सिटिजन एमेंडमेंट बिल ९ दिसंबर को लोकसभा में और दो दिनो बाद
राज्य सभा में पास होगया। मोदी सरकार ने एक अहम कदम उठाया। इसका इंतजार करने वाले
लाखों शरनार्थियों में खुशी की लहर दौर गयी। देश के हर हिस्से में इसका स्वागत
हुआ।
सिटिजन एमेंडमेंट बिल है क्या
यह बिल बंगलादेश, पाकिस्तान, तथा अफगानिस्तान
से आनेवाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, क्रिस्चन तथा
पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का मार्ग प्रसस्त कराता है। इसका मकसद है कि भारत के बाहर बसने
वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन इसाई, पारसी, जो धार्मिक प्रतारना या परसीक्यूशन
का शिकार हो रहे हैं, उन्हें
भारत की सिटिजनशिप सहजता से दी जा सकती है। क्योकि भारत के अलावा कोई देश इन्हें
शरण देने के लिए बांह फैलाए खड़ा नहीं है।
मुसलिम इस दायरे से बाहर
लेकिन इस दायरे में मुसलिम नहीं
आते हैं। इसलिए कुछ वर्ग जैसे कांग्रेस, सपा, टीएमसी, एनसीपी, शिवसेना, बामपंथी, लेफ्ट पार्टियां तथा
लिवरल, मुसलमान और
मुस्लिम वोट पर आश्रित पार्टियों के लोग इसका विरोध करते हैं। इसमें ये पार्टियां बुरी तरह एक्सपोज
होगयीं। कांग्रेस और उसके सहयोगी दल मुस्लिम परस्त राजनीति से इस कदर ग्रस्त हैं
कि उनकी क्रेडिबिलिटी दाव पर लग गयी। साथ ही अपने केा लेफ्ट और लिवरल तथा इंटेलेक्चुअल
कहलाने वाल अनेक पत्रकार और समाचार संस्थाएं भी एक्सपोज हुए हैं।
भारत
सरकार की इस कदम की मुखालफत अपोजिशन पार्टीयां जोर शोर से कर रही है। मगर उनका क्रिटिसिज्म हेल्दी नहीं
लगता। उनका लौजिक रेशनेल नहीं है। इससे उसकी अपनी क्रेडिबिलीटी भी खराब हो रही है।
कांग्रेस हमेशा से सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम कार्ड खेलती रही है। अफसोस की
बात यह है कि उसमें से बहुत सारे लोग अपने को लिबरल कहते हैं, अपने को सेकुलर कहते हैं, अपने को लेखक या जरनालिस्ट कहते हैं, वो भी मुस्लिम कार्ड खेल रहे हैं। जब
वे हर ऐसे मसले पर बीच में कूद पड़ते हैं, तब एहसास होता है कि उनकी रैशनलीटी
कोश्चनेबल है। हमारे यहां जो तथाकथित एक्टिविस्ट हैं वो कह रहे हैं कि इसमें
मुस्लिमों को क्यों नहीं एकोमोडेट किया गया। उत्तर बहुत साफ है जो इस सिटिजनशिप
एमेंडमेंट बिल में कहा गया है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश एक इस्लामी
जमूरिया मुल्क है। वहां गैर मुसलमानों को घार्मिक प्रतारना का शिकार बनना पड़ता है।
पाकिस्तान के मुसलमानों ने तो इस्लाम के नाम पर मुल्क बनाया था। अफगानिस्तान
की रियासत तो इस्लामी जमूरिया रियासत है। बंगलादेश में जो इस्लामी गिरोह सकृय
हैं, उसके पेशे नज़र इन तीनेा मुल्कों की
जो स्थिति है वो गैा मुसलमानों के रहने लायक नहीं है।
भारत
में जो तथाकथित सेकुलर और फार एक्सट्रीम
लेफ्ट के लोग हैं, मुस्लिम एक्टिविस्ट्स हैं । वे
सेकुलरिज्म का नाम लेकर इस बिल का विरोध कर रहे हैं। इन्हें तो सेकुलरिज्म का मायने भी
