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साम्‍प्रदायिक और लक्षित हिंसा बिल के नाम पर कांग्रेस की असफल हुई देश को तोड़ने की साजिश


साम्‍प्रदायिक और लक्षित हिंसा बिल के नाम पर कांग्रेस की असफल हुई देश को तोड़ने की साजिश
 



कांग्रेस पार्टी अपने आप को धर्म निरपेक्ष पार्टी बताती है, मगर वह एक निहायत कौम्‍युनल  और  वास्‍तब में मौका परस्‍त  पार्टी है उसने सत्‍ता हासिल करने के लिए और सत्‍ता में बने रहने के लिए धर्म का जो  दुरूपयोग किया है, इसका इतिहास में कोई मिसाल नहीं मिलता है। इसी खेल के लिए उसने धर्मनिर्पेक्ष जैसे भ्रम पैदा करने वाले शब्‍द को गढ़ा। हकीकतन वह एक एंटी हिंदू और एंटी इंडिया पार्टी है। वह देश को तोड़ने का काम लगातार करती आ रही है।

इसका एक हालिया उदाहरण है साम्‍प्रदायिक और लक्षित हिंसा बिल अर्थात एंटी हिंदू बिल।  इस बिल का लक्ष्‍य था, हिंदू समाज को कमजोर करना, और विघटित करना, साथ ही माइनोरिटिज को लुभाना कि वह थौक के भाव में वोट देकर सोनियां गांधी को जिताए।

यह बिल अभूतपूर्व है। हमारे इतिहास में पहली बार एक ऐसा बिल संसद में पेश किया गया जिसे कानून मंत्रालय ने तैयार नहीं किया था। इसको तैयार किया नैशनल एडवाइजरी काउंसिल ने । यह काउंसिल प्रधान मंत्री के दस्‍तखत से बनी है । यह काउंसिल तमाम भारत विरोधी और साम्रदायिक लोगों का एक गिरोह है।  
सन् १९८४ में जब इंदिरा गांधी की हत्‍या हुयी थी, तो पंजाब में एक आतंकवाद फैला था, जिसे सिख आतंकवाद कहा जाता था। हालॉंकि उसे सिख आतंकवाद कहना अनुचित होगा, क्‍योंकि सिख ग्रंथ गुरूग्रंथ साहेब में कहीं भी आंतकवाद का समर्थन नहीं किया गया है। उसमें कहीं नहीं कहा गया है कि आपको दूसरे मजहब के लोगों को आतंकित करना है। बेशक उसे खलिस्‍तान मूवमेंट कह सकते हैं, क्‍योंकि यह एक राजनैतिक मूवमेंट थी, जो तब चल रही थी। इंदिरा गांधी के मरने के बाद राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने थे।  उस मूवमेंट को दबाने के लिए १९८५ में एक कानून बनाया गया था, टेरोरिस्‍ट एंड डिसरप्टिव एक्‍ट, टाडा। इस कानून के माध्‍यम से टेरोरिस्‍ट को और टेरोरिज्‍म को डिफाइन किया गया था। टाडा का ओबजेक्टि था टेरोरिज्‍म से लड़ने में हमारी मदद करना । इस कानून ने अपना काम किया भी। इस कानून में कुछ ऐसे नुख्‍ते थे, जिसपर हयूमैन राइट्स के उलंघन का अरोप लगाया जाता था। जैसे इसमें प्रावधान था कि  पुलिस के सामने जो बयान दर्ज होगा, उसको प्रमाण माना जाएगा। गवाह की पहचान को गुप्‍त रखा जाएगा। इसमें पुलिस कस्‍टडी की मियाद बड़ी होती थी। इसमें एक प्रावधान यह भी था कि इस कानून के अंतर्गत यदि किसी को पकड़ा जाता था तो उसे अपने आप को निर्दोष सावित करना आरोपी की अपनी जवाबदेही होती थी। अर्थात यहां पर हमारा कानून रिवर्स हो जाता था। सामान्‍यत: हमारा संविधान कहता है कि जबतक अपराध सिद्ध नहीं हो जाता तब तक वह निर्दोष माना जाता है। मगर यहां स्थिति उलटी थी कि जबतक आरोपी अपने को निर्दोष नहीं सावित कर लेता तब तक वह अपराधी है। इस कानून के चलते पंजाब के अनेक घरों में एट्रोसिटिज भी हुयीं। अनेक लोग नाहक मारे गये, जिन्‍होंने  टेरोरिज्‍म नहीं किया था। लेकिन इसका फायदा यह हुआ था कि पंजाब से टेरोरिज्‍म अगले सात से दस सालों में खत्‍म हो गया।

