| Mahatma Gandhi |
गांधी और गांधीवाद
गांधी पर चर्चा और
टिप्प्णी करने के कारण हिंदु साधू कालीचरण को जेल भेज दिया गया। क्या गांधी पर
चर्चा भी नहीं हो सकती? शास्त्रार्थ तो हमारे देश की परंपरा रही है। आप चाहें तो सहमत
हों न चाहें तो असहमत हों। मगर अपने विचार व्यक्त करने के लिए किसी को जेल में भेजना
तो उचित नहीं है।
गांधी तो वास्तव में
विवादास्पद व्यक्ति थे। वे ऊपर से सदाचार का आवरण ओढते थे। भीतर से सामान्य से
भी नीचे स्तर के मनुष्य थे। वे सारी जिंदगी नाटक करते रहे। जिसका चरित्र वास्तव
में ऊंचा होता है उसे किसी नाटक की जरूरत नहीं होती।
गांधी का जीवन दो
प्रमुख अवधारणाओं के ईर्द गीर्द घूमता है। अहिंसा और ब्रह्मचर्य। ये दोनो
अवधारणाएं भारत के लिए अपरिचित नहीं हैं। भारतीय मनीषा ने जीवन को ४ भागों में
बांटा है। ब्रह्मचर्य, गृहस्त, वाणप्रस्त और सन्यास।
ब्रह्मचर्य हमारे जीवन पद्धति के लिए सामान्य बात है। अहिंसा के
दर्शन की जड़े वेद के अलावा जैन और बौद्ध दर्शन में दिखती हैं। भारत के चित्त में, संसकार में अहिंसा और ब्रह्मचर्य गहरे बैठे हैं।
मगर ये दोनों बातें व्यक्तिगत जीवन के लिए हैं। ये राष्ट्र के लिए नहीं हैं। यह
राजनीति का अंग नहीं है। यह सेनापति या सेना के लिए नहीं हैं। मगर गांधी ने अपने
दुराचार को आवरण देने के लिए इसे राजनीति का अंग बनाया।
जीवन का प्रथम २०
वर्षों को ब्रह्मचर्य में निबद्ध किया गया है। फिर गृहस्त जीवन आता है। इसके बाद
वाणप्रस्त और सन्यास आता है। वाणप्रस्त और सन्यास भी ब्रह्मचर्य में निबद्ध
किया गया है। मगर वाणप्रस्त और सन्यास बाध्यता नहीं थी।
महर्षि
विश्वामित्र, भगवान राम, भगवान कृष्ण, प्रहलाद, नारद, परासर , पुंडरीक, व्यास, अंबरीष, शुक, शौनक, भीष्म, दाल्भ्य, रुकमांगद, अर्जुन, वशिष्ठ, विभीषण, बालमीकि, सनक, सनंदन, तरु, व्यास, वशिष्ठ, भृगु, जावालि, जमदग्नि, कच्छ, जनक, गर्ग, अंगिरा, गौतम, मानधाता, ऋतुपर्ण, वैन्य, सगर, राजा दिलिप, नल, युधिष्ठिर, ययाति, नहुष जैसे अनंत नामों की श्रृंखला है, जिन्होंने जीवन का शिक्षण काल ब्रह्मचारी के रूप में गुरुकुल में व्यतीत
किया। बाद में वे सब गृहस्त बने।
क्या आपने इन में से
किसी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग के बारे में सुना है? धर्म के विपरीत जाकर पहली बार
ब्रह्मचर्य के प्रयोग गांधी ने किए। गांधी ने न सिर्फ खुद ब्रह्मचर्य धारण किया
बल्कि अपने अनेक साथियों,
उनकी पत्नियों, पुत्रियों, बहनों को भी धारण करवाया।
फिर
व्रह्मचर्य को परखने के लिए वे किशारियों, तरुनियों, को वे अपने साथ एक ही विस्तर पर नग्न
सुलाते थे। वे परस्पर नग्न होकर मालिस
करते और कराते थे। बे उन तरुनियों और महिलाओं के साथ नग्न होकर स्नान करते थे। अपने व्रह्मचर्य की
परीक्षा के लिए वे इस तरह के अटपटे प्रयोग करते थे। जिसे वे सत्य के साथ प्रयोग
कहते थे। ये सारे प्रयोग स्वयं गांधी साहित्य में संकलित हैं।
उन्होंने
करीब ३६ महिलाओं के साथ यह प्रयोग किया कि इस क्रिया में उनका खड़ा होता है यह
