मुंबई: 05जनवरी 2022: कपास की आसमान छूती कीमतों ने भारत में कपड़ा उद्योग के विकास को रोक दिया है। भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Textile Industries) अर्थात CITI ने एक प्रेस विज्ञप्ति में ऐसा कहा ।
CITI ने भारत सरकार से उद्योग को राहत देने
के लिए कपास पर आयात शुल्क हटाने का आग्रह किया है। वर्तमान में, वैश्विक बाजारों की तुलना में घरेलू कपास की कीमतें अधिक चल रही हैं।
दिसंबर में भारत की बेंचमार्क शंकर-6 कपास की किस्म का औसत मूल्य 70,000 रु प्रति कैंडी (356
किलोग्राम प्रत्येक) था। यह 197 रु प्रति किलोग्राम बनता है। इसकी तुलना में, न्यूयॉर्क कपास 113.63 यूएस सेंट प्रति पौंड पर था। यह 187 रु प्रति किलोग्रामबनता है।
सितंबर
2020 के दौरान कपास की कीमत 35,000 रु प्रति कैंडी थी, जो अक्टूबर 2021 में बढ़कर 60,000 रु प्रति कैंडी हो गई। नवंबर 2021 में, कीमत 64,500 रु प्रति कैंडी और 67,000 प्रति कैंडी के बीच भिन्न थी। गुजरात
शंकर-6 कपास की कीमत अब 10,062 रु प्रति क्विंटल है। जबकि न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,975 रु प्रति क्विंटल है।
पिछले
दो कपास मौसमों के दौरान,
भारतीय कपास
निगम (सीसीआई) ने एमएसपी के तहत लगभग दो करोड़ गांठ की खरीद की थी। मौजूदा सीजन के
दौरान कपास की कीमत एमएसपी से काफी अधिक है। इसलिए सीसीआई इस सीजन में कपास की खरीद करने में सक्षम नहीं है।
भारतीय कपास की कीमत फरवरी 2021
तक अंतरराष्ट्रीय कपास की कीमत (न्यूयॉर्क इंडेक्स और कॉटलुक ए इंडेक्स) के अनुरूप
उतार-चढ़ाव कर रही थी।
लेकिन
केंद्रीय बजट 2021-22 के बाद, भारतीय कपास की कीमत पहली बार अंतरराष्ट्रीय मूल्य से अधिक होने लगी। इससे निर्यात प्रतिस्पर्धी नहीं रह गया। जिसके परिणामस्वरूप निर्यातकों को
निर्यात वचनबद्धताओं (export
commitments)
को पूरा करने और आगे के ऑर्डर लेने में कठिनाई हुई। ऐसा इसलिए है क्योंकि बजट के बाद कपास पर लगभग 11 प्रतिशत आयात शुल्क लागू है। इसमें 5 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क (बीसीडी), 5 प्रतिशत कृषि अवसंरचना और विकास उपकर
(एआईडीसी) और 10 प्रतिशत समाज कल्याण उपकर शामिल है।
CITI के अध्यक्ष टी राजकुमार ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कपास पर लगाए गए आयात शुल्क को तुरंत हटाने की मांग की
है। उन्होंने कपड़ा उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा हासिल करने हेतु इस उद्योग को
संकट से बचाने में मदद करने की अपील की है।
श्री
राजकुमार ने फरवरी 2021 से कपड़ा उद्योग द्वारा की गई निरंतर अपील
को दोहराते हुए कहा कि कपास पर आयात शुल्क को हटाया जाय। इससे किसानों पर कभी असर
नहीं पड़ेगा। टेक्सटाइल उद्योग पहले से ही
अतिरिक्त लंबे स्टेपल कपास (ईएलएस) का आयात कर रहा है। हमारे देश में दीर्घकालिक
आधार पर नामांकित व्यावसायिक ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रदूषण मुक्त कपास, और
टिकाऊ कपास का उत्पादन नहीं किया जाता है।
यद्यपि
वर्तमान में कपास की कीमत इतिहास में अपने उच्चतम स्तर पर चल रही है, फिर भी किसान कपास को बाजार में नहीं ला रहे हैं। परिणामस्वरूप कम आपूर्ति के
कारण कपास की कीमत में वृद्धि हुई है। कीमतों में बढ़ोतरी से कपास किसानों को काफी
फायदा हो रहा है। घरेलू कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय कीमत से अधिक हो गई है।
CITI के अध्यक्ष ने कहा कि हालांकि कताई सेक्टर
ने कुछ समय से यार्न की कीमत को बरकरार
रखा है। जो चरम आगमन के मौसम में कपास की कीमतों में कमी की उम्मीद कर रहा था उसे
धीरे-धीरे यार्न की कीमत में वृद्धि करनी पड़ी। अच्छी गुणवत्ता वाले कपास की कीमतों
में वृद्धि हुई है। यह 73,000
रू प्रति कैंडी
को पार कर गया। दिसंबर के अंत तक कताई मिलों ने आम तौर पर तीन से चार महीने के
कपास स्टॉक का निर्माण किया होगा। लेकिन कीमतों में भारी वृद्धि के कारण मिलों के पास
एक महीने से भी कम की स्टॉक है।
कपास
की तुड़ाई के समय में हुई बारिश ने गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इससे
भारतीय निर्यातकों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले कपास की भारी कमी हो गई है।
उन्होंने कहा कि आरडी मूल्य, कपास
चमक संकेतक लगभग 65 है, जबकि पहले के मौसमों के दौरान यह 70 से अधिक था।
दिसंबर
और जनवरी के दौरान कपास की सामान्य आवक 2.3 से 2.5 लाख गांठ प्रति दिन हुआ करती थी। यह मौजूदा
सीजन के दौरान 1.62 से 1.8 लाख प्रति दिन के बीच है। 31 दिसंबर,
2021 तक केवल 121 लाख गांठें ही बाजार में आई थीं। आम तौर पर पूर्व में इस समय तक बाजार
में 170 से 200 लाख गांठें आती थीं।
यह
निर्यात गुणवत्ता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और अच्छी गुणवत्ता वाली कपास की
जरूरत को देखते हुए कपास की कम आपूर्ति को इंगित करता है। तीन महीने के लिए खपत
लगभग 85 लाख गांठ होगी। कृषि बाजार, गिनिंग और परिवहन के परिणामस्वरूप सभी
मिलों में कपास का स्टॉक कम हो गया है।

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