दूसरी ओर इसी समय देश के दूसरे हिस्‍से, खास कर कश्‍मीर में इस्‍लामिक टेरोरिज्‍म बढ़ता जा रहा था। सन् १९९३ में मुंबई में अंडर वर्ल्‍ड द्वारा जो ब्‍लास्‍ट हुए थे, उसमें मुख्‍य रूप से इसलामिक या जिहादी संगठन शामिल था। टाडा के अंदर इनलोगों को भी गिरफ्तार किया गया। जहां जहां भी टेरोरिज्‍म की घटनाएं हुयीं, उसमें एक समुदाय विशेष (अर्थात मुसलमान) के लोग ही पकड़े जा रहे थे। जिहाद लौबी इसके बाद एक्टिव हो गयी। उन्‍होंने कहना शुरू किया कि टाडा एक ड्रैकोनियन कानून है, इसे रद्द किया जाना चाहिए। इसके परिणामस्‍वरूप १९९५ में इस कानून को निसस्‍त कर दिया गया। हांलाकि टेरोरिस्‍ट एक्टिविटी पूरे देश में फैलनी शुरू हो गयी थी।

मुम्‍बई इस क्राइम से काफी परेशान था, अत: वहां मकोको कानून लाया गया। यह भी एक कड़ा कानून था। इसने भी  संगठित अपराध से लड़ने में काफी मदद की । इसके बाद २००१ में हमारे संसद पर एटैक हुआ। उस समय के एन डी ए सरकार को लगा कि हमें एक सख्‍त कानून की जरूरत है। उन्‍होंने प्रिवेंसन औफ टेरोरिज्‍म एक्‍ट आर्थात पोटा कानून लाया। फिर वही हुआ कि एक समुदाय विशेष के लोग पकड़े जा रहे थे। फिर जिहद लौबी एक्टिव हुयी। उन्‍होंने कहना शुरू किया कि इस कानून का दुरूपयोग होता है, क्‍योंकि इसमें मुसलमान एरैस्‍ट हो रहे हैं। २००४ में एनडीए सरकार हार गयी और यूपीए की सरकार केंद्र की सत्‍ता में आ गयी। यूपीए सरकार ने आते ही जो पहला काम किया कि पोटा कानून को निरस्‍त कर दिया।

दूसरा काम जो उन्‍होंने २००४ में किया वो था नैशनल एकवाइजरी काउंसिल गठित करने का। २००४ में सोनियां गांधी प्रधान मंत्री बनने जा रही थी, उसकी सारी तैयारी कर ली गयी थी। मगर सुब्रहमनियम स्‍वामी ने राष्‍ट्रपति को पत्र लिखकर आपत्ति जाहिर की और सोनियां गांधी प्रधान मत्री नहीं बन सकी। मनमोहन सिंह को प्रधान मत्री बनाया गया। और सोनिया गांधी के बैक इंट्री के लिए नैशनल एडवाइजरी काउनसिल बनाया गया। यह प्रधान मंत्री कार्यालय में ही बनी थी, मगर इसकी बौस सोनिया गांधी थी। इस कमीटी में उसने अपने चुने हुए लोगों को फिट किया था। आप इसकी लिस्‍ट देखेंगे तो आप को सदमा पहुचेगा कि किस तरह के लोगों को इस कमीटी में रखा गया था। इसका चीफ कनवेनर था हर्ष मानदर । इसमें अन्‍य लोग थे, फराह नकबी माजा दारूवाला, नजमी वजीरी, पी एल जोश, प्रसाद श्रीवेला, तीस्‍ता शितलवार, उषा रामनाथन , वृंदा ग्रोबर आदि। इसमें से कोई मशहूर वकील नहीं है। इसमें इसमें लगभग सभी पर कहीं न कहीं देशद्रोह का आरोप है । ये लगभग सभी लोग आइ एस आई, फोर्ड फाउंडेशन, क्रिश्‍चन मिशनरी के पैसे से पलने वाले आसतीन के सांप कहे जाते हैं। इन सभी का घर विदेशी फंडिंग से चल रहा है। ये सभी सोनियां गांधी के चमचे हैं। यही इनमें कौमन है।

