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उद्धव ठाकरे मुख्‍य मंत्री तो बन गये मगर वे चलेंगे शरद पवार के रिमोट से








कभी बालासाहेब ठाकरे  को मुंबई में एक सुपरस्टार कहा जाता था कि और आज शरद पवार महाराष्‍ट्र के राजनीति के सुपरस्टार के रूप में उभरे हैं। एक क्षेत्रीय पार्टी के प्रमुख के रूप में पवार के पास भाजपा के साथ समझौते का एक आसान विकल्प था, जब शिवसेना ने अपने वरिष्ठ साथी के साथ चुनाव पूर्व हुए गठबंधन से बाहर निकलने का फैसला किया और शरद पवार   उसका साथ देना सही समझा। महाराष्ट्र में, विशेष रूप से मराठों के बीच,  कई उम्मीदवारों के विशाल जीत का अंतर, स्पष्ट रूप से भाजपा विरोधी था। पवार को जिस तरह से प्रवर्तन निदेशालय ने नियंत्रित करने की कोशिश थी, वह बात उनको अखर गयी। उन्‍होंने एक तरह से उसका  राजनीतिक उत्तर दिया। देखना है कि भविष्‍य में वे कहां होते हैं। भतीजे अजीत के साथ पवार के मतभेद राजनीतिक  थे। वे  सुप्रिया सुले के उदय के  लिए भी चिंतित हैं।  पवार को इस बात की जानकारी थी कि कैसे अजीत उनके प्रति वफादार लोगों को मैदान में उतारने की कोशिश कर रहे थे या खुद को एक चुनौती की तरह पेश कर रहे थे। अजीत के खिलाफ कड़ा कदम उठाने के बजाय, पवार ने उन्हें एक क्षमा देने का फैसला किया। कई लोगों को पता नहीं है कि लगभग 10 दिन पहले, पवार ने शिवसेना और कांग्रेस के साथ अपने संबंधों को तोड़ने के लिए एनसीपी कोर समिति की बैठक बुलाई थी। उस सभा में अजीत, प्रफुल्ल पटेल और अन्य को बोलने का पर्याप्त अवसर दिया गया। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया मौन थी और बैठक के अंत में, पवार को अंतिम कॉल लेने के लिए अधिकृत किया गया था। जबकि पवार एक किंगमेकर के रूप में उभरे हैं, उनके भतीजे अजीत का भविष्य अंधकारमय है।यह देखा जाना बाकी है कि पवार सार्वजनिक क्षेत्र में सिंचाई घोटाले का इलाज कैसे करेंगे।  उध्हव ठाकरे के मंत्रिमंडल का भविष्य काफी हद तक पवार की सनक और जरूरतों पर निर्भर करेगा। इस अर्थ में, महाराष्ट्र की राजनीति एक विराम पर पहुंच गई है और इसमें बहुत अधिक कार्रवाई और उथल-पुथल देखने की संभावना है।   
होटल हयात में तमाम एमएलए की परेड
शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मुंबई के होटल हयात में अपने पार्टियों के तमाम एमएलए की परेड करायी। अगर उनके पास बहुमत है तो उनको विधान सभा में यह प्रदर्शन करना था। यह वास्‍तव में इनके डर का प्रदर्शन है कि कहीं इनके विधायक भाग न जांय। वे दावा कर रहे हैं कि उनके पास १६२ एमएलए हैं। मगर उसमें १३० से ज्‍यादा एमएलए नहीं थी।
सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने अपना निर्णय कल तक के लिए रोका है। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने जो हलफनामा पेश किया उसको सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने नहीं माना। अपने आवेदन में उन्‍होंने कहा कि देवेंद्र फरनवीस फ्लोर टेस्‍ट में हार जाएगी। इसलिए हमें सरकार बनाने का मौका दिया जाय।
मुंबई के होटल हयात में तमाम एमएलए ने सोनियां गांधी, शरद पवार और उद्धवव ठाकरे की शपथ ली कि हम लोभ नहीं करेंगे, हम भाजपा का समर्थन नहीं करेंगे। इससे इनका डर दिखायी पड़ता है कि किसी को किसी पर भरोसा नहीं है। ये लोग इमानदार होते तो न इन्‍हे ये नाटक करना पड़ता न इमानदारी की कसम खानी पड़ती।
विधायकों को भेड़ बकरियों की तरह व्‍यवहार हो रहा है। वे कैद हैं । अपने घर वालों से सम्‍पर्क नहीं कर पार रहे हैं । उनकी पहरेदारी हो रही है। एक होटल से दूसरे होटल दूसरे से तीसरे होटल में उनको सिफ्ट किया जा रहा है। इतना ही डर है तो इसमें विश्‍वास कैसा।
शरद पवार अपने एमएलए से कह रहे हैं कि अजीत पवार को ह्विप मत मानना। हम तुमको बचाएंगे। उद्धवव ठाकरे कह रहे हैं कि हम अब बीजेपी को बताएंगे। यह एक प्रकार का डर ही तो है। वैसे भी शरद पवार, उद्धवव ठाकरे, आदि के बौडी लैंगुएज से एक प्रकार का डर दिख रहा था।
वैधानिक रूप से अजित पवार का ह्विप माना जाएगा। आज शरद पवार के भाव भंगिमा से लगा कि वे इस खेल में हारने वाले हैं। मेरा अनुमान है कि भाजपा फ्लोर टेस्‍ट जीत जाएगी।  



