दिल्ली: आज हमारा गणतंत्र दिवस है। यह जश्न का दिन होना चाहिए था। आज हमारे संविधान के सम्मान का दिन है। हमारे लोकतंत्र के लिए गौरव का दिन है। आज के दिन हम अपनी सेना के शौर्य और पराक्रम को याद किया जाता है।
लेकिन आज गणतंत्र दिवस के मौके पर जो हुआ, वह भारत के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। यह जो कुछ हुआ वह होना नहीं चाहिए था। यह जिनलोगों ने किया वे अपनेआप को अन्नदाता बताते हैं।
जिस तिरंगे की शान के लिए हमारे जवान जान कुर्बान कर देते हैं, आज ये तथाकथित किसानो ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर उसी तिरंगे का अपमान किया। दंगाइयों ने लाल किले की पवित्रता पर हमला किया। लाल किले के प्राचीर पर सिर्फ एक ही झंडे की जगह है, वो है हमारा राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा झंडा। यह हमारी आन बान और शान का प्रतीक है।
दंगाइयों ने वहां खलिस्तान का झंडा फहराया। आज हर राष्ट्र प्रेमी के मन में नाराजगी है। दिल्ली में किसान आंदोलन की आर में अराजकता हुयी। तोड़फोड़ हुयी। ट्रैक्टर मार्च की आर में दंगा करने की कोशिश हुयी। वे बस दिखावट में किसान थे। उन्होंने दंगा किया, ख़ून ख़राबा किया, उन्होंने हिंसा की। ये तथाकथित किसानों ने पूरे देश को बदनाम कर दिया। पूरी दुनियां में लोग यह तस्वीर देख रहे हैं और पूछ रहे हैं कि क्या यही लोकतंत्र है।
इन दंगाइयों ने लोहे के रॉड से पूलिस को पीटा। बसों को तोड़ा। वे तलवारें चला रहे थे। वे लाठियां चला रहे थे। हमारे पुलिस वालों को कुचलने की कोशिश कर रहे थे। उस वक्त वे सारे किसान नेता कहीं छुप कर बैठे थे, जो देश के किसानो के ठेकेदार बनकर बैठे है। वे कल तक अपने को शांतिदूत कहते थे। वे शांतिपूर्ण आंदोलन की क़समें खा रहे थे।
दर्शनपाल सिंह, राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, हन्नान मुल्ला समेत ४० किसान नेताओं ने पुलिस को वचन दिया था, गारंटी दी थी कि शांतिपूर्ण मार्च करेंगे। इन्होंने वादा किया था कि कोई डंडा और लाठी, तलवार, फरसा लेकर नहीं आएगा।
गणतत्र दिवस २०२१ के अवसर पर पूरे देश ने और पूरी दुनियां ने जो देखा कि किसान आंदोलन के नाम पर किस तरह की अराजकता फैलायी गयी है। लाल किले पर, आइटीओ पर, ट्रांसपोर्ट नगर में, मुकर्बा चौक पर, और दिल्ली के कई इलाकों में की आंदोलनकारियों ने उत्पात मचाया। सुरक्षा कर्मियों को ट्रैक्टर के नीचे रौंदने की कोशिश की गयी। इन्होंने दिल्ली पुलिस को अंडरटेकिंग दी थी कि परेड शांतिपूण होगा। उन्होंने खुद उसकी धज्जियां उड़ा दी। इनको रूट दिया गया था। उसका उलंधन किया गया। हमारे प्रतीकों, जैसे राष्ट्रीय ध्वज को अपमानित किया गया। आंदोलन कारियों की नंगई से कई सवाल खड़े हो गये हैं।
दूसरा जालियांवाला बाग होते होते रह गया
मोदी सरकार और दिल्ली पुलिस ने संयम बरता। नहीं तो आज एक और जलियांबाला बाग २ दिखायी देता। दिल्ली पुलिस ने अपने ऊपर हमले सहन किए। पर गोली नहीं चलायी। यह ठीक गणतंत्र दिवस के दिन हुआ उसकी साइकी क्या है? इनका मकसद क्या है? क्या ये वाकई किसान है?
