सीएए का विरोध उन मजलूम शरणार्थियों को
उनके हक से बेदखल करने जैसा है
सिटिजनशिप एक्ट से भारतीय नागरिकों का रत्ती भर भी लेना
देना नहीं है। यह भारत
के बाहर से आए शरणाथियों से संवंधित है। जो विरोध कर रहे हैं वे भी इसे अच्छी
तरह जानते हैं। इसके बावजूद वे सिटिजनशिप एमेंडमेंट एक्ट पर हंगामा कर रहे हैं।
इनकी मंशा कुछ और है। इनकी मंशा है कि सीएए पर हंगामा से एनआरसी रूक जाएगा, सीएए पर हंगामा से जनसंख्या नियंत्रण कानून
नहीं बनेगा, सीएए पर हंगामा से धर्मांतरण विरोधी कानून नहीं
बनेगा, सीएए पर हंगामा से रोहिंगिया को वापस नहीं भेजा
जाएगा, सीएए पर हंगामा से बंगलादेशी घुसपैठिए को वापस
नहीं भेजा जाएगा, सीएए पर हंगामा से भ्रष्टाचारियों को जेल नहीं
भेजा जाएगा।
ये बहुत बड़ी
ग़लतफ़हमी में हैं। मेरा खयाल है कि यह सरकार न रूकेगी, न झुकेगी। सीएए पर ये जितना भी हंगामा करलें, देश की जनता समझ गयी है कि हकीकत क्या है।
इस बिल को
क्यों लाना पड़ा।
जिन्होंने
पारलियामेंट में यह बिल लाया उन्होंने इसकी खुलकर बजाहत की है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश में जो रिलिजियस
माइनोरिटिज हैं, वे डिस्क्रिमिनेट हो
रहे हैं, उनके साथ ग़लत सलूक हो रहा है। इसलिए उनके प्राटेक्शन की जरूरत है। ये
लोग भारत में आते हैं और उनके लिए कोई प्रोपर डक्यूमेंटेशन का तरीका नहीं था। वे
इलिगल हो जाते थे। यहां इलिगली रहते हैं। इलिगल होने से उनके जो हुकूफ़ ओर मोराद
जिनके वे हकदार थे, वे उन्हें नहीं मिलती थी। भारत के लिए
भी यह रिस्क बन जाता था कि नागरिकों के बीच बड़ी संख्या में इलिगल लोग रह रहे
हैं। इस बुनियाद पर यह जरूरी था कि भारत ऐसा कानून लाए जो इनलागों को तहफ्फुज दे
सके। २००३ में जब अटल बिहारी की सरकार थी तो कांग्रेस ने खुद ये मसला उठाया था कि
। तब के विपक्ष के नेता मनमोहन सिंह ने राज्य सभा में तात्कालिक गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवानी को
सम्बोधित करते हुए ऐसे बिल लाने की मांग की थी और इसे एक सिरियस इसू कहा था । उन्होंने अंग्रेजी में
जो कहा था, I would like to point out in regard with the treatment
with the refugees. After the partition of our country, the minorities in the
countries like Bangladesh have faced persecution and it is our moral obligation
that if circumstances force these unfortunate people to seek refuse in our
country, our approach to grant citizenship to these unfortunate persons should
be liberal, and I sincerely hope, Deputy PM, we will short out the future
course of action with regard to the citizenship act. उसका तरजुमा हिंदी में यह बनता है। बंगलादेश में