पता नहीं है। सेकुलरिज्म का अर्थ है, सेपरेशन ऑफ रिलिजन एंड पौलिटिक्स। मगर ये लोग तो सेकुलरिज्म के नाम पर रिलिजन के कार्ड को
हमेशा से खेलते रहे हैं। ये तो सेकुलरिज्म की धज्जियां उड़ाने वाले लोग
हैं। इनका आरगुमेंट है कि सिटिजन एमेंडमेंट बिल में मुस्लिमों को क्यो एकोमोडेट
नहीं किया गया। पाकिस्तान में सिया और अहमदिया हैं, उनके साथ भी मैजोरिटी
सुन्नी भेद भाव करते हैं। मगर सिया और अहमदिया कौम्युनिटी तो पाकिस्तान और
अफगानिस्तान के स्ट्रक्चर के साथ खड़े हैं। क्या कभी उन्होंने वहां के स्टैबलिशमेंट
केा, वहां के इस्लामिक स्ट्रक्चर को
चैलैंज किया। वे तो पाकिस्तान के स्टैबलिशमेंट के साथ खड़े हैं। पाकिस्तान में
मुहाजिर, पख्तून, या बलोचों के साथ या खुद उनके साथ जो
जुल्म होते हैं, क्या वे
वहां के स्टैबलिशमेंट के विरूद्ध खड़े हुए । इसका मतलब है कि वे पाकिस्तान के
इस्लामिक स्ट्रक्चर के साथ खड़े हैं, वे उनके साथ इत्तेफाक करते हैं।
इन देशों में गैर मुसलमान का मानवाधिकार
यह बिल लाया ही
इसलिए गया कि इन देशों में मुसलमान को छोड़कर किसी को मानवाधिकार प्राप्त नहीं
है। अगर इसमें मुसलमानो को भी शामिल कर लिया जाय तो इस
बिल का कोई मतलब ही बनता है। हां शिया और अहमदियों के साथ भी पाकिस्तान में भेद भाव
होता है। अगर इन देशों में मुसलमान भी सुरक्षित नहीं
हैं तो यह हमारी समस्या नहीं है। मुसलमानों के लिए तो ५७ देश हैं वे कहीं भी जा
सकते हैं। उनके लिए भारत ही क्यों।
मूल
सिटीजनशिप बिल १९५५
यह कोई नया बिल
नहीं है, यह बिल सिटीजनशिप बिल १९५५ में समय के
अनुसार सुधार कर बनाया गया है। सिटीजनशिप
बिल १९५५ यह तय करता है कि कौन सा आदमी भारत का नागरिक होगा। यह कहता है कि जो
आदमी २६-१-१९५० के बाद भारत में पैदा हुआ, उसको और उसके जीवन साथी को भारत की
नागरिकता मिलेगी। इस बेस डेट के अंदर तीन बार सशोधन हो चुका है। पहली बेस डेट थी २६/०१/ १९५० दूसरी बेस डेट थी १/७/१९८७
तीसरी बेस डेट थी ३/१२/२००४। अगर कोई प्रोपर कागजात के साथ भारत आया है और १२
सालों से भारत में है तो वह नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। नये प्रस्ताव में इन छ काम्युनिटी को नागरिकता के लिए यह
सीमा ७ साल कर दी गयी है। इन्हें अब कोई डक्यूमेंट देने की भी जरूरत नहीं है।
धर्म भोगोलिक और राजनैतिक आश्रय के बिना सुरक्षित नहीं
रह सकता है
क्या भारत हिंदुओं का है। क्या दुनिया भर के हिंदुओं को बाई डिफौल्ट भारत में स्वत: नागरिकता का
अधिकार होना चाहिए, जैसे दुनियां भर के यहूदियों को इजरायल में है।
धर्म क्या है, और धर्मनिर्पेक्षता क्या है। धर्म आस्था का विषय है। आस्था व्यक्तिगत
विषय है। धर्म भोगोलिक और राजनैतिक आश्रय के बिना सुरक्षित नहीं रह सकता है।
इतिहास यह कहता है। परम्परा भी यही कहती है। धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र भी