सुबह देश ने और दुनियां ने भारतीय गणतंत्र की ताकत देखी। और दोपहर होते होते भारत का गर्व शर्म में बदल गया। लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा दोपहर में तार तार हो गयी। लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा वापस आएगी क्या ? यह सवाल देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से है। क्या आज की रात इस आतंकवादी, उग्रवादी आंदोलन की आखिरी रात होगा ?
आज उग्रवादी चढ़ गये लाल किले के प्राचीर पर। जिस लाल किले पर तिरंगा देखकर भारतीयों का सीना फूल जाता है उसपर उग्रवादियों ने अपने झंडे लगा दिए। सिख फॉर जस्टिस ने ढाई लाख डालर के ईनाम का ऐलान किया था। उस ढाई लाख के इनाम के लालच में खालिस्तानियों ने अपना झंडा फहराया। और उसके साथ और भी झंडे फहराए गये। उसमें हसुआ हथौरा भी फहराया गया। राजपथ से कुछ ही दूरी पर आज शर्मसार करने वाली हरकतें हुई हैं। लाल किला तो हाई सेकुरिटी जोन में आता है।
यह पवित्र दिवस है। ये किसान नहीं हैं। ये आमने सामने बैठकर बातकर सकते थे। पहले ये दो महीने पंजाब में बैठकर यही हठधर्मिता दिखायी। अब ये दिल्ली में वही कर रहे हैं।
इस आंदोलन के पीछे अंतराष्ट्रीय साजिश है
अब यह साफ हो गया है कि यह आंदोलन किसानो के लिए नहीं है। इस आंदोलन के पीछे अंतराष्ट्रीय साजिश है। इस आंदोलन के पीछे बड़ी ताक़तें है। गणतंत्र दिवस राष्ट्र का गौरव है। सेना का शौर्य पूरी दुनियां को दिखाने का। इनकी नीयत में खोट है। सरकार १२ बैठक करती है। ४५ घंटे तक भारत सरकार के ३ मंत्रिगण चर्चा करते हैं।
इनसे बार बार आग्रह किया जाता है कि अपकी जो आपत्तियां हैं वह विंदुवार बताइए। उनका समाघान सरकार करेगी। सरकार की नीयत साफ रही है। सरकार की नीयत रही है कि हर हाल में सरकार किसानों की समस्या का समाधान करना चाहती है। मगर हर मिटिंग में इनका जवाब रहा है कि काले कानून वापस लो। तभी समझ आ गया था कि यह आंदोलन किसानो के लिए नहीं है।
देश में ८६ प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान इस कानून से खुश हैं
इस कानून में व्यवस्था की गयी है कि किसान बीचोलिए और लुटेरों से बच सके। देश में ८६ प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं। यह उनके लिए बनाया गया था। उनकी परिस्थितियों में सुधार के लिए। उनके उपज के दाम उनको उचित तरीके से मिल जाय। सरकार ने रिफौर्म किए थे।
कंटैक्ट फार्मिंग में एक गारेंटेड मूल्य मिल जाता है। और मिल रहा है। देश के १५ राज्यों में कंटैक्ट फार्मिंग हो रहा है। पंजाब में भी हो रहा है। गर ये खराब है तो पंजाब में क्यों और कैसे हो रहा है। । गर ये खराब है तो महाराष्ट्र में क्यों और कैसे हो रहा है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती भी कंटैक्ट फार्मिंग है। गाजर की ५००० एकर की कंटैक्ट फार्मिंग बुलंदशहर में हो रही है।
अफवाह का सहारा लिया गया
आंदोलनकारियों ने झूठ बोलकर किसानो को अपने साथ किया कि तुम्हारी जमीन छिन जाएगी। गांव गांव में दुष्प्रचार किया। इनका उद्देश्य दंगा भड़काना था। इसलिए अफवाह फैलाया। इसको शुरू किया था कांग्रेस पार्टी ने और इस आंदोन पर कब्जा कर लिया बाम पंथियों ने। इनका इतिहास है हिंसा फैलाना आग लगाने का देश को तोड़ने का, । ये पूरी तरह चीन के गुलाम हैं। ये भारत के विकास के खिलाफ हैं। दुश्मन हैं। वे चीन के लिए काम करते हैं। उन्होंने इस पर कब्जा कर लिया। वे सिंधु और टिकड़ी बोर्डर पर बैठ गये। सारे कामरेड उसे कंट्रोल कर रहे थे। वे विदेशों से इंस्ट्रक्शन ले रहे थे।