हिंदुओं और अन्य गैर मुसलमानों का धार्मिक उत्पीड़ण किया जाता है। ये प्रताडि़त
लोग अगर शरण के लिए हमारे देश में पहुचते हैं तो इन्हें शरण देना हमारा नैतिक
दायित्व है। इन्हें शरण देने को लेकर हमारा व्यवहार उदारतापूर्ण होना चाहिए।
मैं गम्भीरता से गृह मंत्री (लाल कृष्ण आडवानी) का ध्यान नागरिकता संशोधन की
तरफ खीजना चाहता हूँ।
कांग्रेस का दोहरा चरित्र
लेकिन २००४ से २०१४ तक कांग्रेस सत्ता में रही और
उसने ऐसा कोई कानून बिल नहीं लाया। वह १० सालों तक भ्रष्टाचार का कारोबार करती
रही, मगर उसने ऐसा कोई कानून बिल नहीं
लाया। इन्हीं दिनो हुए थे २जी स्कैम, चौपर स्कैम, टाट्रा ट्रक स्कैम, CWG स्कैम, कैश फौर वोट स्कैम, आदर्श स्कैम, IPL
स्कैम, सत्यम स्कैम, कोयला स्कैम,
और न जाने कितने अन्य स्कैम। मौजूदा बीजेपी सरकार ने यह बिल लाया जो जरूरी भी
था। इन्होंने बाजाप्ता अपने चुनाव मेनिफेस्टो में इसे शामिल किया था।
इस कानून को लाने के पीछे यह बात है कि इन देशों
में जो गैरमुस्लिम माइनोरिटिज है, और जो वहां भेदभाव और धार्मिक
प्रतारणा के शिकार हुए हैं, उन्हें प्रोटेक्श्न देना है। सरकार ने कुछ छुपाया नहीं ।
इसमें मुसलमान क्यों शामिल नहीं हैं
सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि हमारा मकसद उन देशों
से आए गैरमुसलमान शरणाथियों को सुरक्षा
देना है। वे मुसलमानों के देश हैं। अगर वहां मुसलमानों के साथ भी भेदभाव होता है
तो यह भारत का मसला भी नहीं है। यह भारत का हेडक भी नहीं है। यह उनकी जरूरत भी
नहीं है, यह उनकी जिम्मेवारी भी नहीं है, ना तो उनपर ऐसी
ओबलिगेशन है कि वह पाकिस्तान या बंगलादेश के मुसलमानों को उन्हीं के रियासतों से
बचाए। क्योंकि वे तो मुसलमान बहुसंख्यक देश हैं। सरकार के गृह मंत्री ने यह स्पष्ट
कर दिया है। अगर भारत बंगलादेश या पाकिस्तान में इस ऐप्रोच के
साथ प्रपोज करे कि वह वहां के मुसलानों को मुसलमानों से बचाना चाहता है, तो इससे तो उसका उद्देश्य ही हमेशा के लिए गुम हो जाएगा । इससे बहुत
सारी कम्पलीकेशन शुरू हो जाएंगे। इसे तो पाकिस्तान या बंगलादेश या अफगानिस्तान
की सरकार भी अपने होम अफेयर में दखलअंदाजी करार दे सकता है।
ये विरोध करने वाले ये कहते हैं कि पाकिस्तान के मुसलमानो को भी शरण
दो तो उसका जवाब है कि पूरी दूनिया में कोई देश पाकिस्तानी मुसलमानों को शरण नहीं
देना चाहता है। फ्रांस, इंगलैंड,
अमेरिका कैनाडा या दुनिया का कोई देश
पाकिस्तान के मुसलमानों को अपने देश में लाना नहीं चाहता है। उनके बारे
में सामान्य पासेप्शन इतना खराब है कि
पाकिस्तान के लोगों को नंगा करके हवाइअड्डों पर तलाशी होती है। भारत पर वैसे ही
आतंतवाद का खतरा मडराता रहता है। इसलिए इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसपर कोई भारतीय
ऐतराज कर सके।
पाकिस्तान
के अहमदिया
