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आंदोलनकारी चाहते ही नहीं हैं समाधान

 

Narendra Singh Tomar Minster of Agreeculture


 

जिन किसानों  को सबसे ज्‍यादा लाभ मिला, जो आगे निकल गये, वे दूसरे किसानों को आगे नहीं आने देना चाहते है। आंदोलनकारियों के रुख से लगता है कि किसान संगठन और उनके नेता यह कतई नहीं चाहते हैं कि किसी भी स्थिति में यह बार्ता सफल हो जाय। उनको यह लग रहा है कि वे सरकार पर दबाव बना कर लंबे समय के बाद प्रासंगिक हो रहे हैं। 

 

अब आप यकीन मानिये कि यह बार्ता सफल नहीं होने वाली है। अब सरकार को यह तय करना है कि वह सामान्‍य किसानों के हक में कड़े निर्णय लेने जा रही है या इन किसानो के सामने झुक कर पीछे हट रही है। 

यह कानून उन किसानों के लिए है जो समद्धि के दौर में पिछर गये हैं

 

जो किसान समृद्ध हो गया है यह कानून उसके लिए नहीं है। यह कानून उन किसानों के लिए है जो उस समद्धि के दौर में पिछर गये हैं। और आंदोलन कर रहे हैं समद्ध किसान, और उनके साथ जुड़ गये हैं खालिस्‍तानी त्‍त्‍व, आइएसआइ से जुड़े तत्‍व, और अन्‍य राष्‍ट्र विरोधी तत्‍व।

सरकार को पूरी कड़ाई के साथ इसको लागू करने पर ही जोर देना चाहिए। इसके बावजूद यदि आंदोलनकारी आंदोलन करते रहना चाहते हैं तो यह उनका अधिकार है मगर रास्‍ता जाम करके जो उन्‍होंने हालात बना दिय है वह अनुचित है।

लोग अस्‍पताल नहीं पहुंच पा रहे हैं। लोग दफ्तर नहीं जा पा रहे हैं। कारोबारी कारोबार नहीं कर पा रहे हैं। ये तथाकथित किसान आंदोलन को लंबा खीचने के लिए गांव जाकर और अनाज लेकर आ रहे हैं।

 

नुकसान का आंकलन

किसानों के लिए यह अब संभव नहीं है कि वे अपनी उपज बेच पाएं। अगर यह स्थिति लंबे समय तक रही तो इसका भारी नुकसान हो सकता है। इस आंदोलन के ९ दिनों में स्थिति यह है कि २००० करोड़ से ज्‍यादा का नुकसान सिर्फ पंजाब में हो चुका है।

 

टिकरी बोर्डर पर बाकायदा १५ किमी का जाम लग चुका है। कोई रास्‍ता ऐसा नहीं है जहां से लोग आसानी से दिल्‍ली में दाखिल हो सके। किसान कह रहे है कि एक इंच जगह जाने वालों को नहीं देंगे।

 

नोएडा की फैक्‍ट्रियों में सपलाइ बंद हो रहे हैं, क्‍योंकि ट्रकों की आवाजाही नहीं हो पा रही है। अगर ऐसा ही रहा तो दिल्‍ली एनसीआर में खाने पीने की चीजों की महगाई बढ जाएगी।

दिल्‍ली के आजादपुर मंडी में प्रतिदिन १२ से १३ हजार टन सामान जैसे फल और सब्‍जियां आती थी। पीछले ९ दिनों से मात्र ६ से १० हजार टन सामान आ रहे हैं।

अगर ३ हजार टन सामान कम आ रहे हैं, तो वो भी तो किसी किसान के ही हैं। ये चीजें बिकतीं तो किसी किसान के जेब में ही तो पैसा जाता। आंदोलन से पूर्व २.५ हजार ट्रके आती थीं। अब ८०० ट्रके आ रही हैं। प्रति दिन १५०० ट्रकें नहीं आ रही है। वो ट्रकवाला भी तो किसी किसान का बेटा है।

 

 

आंदोलनकारियों की मांगें सामान्‍य किसान के हित के विरुद्ध है

 