नहीं। उन्होंने कई स्त्रीयों के संदर्भ में लिखा है कि मेरा ब्रह्मचर्य भंग होते होते बचा।
मेरी
नज़र में यह नितांत अटपटा और बेहूदा प्रयोग था, जो गांधी ने किया। ब्रह्मचर्य उपलब्ध होने वाली अवस्था है। इस
अवस्था में मन में सेक्स का कोई विचार नहीं आता। यह किसी प्रयोगशाला में करनेवाली
क्रिया नहीं है। इसका तमाशा नहीं किया जा सकता है। मगर गांधी जी ने यह किया। और
सारी उम्र करते रहे। ये सारे प्रयोग स्वयं गांधी साहित्य में हैं। गांधी के शिष्य
पटेल, नेहरू आदि इसके विरोध में थे। इस विषय
पर बाकायदा गांधी से प्रत्राचार हुए। मगर गांधी सत्य का प्रयोग बताकर अपना बचाव
करते रहे। गांधी ने स्वेच्छा से ब्रह्मचर्य
के नितांत निजी अर्थ किए।
सरदार
वल्लभ भाई पटेल, और अन्य कई इसका विरोध करते रहे। गांधी जी सत्य का प्रयोग
कहकर अपना बचाव करते रहे। गांधी के सत्य का प्रयोग महिलाओं के साथ नग्न होकर सोने, नहाने, मालिस करने और करवाने के अलावा कुछ
नहीं था - जहां तक मेरी समझ में आता है।
अहिंसा
के बारे में भी गांधी की धारणा भ्रामक थी। भारत में अहिंसा कोई नयी चीज नहीं है।
दुष्ट के सामने झुकने को अहिंसा नहीं कहा जा सकता मगर गाधी ने उसका विचित्र अर्थ
निकाला।
अहिंसा
पर भी उनकी धारणा उसके मूल अर्थ से विपरीत थी। हमारे शास्त्र में अहिंसा का अर्थ
किसी के सामने झुकना नहीं है। गांधी ताउम्र मुसलमान को तुष्टीकरण के लिए झुकते
रहे।
गांधी
गीता के जिस स्लोक अहिंसा परमो धर्म: से अहिंशा की महिमा प्रतिपादित करते हैं, वह वस्तुत: गीता में कहीं उपलब्ध ही नहीं है। इसका कहीं कोई आधार
नहीं है। गीता में तो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जिस कर्तव्य पालन का उपदेश
किया है उसमें अहिंसा परमो धर्म: का कोई जिक्र तक नहीं है।
गीता
में तो भगवान कहते हैं कि कर्म किए जा और फल की इच्छा मत कर। वह तुम्हारे हाथ
में नहीं है। उसे भगवान को तय करने दो।
गांधी जी ने भगवान कृष्ण के उपदेश की भ्रामक व्याख्या की। उसे जबरदस्ती अहिंसा से जोर दिया। यह भी एक
प्रपंच है। यह फासिज्म है। गांधी जी ने इसे प्रयोग में लाया।
यदि
गांधी जी इसे अपने व्यतक्तिगत जीवन तक सिमित रखते तो सहा जा सकता था। मगर जिस तरह उन्होंने राजनीति
में इसका प्रयोग किया उसका दुष्परिणाम हिंदु धर्म, और भारत राष्ट्र के लिये भयानक हुआ।
फिरभी यदि वे व्यक्तिगत जीवन में अहिंसा और ब्रह्मचर्य का प्रयोग करते तो ठीक था।
मगर उन्होंने राष्ट्र और राजनीति में इसका जो प्रयोग किया उसके परिणाम राष्ट्र
के लिए भयानक हुए। देश का विभाजन हुआ। करोड़ो लोग विस्थापित हुए। ४५ लाख लोगों का कत्ल हुआ। इस
पाप की जिम्मेदारी गांधी पर है।
आदमी
का बाल काल किशोर अवस्था और उसके तरुण जीवन पर प्रभाव डालता है। कुछ साल पहले
सॉथबीज़ {Sotheby's} ने "गाँधी जी के साउथ अफ़्रीक़ा में रहने वाले उनके प्रगाढ़ मित्र हरमन कलेन बाख़ को लिखे गए उनके कई पत्र" नीलाम
किए।
यह