उठाना पड़ता है। आज यह अधिकार केवल सरकार के पास है। सरकार के अलावा अन्य अगर हथियार उठाता है, तो वह आतंकवादी
कहलाता है। अर्थात धर्म की स्थापना और रक्षा का दायित्व सरकार की है। इस लिहाज से माजूदा नरेंद्र मोदी की सरकार ने वही किया है
जो उसका दायित्व है।
सिटीजनशिप
बिल की पृष्ठभूमि
पिछले ७० सालों को ही देखें तो भारत के आसपास के देशों में हिंदुओं के साथ
क्या हुआ। हिंदुओं की जनसंख्या कम हुई। बतौर नागरिक उनके अधिकार कम से कम होते गये।
पाकिस्तान अफगानिस्तान या बंगलादेश। उनको अमानवीय ढंग से खत्म किया गया। और यह
आज भी हो रहा है। ऐसे में भारत से उम्मीद की जानी चाहिए कि वह धर्म की रक्षा करे।
हिंदु कहीं भी हो उनका हमारे साथ पूजा पद्धति का, संस्कृति का, भाषा का, भूमि का, खून का रिश्ता है। ये तो १०० सालों के उथलपुथल
के कारण बतौर नागरिक हमसे अलग हो गये हैं। हमे तो केवल अपने यहां वापस लेकर आना
है। वे भारत को अपनी माता मानते है जबकि बंगलादेशी और रोहिंगिया और पाकिस्तानी
मुसलमान गजवा ए हिंद के इंस्ट्रूमेंट हैं। वे एक सोची समझी षडयंत्र के तहत भारत
में घुसपैठ कर रहे हैं। वे भारत माता की
जय बोलने में गर्व नहीं मेहसूस करते हैं। उन्हें इसपर शर्म आती है। अगर धर्म और
राष्ट्र को बचाना है तो हमें हिंदुओं को सुरक्षित करना होगा।
धर्म को सुरक्षित रखना होगा
देश बनता है भाषा से भूषा से संस्कृति से रिति रिवाजों से,
साहित्य से,
संगीत से,
इतिहास से और धर्म से। आप धर्म की रक्षा करते हैं और धर्म आपकी रक्षा करता है। इन
सबको सुरक्षित रखना है तो धर्म को सुरक्षित रखना होगा। पूरी दुनियां
में हिंदुओं का एक मात्र देश भारत है। हिंदू को
सुरक्षित रखना
होगा। यह जिम्म्ेावारी मात्र भारत की बनती है। धर्म ही है जिसने आज तक इस संस्कृति
को सुरक्षित रखा। यह हमारी संस्कृति नहीं है कि हमार भाई पड़ोस में मरता रहे और
हम बैठ कर बासुरी बजाते रहे।
ये
छद्म लिवरल के क्षुद्र प्रयास
ये छद्म
लिवरल सरकार के इस प्रयास को ऐसे पेश करते हैं, जैसे ये भारत के मुसलमानों के
विरूद्ध एक साजिश है। वास्तव में यह विधेयक बाहर से आए सताए हुए शरणाथियों की बात
करता है, उनकी नागरिकता की प्रक्रिया को सरल
बनाने की बात करता है, फिर इस देश
के वे मुसलमान जो यहां के नागरिक हैं, वे इस बिल को लेकर क्यों हंगामा करते हैं, यह मेरी समझ से बाहर है। अगर भारत के
मुसलमानो को देश से निकाला जाता तब तो इनका विरोध जायज था।
जिन्ना
और नेहरू की टू नेशन थ्योरी
इस देश का
विभाजन हो गया तो उन्हें स्वयं गांधी नेहरू जैसे लोगों ने आस्वसन दिया कि जो
हिंदू या अन्य गैर मुसलिम अल्पसंख्यक पाकिस्तान या बंगला देश में हैं, वे वहीं रहें। उन्हें तो बाद में
महसूस हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ। धीरे धीरे उन्होंने पलायन किया। तब भारत न आकर उन्होंने गलती की थी। तब के भारत सरकार की