अब इसमें दूसरा चैनेल भी घुस जाता है। राष्ट्र विरोधी अराजक तत्व। खालिस्तानी। इन्होंने आज नंगा नाच किया। और पुलिस ने कितना संयम बरता। उन्होंने ख़ून का घूंट पीकर देश के हित में उनकी तमाम गुंडागर्दी बर्दाश्त की। आज २६ जनवरी का दिन है। आज ऐसी कोई घटना ना घटे कि देश के माथे पर कलंक लगे।
आंदोलन कारियों ने देश के नाम पर कालिख पोत दिया। राष्ट्र किले पर देश के ध्वज को अपमानित किया। यह राष्ट्र द्रोह है। आज देश के हर आदमी के मन को चोट पहुंची है। इन राष्ट्रद्रोहियों का किसान हित से कोई वास्ता नहीं है।
अब ये अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए कहते हैं कि इसमें कुछ अराजक तत्व घुस आए थे। इन्होंने अंडरटेकिंग देकर परमिशन ली थी। इन्होंने दिल्ली पुलिस के साथ रूट तय करवाए थे। ये अब अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकेंगे। इनपर बाजाब्ता मुकदमा चलना चाहिए।
इन्होंने कहा था कि हम संसद को नहीं मानते, हम सुपरीम कोर्ट को नहीं मानते । हम सुपरीम कोर्ट के गठित कमीटी को नहीं मानते।
आलीशान आंदोलन
क्या आपने ऐसा आंदोलन देखा है जिसमें मसाज पार्लर लगे हों, जिसमें ड्राई क्लिनिंग की मशीन लगी हो, जहां औटोमेटिक चपाती बन रही हो, जहां दूध में बादाम काजू पिस्ता मिलाकर खिलाए जा रहा हो, जहां डोसा, पास्ता, पिज्जा चल रहा हो, । यह कैसे किसानो का आंदोलन है। जहां करोड़ो रूपए की गाडि़यां और कीमती ट्रैक्टर हों, । यह सब कहां से आ रहा है, ये कौन से किसान हैं। अगर देश का किसान इतना अमीर था तो कर्ज में दबकर क्यों मर रहा है ?
इस देश का ८६ प्रतिशत किसान तो बहुत गरीब है। यह उसका आंदोलन तो हो नहीं सकता। यह कानून तो उस गरीब किसानो को उसकी दुर्दशा से बाहर निकालने के लिए था। उन किसानो की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए गत १५ सालों से यह मंथन चल रहा था। २००४ में स्वामीनाथन कमीशन बनाया गया। तबसे कितनी बैठकें हुयीं। कितना मंथन हुआ। निति आयोग की कई बैठके हुयीं। किसानों की स्थिति कैसे सुधरे इसपर तमाम लोगों से चर्चा हुयी।
कानून तो सफेद कागज पर छपते हैं मगर काले रंग में छपते हैं। सफेद कागज पर सफेद रंग से तो लिखा नहीं जा सकता। कानून तो काले ही रंग में छपेंगे।
इन्होंने कभी अपनी आपत्ति नहीं बतायी। सुपरीम कोर्ट ने दो महीने के लिए इसके क्रियान्वन पर रोक लगायी । कहा कि एक कमीटी बना देते हैं। इन्होंने सुपरीम कोर्ट की कमीटी पर आरोप लगाया। इसमें दो लोग तो वे हैं जिन में से एक को मनमोहन सिंह ने २०११ में सीएसीपी कामिटी का चेयरमैन बनाया जो कृषि लागत मूल्य तय करता है। दूसरे को इकोनोमिकल एग्रीकल्चर इंस्टीच्यूट का डायरेक्टर बनाया। उनको सुपरीम कोर्ट ने कमीटी मेंबर बनाया तभी उनलोगों ने आपत्ति उठायी।
इन्होंने हर उस बात पर आपत्ति की जो देश के किसानो के हित में था। इनका उद्देश्य भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करना है। मोदी विरोध।