बहुत विवादास्पद विषय था और इस पर बड़ा वबाल होने की आशंका थी अतः उन्होंने इसके
प्रमाण भी एकत्र किये। यह प्रमाण स्वयं गाँधी जी के हरमन कलेन बाख़ को लिखे गए
पत्रों से मिलते हैं। हरमन कलेन बाख़ ने भी अपने भाई को लिखे पत्रों में खुद को
गाँधी जी का "अंतरंग मित्र" कह कर उल्लेख किया है। कलेन बाख़ अत्यंत धनी, तगड़े बॉडीबिल्डर और सुदर्शन व्यक्तित्व
के स्वामी थे। यह मित्रता इतनी प्रगाढ़ थी कि हरमन कलेन बाख़ ने ही गाँधी जी को 1100 एकड़ भूमि निःशुल्क दी। जिस पर
उन्होंने टॉलस्टॉय फार्म बनाया। आइये ज्ञात और लिखित प्रमाणों द्वारा पुष्ट इस
पुस्तक के विवास्पद प्रसंगों को जाना जाये।
इन
पत्रों को तत्कालीन भारत सरकार ने खरीद लिया और संभवत: नष्ट कर दिया। कांग्रेस
सरकार को गांधी जी के उन पत्रों को नष्ट करने की क्या आवश्यकता पड़ी। कांग्रेस
के लिए गाधी एक ब्रांड है जिसे बेचकर वे जनता से बोट मांगते हैं और अपनी सत्ता को
कायम रखते हैं। यह पत्र सार्वजनिक होने पर कांग्रस सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकता
था। मगर ये पत्र नेट पर उपलब्ध हैं , आप पढ सकते हैं।
गांधी
और बॉडी बिल्डर क्लेन बाघ साउथ अफ्रीका के साउथ बेस
में ४ सोलों तक एक ही घर में रहते थे। इस
मैत्री प्रसंग के बारे में जोज़ेफ़ लेलीवेल्ड
ने अपनी पुस्तक The Great Soul Mahatma
Gandhi, The Founder Of Modern India And His Struggle में लिखा है कि : गांधी और जर्मन यहूदी बॉडी बिल्डर क्लेन बाघ के
बीच यौन संबंध थे। वर्ष 1909 में गांधी जी ने लंडन से क्लेडन बाघ को
एक पत्र लिखा था, जिसमें गाधी क्लेन बाघ के साथ बिताए
अपने पुराने दिनों को याद करते हुए लिखते हैं कि तुम
किस तरह हमारे शरीर को अपने प्रेम पास में ले लेते थे और इसमें हमें और तुम्हें
दोनो को कितनी मानसिक शांति मिलती थी। यह हमारे लिए गुलामी से मुक्ति का एक एहसास
होता था।
गांधी
जी और क्लेन बाघ एक ही कमरे में सोते थे। उनके विस्तर अगल बगल में होते थे। गांधी क्लेन बाध को अपर
हाउस कहते थे और क्लेन बाध गांधी को लोअर हाउस
कहकर पुकारते थे। ऐसे अजीब संवोधन इतिहास में कहीं नहीं मिलते हैं। जोजफ लैली
लिखते हैं कि जर्मन यहूदी बॉडी बिल्डर क्लेन बाघ और गांधी पति पत्नी जैसे संबंध
में रहते थे। इस संबोधन से पाठक स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि इसमें
पति कौन था और पत्नी कौन।
ब्रह्मचर्य के प्रयोग और परीक्षा
३१
वर्ष की आयू में गांधी जी ने अपनी पत्नी के साथ व्रह्मचर्य का संकल्प ले लिया।
इसके बावजूद वे एक संतान के पिता बन गये। ४० वर्ष की आयू में वे अपने सबसे अच्छे
दोस्त हेनरी पोलर की पत्नी मिली पोलर से एक विशिष्ट आत्मीअयता महसूस करने लगे। ४१
वर्ष की आयू में वे १९ वर्षीय मौड नामक लड़की से प्रभवित हो गये और वे उसे अपने
आश्रम फिनिक्स में ले आए। ४८ वर्ष की आयू में गांधी जी सुंदर नीली आखों वाली २२
साल की डेनिस लड़की स्टार फयरिेंग के मोहपास में पड़ गये। उसे माइ डियर हनी
चाइल्ड कहकर पुकारने लगे। माइडियर हनी चाइल्ड़ आज रात मुझे सोते समय तुम्हारी बहुत
