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| फर्जी किसानआंदोलन |
आज २३ जनवरी है।
सुभाष बाबू का जन्म दिन। मगर आज के अखबारों का हेड लइन देखिए।
जनसत्ता: ट्रैक्टर
परेड में चार किसान नेताओं को गोली मारने की थी साजिश। आरोपी सूटर थर्राया। अन्नदाताओं
ने प्रेस कांफ्रेंस में उगलवाए प्लॉन।
एक और
अखबार अमर उजाला का हेडलाइन है: किसान आंदोलन में सोनीपत के एसएचओ ने भेजा था
किलर। संदिग्ध ने किए कई अहम खुलासे।
कल वार्ता विफल होने
के बाद कथित (असल में फर्जी) किसान नेताओं ने मुंह पर रूमाल बांधकर और चेहरा पूरी
तरह छुपा कार एक कथित कीलर को प्रेस कांफ्रेंस में पेश किया।
उसके
वक्तव्य से आप को कई संदेह पैदा होंगे। वह किलर है ? किसी एस एच ओ का भेजा हुआ
है? इसके पीछे कोई सरकारी साजिश है? क्या किसान नेताओं को मारने का वाकई कोई प्लॉन
था? क्या वह कोई सिरफिरा है? नासमझ है? या होशो हवास में ही नहीं है?
यह
लड़का कितना नन सिरियस है और ये आंदोलनकारी कितने
नन सिरियस हैं कि जो उसे पकड़कर प्रेस कांफ्रेंस करवा रहे हैं, और उसको आधार बना कर केंद्र सरकार
को, हरियाना सरकार को, हरियाना पुलिस को सबको बदनाम करने
की कोशिश कर रहे हैं।
ज़रा सोचिए
कि क्या दिल्ली पुलिस किसी लड़के को पैसा देगी कि तुम भीड़ में घुसकर गोली चला दो।
कौन लड़का होगा जो दस हजार रूपए के लिए दस लड़कों का गिरोह बनाएगा। और उन किसानो के
बीच जाएंगे जो यूनियनबाज नेताओं के भड़काने पर दिल्ली पुलिस से झगड़ रहे हैं। जो दिल्ली
की सीमाओं को जाम करके बैठे हैं। ऐसे लोगों की भीड़ में जाकर कौन गोली चलाने का दु:साहस
करेगा, दस हजार रूपया के लिए। और उसको यह
सब दिल्ली पुलिस के एक एसएजओ ने कहा। और वो एसएचओ अपना चेहरा ढक कर आता है। लेकिन
नेमप्लेट खुली छोड़ देता है।
वह लड़का आरोप लगा रहा
है कि राई थाने के एसएचओ प्रदीप सिंह हमारे पास मास्क लगा कर चेहरा ढककर आते थे। मगर
विल्ला लगा कर आते थे । उसी को उसने पढ़ लिया।
यह दिखता है कि अब जब
कुछ नहीं हुआ। देश भर के सामने ये यूनियनबाज नेता पूरी तरह एक्सपोज हो गये। इनके घर
गांव में पहले ही इनकी इज्जत खत्म हो चुकी है। इनलोगों ने कभी आम किसान की भलाई
नहीं की। ये वो लोग हैं जमीन कब्जा करते हैं। लोगों से आंदोलन के नाम पर जबरदस्ती
चंदा वसूलते हैं।
हम पहले दिन से देख रहे हैं कि यह आंदोलन अराजकता, अनुशासनहीनता, झूठ, धमकियां की बदौलत चल रहा है। ये फर्जी किसान
सरकार को ब्लैकमेल करने पर उतारू हैं। ये किसी को सुनने को तैयार नहीं हैं। ये न
संसद को मानते हैं, न सुपरीम कोर्ट को मानते हैं, न सरकार को, न सुपरीम कोर्ट
द्वारा गठित कमीटी को मानते हैं ।
ये
समाधान चाहते ही नहीं हैं। कृषि कानून के
खिलाफ़ जो आंदोलन हुआ उसने बहुत कुछ खोल कर रख दिया है। पिछले डेढ़ दशक से जो
चर्चा हो रही थी, कि
किसानों की हालत में सुधार होना चाहिए। राष्ट्रीय कृषि आयोग ने इसके लिए जो
