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टेक्‍सटाइल उद्योग को यदि सरकार का सहयोग मिले तो यह देश की बेराजगारी को खत्‍म कर सकता है: परेश सोट्टानी

 

Paresh Sottany, Director, A P Textiles (India)

मुंबई: टेक्‍सटाइल उद्योग को यदि सरकार का सहयोग और अनुकूल नति मिले तो यह देश की बेराजगारी को खत्‍म कर सकता है। यह देश की तकदीर बदल सकता है मगर सरकार इस उद्योग को सहयोग और समर्थन नहीं कर रही है। जीएसटी की दर ५% था। इसे उत्‍पादक स्‍वीकार कर चुके थे। अब इसे बढ़ाकर १२% कर दिया गया। इससे लागत बढ़ जाएगी और प्रोफिट कम हो जाएगा। इससे हम उत्‍पादक तनाव में आ गए हैं। एपी टेक्‍सटाइल्‍स  (इंडिया) के डायरेक्‍टर परेश सोट्टानी ने बताया।

 

वित्त मंत्रालय की ओर से 18 नवंबर को जारी अधिसूचना के मुताबिक अगले साल की शुरुआत से तैयार उत्पादों जैसे परिधान और कपड़ा पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) में 7 फीसदी की बढ़ोतरी की जाएगी।

 

श्री सोट्टानी ने कहा कि इसमें ७% की बढोतरी करने का सरकार का निर्णय अनुचित है। यह समय की मांग नहीं है। इससे उत्‍पादन खर्च वढ़ जाएगा। इससे उत्‍पादकों का संकट बढेगा। हमलोग यार्न खरीदते हैं। वहां हमें कैश पेमेंट करना होता है। उधारी का कोई प्रावधान नहीं है। ग्रे में भी ऐसा ही मामला है। इसमें ज्‍यादा से ज्‍यादा ७ दिनों की उधारी चलती है। मगर हम फिनिश्‍ड फैब्रिक बेचते हैं उधारी में। हमारा पेमेंट हमे चार से छ महीने बाद आता है। हमारा काम ज्‍यादा कठिन हो गया। इस समय जीएसटी की दर में वृद्धि नहीं होनी चाहिए।   

 

 

उन्‍होंने कहा कि जीएसटी संरचना में एकरूपता के सरकार के निर्णय के कारण भारत के कपड़ा क्षेत्र उथल-पुथल हो गया है। फैब्रिक जैसे तैयार उत्पादों पर जीएसटी में वृद्धि से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों पर प्रतिकूल वित्तीय प्रभाव पड़ेगा। एक समान GST दर लागू होने से छोटी कंपनियां असंगठित क्षेत्र में धकेल दी जाएगी। इस क्षेत्र को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा। भारतीय कपड़ा उद्योग देश की अर्थव्‍यवस्‍था में प्रमुखता रखता है। यह लाखों लोगों को रोजगार और व्यवसाय के अवसर प्रदान करता है। अब सरकार की नीति  कपड़ा उद्योग को भी परेशानी में डाल रही है।

 

उन्‍होंने कहा कि कर की दर में वृद्धि से टेक्‍सटाइल उद्योग पर अतिरिक्त वित्तीय भार पड़  सकती है। यह पहले से ही धीमी बिक्री और उच्च लागत के कारण दबाव में है। इससे अंतिम उपभोक्ताओं के लिए दाम में वृद्धि हो सकती है। यदि टेक्‍सटाइल उद्योग बूम में चल रहा होता तब जीएसटी दर में वृद्धि से कोई फर्क नहीं पड़ता मगर अभी इसके लिए अनुकूल समय नहीं है। अभी यहां धंधे के बांदे हैं। आज यदि कोरोना के पूर्व काल से तुलना करें तो हम लोगों का सेल आधा रह गया है। पूरे टेक्‍सटाइल वैल्‍यू चेन का यही हाल है।

 

श्री सोट्टानी ने कहा कि कपडा़ आज हमारी आवश्‍यकता की प्राथमिकता में अंत में आता है। लोग आज कपड़ा कम खरीद रहे हैं। लोगों को जब घर से बाहर ही नहीं निकलना है तो नए कपड़ो की जरूरत क्‍या है? कपड़े का धंधा तो पहले से ही मरा हुआ था। सरकार की नीतियों के कारण यह और भी मर जाएगा।

 

हालांकि,  सरकार का दावा है कि आपूर्ति श्रृंखला में कर दरों में एकरूपता लाने के निर्णय से  उद्योग को लंबे समय में मदद मिलेगी। यदि ऐसा है तो फिर पूरे टेक्‍सटाइल वैल्‍यू चेन में इसे ५ टका लागू कर दिया जाए। इस तरह कर ढांचे में एकरूपता से उद्योग में बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र बनेगा।

 

उन्‍होंने कहा कि टेक्‍सटाइल सेक्‍टर जीएसटी ढांचे में बदलाव से खुश नहीं है। वह जीएसटी दर में बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग कर रहा है। इस बढ़ोतरी का छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों के कारोबार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, जो पिछले साल महामारी के कारण प्रभावित हुआ था। इस तरह तो हमारी इंडस्‍ट्री खतम हो जाएगी। छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायी पलायन कर जाएंगे। बस बड़े टेक्‍सटाइल उद्योगपति बच जाएंगे। फिर उनकी मोनोपोली होगी। फिर वे मनमाना दर पर कपड़ा बेचेंगे।

 

श्री सोट्टानी ने कहा कि देश की लगभग ३५ प्रतिशत आवादी कपड़ा व्‍यापार से अपना जीवन यापन करती है। इससे हमाल से इंजिनियर तक एक लम्‍बा लिंक जुड़ा है। यह समाज के बहुसंख्‍यक हिस्‍से को रोजगार मुहैया करता है। रिटेलर, होलसेलर, उत्‍पादक, लूमवाले, यार्नवाले, कपास उत्‍पादक आदि तमाम लोग इस कारोबार से जुड़े हैं, जिन्‍हे यह रोजगार देता है। उस टेक्‍सटाइल उद्योग के लिए सरकार कुछ नहीं करती है। इसका उदाहरण है भिवंडी शहर। कोई विकास नहीं हो रहा है वहां। मुंबई से डाइंग हाउस बंद होती जा रही हैं।

 

उन्‍होंने कहा कि हम व्‍यापारी गण सब कुछ सहन कर लेते हैं। व्‍यापारी संघर्ष से बचते हैं। सरकार इसका फायदा उठा रही है। यदि हमे सरकार का उचित सहयोग मिले तो भारत का टेक्‍सटाइल दुनियां में सबसे आगे जा सकता है, चीन से भी आगे। देश की बेरोजगारी को खत्‍म कर सकता है। इसके लिए सरकार को अनुकूल नीति लागू करनी पड़ेगी।  

उन्‍होंने कहा कि टेक्‍सटाइल उद्योग में कम एडुकेटेड लोग काम करते हैं। सरकार को यह समझकर नीति बनानी चाहिए। जो कुछ नहीं कर सकते वे कपड़े के धंधे में हैं। उनके लिए ज्‍यादा उलझा हुआ एकाउंट सिस्‍टम ठीक नहीं है। उनको सरल एकाउंट सिस्‍टम की जरूरत है। उनको इतना मत उलझाओ कि उन्‍हें यह व्‍यापार छोड़ना पड़े। इससे बेरोजगारी बढ जाएगी। यह देश के लिए एक नयी समस्‍या हो जाएगी।

 

 

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