पाकिस्तान में जो
अहमदिया हैं उनको पाकिस्तान सरकार ने बाजाप्ता १९७३ में कानून बनाकर गैर मुस्लिम
घोषित कर डिसक्रिमिनेट किया है। उसमें कहा गया कि अहमदिया मुसलमान नहीं हैं ।
यदि वे किसी तरह से मुसलमान होने का दावा करें या ऐसा गेसचर शो करें तो उनके खिलाफ
सजाएं हैं। १९७३ से लगातार वे डिसक्रिमिनेशन के शिकार हैं। मगर यह
भारत का कोई किरदार नहीं बनता कि वह इसमें किसी तरह का दखल दे।
ज्ञातव्य है कि ये अहमदिया पाकिस्तान बनाने में
सबसे आगे थे। पाकिस्तान बनाने में ८० प्रतिशत हाथ अहमदिया मुसलमानों का था। वे आम पाकिस्तानी से कहीं ज्यादा भारत को दुश्मन
समझते हैं। वे पाकिस्तानी स्टैबलिशमेंट के साथ खड़े रहते है। भारत इसमें नहीं
पड़ सकता कि वह पाकिस्तान या बंगलादेश के अंदरूनी ह्युमन राइट के मसले में टांग
अड़ाए।
भारत में बड़ी संख्या
में हिंदु, सिख्, बौध, जैन, इसाई गैर कानूनी
शरणार्थी वर्षो से रह रहे हैं । नागरिकता
के अभाव में उनकी हालत बहुत खराब है। भारत ने इसका सीधा हल निकाला कि इन्हें
कानून बनाकर लिगल करार दिया जाय। ताकि इनके दुख थोड़े कम हो।
इलिगल इमिग्रेंट
यह मसला इलिगल इमिग्रेंट
से शुरू होता है। इलिगल इमिग्रेंट्स
के साथ पूरी दुनियां जो डील किया गया उसका आधार भी ऐसा ही है। अमेरिका और कैनेडा
क्रिशचन माइग्रेट को प्राथमिकता देते हैं। जापान, चीन, कोरिया सभी ने अपनी जरूरियात के मुताबिक इमिग्रेशन के कानून बनाए जिसके
आधार पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बड़ी संख्यां में माइग्रेशन हुए। आप युरोप के
देशों में देखें । हर देश के इमिग्रेशन के पोलिसी में इफ एंड बट हैं। कहीं भी
अनकनडिसनल इमिग्रेशन पौलीसी नहीं है। फिर भारत में आप ऐसा करने के लिए सरकार पर
प्रेसर नहीं डाल सकते । सरकार की अपनी सीमाएं हैं, लिमिटेशंस
हैं, प्राथमिकता है। कुछ ही पहले अमेरिका की ट्रंप सरकार ने
खुले तौर पर पावंदी लगा दी थी कि मुसलमान इस मुल्क में दाखिल ही नहीं हो सकते।
बाद में अमेरिकी कांग्रेस के दबाव
में उन्होंने रेक्टिफाइ किया, ये अलग बात है। हर देश अपनी प्राथमिता के आधार पर ही इमिग्रेशन लौ बनाता
है। कोइ देश इस तरह का इनडिसक्रिमिटली कानून नहीं बना सकता कि दुनिया भर के
शरणाथियों आओ हमारे यहां चले आओ। अगर आप इस तरह ब्लैंकेट इनविटेशन दें तो मुमकिन
है, अफगानिस्तान या
सिरिया के ८० प्रतिशत मुसलमान कल ही भारत की तरफ रवाना हो जाएंगे। सारे रोहिंगिया
कल ही से दिल्ली रवाना हो जाएंगे। तब उनको सम्हालना एक नयी समस्या हो जाएगी। पूरी
दुनिया में मुल्क बदर लोगों की समस्या है, वह भारत का
हेडेक नहीं है।
सीएए का विरोध उन मजलूम शरणार्थियों को
उनके हक से बेदखल करने जैसा काम है
ये जो पाकिस्तान,बंगलादेश