यह ऐतिहासिक गलती थी। आज उस गलती का सुधार ही तो किया जा रहा है। यह उसी सुधार की
प्रकृया का हिस्सा है। तब पाकिस्तान में २६ प्रतिशत हिंदू थे, आज वे १ प्रतिशत रह गये हैं।
बंगलादेश में में २२ प्रतिशत हिंदू थे, आज वे ७ प्रतिशत रह गये हैं। अफगानिस्तान में कुछ सौ
हिंदु बचे हैं। इस्लामी देशों में हिंदु की दशा बहुत खराब है। वहीं भारत में
मुसलमानो के साथ कोई समस्या नहीं है। फिर भी इस विधेयक में मुसलमानेा केा शामिल
नहीं किए जाने पर कांग्रेसी, वामपंथी, सपा, टीएमसी, एनसीपी, शिवसेना, बामपंथी, लेफ्ट पार्टियां तथा
लिवरल, मुसलमान और
मुस्लिम वोट पर आश्रित अन्य पार्टियों के लोग और मुसलमान रो रहे हैं।
यह
बिल है क्या और इसे क्यों लाया गया
यह बिल है क्या
और इसे क्यों लाया गया। इस विधेयक से इतर विदेशी लोगों के लिए जो कानून है वो दो सूरतों में उन्हें गैर
कानूनी व्यक्ति बना देता है। पहला यह कि
आप वैध कागजातों के साथ अर्थात वीजा लेकर भारत नहीं आए या वीजा लेकर भारत आए मगर
रहने की सीमा खत्म होने पर भी यहां टिके रहे। दूसरा यह कि आप किसी कारण बिना वीजा
के चोरी छुपे भारत पहुच गये और यहां के प्रशासन ने आप को पहचान लिया। अभी तक के कानून के हिसाब से ऐसे लोगों को नागरिकता नहीं दी
जा सकती थी। जिनके पास कागज है, वही नागरिकता के लिए
आवेदन कर सकता है। यह विधेयक
उनके इन परेशानियों को सुलभ करता है।
भाजपा
के प्रयास की शुरूआत
२०१५ में इस
विधेयक के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ कि २०१४ के अंतिम तारीख तक जो लोग किसी कारण
भारत आए हैं, यदि उनके पास कागजात नहीं हैं, तो भी वे नागरिकता के लिए आवेदन कर
सकते हैं। यह येाग्यता अविभाजित भारत से टूटकर बने देशों से आए उन सभी लोगों
जिनको उन देशों में पीड़ा पहुचाया गया, उत्पीड़ण के बाद उन्हें भागने को मजबूर किया गया वे
लोग जिसमें हिंदु, सिख इसाई
बौध जैन पारसी मतों के लोग हैं, वे सभी लोग चाहे कागज के साथ आए या कागज के बिना आएं,
नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इससे मुसलमान इसलिए बाहर हैं, कि ये तीनों देश मुसलिम देश है। इसके
अलावा नागरिकता के पहले के प्रावधानों में थोड़ी ढील दी गयी है। नैचुरलाइजेशन के
पिरियड को ११ सालों से घटा कर ६ साल कर दिया गया है।
उत्तर
पूर्व के राज्यों में ट्राइब्स के विरोध
२०१९ में
इसके कुछ प्रावधानों में बदलाव लाया गया क्योंकि उत्तर पूर्व के राज्यों में
इसका विरोध हो रहा था। उत्तर पूर्व के राज्यों में जो ट्राइब्स हैं, वे अपनी संस्कृति को बचाए रखना
चाहते हैं। और सरकार भी यही चाहती है। इसे देखते हुए सरकार ने असम, मेधालय, त्रिपुरा, मिजोरम और मणिपुर को अलग रखा है। आप
वहां जा तो सकते हैं मगर ऐसा कुछ नहीं कर सकते जिससे वहां की जनसांख्यकी
परिवर्तित हो जाए।
भारत
की आश्रय देने की परम्परा
भारत की यह
परम्परा है कि इसने विश्व के प्रतारित लोगों को जगह दी। इसमें इरान से आए पारसी हैं, तिब्बत से आए बौध हैं, पूरी दुनियां से भागे यहूदी हैं। इस लिहाज से भारत
इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों केा एक तय तरीके और वैधानिक ढंग से बसने की विधि
तैयार कर अपने पौराणिक तरीके का संवहन ही तो कर रहा है।
इस बिल के
पारित होने से वे स्वत: नागरिक नहीं बन जाएंगे बल्कि उन्हे एक तरीका मिलेगा
जिसके बाद हर व्यक्ति को नागरिकता के लिए आवेदन करने मे सहूलियत हो जाएगी।
टू नेशन थ्योरी का चूरण
टू नेशन थ्योरी से आजादी के समय के संयुक्त भारत की जनसंख्या के २०
प्रतिशत पर असर पड़ा था। आज मोदी सरकार उस हिस्टोरिकल
ब्लंडर को करेक्ट करने की कोशिश कर रही है। आज कांग्रेसी लीडर इस बिल का
विरोध कर रहे हैं। हिंदुस्तान के तकसीम का फैसला कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने
किया। नेहरू और जिन्ना इन पर्टियों केा
लीड कर रहे थे। नेहरू ने भारतीयों केा यह कंविंस
किया कि तकसीम अवस्यमभावी है, इसका कोई
दूसरा विकल्प नहीं है। वह टू नेशन थ्योरी एक चूरण था। इसे जिन्ना और नेहरू दोनो ने बेचा। उनका नारा था कि
हिंदु और मुसलमान दो अलग कलचर हैं। वे साथ में नहीं रह सकते । इसलिए अलग देश की
ज़रूरत है। जबकि वक्त ने सावित कर दिया है कि सदियों से हम साथ रहे और आज भी भारत
में हिंदु मुसलमान साथ ही रह रहे हैं। टू नेशन थ्योरी
का चूरण पाकिस्तान में जिन्ना ने और भारत में नेहरू ने बेचा। इन दोनो ने मुल्क के साथ फ्रॉड किया। वही नेहरू ने
आजादी के बाद अपनी एसेम्बली में कहा कि जो जहां हैं वहीं रहें। जिन्ना ने आजादी
के तीन दिन पहले ही ११ अगस्त १९४७ को लाहौर के जलसे में कहा कि टू नेशन थ्योरी अब खत्म हो गया। अब हम नया और
सेकुलर पाकिस्तान शुरू कर रहे हैं, जिसमें हिंदु मुसलिम
सिख इसाई सब मिल कर रहेंगे।
क्या ड्रामा था वह। इसके तीन बड़े किरदार थे, जिन्ना, नेहरू और
गांधी। मुल्क तकसीम हो गया। १४ लाख लोग मारे गये। लाखों मां बहनों का रेप हो गया।
हजारेां स्त्रियां बंधक बना ली गयीं। यह एक हिस्टोरिकल ब्लंडर था। कांग्रेस को
अपने उस हिस्टोरिकल ब्लंडर को कमसे कम एपोलोजाइज करना चाहिए। मगर उसने ऐसा कभी
नहीं किया।
जिन्ना ने आजादी के तीन दिन पहले ११अगस्त १९४७ को लाहौर के जलसे में यह
क्यों कहा कि टू नेशन थ्योरी अब खत्म हो गया। और इसी तरह
का बयान भारत के संसद में नेहरू ने दिया। देश के २०
प्रतिशत लोगों के साथ जो हादसा हुआ उसके लिए तो उन्हीं तीनों जिन्ना, नेहरू और गांधी
की जिम्मेवारी बनती थी। उन्हें उसी समय देश को बताना चाहिए कि भाइ हमलोगों से
गलती हो गयी। हमे मांफ करो और देश को तकसीम से रोक लेते हैं। यह उसी समय करेक्ट किया जा सकता था। क्यों नहीं किया।
अगर आज का कांग्रेस उस नेहरू के लीगेसी का क्लेम करती है तो इस सवाल का जवाब तो
दे,
आपने मुल्क को तकसीम भी कर दिया और बाद में कहते हैं कि जो जहां है वह वहीं रह
जाय। यह तो मुल्क के साथ एक धाखा है। इसके