२००४ में ही एक नए कानून लाने का इरादा कर लिया गया। यह नया कानून था साम्‍प्रदायिक और लक्षित हिंसा बिल । इसका उद्देश्‍य था कि देश को मैजोरिटी अर्थात हिंदू और माइनोरिटी ( मुसलमान और क्रिश्‍चन ) में बांटा जाएगा। और अगर कहीं कोई भी दंगा फसाद होता है, तो हिंदू को जिम्‍मेबार ठहराया जाएगा। इस बिल का नाम रखा गया है, प्रिवेंशन और कौम्‍यूनल एंड टारगेटेड वायोलेंस बिल।

इसे हमारी संसद में २०१३ में पेश किया गया था। तब यह कानून नहीं बन पाया। मगर यदि कांग्रेस कभी वापस आएगी तो वह फिर यह घृणित प्रयास करेगी।

सामान्‍यत: जब कानून के माघ्‍यम से हेरा फेरी की जाती है, तो वह हेराफेरी उसकी परिभाषा में होती है। सबसे पहले हम इसकी डेफीनिशन देखते हैं। कम्‍यूनल एंड टारगेटेड वायोलेंस उसे माना जाएगा जो अचानक हो या प्‍लैंड हो, मगर उसमें एक पक्ष हिंदू और दूसरा कोई ग्रुप ( नन हिंदू ) होगा ।

गुप को उन्‍होंने इस तरह परिभाषित किया है कि ग्रुप का अर्थ है भारत के किसी राज्‍य या युनियन टेरीटोरी में  एक रिलिजियस माइनोरिटी या लिंग्विस्टिक माइनोरिटी, सेड्यूल्‍ड कास्‍ट और सेड्यूल्‍ड ट्राइब। इसमें चालाकी यह है कि हमारे देश में एससी और एसटी के अधिकारों के संरक्षण  और हितों की रक्षा के लिए पहले से ही अनेक कानून बने पड़े हैं। उनको कभी कोई जरूरत नहीं पड़ी कि उनके लिए ऐसा कोई नया कानून बनाया जाय। देश को धोखा देने के लिए उनको जान बूझ कर इसमें  इसमें शामिल किया गया है। वास्‍तविक में केवल मुसलमान और क्रिश्‍चन को फेवर करने के लिए यह कानून बनाया गया है।

अब देखिए कि इन्‍होंने विक्टिम को कैसे परिभाषित किया है। विक्टिम का अर्थ है कोई भी आदमी जो मुसलमान हो या क्रिशचन हो और उसे या उसकी सम्‍पत्ति को शारिरिक रूप से या मानसिक रूप से, या मनोवैज्ञानिक रूप से  कोई क्षति पहुची हो। इसका मतलब यह है कि ऐसा कोई भी झगड़ा या दंगा होगा तो शिकार उसे माना जाएगा जो मुसलमान या क्रिश्‍चन होगा । हिंदू को शिकार नहीं माना जाएगा।

औफेनसेज की परिभाषा है कि वह एक्टिवीटी जो माइनोरिटी कौम्‍यूनिटी के विरूद्ध चाहे अकेले किया जाय या इकट्ठा होकर किया जाय, वह एक जगह हो या अनेक जगह पर एक साथ हो, वह तुरत फुरत में हो या कुछ समय तक चलता रहे, उसमें फिजिकल हार्म हो या मात्र धमकी हो, उसे काम्‍यूनल वायोलेंस माना जएगा।
देश के विरूद्ध ऐसी ही एक्टिवीटी के विरूद्ध ऐसे ही कानून का प्रावधान टाडा और पोटा में था, उसे तो कांग्रेस ने यह कर हटाया कि इसमें मानवाधिकार का उल्‍लंधन होता है। उसमें टेरोरिज्‍म और टेरोरिस्‍ट एक्टिवीटी को स्‍पष्‍टता से परिभाषित किया गया था। वह एक्टिवीटी जो देश को तोड़ने वाले हैं, उसे टेरोरिस्‍ट एक्‍ट माना गया। इस कानून में उसकी कोई चर्चा नहीं है, इसमें सिर्फ माइनोरिटी ग्रुप के विरूद्ध होने वाले वायोलेंस को टारगेटेड वायोलेंस माना गया है । 