एक महीने के उधेरबुन के बाद अंतत: कांग्रस, एनसीपी और शिवसेना के बीच सरकार बनाने सहमति बन पायी। अब उध्‍धव ठाकरे के सर पर सेहरा बंधने की वाला था कि २३ नवम्‍बर से सुबह देवेंद्र फरनवीस ने एनसीपी की मदद से सरकार बना ली। कांग्रेस और शिवसेना देखती रह गयी। यह सारा खेल खेला शरद पवार ने। कांग्रेस को तो समझ में आ गया कि शरद पवार के समर्थन के बगैर अजीत पवार ने ऐसा नहीं किया होगा मगर उध्‍धव ठाकरे को नहीं समझ आ रहा है। वे समझ रहे हैं कि अजीत पवार ने पार्टी से बगाबत की है। मेरे खयाल है कि यह सब शरद पवार की सहमति से ही हुआ है। 

इस पूरे खेल में शिवसेना और खास कर उध्‍धव ठाकरे की साख गिरी है। मुख्‍य मंत्री की कुर्सी के लिए शिवसेना ने हिंदुत्‍व का एजेंडा छोड़ा, सेकुलर बनी, कांग्रेस की हर शर्त मानने को तैयार हो गयी मगर फिर भी उसे मुख्‍य मंत्री की कुर्सी नहीं मिली। मिली तो अपमान, बदनामी, हार, और साख में गिरावट।

नेतागण चुनाव में जनता को कहते हैं कि हमे सेवा का मौका दीजिए। हम ईमानदार हैं, कर्मठ हैं, सेवानिष्‍ठ हैं, आदि। और जब वे जीत कर आते हैं तो कहते हैं कि हमें अब लूटने का मौका दीजिए। आज महाराष्‍ट्र में बस यही हो रहा है। शिवसेना, कांग्रसे और एनसीपी एक महीने से कौमन मिनिमम प्रोग्राम बना रहे हैं। यह कौमन मिनिमम प्रोग्राम क्‍या है, यही मै आपको समझाने का प्रयास करता हूँ। मंत्रालय का ऐसे बटबारा करो कि सबको अपनी अपनी क्षमता के अनुसार लूटने का और मलाई खने का मौका मिले । चूंकि इन सबको पता है कि यह सरकार तो ज्‍यादा दिन चलेगी नहीं, इसलिए सब ऐसे मंत्रालय के लिए झगड़ रहे हैं, जिसमें ज्‍यादा मलाई है, जैसे वित्‍त मंत्रालय, गृह मंत्रालय, सहरी विकास मंत्रालय, पीडबलूडी मंत्रालय, इत्‍यादि। पिछले एक महीने से मिटिंग पर मिटिंग हो रही है, मगर बात नहीं बन पा रही है। पता नहीं और कितनी मिटिंग करेंगे ये लोग। 

सोनिया गांधी और शरद पवार का पासा
सोनिया गांधी और शरद पवार ने ऐसा पासा खेला है कि उध्‍धब ठाकरे फंस गये हैं उसमें। सोनिया और शरद पवार उध्‍धब ठाकरे को एक जाल में फसा दिया है। अब उनकी साख तो जाएगी ही, साथ में शिवसैनिकों के बीच उनका जो रूतबा है, वो भी खत्‍म हो जाएगा। यह सरकार ज्‍यादा दिल चलेगी नहीं।  पिछले एक महीने से मिटिंग पर मिटिंग हो रही है । उध्‍धब ठाकरे चाहते थे कि उनका बेटा सीएम बने। बात नहीं बनी। अब वो चाहते हैं कि कोई दूसरा शिवसैनिक सीम बने और वे मातोश्री से रिमोट कांट्रोल करें । यह भी नहीं हुआ। सोनिया और शरद चाहते हैं कि उध्‍धब ठाकरे सीएम बने और सारे पाप का घड़ा उनके सर पर फूटे। 

शिवसेना का फिप्‍टी फिप्‍टी फारमुला
शिवसेना कहां से चली थी और कहां गिरने जा रही है, इसकी बानगी मैं आपको बताता हूँ। बीजेपी से तो वे फिप्‍टी फिप्‍टी साझेदारी चाहते थे। मगर आज उनको एक तिहाई मंत्रालय मिल रहा है। जानकरी यह है कि तीनो पार्टियों के पास १५, १५, १५ मंत्रालय होंगे।