लिए गांधी, नेहरू और जिन्ना
तीनो जिम्मेवार हैं।
आज अमित शाह उसका सुधार ही तो कर रहे हैं
आज अमित शाह कह रहे
हैं कि कांग्रेस अगर धर्म के आधार पर हिंदुस्तान को तकसीम न करती तो इस सिटिजन
एमेंडमेंट बिल की जरूरत पेश नहीं आती।पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान भी
कांग्रेस की भाषा बोल रहे हैं। वे कह रहे हैं कि इसमें मुसलमानो को नहीं शामिल
करके भाजपा सरकार एतिहासिक भूल कर रही है। मगर ये गलत बयानी है। पाकिस्तान , बंगलादेश और अफगानिस्तान के
मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यक को परसेक्यूशन का कोई मसला है तो वे
विशेष स्थिति में भारत की सिटिजनशिप क्लेम कर सकते हैं। और भारत इतना उदार भी है
कि वह उसको कनसीडर करेगा। अदनान सामी इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
पाकिस्तान
में हिंदु और सिख की स्थिति
पाकिस्तान
में हिंदु और सिख के उपर जुल्म ढाए जा रहे हैं। उनकी अंडर एज लड़कियों को मुसलमान
उठाकर ले जाते हैं और उनका अगवा करके उनको रेप करके जबरदस्ती उनका निकाह करके
उनको कनभर्ट करते हैं। पाकिस्तान के अंदर सदियों से रहने वाली इंडिजिनस जेनेरेशन
को वहां की सरकार तहफ्फुज नहीं दे पा रही है। ७० सालों से वहां गैर मुसलमानों का
फोर्स कनवरशन जारी है। उनकी आबादी गिरती ही जा रही है।
इसमें
मुसलमान शामिल क्यों नहीं है
कांग्रेस और
लेफ्ट, लिबरल और ओबैसी और शिवसेना और इमरान
खान आदि का स्टैंड है कि इसमें मुसलमान शामिल क्यों नहीं है। तो आप यह बताएं कि
यह पाकिस्तान किसके लिए बना था। क्या यह हिंदु या सिखों के लिए बना था। यह तो
बना ही मुसलमानो के लिए था। कौन बात करता है पाकिस्तान मे रहने वाले हिंदुओं के
लिए जिसके कभी कोई मंदिर तोड़ देता है, कभी कोई लड़की उठा लेता है। कभी अदालत के कारवाई के
जरिए उनके मंदिरों पर लीगल कब्जा कर लिया जाता है। करांची में हनुमान जी की कदीम
तरीन मंदिरों में एक के ८० प्रतिशत पर नाजायज मुसलमानो का कब्जा है। पाकिस्तान
बंगलादेश आदि में हिंदुओं के साथ इतना भेदभाव है कि उनको अछूत की तरह व्यवहार
किया जाता है। वहां बहुत से हिंदु यह सोचने पर विवस हैं कि एक कलमा पढने से उनकी
जिंदगी ही बदल जाती है, तो क्यों न ऐसा ही कर लें। वे वहां कनवर्ट होने के लिए विवस हैं।
क्या
कभी किसी हिंदु ने किसी को फोर्स कनवरजन किया
क्या कभी
किसी हिंदु ने किसी को फोर्स कनवरजन किया। इस कैब में कहीं डिसक्रिमिनेशन नहीं हुआ
है। मुसमानों को यदि पाकिस्तान में तकलीफ है, तो वे भारत में ही क्यों आना चाहते
हैं । दुनियां में ५७ मुसलमान मुल्क हैं। वहां क्यों नहीं जाते। शिया मुल्क है।
सुन्नी मुल्क है। वहावी मुल्क है। हनफी मुल्क है।
कांग्रेस
के लीडर ने अमित शाह से यह भी पूछा कि जब अफगानिस्तान से आपका बोरडर नहीं मिलता
तो आप इस बिल में अफगानिस्तान को क्यों शामिल करते हैं। दरअसल अफगानिस्तान भी कभी भारत का