और अफगानिस्तान से आए शरणार्थी हैं, ये कौन लोग हैं, ये वहां के गरीबतरीन तबके से आए लोग हैं, ये कोई
बदमाश या शर्मायेदार नहीं हैं। हमे इनको इंसानी हमदर्दी के बुनियाद पर देखना
चाहिए। इन बेचारों के पास कोई जगह नहीं है। उनकी मजबूरी आप समझ नहीं सकते । सीएए
का विरोध इन मजलूम लोगों को उनके हक से बेदखल
करने जैसा काम है।
जब बंगलादेश बना था, तो
बंगलादेश में जो लड़ाई हुयी थी, उसमें मुसलमानो के दो कैंप
थे, उसमें इसलाम के नाम पर एक कैंप पाकिस्तान के साथ था।
उसमें पाकिस्तान के वादे पर जो बिहारी रह गये थे, जिनको
पाकिस्तान ने वादा किया था कि हम आपको पाकिस्तान में पनाह देंगे। इस वादे पर वे
हजारेां की तादात में मारे गये। हजारों बेघर हुए। वे आज तक कैंपों में पड़े हैं।
पाकिस्तान का हर हुकुमरान उनसे वादा करता है कि हम आपको सिटिजनशिप देंगे। आज तक
उनको वे सिटिजनशिप नहीं दे सके जो उनकी वजह से इस हाल में पहुचे। उसी कारण ये लोग
भाग कर असम आदि पुर्वोत्तर राज्यों में गये हुए हैं। ये मसला इतना आसान नहीं है
कि आप कहते है कि समी को इनडिसक्रिमिनेटली इस कानून के अंतर्गत शामिल करलो।
भारत सरकार को भारत का इंटरेस्ट देखना
होता है
भारत के हुकूमरान ने सोच समझकर यह कानून बनाया है, कि हम कितने लोगों को एकोमोडेट कर सकते हैं। उन्हें पूरी कौम का इंटरेस्ट
देखना होता है। उस हिसाब से उन्होंने सही कानून बनाया है।
कांग्रेस, वामपंथी, त्रृणमूल या
आम आदमी पार्टी का नाटक
अब सवाल उठता है कि कांग्रेस या वामपंथी या आम आदमी पार्टी यह सब
जानते हुए यह नाटक क्यों कर रही है। उसका जवाब यह है कि उनका स्तित्व २० प्रतिशत
मुस्लिम वाटों पर आधारित है। इसलिए ये सब उनके खैरख्वाह बनना चाहते हैं।
ये विरोध करने वाले नरेंद्र
मोदी सरकार को विरोध करने के बहाने राष्ट्र के विरोध में खड़े हो गये हैं। इन
लोगों को देश से कोई प्यार नहीं है। इनको अपना हित प्यारा है। इनलोगों ने यह देख
लिया है कि हिंदू वोट दिन प्रति दिन भाजपा की तरफ जा रही है। अब इन लोगों को एक
मात्र मुस्लिम वोटों का ही सहारा दिखायी पड़ता है। इसलिए ये सभी अब हिंदुओं की
परवाह भी नहीं करते।
इंडिया
फर्स्ट
कुछ लोग एनार्की
फैला रहे हैं और उनके हाथ में जो पोस्टर और बैनर है उसमें लिखा है इंडिया फर्स्ट।
यह कितना बड़ा कन्ट्राडिक्शन है आप खुद समझ सकते हैं। ये लोग भ्रम का वातावरण
बना रहे हैं। इनका कहना है कि यह भारत के संविधान के विरूद्ध है। जब यह बिल पेश
किया जा रहा था तो संसद में विरोधियों ने कहा था कि यह संविधान विरोधी है। तब अमित
शाह सदन में आहवान किया था कि यह सिद्ध करक दिखाईए। कोई यह सिद्ध नहीं कर पाया। अगर
यह ऐसा है तो भी लगभग ५० लोगों ने सुपरिम
कोर्ट से गुहार लगायी है। ये लोग सुपरिम
कोर्ट के निर्णय का इंतजार नहीं करके आगजनी क्यों कर रहे हैं। क्या इन्हें भारत