शिफारिशें दीं, कृषि के बड़े बड़ विद्वानों ने जो
सुझाव दिए, उसके लिए जब मोदी सरकार कानून
लेकर आती है तो उसे लागू करने से रोकने के लिए देश विरोधी ताकतों ने पंजाबियों को
आगे किया । इसमें गलत तरीके से सिक्ख पंथ को लाने की कोशिश की गयी। इसमें
गुरुद्वारां प्रवंध कमिटियों का राजनैतिक इस्तेमाल हुआ है। इसमें कनाडा और
ब्रिटेन में बैठे लोगों ने भड़काने का काम किया।
इस
ओंदोलन को कांग्रेस,
बामपंथी, आप, सपा, वसपा, तृणमूल, डीएमके, एआइएडीएमके, एआइएमआइएम सहित देश के २३
पार्टियों का सपोर्ट है। फिर भी यह सफल होता हुआ नहीं दिख रहा है क्योंकि यह एक
फर्जी आंदोलन है।
ये जो
कानून आए हैं, इससे बढि़यां कानून किसान के लिए
आ नहीं सकता था। तो फिर किसान इसका विरोध क्यों
करेंगे। देश भर के किसान इससे खुश हैं तो मुट्ठी भर पंजाब और हरियाना के तथाकथित
किसान, जो वास्तब में अढ़तिया हैं, बड़े जमीनदार हैं, उनको क्यों तकलीफ है।
दर असल सालों से ये
दलाल आम किसानों को लूटते आए हैं। यह कानून उन किसानों के लिए लाया गया जो उपज का
उचित मूल्य नहीं पा रहे थे। जो आत्म हत्या करने को मजबूर थे। ७० सालों में पहली
बार किसी सरकार ने इन गरीब किसानों के बारे में कुछ किया।
पूर्व
की सरकारों ने भी इन सिफारिशों की वकालत की मगर लागू नहीं किया। आज नरेंद्र मोदी
सरकार ने इसे लागू किया तो बाक़ी सभी पार्टियों को लगा ये श्रेय तो अब नरेंद्र
मोदी को मिल जाएगा । चलो सब मिलकर व्यवधान करो।
इनकी
तमाम साजिश एक एक कर सामने आ रहे हैं। अब एक नकली सूटर को इन्होंने प्रेस
कांफ्रेंस कर सामने लाया है।
आखिर जब इन्होंने
उसे पकड़ ही लिया तो उसको मुंह ढक कर सामने लाने की क्या मजबूरी थी। अब तो वह
अपने बस में नहीं है, वह आपके बस में है। वह जबरदस्ती तो अपना मुंह
ढक नहीं सकता। इसका मतलब है सारा मामला फैब्रिकेटेड है।
अच्छा
यह है कि हरियाना पुलिस ने उसे पकड़ लिया
है । अब वह पुलिस को बता रहा है कि आप फर्जी किसानों का फ्रॉड।
यह
तथाकथित या फर्जी किसान किसान आंदोलन शाहीनबाग के आंदोलन से अलग नहीं है। इन दोनों
में पूर्ण समानता है। जो लोग शाहीनबाग आंदोलन में शामिल थे और जो इस फर्जी किसान
किसान आंदोलन शामिल हैं उनमें कोई भिन्नता नहीं है। इनका उद्देश्या स्पष्ट हो चुका है। ये किसी
भी तरह देश को अराजकता में झोंकने पर आमदा हैं।
किसानों
और केंद्र सरकार के बीच ११वें दौर की वार्ता भी खत्म हो गयी। इसमें किसी १२ वें
दौर की वार्ता की तारीख नहीं आयी है। इस ११वें दौर की वार्ता में सरकार की तरफ से
एक महत्वपूर्ण बात कही गयी कि यदि आपको सरकार के प्रस्ताव नहीं स्वीकार हैं तो
आप नए और बेहतर प्रस्ताव लेकर आइए। तभी वार्ता होगी। सरकार की तरफ से इस बात का
सामने आना बेहद ज़रूरी था।
इस मामले में पहले
तो विधायिका, कार्यपलिका और न्यायपालिका तीनो ने अपनी जिम्मेवारी
ठीक से नहीं निभायी।


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