याद आयी, ऐसा उन्होंने स्टार फयरिेंग को लिखे
एक पत्र में लिखा। ५१ वर्ष की आयू में गांधी जी रवींद्र नाथ ठाकुर की बहन की
पुत्री सरला देवी चौधरी के प्रेम में पड़ गये। वे लाहोर में उनकी कोठी में ठहरे।
उसके पति रामभुज चौधरी लाहौर के आर्यसमाज के नेता थे और उस समय जेल में थे। उनकी
पत्नी सरला देवी को गांधी जी ने अपनी आध्यकत्मिक पत्नी माना। वे कहते थे कि सरला देवी उनके सपनो में आती हैं। लाहौर में
इस पर काफी विवाद मचा। ५६ वर्ष की आयू में
गांधी जी ३५ वर्ष की मर्लिन स्लेट के प्रेम में पड़ जाते हैं और उसे अपनी
मीरा बना देते हैं। ६० वर्ष की आयू में गांधी जी १८ साल की प्रेमा को प्रेम करने
लगते हैं। ६४ वर्ष की आयू में गांधी जी २४ साल की अमेरिकन लड़की नीला सिको के
प्रेम में आवेशित हो जाते हैं। ६५ वर्ष की आयू में वे ३५ साल की जर्मन महिला
मग्रेट स्पीगल को कपड़े पहनाना सिखाते हैं।
६९
वर्ष की आयू में गांधी जी सुशीला नायर से प्राकृतिक चिकित्सा के नाम पर नग्न होकर मालिस कराते हैं। उसके साथ
नंगा स्नान भी करते हैं। यही सुशीला नायर बाद में गांधी द्वारा प्राथमिकता नहीं
मिलने पर आश्रम में हंगामा खड़ा कर देती है। गांधी की पोती मनु बहन ने अपनी डायरी
में इन चीजों का जिक्र विस्तांर से किया है।
व्रह्मचर्य
के प्रयोग में फंसी उन महिलाओं के बीच जबरदस्त
जलन का वातवरण रहता था। सरदार वल्लमभ भाई पटेल ने २५ जनवरी १९४०
को गांधी को एक पत्र लिखकर कहा कि कृपा करके आप यह प्रयोग रोक दें। पटेल
ने इसे गांधी का भयंकर भूल बताया था। इस कारण उनके मन में पटेल के प्रति गहरी
पीड़ा थी। जानकारों का मानना है कि इसी के कारण गांधी ने पटेल को प्रधानमत्री नहीं
बनने दिया। गांधी ने इन व्रह्मचर्य के प्रयोग को सत्य का प्रयोग बताया। ऐसा प्रयोग
विश्व इतिहास में दूसरा नहीं दिखता है।
७२
वर्ष की आयू में गांधी जी अपना व्रह्मचर्य
जांच करने के लिए बाल विधवा लीलावती हसर, नग्न होकर सोते हैं कि क्या अभी भी उनके अंदर काम वासना शेष है।
वे पटियाला के मैडम अबदुल सलाम, कपूरथला राज परिवार की राजकुमारी अमृत
कौर, जय प्रकाश नारायन की पत्नी प्रभावती
जैसी अनेक महिलाओं के साथ इसी तरह का
प्रयोग करते हैं। ७७ वर्ष की आयू में
गांधी जी अपनी पोती मनु और पौत्र वधु आभा के साथ नग्न स्थिति में सोते
हैं। मनु बापू के चचेरे भाई की पोती थीं और आभा रिश्ते के भाई की पौत्र वधू थीं।
यह सब गांधी साहित्य में लिखित है।
वास्तव
में गांधी के जीवन में ना तो सत्य था, ना अहिंसा ना व्रह्मचर्य। अगर कोई संभोग नहीं करता हैै मगर उसका
चिंतन करता है तो वह व्रह्मचर्य का पालन नहीं कर रहा है। बल्कि गांधी एक तरह से
सत्यवादी, अहिंसावादी और व्रह्मचर्य का नाटक करते
थे। मेरी व्यक्तिगत धारणा तो यह है कि गांधी जी पिछली सदी के सबसे बड़े फ्रॉड
(धोखेबाज) थे।
पाठक अंदाजा कर सकते हैं कि गांधी जी जिनसे देश को
यह आशा थी कि वे देश हित में कुछ प्रोडक्टिव करेंगे उनका ज्यादा समय व्रह्मचर्य और