मकोका में प्रावधान था कि कोई व्‍यक्ति या संस्‍था एक से अधिक बार क्राइम करती है तब उसे ओरगेनाइज्‍ड क्रिमिनल एक्‍ट के अंतर्गत माना जाएगा। अन्‍यथा उनपर मकोका नहीं लगता। जब महारष्‍ट्र में मकोका लाया गया तो उनकी मंसा थी हिंदू टेरर के नाम पर लोगों को पकड़ा जाय। मगर इसमें इनको दिक्‍कत यह आ रही थी कि हिंदुओं को बदनाम करने के लिए इन्‍होंने  नए लड़के पकड़े थे, इस कानून के अंतर्गत इन्‍हें फसाना मुश्किल हो रहा था क्‍योंकि जिनको ये फसाना चाहते थे, उनकी कोई क्रिमिनल पृष्‍टभूमि नहीं थी । वे पूर्व में कभी नहीं पकड़े गये थे।

इसीलिए यह कानून ऐसे डेजायन किया गया कि अब यदि इनको किसी हिंदू को फसाना है तो अब इनके लिए वो पंगा भी नहीं रहेगा कि उसका पूर्व में कोई क्राइम का बैकग्राउंड है या नहीं।

इस कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि माइनोरिटी की महिला के साथ मास रेप होता है तब तो उसे मास रेप माना जाएगा। मगर यदि मैजोरिटी के महिला के साथ ऐसा होता है तो उसे मास रेप नहीं माना जाएगा।  

टाडा और पोटा में स्‍पष्‍ट कहा गया था कि देश के तोड़ने वाले प्रोपेगैंडा को हेट प्रोपेगैंडा माना जाएगा। इसमें हेट प्रोपेगैंडा को  इन्‍होंने ऐसा डिफाइन किया है कि हेट प्रोपेगैंडा वह है जिससे किसी मुसलान या क्रिशचन या उनके समुह को खतरा होगा। यही बात हिंदुओं के विरुद्ध होगा तो उसे हेट प्रोपेगैंडा नहीं माना जाएगा।
टौरचर की परिभाषा है कि यदि कोई पुलिस वाला य सरकारी अधिकारी हिंदु को टौरचर करेगा तो उसे टौरचर नहीं माना जाएगा मगर वही किसी मुसलमान या क्रिश्‍चन को टौरचर करेगा तो उसे टौरचर माना जाएगा।

इस कानून के लिए हमारे मौजूदा संविधान से बढचढकर एक नया पैरेलल स्‍ट्रक्‍चर खड़ा किया जाना था। उसका नाम था नैशनल औथोरिटी फौर कौम्‍यूनल हारमोनी जस्टिस एंड रिपैरेशन। नाम तो इस तरह रखा गया कि लोगों को भ्रम हो कि इससे नैशनल हारमोनी पैदा की जाएगी। मगर इसका नेचर देखें ज़रा। इसमें एक चेयर परसन और उसके साथ ७ मेंम्‍बर होंगे, उसमें कमसे कम ४ माइनोरिटीज के होंगे।  चेयर परसन ओर वायस चेयर परसन ग्रुप के  अर्थात मुसलमान या इसाई होने चाहिए। कम से कम ४  मुसलमान या इसाई होने चाहिए। सभी ७ के सात मुसलमान या इसाई भी हो सकते हैं। इस संस्‍था का काम होगा कि यह पूरे देश में वायोलेंस पर नज़र रखेगी।

