे पाएगा । अभी उनका घर खर्च चलाना मालिकों का दायित्‍व है। बाद में तो सामान्‍य स्थिति को आना ही पड़ेगा। पर यदि ये जो लॉकडाउन का पिरियड है वह ज्‍यादा लम्‍बा खिचता है तो व्‍यापारी भी सैलरी देने में असमर्थ हो जाएगा। क्‍योंकि उसको भाड़ा भी देना है उसको इंटरेस्‍ट का पैसा भी चुकाना है। उसको इएमआई भी देनी है। यह मालिक मजदूर के तालमेल से ही चल सकता है।

ये जो लॉकडाउन का पिरियड है  उसमें उत्‍पादकों ने मजदूरों को एनीटाइम ख्‍याल रखा। मजदूरों और मालिकों का साथ चल रहा है। यह कम से कम ९५ से ९८ प्रतिशत तो सही है। मजदूरों और मालिकों का तालमेल तो अच्‍छा चल रहा है। मैं खुद भी अपने मजदूरों का ध्‍यान रख रहा हूं।

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