ही हिस्सा था। वहां आज भी कुछ सौ या हजार हिंदु काफी कठिनाई में जीवन व्यतीत कर
रहे हैं। बोरडर नहीं मिलता यह भी तो नेहरू की गलती
है। इसके लिए अमित शाह तो दोषी नहीं हैं। इस बिल का पोजिटिव इफेक्ट पूरे
रिजन पर पड़ेगा। हिंदुस्तान इस रिजन का मदर नेशन है। यह पूरे विश्व के
सिविलाइजेशन की जननी है।
भारत
दुनियां का एक मात्र हिंदु सोशल फैब्रिक वाला देश है
भारत
दुनियां का एक मात्र देश है जो हिंदु सोशल फैब्रिक वाला देश है। उसने हिंदु, सिख, बौध, जैन बहन भाइयों को जो
एक ही सनातन धर्म की शाखाएं हैं उसने इन सबको एकोमोडेट किया । इसमें गलत क्या है।
बड़ी बात तो यह है कि भारत क्रिश्चन कौम्यूनिटी को भी एकोमोडेट कर रहा है। मुसलमान
तो ५७ देशों में रह रहे हैं। अगर सिया या अहमदिया के साथ मसले हैं तो पहले तो वे
उठें, बोलें, या इन ५७ मुल्कों में
से किसी की तरफ रूख करें। उनके लिए भारत ही क्यों।
मुसलमानों के
साथ मसले हैं, मगर इन एक्टिविस्टों ने कभी साउदी
अरब या ईरान या चीन या पाकिस्तान की एम्बैसी के सामने प्रदर्शन किया कि क्यों
इन मुल्कों में शिया या अहमदिया या विगर मुसलमानों के साथ जुल्म होते हैं । आज
ये उनके सीएबी में एकोमोडेट करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं, इसमें इनका दोहरा चरित्र झलकता हैं। ये लोग सिर्फ होलौ और सैलो पौलिटिक्स करना चाहते हैं। और
भारत में सदियों से आ रहा रवादारी का जो माहौल है, ये लोग सेकुलरिज्म के
नाम पर उससे नाजायज फायदा उठा रहे हैं। ये लोग सेकुलरिज्म का गलत
इंटरप्रेटेशन कर रहे हैं। सेकुलरिज्म को मजहबी रंग दे रहे हैं।
अमेरिका, कैनाडा और यूरोप के कई देशों की भी
तरजीह होती जो क्रिश्चन परसेक्यूटेड हैं, उनको खास तरीके से एकोमोडेट किया
जाय। आसिया बीवी , क्रिमसा
मसीह जैसे अनेक परसेक्यूटेड इसाईयों को कैनाडा ने ये एसाइलम प्रोवाइड किया।
इजराइल की तरजीह है कि दुनियां में कहीं भी यदि यहूदी परसीक्यूशन का शिकार हैं तो
वे इजरायल उनके लिए बांह फैलाए खड़ा है। फिर भारत जिसने दूसरी परसीक्यूटेड लोगों को शरण दिया है आज
वह हिंदुओं को शरण कयों न दे। अगर भारत अपने सोशल फैब्रिक के मुताविक
हिंदुओं को एकोमोडेट करता है तो इसमें क्या गलत है।
भ्रम
फैलाया जा रहा है
कांग्रेस और
टीएमसी, सपा आदि ने संविधान की अनुसूची ५,१३,१४,१५,१०,२५ का रेफरेंस देकर कहा कि नागरिकता
संशोधन विधेयक संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। यह विरोध कयों हो रहा है और इसके
मूल में क्या है।विरोधी कहते हैं कि ये बिल भारतीय संविधान के आरटिकल १४ का यानी
समानता के अधिकार का उलंधन कर रहा है। आरटिकल १४
भारतीय नागरिकों के समानता के अधिकार की बात करता है। यह कहता है कि भारत में रहने
वाले किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेद
नहीं किया जाएगा। यह तो भारतीय नागरिकों पर लागू होता है। मगर यह बिल
रिफ्युजियों के लिए आया है। वे भारतीय
