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वो जाली किस्‍म की धाराएं ३७० और ३५ ए खतम हो गये, कश्‍मीर में विकास का दौर अब होगा शुरू


वो जाली किस्‍म की धाराएं ३७० और ३५ ए खतम हो गये, कश्‍मीर  में विकास का दौर  अब होगा शुरू 


३७० धारा को रिवोक कर दिया गया। यह अचानक नहीं हुआ । यह बीजेपी के मेनिफेस्‍टो का एक हिस्‍सा था। मस्‍ला ए कश्‍मीर को इन्‍होंने जड़ से उखार कर फेक दिया है। जम्‍मू कश्‍मीर के इतिहास में इससे बड़ा काम अब तक नहीं हुआ था। अब जम्‍मू कश्‍मीर लिगली एक युनियन टेरीटोरी है। युनाइटेड नेशन भी अगर कोई स्‍टेटमेंट देता है तो उसका कोई असर नहीं पडता है। ये मसला अब एक तरह से खतम हो गया। जिसको जो कहना है, कहता रहे।
पाकिस्‍तान ने ७० सालों से कश्‍मीरियों को बेवकूफ बनाया। कश्‍मीर को इन्‍होंने बैटल ग्राउंड बनाए रखा। जिसको मिलिटेंसी, टेरॉरिज्‍म,फंडामेंटलिज्‍म  का लांचिंग पैड कहते हैं। उसके नतीजे में कश्‍मीर का यह हाल हो गया कि जो हुकूफ उन्‍हें १९४७ में हासिल थे, वल्कि १९२७ में महाराजा हरिसिंह की कयादत में जो हुकूफ उन्‍हें हासिल थे, आज उन्‍हें हासिल नहीं है।
हमें इसकी वजूहात देखनी चाहिए। इसका सबसे बड़ा रिजन यह है कि कश्‍मीर को गुजिस्‍ता ४० सालों से एक टेरोरिज्‍म ग्राउंड के रूप में यूज किया गया। इसे एक बेस कैम्‍प बना दिया गया ताकि पूरे भारत को फतह किया जाय। और भारत से यह तवक्‍को रखते हैं कि वह बैठ कर मार खाता रहे। करोड़ो लोगों का यह मुल्‍क कब तक यह सहता रहता। इसका तो यह रिएक्‍शन होना था। जो हुआ ।जिस पाकिस्‍तान की सह पर यह सब हो रहा था वह तो फोर्स ऑफ डिस्‍ट्रक्‍शन है, उनको कश्‍मीर की आजादी या खुदमुक्‍तारी से कुछ लेना देना नहीं है। उन्‍होंने तो एनारकी फैलानी है। इस खित्‍ते में अमन को तारपिडो करना है। कश्मिरियों के साथ तो एक जुल्‍म हो गया। उनको ७० सालों से एक विशेषाधिकार प्राप्‍त थे, वा खत्‍म हो गया। अगर  वहां पर मिलिटेंसी नहीं होती, मारकाट नहीं होती, ये गोरिल्‍ले दाखिल न किये जाते, तो हिंदुस्‍तान को क्‍या तकलीफ थी कि वे धारा ३७० हटाते।
अगर १९८९ में कश्‍मीर में हालात खराब न हुए होते, मुंबई में २६/११ के बम एटैक न हुए होते, उड़ी, पुलवामा न हुए होते, कश्‍मीर बनेगा पाकिस्‍तान का नारा न दिया गया होता, तो कश्‍मीर मसला होता ही नहीं।  
कश्‍मीर में जुलूस निकलते हैं उसमें पाकिस्‍तान का झंडा लहराया जाता है। कश्‍मीर डिसप्‍यूटेड टेरीटोरी जरूर है मगर वह कांस्‍टीच्‍यूशनली और लिगली भारत का अंग है।
जो मिलिटेंसी क्रिएट की गयी, जिसको पाकिस्‍तान की हुकूमरान तबका मान चुकी है कि उसे उन्‍होंने क्रिएट किया है। आपने एक सोसाइटी पर फंडामेंटलिज्‍म का एक नजरयाती या आइडियालोजीकल  एसाल्‍ट किया।
जिस कश्‍मीर को गांधी, नेहरू और शेख अब्‍दूल्‍ला ने मिलकर धारा ३७० दिया गया था, वो यह कश्‍मीर नहीं था। आज आप हाइली फंडामेंटली चर्ज्‍ड पीपल से डील कर रहे हैं, जिनका नजरिया टोटली एंटी नेशनल, एंटी स्‍टेट, एंटी हिंदू, एंटी माइनोरिटीज हैं। उनके साथ आप किस तरह की डील कर सकते हैं।
ये रबायती लीडरान जो ड्रामें कर रहे हैं वे दिखवा है। ये सब अंदर से मोदी साहब के साथ मिल चुके हैं । उनके पास दूसरा विकल्‍प भी नहीं है। इनके हाथ से ग्राउंड निकल चुकी है,  इनको डर है कि ये एरेस्‍ट होंगे।
अगर ये बात यु एन में भी चली जाय, ये आरगुमेंट करें कि ये यूएन के करारदात की खिलाफवर्जी हो गयी। तो यू एन क्‍या कर सकता है। ये करारदात तो ४८- ४९ की है। और इसमें ३५ ए १९५४ में जुड़ा। तो खिलाफवर्जी तो तब हुयी। उस वक्‍त तो यू एन ए ने और  किसी ने भी उसपर बात नहीं की। अब भारत ने यदि उसी पावर के तहत उसको रिवर्स किया तो युनाइटेड नेशन उन्‍हें क्‍या कहेगी।
महाराजा हरि सिंह ने १९४७ में जो इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ एैक्‍सेसन साइन किया था, वह वही था जो बाकी ५६४ रियासतों ने साइन किया था। उसमें महाराजा ने एक क्‍लॉज लगाया था कि इसमें मेरी मर्जी के बगैर तबदीली नहीं लायी जा सकती। मगर मेरी मर्जी से मुराद कश्‍मीरी अवाम है या मजलिसे कानूनसाज है, या एडमिंस्‍ट्रेशन है। अभी इस वक्‍त कोई मजलिसे कानूनसाज नहीं है, वहां गवर्नर राज है। लिहाजा गवर्नर राज में गवर्नर ही महाराजा रिप्रेजेंट करता है। हिस्‍टोरिकली महाराजा ने ट्रीटी ऑफ एैक्‍सेसन पर साइन कर दी। तो उन्‍होंने इंडिया का रियासत होना तो कबूल कर लिया।