इसमें कांग्रेस समाजवादी कामरेड आदि के साथ अकाली दल भी मिल गया। और आज आग लगा दी और खुद भाग गये। इसमें जो ४० किसान नेता हैं उसमें ज्यादातर कामरेड हैं।
यह राष्ट्रद्रोह का आंदोलन निकला
आज किसान राजनीति को बहुत बड़ी ठेस पहुंची है। यह राष्ट्रद्रोह का आंदोलन निकला। इन्होंने किसानों के नाम पर जधन्य पाप किया है। इनको देश का आम आदमी माफ नहीं करेगा।
विश्वासघात करने वाले इन किसान नेताओं को जेल में डाला जाना चाहिए। इस सारे आंदोलन की जड़ कांग्रेस के नेता हैं, कैपटन अमरेंदर सिंह हैं। बामपंथी हैं, योगेंदर जादब हैं। दर्शनपाल हैं। इनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। ये सभी राष्ट्रद्रोह के अपराधी हैं। इनके साजिश का पर्दाफास हो गया। राहुल गांधू ने कहा था कि सड़क पर उतरो। कोमरेडों ने गांव गांव में घूम कर कहा था कि जमींन छिन जाएगी।
आज जो हुआ है वह बहुत ही पीड़ादायक है। अगर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री ने संयम धैर्य और समझदारी का परिचय दिया और और एक और जलियाबाला बाग होने से देश को बचा लिया।
एनफ इज इनफ
एनफ इज इनफ । गुंडागर्दी बहुत हो गया। देश का शर्म से सर झुक गया है। ये पूरे देश में आग लगाना चाहते हैं। यह सारा खेल इसी का है। फौरेन फंडिंग से यह सब हो रहा है। देश के विरूद्ध साजिश है। अब बर्दाश्त नहीं । सरकार जितनी संयम दिखा रही है वह भी ठीक नहीं है। अति सर्वत्र वर्जयेत।
अपीजमेंट का एहसान किसी अपीज्ड ने आज तक नहीं माना है। यह इतिहास रहा है। पृथ्वीराज चौहान ने यह शुरू किया था, जिसका नतीजा खुद जान गवाकर उन्होंने दिय और देश को गुलाम बना कर पूरा किया गया। हम आज तक भोग रहे हैं।
अपने पीछे चानक्य का फोटो लगाने से या हाथ में रखने से यह सावित नहीं होता कि उन्होंने गीता का ज्ञान आत्मसात किया या चानक्य की नीति आत्मसान किया। गीता हाथ में तो हमारे मोहनदास कर्मचंद गांधी भी रखते थे, मगर उन्होंने उसे आत्मसात नहीं किया। आखिरकार वे अपने घुटनो के बल बैठ गये और पाकिस्तान देकर आ गये।
यह तथाकथित किसान आंदोलन गुंडों का आंदोलन है। यह शुरू से दिख रहा है। ये मुट्ठी भर ज़मीनदारों और अढ़तियों का आंदोलन है। इनके साथ सख्ती से निपटने की जरूरत है।
इनका आप विश्वास नहीं जीत सकते। न इनके पास दिमाग है न दिल। ये अपने स्वार्थ में अंधे लोग है। ये लाठी की भाषा समझते हैं। इन उत्पातियों को यह संदेश चला गया था कि सरकार और पुलिस इनपर गोली नहीं चलाएगी। इसीलिए ये अनियंत्रित हुए। पुलिस को खुली छूट दे दो वे आधे धंटे में सारी समस्या का हल कर देंगे। इसमें किसी गृह मंत्री या गृह सचिव की जरूरत नहीं है। इनको सीधा करने के लिए थानेदार ही काफी है।
सरकार की यह असफलता है। आप ६० दिनों तक उन्हें बैठे रहने देते हैं। ऐसी हालत में जीरो टौलरेंस की पॉलीसी अपनाने की जरूरत है। आपने उन्हें छूट दी, जिसका यह फल मिला। यह लीडरशिप का फेलयोर है। आपने तो पुलिस का हाथ पैर बांध रखा है। यह मज़ाक नहीं तो और क्या है? ६० दिनों तक इन उग्रवादियों ने नैशनल कैपिटल को, उसके जनजीवन को सीज़ करके रखा और सरकार ने यह सब होने दिया।


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