अब देखिए कि इसे पावर किस तरह की मिलेगी। इस औथोरिटी का प्रमुख होगा उसका ओहदा डायरेक्‍टर जेनरल ऑफ पुलिस के बराबर होगा। हर राज्‍य में इसी ढाचे की एक संस्‍था खड़ी की जाएगी।
इनका कहना था कि टाडा और पोटा ड्रोकानियन कानून हैं, उसके तहत काफी शोषन किया जाता है। लेकिन वे सारे के सारे खतरनाक क्‍लौज इस कानून मे डाले गये हैं। इस कानून ने मैजारिटी और माइनौरीटी में डिवाइड बनाया। मैजोरिटी पर एक लेवेल लगा दिया कि यही हमेशा क्रिमिनल होते हैं। फिर यह काइम कौगनीजेबल और नन बेलेबल भी है। इससे आप छूट नहीं सकते क्‍योंकि आप को बेल मिलने वाली नहीं है। उस पर भी यदि आप पर यह आरोप लग गया तो आरोप लगाने बाले का नाम पता भी गुप्‍त रखा जाएगा। आपको पता भी नहीं चलेगा कि किसने आप पर आरोप लगाया। उस से आगे यह कि यदि आप पर आरोप लग गया तो आप की जवाबदेही होगी कि आप सिद्ध करें कि आप निरपराध हैं अन्‍यथा आप अपराधी माने जाएंगे।


इसमें विक्टिम (मुसलमान या क्रिश्‍चन) का स्‍टेटमेंट सेक्‍श्‍न १६४ में रेकार्ड होगी जो मेजिस्‍ट्रेट के सामने होती है। विक्टिम को अपना वकील रखने का अधिकार होगा। वही जो दूसरा पक्ष अर्थात हिंदू का स्‍टेटमेंट आरटिकल १६१ के अंदर  रेकार्ड की जाएगी , अर्थात पुलिस उसके स्‍टेटमेंट को रेकार्ड कर सकती है, उसे अपने साथ किसी वकील को रखने का अधिकार नहीं होगा। पुलिस में दी गयी उसके स्‍टेटमेंट  को वैलिड समझा जाएगा।

यहां आप कॉनट्रास्‍ट देखे कि टाडा में  इसी चीज की निंदा की जा रही थी कि पुलिस में दी गयी स्‍टेटमेंट को वैलिड माना जाता है। जब पोटा लेकर आए थे, उस समय वाजपेयी पीएम और आडवानी होम मिनिस्‍टर थे। उन्‍होंने इस क्‍लोज को बदल दिया था । उनका कहना था कि जो संदिग्‍ध है, वो भी अपना एडवोकेट साथ में रख सकता है। वो कानून इनको ड्रोकानियन लग रहा था। मगर यहां मेजोरिटी ( हिंदू) के विरूद्ध वैसा ही कानून बनाया । बल्कि उसमें भी  एक प्रोविजन यह डाल दिया कि उसका पुलिस के सामने एकवाकेट प्रेजेंट नहीं होगा, मगर उसके उस स्‍टेटमेंट को वैलिड मानी जाय।

इस कानून में यह भी प्रावधान है कि कहीं यह शक भी होगा कि मजहब के कारण यह झगड़ा या दंगा हुआ है तो यह मान लिया जाएगा कि मजहब के कारण ही यह झगड़ा हुआ है। और अब हिंदू आरोपी और ग्रुप (मुसलमान या क्रिश्‍चन) विक्टिम है। यह भी मान लिया जाएगा कि हिंदू ने ग्रुप के विरूद्ध इस लिए क्राइम किया क्‍योकि अगला माइनोरिटी था। यह नौन बेलेबल होगा, कोगनीजेबल होगा। और जब तक हिंदू यह साबित नहीं कर पाएगा कि वह निर्दोश है, वह दोशी माना जाएगा।

जब केस चलेगा और स्‍पेशल पबलिक प्रोसेक्‍यूटर जो एप्‍वाइंट किए जाएंगे, उसके एक तिहाई माइनोरिटीज में से लिए जाएंगे। यदि हिंदु और माइनोरिटी का झगड़ा हुआ तो, जैसे ही ट्रायल शुरू हुआ,  हिंदू के प्रोपर्टी को भी जब्‍त किया जा सकता है।

यही वो बिल है जो सोनियां गांधी हमारे देश में लाने वाली थी । यह अकेला कारण मेरे लिए पर्याप्‍त है कि मैं कभी इस पार्टी को वोट नहीं दुंगा। पाठक गण अपने बारे में तय कर लें।

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