नागरिक तो हैं नहीं। इसलिए यह उनपर लागू नहीं होता है।
इस
बिल का एक आधार है धार्मिक प्रतारणा इसलिए इसके अंदर नेपाल या श्रीलंका को शामिल नहीं किया
गया है, क्योंकि वहां हिंदुओं या बौध पर धार्मिक प्रतारणा के समाचार नहीं मिलते हैं।
उनपर कोई पावंदी नहीं है।
मगर पाकिस्तान
अफगानिस्तान और बंगलादेश में इन पर धार्मिक प्रतारना हो रहे हैं । आए दिन इनकी
खबरें आती रहती है। अगर हम कहते हैं कि यह मुसलमान के
खिलाफ है तो यह गलत है। भारत के भीतर जो मुसलमान रह रहे हैं उनके अधिकार तो कम
नहीं किए जा रहे हैं।
यह विधेयक
पूर्व में पेश किया जा चुका है इसमें नागरिकता के लिए इंतजार करने की सीमा ११ वर्ष
की जगर ६ वर्ष किया गया है। ओरिजिनल जो इंडियन सिटिजनशिप ऐक्ट में और कोइ बदलाव
नहीं किया गया है। वह वैसा का वैसा ही है। कांग्रेस आदि के द्वारा यह भी झूठ
फैलाया जारहा है।
यह भी बात
फैलायी जारही है कि यह असम एकॉर्ड को डायल्यूट करता है। मगर यह भी झूठ है। असम के
लिए कट ऑफ मार्क रखी गयी है ३१ दिसंबर २०१४। कही
जा रही है कि यह असम के लोगों के खिलाफ है, मगर यह भी झूठ है। असम के लोगों के
कलचर केा प्रोटेक्ट करने के लिए एनआरसी किया जा रहा है। इलिगल घुसपैठिए को बाहर
किया जाएगा। यह एनआरसी के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं कर रहा है। यह संशोधन असम
सेंट्रिक तो है नहीं। यह पूरे भारत के लिए है। यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है
कि बंगलादेशी हिंदू असम में आकर भर
जाएंगे। मगर यह भी झूठ है। क्योंकि इस कानून के पास होने से वे असम की बजाय देश
के दूसरे हिस्से में भी जाएंगे। वे ज्यादातर वहां जाएंगे जहां रोजगार ज्यादा
है। देश में २८ अन्य राज्य हैं। हर आदमी चाहता कि उसको बेहतर जीवन का स्तर मिले
। अच्छा जौब और इनकम मिले। वे बेहतर स्टेट की तरफ जाएंगे। असम इतना बेहतर स्टेट
तो है नहीं कि सब लोग वहीं रह जाएंगे। तो ऐसा कहना कि बंगाली हिंदू डोमिनेट कर
जाएंगे गलत है।
यह भी कहा जा
रहा कि हिंदुओ का एक बड़ा माइग्रेशन असम में हो जाएगा। मगर यह भी झूठ है। बंगलादेश
से जो बड़ा माइग्रेशन होना था, हो चुका है। यह १९७१ के लड़ाई के दिनो ही हो गया। अब
कुछ बड़ा माइग्रेशन नहीं होना है। बंगलादेश आज एक फास्टेस्ट ग्रोइंग इकोनोमी है। बंगलादेश ने कट्टरपंथ के
विरूद्ध काफी कदम उठाए हैं। बंगला देश की ८ प्रतिशत हिंदु आवादी उठकर उधर आ जाएगी
यह भी झूठ है। कहा जारहा है कि ट्राइवल इलाकों पर उनका कब्जा हो जाएगा। यह भी गलत
है। १९७१ के युद्ध के बाद जो बंगलादेशी आए हैं, वे बराक वेली में सेटल हुए हैं। जो
असम के ट्राइबल इलाकों से काफी दूर है। यह बिल ट्राइबल रिलेटेड कानून का कहीं से
उलंघन नहीं करता । ट्राइबल लैंड के प्रोटेक्शन का हमारे पास अलग से संविधान के ६
सेड्यूल में कानून है, उन कानून का
कैब के साथ कोइ क्लैश नहीं है।


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