अहिंसा पर उनके नीजी प्रयोग में बीत गया
जिसका इस देश बहुत नुकसान उठाना पड़ा।
गांधी जी तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे
उस समय भारत में रेलवे के चार वर्ग थे: एयर कंडीशन, प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी। इतने गरीब देश में, तीसरे वर्ग अर्थात थर्ड क्लास के टिकट का खर्च उठाना भी देश के लगभग आधे लोगों के लिए मुश्किल था।
गांधी
जी तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे। तीसरी श्रेणी में बहुत अधिक भीड़ होती थी। मगर गांधी जी उस भीड़
भरे थर्ड क्लास में यात्रा नहीं करते थे। आप आश्चर्यचकित होंगे कि गान्धी जी
तीसरी कक्षा में यात्रा करते जरूर थे, मगर उनके लिए पूरा कम्पार्टमेंट बुक किया जाता था। एक साठ सीट वाला
कम्पार्टमेंट जहां कम से कम 80
से 90 व्यक्ति यात्रा कर सकते थे, उसमें वे अकेले यात्रा करते थे। और उनके जीवनी लेखक लिखते हैं कि गांधी जी
गरीबों के प्रति दयालु थे। वे गाय का दूध
पीते थे, क्योंकि यह सबसे सस्ता था जिसे सबसे
गरीब आदमी भी इसे खरीद सकता था। स्वाभाविक रूप से, हर कोई, जब इसे सुनता है तो इस विचार की
सराहना करता है। लेकिन शायद आप गांधी जी की बकरी के बारे में नहीं जानते।
उस
बकरी को हर दिन लक्स टॉयलेट सोप से नहाया जाता था। उन दिनों उसके भोजन पर प्रति
दिन 10 रुपये का खर्चा आता था। उन दिनों दस
रुपये एक महीने के लिए स्कूल शिक्षक का वेतन था।
गांधी
जी जो कपड़ा पहते थे वे कपड़े अपने जमाने के सबसे महगे कपड़े हुआ करते थे। उनकी
धोती, तौनी (पलता तौलिया ), गंजी, अंडर वीयर, बेड शीट, आदि तमाम चीजें उस जमाने की बेहद मंगगे वस्त्र हुआ करते थे। उनके
कपड़े, उनका घर, उनका खाना, सब कुछ आपको एक गरीब आदमी का किरदार को
प्रस्तुत करता है । लेकिन अगर आप निष्पक्ष भाव से सब कुछ देख सकते हैं, तो आप आश्चर्यचकित होंगे, कि उनके इस्तेमाल में आने वाला सब कुछ महंगा था। उनपर इतना खर्च आता था जिसे
एक महल में रहने वाले अमीर आदमी भी नहीं उठा सकता था।
लेकिन
इन तथ्यों को छुपाया जाता है जब गाधी जी के बारे में पढाया जाता है। गांधी के
आश्रम में एक बुद्धिमान महिला थी, सरोजनी नायडू जो बाद में उत्तर भारत की
राज्यपाल बनीं। उसने एक बार मजाक में कहा कि महात्मा गांधी जी को गरीब दिखने के लिए हमें महगा खर्च करना पड़ता है। गांधी जी की गरीबी बहुत महगी है। द पोवर्टी ऑफ
गांधी इज वेरी कॉस्टली।
इस रणनीति ने काम किया
लेकिन
इस रणनीति ने काम किया। यह प्रयोग भारत की जनता को धोखा देने में सफल रहा। एक
राजनेता के रूप में वे सबसे बड़े राजनेता बन गए, क्योंकि गरीब लोगों ने सोचा कि यह वही आदमी है जो हमारा असली
प्रतिनिधि हो सकता है, क्योंकि वह एक गरीब आदमी की तरह झोपड़ी में रहता है, वह बकरी का दूध पीता है। वह वह थर्ड क्लास
में रेलयात्रा करता है। लेकिन लोग नहीं जानते हैं, कि उनकी गरीबी को बनाए रखने के लिए बहुत खर्च करना पड़ता था।

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