आंदोलनकारियों ने पूरे दिल्‍ली और एनसीआर के रास्‍ते में बाधा खड़ी कर रखी है। नोएडा से दिल्‍ली जाने वाला रास्‍ता बंद है। वैसे ही गाजीपुर यूपी गेट वाला रास्‍ता बंद है। सिंधु और टिकरी बोर्डर भी बंद है। किसानो ने सारा रास्‍ता घेर लिया है। सड़क पार राशन पानी बना रहे हैं।

खरीफ मारकेटिंग सत्र २०२०-२१

प्रेस इनफौरमेशन ब्‍यूरो की तरफ से जो आंकड़े आए हैं उनके अनुसार खरीफ मारकेटिंग सत्र २०२०-२१ में  ६८९५१० किसानो से १०१४५.४९ करोड़ रुपए की सरकारी खरीद हुई है। ३४५४४३९ कपास की गांठें खरीद ली गयी है।

 

पंजाब, हरियाना, यूपी, तेलांगाना, उत्‍तराखंड, तमिलनाडु,केरल, गुजरात, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र और बिहार से ३२९.८६ लाख टन धान खरीदा गया है,तीन दिम्‍बर तक। पीछले साल यह अमाउंट २७५.९८ लाख टन धान खरीदा गया था। सरकारी खरीद में १९ प्रतिशत की ग्रोथ है। ३२९.८६ लाख टन धान में से अकेले पंजाब से २०२.७ लाख टन धान की  खरीद हुयी है। यह कुल खरीद का ६१ फीसदी से ज्‍यादा है। कुल ३१७८००० कुल किसान हैं जिनको इसका लाभ मिला है। ६२२७८.६१ करोड़ रुपए किसानो के खाते में जा चुका है।

 

यूपी के किसानो की हिस्‍सेदारी  मात्र ६ फीसदी  है। हरियाना के किसानो की हिस्‍सेदारी  मात्र ४७ फीसदी  है। तमिलनाडु के किसानो की हिस्‍सेदारी  मात्र २ फीसदी  है। उत्‍तराखंड के किसानो की हिस्‍सेदारी  मात्र ७ फीसदी  है। तेलांगाना के के किसानो की हिस्‍सेदारी  मात्र ६ फीसदी  है। अगर इस स्‍थिति के बावजूद ये किसान दिल्‍ली जाम कर रहे है और धरना प्रदर्शन कर रहे हैं तो सोचिए कि वे क्‍या चाह रहे हैं। और क्‍या चाह रहे हैं।

 

अब मुंग उड़द और मुंगफली का हाल भी देख लेते हैं। सोयाबीन की खरीद एमएसपी वैल्‍यू के हिसाब से ६४९५० लाख की। ७८९७८ किसान लाभान्वित हुए।

 

आंदोलन में जो ३२ संगठन हैं सभी के सभी पंजाब के हैं। किसानो के लिए जो कुछ संभव है, वो कर रही है। जो कुछ सुधार का सुझाव आया उन सुधारों के आधार पर जो बेहतरी का रास्‍ता हो सकता है उसपर चल रही है।

 

फिर भी यदि आंदोलकारी दबाव की राजनीति करना चाहते हैं तो इसका साफ मतलब है कि वे अराजकता की ओर बढ रहे हैं। उन्‍होंने यह संकेत दे दिया है कि वे अराजकता चाहते हैं। हम समाधान नहीं चाहते।

सरकार को देश के आम किसानों के पक्ष में कड़ा निर्णय लेना होगा

ये वक्‍त है कि सरकार को देश के आम किसानों के पक्ष में कड़ा निर्णय लेना होगा। जामियां के छात्रों ने भी प्रयास किया था कि देख भर के छात्र उनके पीछे पीछे आंदोलन शुरु कर दें। कुछ मुस्‍लिम बहुल इलाकों को छोड़ दें तो कोई उनके साथ नहीं आया। वह नागरिकता कानून विरोधी  आंदोलन और कहीं खड़ा ही नही हुआ। इसका भी यही हाल होगा। आंदोलनकारी समाधान चाहते ही नहीं हैं।

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