| Shikarchand Jain, President, Hindustan Chamber of Commerce | 
मुंबई: १३ जनवरी २०२२:  धागों के दामों में हो रही बढ़ोतरी से विवर्स बहुत परेशान
हैं। धागो के दाम अचानक बढ़ जाते हैं, परंतु ग्रे कपड़े
या फिनिश कपड़े के दाम में बढ़ोतरी पर ग्राहक नदारद हो जाते हैं। ऐसे में पूरा कपड़ा
उद्योग संकट में पड़ जाता है। हिंदुस्तान चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष शिखरचंद जैन
ने टेक्सटाइल पोस्ट को इस समस्या की जानकारी दी। 
हिंदुस्तान चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष ने भारत सरकार से यह मांग की है कि
यार्न बैंक की स्थापना की जाय, ताकि धागों के दामों में अप्रत्याशित
वृद्धि का असर विवर्स या व्यापारियों पर नहीं पड़े। 
उन्होंने कहा कि चुंकि कपास कृषि उपज है, सरकार एमएसपी पर
फसल लेने को बाध्य है,  तो धागों के दामों में हो रही बढ़ोतरी स्पिनर द्वारा क्यों
कर दी जाती है? इस पर लगाम लगाना जरूरी है। यह सरकार कर सकती है। दूसरा और कोई ऐसा
नहीं कर सकता है। 
उन्होंने कहा कि इस कदम का यह परिणाम होगा कि हम भारतीय
फैब्रिक उत्पादक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतियोगी बनकर उभरेंगे। हमारा कपड़ा
ठीक ढंग से बिकेगा। इससे हमारे निर्यातकों,  विवरों, ट्रेडरों आदि का काम बढ़ेगा। वह फूलेगा फलेगा।
 
उन्होंने कहा कि सरकार रूई खरीदती है। रुई का बैंक है। जितनी
भी पैदावार होती है उसे सरकार एमएसपी पर खरीदती है। उसके दाम फिक्स हैं। अगर खुले
बाजार में रुई का दाम बढ़ जाय तो इसका उपयोग किया जाता है। इससे बाजार स्थिर रहता है।
ठीक इसी तरह से यदि सरकार तमाम स्पिनरों से तय कर ले कि अमुक काउंट का इतना धागा बनाना
है, तो उतना धागा बनेगा और
सरकार यार्न बैंक में खरीदती जाएगी। रुई का बैंक हो सकता है, तो यार्न का भी बैंक हो
सकता है। इससे यार्न मुल्य का उतार चढ़ाव रोका जा सकता है। स्पीनर की तरफ से जो लूट
होती है,  वह बंद हो जाएगी। 
उन्होंने कहा कि किसान तो अपना माल बेचेगा ही। वह अपना माल
रोक नहीं सकता। मगर रोकने का काम स्पीनर करते हैं। उसके पास रोकने की क्षमता होती
है। अगर सरकार इसमें हस्तक्षेप करे कि आपको इतना धागा देना ही है, तो वह रोक नहीं पाएगा। 
श्री जैन ने कहा कि जैसे ही बाजार में यार्न की मांग बढती
है,  यार्न उत्पादक
तुरंत दाम बढा लेते हैं। फैब्रिक उत्पादकों के लिए इससे संकट खड़ा हो जाता है। इसके
लिए हमारी कल्पना है कि यार्न बैंक की स्थापना हो। यार्न उत्पादक इस बात पर बाध्य
हो कि बाजार में लूट नहीं मचाना है। यार्न उत्पादकों की संख्या कम है। उन्होंने
आपसी सलाह से बाजार में मोनोपोली स्थापित कर ली है। उनके हाथ में सारा कंट्रोल है।
उनकी मोनोपाली टूटना आवश्यक है। इससे टेक्सटाइल व्यापार के लिए बहुत बड़ी सुविधा
हो जाएगी। टेक्सटाइल वैल्यू चेन में लगभग हर स्तर पर दाम स्थिर हो जाएंगे। जिस तरह
फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया की स्थापना करके सरकार ने फूड कमोडिटीजी के दाम पर नियंत्रण
स्थापित किया,  उसी तरह यार्न कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया का गठन किया
जाय। इससे संपूर्ण टेक्सटाइल उद्योग को बढ़ाबा मिलेगा। टेक्सटाइल उद्योग आगे बढ़ेगा
तो देश में बेरोजगारी खत्म करने में मदद मिलेगी। टेक्सटाइल उद्योग कृषि के बाद भारत
में रोजगार मुहैया करने वाला सबसे बड़ा सेक्टर है। यह एक तरह से भारत के अर्थव्यवस्था
की रीढ़ की हड्डी है। 
उन्होंने कहा कि सरकार टेक्सटाइल पार्क बनाती है। उसमें
स्पीनर भी आते हैं। सरकार उनके साथ अपनी शर्तों पर तय कर सकती है कि हम इन शर्तों
पर आपको फाइवर दिलाएंगे और आप साल भर हमारी शर्तों पर यार्न का भाव तय करेंगे, उसे स्थिर रखेंगे। यदि स्पीनर सरकारी सहायता
से स्पिनिंग मिल लगाएंगे तो उन्हें सरकार की शर्तों को मानना होगा। और इसका फायदा
एंड कनज्यूमर्स तक जाएगा अर्थात इसका फायदा आम जनता को मिलेगा।      
 

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