३७० ने कश्‍मीर को लोगों को एक्‍सट्राऔरडिनरी पावर दे रखा था। जो भारत ने रिवोक कर दिया।
आज जो भारत में हिंदू फंडामेंटलिज्‍म राइज हुआ है उसकी बड़ी वजह रिएक्‍श्‍न ऑफ इसलामिक फंडामेंटलिज्‍म है। पूरी दुनियां से, अपनी अपनी हुकुमतों से भागे हुए १५ से २० हजार इसलामी मिलिटेंट को जमा किया गया, ट्रेन किया गया। इन्‍हें अफगानिस्‍तान में भेजा गया। जब वहां वे लावारिस हो गये तो इन्‍हें कश्‍मीर में भेजा गया। भारत के करोड़ों लोग कब तक अपने ही मुल्‍क में जख्‍म खा सकते हैं। भारत की मैजोरीटी हिंदूओं की है। इनको कोई बार बार मारता रहे तो उसका रिएक्‍शन तो कभी न कभी आएगा। वो हुआ।
कांग्रेस ने कश्‍मीर के मुद्दे पर विल्‍कुल वही स्‍टैंड लिया जो पाकिस्‍तान का स्‍टैंड है। ये बिलकुल एक पालिटिकल सुसाइड है। कांग्रेस ने अहलदगी पसंद लोगों को, एंटी इंडिया मूवमेंट को हिंदुस्‍तान के खिलाफ इंस्टिगेट किया।
कश्‍मीर के लोग एक ७० सालों से एक खौफनाक किस्‍म के दलदल में फसे थे। मोदी हुकूमत ने उन्‍हें उस दलदल से बाहर निकाला है। अब अगर आज कश्‍मीर में बैठा कोई गिरोह या हुकूमत कहती है कि हमे जम्‍मू कश्‍मीर लेना है तो इस बात में कोइ वजन नहीं है। अब तो वह भारत का एक युनियन टेरीटोरी है। अब वो कहानी खतम हो गयी। अब तो उनको कहना चाहिए कि अब पीवोके में जो कैंप बने हुए हैं वो हटाएं।

कश्‍मीर में जो फोरसेज ऑफ इविल अपने लास्‍ट स्‍टेज में पहुच चुकी हैं। आम लोग समझ चुके हैं कि हमे लड़ाई और दहसतगर्दी से फायदा नहीं है।
कश्‍मीरी लीडरशिप ३ तरह के हैं। एक वो जो प्रो इंडिया थे मगर जरूरत होते ही सेपरेटिस्‍ट में तबदील हो जाते थे। वे डबल फेस वाले मुश्किल में फस गये हैं। वे एक्‍सपोज हो गये हैं।  दूसरे जिन्‍होंने मिलिटेंसी के साथ रिस्‍त्‍ो जोड़े थे। उनका तो अब समझें कि खात्‍मा हो गया। मगर एक कूवत उस दरम्‍यान में थी जो उन दोनो को अपोज करके एक मोडरेट कश्‍मीर की बात करती थी। वे एक सेकुलर, मल्‍टी कलचरल, मल्‍टी एथनिक सोसाइटी बहाल करना चाहते थे। अब उन लोगों  का चांस है।
अब ये टेरीटोरी वास्‍तव में इंडिया है। अब गेंद जम्‍मू कश्‍मीर के आवाम के हाथ में है, वो चाहें तो अमन आ भी सकती है, वो चाहें तो इसको गजा भी बना सकते हैं। जहां इजराइल एक ताकतवर  बेहतरीन डेमोक्रेसी है, वहीं पेलिस्टिनियन के पथ्‍थर अभी भी उनके हाथों में हैं। अब जम्‍मू कश्‍मीर के आवाम पर मुनहस्‍सर है कि वह अपनी आने वाले जेनेरेशन को कौन सा तोहफा देना चाहती है।
असल गेम अब शुरू हुए हैं। यह रियासत के तिनो हिस्‍सों में शुरू हुए हैं। अब आवाम को पता चलेगा कि असल में हुकूफ क्‍या होते है और वे कैसे हासिल किए जाते हैं। क्‍योंकि वो जाली किस्‍म की धाराएं ३७० और ३५ ए खतम हो गये।
यह ३७० और ३५ ए एक तरह की स्‍टूपीटी थी। इसने कश्‍मीर के तीन नस्‍लों को तवाह कर दिया।  इसे स्‍टूपिड किस्‍म के लीडरान ने लागू किया था। इसका खत्‍म होना कश्मीर के विकास का एक आगाज है।

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