के कोर्ट पर विश्वास नहीं है। क्यों इन्होंने लोगों को गुमराह करके सड़कों पर
उतार दिया है। ये विरोध करने वाले वे लोग हैं जिनका देश के विकास से, गौरव से, हित से कोई लेना
देना नहीं है। ये लोग एक खास एजेंडे के तहत देश के युवाओं को गुमराह कर रहे हैं। कुछ
मिडिया हाउसेस भी हैं जो इसको तूल दे रहे हैं। कुछ राजनैतिक पार्टियों के नेता हैं
जो पीछले चुनाव में बुरी तरह परास्त हो चुके हैं। इसमें कुछ सेलीब्रेटीज भी हैं
जो दिमाग से पैदल हैं। ये सब मिलकर एक दहशत का वातावरण बनाने में लगे हैं। इसमें
कुछ बामपंथी हैं जिनकी पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा से भी
जड़े उखड़ चुकी हैं। थोड़ा बहुत केरल में उनका बेस बचा है। ये सब एंटी इंडिया
एलीमेंट हैं।
सीएए के
समर्थन में भी छात्र निकल रहे हैं
अनेक विश्वविद्यालय
में सीएए के समर्थन में भी छात्र आने लगे हैं मगर ये राष्ट्र विरोधी मिडिया उसे
नहीं दिखा रहे हैं। वे शांतिपूर्ण तरीके से यह कर रहे हैं। और करना भी यही चाहिए।
बहुत जल्द पूरे देश में इस तरह का बातावरण आपको देखने को मिलेगा।
फेक न्यूज
से बचें
१४ दिसंबर को कन्हैया
कुमार ने सोशल मीडिया पर ४ फोटो लोड किया जिसमें दिखाया गया कि पुलिस छात्रों पर
पत्थर फेक रही है। दर असल जब छात्रों ने पुलिस पर पत्थर फेके तो कुछ पुलिस वालों
ने उन्हीं पत्थरों को वापिस फेका। इसमें क्या ग़लत है। पुलिस को उपर से निर्देश
है कि वह संयम बरतें, गोली चलाने से बचें। ऐसे में जो पुलिस ने किया उसमें
गतत क्या है। छात्र पुलिस पर पत्थर फेके वह सही है मगर पुलिस उसी पत्थर को वापस
फेके तो गलत। इसमें एक साइड की विडियो तो उसने लोड की मगर दूसरे तरफ के विडियो को दबाने
की कोशिश की।
अगले दिन १५ दिसंबर को
एएपी के नेता और दिल्ली के उपमुख्य मंत्री ने एक विडियो
शेयर किया और कैप्शन में लिखा कि पुलिस वाले
बस जला रहे हैं। जबकि पुलिस वाले आग बुझाने के लिए पानी डाल रहे थे। अब जबकि इसकी सच्चाई
सामने आ गयी है इनलागों ने अबतक माफी भी नहीं मांगी। एक विडियो वाइरल हुआ
है कि हमे हिंदुओं से आजादी चाहिए। उसके काट उपद्रवियों का कहना है कि हमने हिंदु
नहीं हिंदुत्वा शब्द का इस्तेमाल किया था। अगर उनकी बात मान भी ले तो भी बात तो
एक ही हुयी।
इस तरह के बहुत सारे
अफवाह राष्ट्रद्रोहियों की तरफ से फैलाए जा रहे हैं। लोगों को सावधान रहने की जरूरत
है। उपद्रवियों और षडयंत्रकारियों की कोशिश है कि एक हिंदू मुस्लिम डेवाइड पैदा कर
फिर से १९४७ जैसी स्थिति पैदा की जाय। मगर देशद्रोहियों को याद रखना चाहिए कि आज २०१९
का भारत है और देश में एक मजबूत प्रधान मंत्री
है और एक मजबूत गृह मंत्री है और उनके पास एक व्यापक जन समर्थन है।



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