सत्‍ता के कश्‍मकश में किसको क्‍या चाहिए
अब देखिए इस सत्‍ता के कश्‍मकश में किसको क्‍या चाहिए। शिवसेना के लिए सीएम का पद अंहकार का विषय है। शरद पवार के पार्टी के अनेक लोगों के नाम दाउद इब्राहिम ग्रुप के साथ जुड़े हैं, इनवेस्टिगेशन चल रहा है,  इसलिए उनकेा गृह मंत्रालय चाहिए।  कौंग्रेस पार्टी को मलाईदार मत्रालय चाहिए। जिन मंत्रायलयों के लिए शिवसेना ने बीजेपी से नाता तोड़ा वो सब एनसीपी और कांग्रेस के पास जा रही है। स्‍पीकर भी कांग्रेस के पास होगा, ताकि किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में शिवसेना को सबक सिखाया जा सके। 

सोनिया और शरद पवार क्‍या चाहते हैं
सोनिया और शरद पवार चाहते हैं कि उध्‍धब ठाकरे स्‍वयं सीएम बने। वे रिमोट कंट्रोलर न बने। वे चाहते हैं कि आने वाले दिनो में यदि सरकार किसी कुकर्म में फसती है, या कोई कांट्रोवर्सी होती है या सरकार गिरती है,  तो जवाबदारी उध्‍धब ठाकरे की बने।  उध्‍धब ठाकरे इसे भांप चुके हैं मगर उनके पास कोई रास्‍ता नहीं है। कांग्रेस और एनसीपी ने कहा है कि उध्‍धब ठाकरे के अलावा हम किसी नाम पर विचार नहीं करेंगे। उध्‍धब ठाकरे ने सीएम पद के लिए  जो नाम सुझाया उसमें पहला था आदित्‍य ठाकरे। शिवसेना ने पूरे मुंबई में उनका पोस्‍टर लगा रखा था,  मगर कांग्रेस और एनसीपी ने बातचीत के पहले ही राउंड में उसे खारिज कर दिया।
अब सवाल यह है कि क्‍या उध्‍धब ठाकरे बाला साहब की तरह सत्‍ता से उपर उठकर समाज सेवा करेंगे। हिंदुत्‍व के विचार धारा केा आगे बढाएंगे। या यह जो लोभ है, सत्‍ता का, पावर का, पैसा का, अहम का, अहंकार का उसमें फंस कर राजनिति का खेल खेलने का रिस्‍क लेंगे। 

कान्‍ट्रोवर्सियल मुद्दे
शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने से उनके सामने कई कान्‍ट्रोवर्सियल मुद्दे खड़े हैं। सेकुलरिज्‍म पर उनका क्‍या रवैया होगा। दूसरा विंदु मंत्रिमंडल को लेकर है। शिवसेना १६,१५,१४ का फारमुला चाहती थी मगर उसे १५,१५,१५, का फारमुला मानना पड़ा। वो सारे मंत्रालय जो शिवसेना बीजेपी से मांग रही थी आज वही सब वो कांग्रेस और एनसीपी को देने के लिए विवस है। उध्‍धब ठाकरे ने उन दोनो सहयोगियों को यह भी भरोसा दिलाया है कि राम मंदिर, सावरकर , एनआरसी और पाकिस्‍तान और बंगलादेश में सताए गये हिंदुओं का जो भी मसला होगा वही चुप रहेगी।

यूपीए के सत्‍ता की चाभी हमेशा १० जनपथ में
शिवसेना ने जो आज सत्‍ता के लिए कम्‍प्रोमाइज किया है , वह उसे महगा पड़ने वाला है। आज शिवसेना यूपीए में भले चली गयी है मगर यूपीए के सत्‍ता की चाभी तो हमेशा १० जनपथ में रहेगी। और शिवसेना केा कदम कदम पर समझौता करना पड़ेगा। उसे बार बार अपमान झेलना पड़गा। कहने के लिए उध्‍धव सीम होंगे मगर उनकी हैसियत एक कलर्क की रह जाएगी। कर्नाटक का उदाहरण ताजा है। 

सरकार कब तक चलेगी
सरकार मुश्किल से साल भर चल पाएगी। उसके बाद एलेक्‍शन होगा । उसमें सबसे बड़ा नुकसान शिवसेना को होगा। और अगले चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी।

बाला साहेब की राजनीति
बाला साहेब होते आज की स्थिति नहीं पैदा होती। उन्‍होंने कभी पद को महत्‍व नहीं दिया। मुख्‍य मंत्री क्‍या, प्रधान मंत्री के पद के लिए भी वे नहीं झुकते, ऐसा था उनका व्‍यक्तित्‍व। पूरे देश का हिंदु उनपर नाज करता था। वे आज के सावरकर थे। उध्‍धव ठाकरे ने उनकी प्रतिष्‍ठा का खयाल नहीं रक्‍खा। आज उनका अभाव खटक रहा है।

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