कोरोना महामारी से लड़ने के लिए २० लाख करोड़ का पैकेज
नयी
दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए देश को २०
लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इसे आत्म निर्भर भारत अभियान आर्थिक पैकेज का नाम दिया
गया है।
नरेंद्र मोदी के बजट प्राय: ग्रामीण अर्थव्यवस्था को केंद्रित
करके बनायी जाते हैं। वह सर्वांगीन और समावेसी होती हैं। कांग्रेस को आजादी के बाद
इतना समय मिला मगर उसने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को सुदृढ करने का कभी प्रयास ही
नहीं किया। जबसे केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आयी है यह आशा जगी है कि देश के
किसान आत्म निर्भर हो पाएंगे।
ग्रामीण
अर्थ वव्यवस्था को अपनी ताकत मिल जाय इसकी जरूरत थी ताकि किसान सहजता से उपजा
सके और अपना माल बेच सके। नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद जो पहला बजट पेश हुआ
तभी से इसकी शुरुआत हो गयी थी।
ENAM अर्थात Electronic National Agriculture Market की शुरूआत राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना के तहत हो चुकी
थी। एक राष्ट्र एक बाजार योजना के तहत बहुत कुछ की जा रही थी। केंद्रीय वित्त
मंत्रालय की तरफ से बार बार राज्यों को कहा जा रहा था कि एसेंसियल कमोडिटी एक्ट
में बदलाव करके किसानो को सहूलियत प्रदान करें। बेचारा किसान किसी कम्पनी को
बुलाकर अपने खेत पर अपना उत्पाद नहीं बेच सकता था। वह एपीएमसी की मंडी पर ही बेच
सकता है। जहां मंडी नहीं है वहां और बुरा हाल है। इसमें अढतिए, साहूकार
और अन्य बिचौलिए शामिल होते हैं।
संथागत तौर
पर किसान को मजबूत करने का काम इस सरकार से पूर्व नहीं हो रहा था। केंद्र सरकार ने
एसेंसियल कमोडिटी एक्ट में बड़ा बदलाव
किया है और साफ साफ कहा है कि फूड प्रोसेसर के लिए कोई स्टॉक लिमिट एपलाइ नहीं
होगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि आज हम अन्न उपज में संपन्न हैं।
आज हमारे देश में किसी अनाज की कमी नहीं है। हमारे एफसीआइ के अनाज के गोदामो में
इतने भरे हैं कि वह बारिस में गोदाम के बाहर सड़ जाता है। पुराने एसेंसियल कमोडिटी
एक्ट तब बने थे जब अनाज की कमी थी और इसे कालाबाजारी रोकने के लिए बनाया गया था। आज
के समय में वह असमीचीन है।
अभी तक किसानो के खातों
में पीएम किसान सम्मान निधि के तहत १८७०० करोड़ रुपये दिया जा चुका है। मिनिमम
सपोर्ट प्राइस के तहत ७४३०० करोड़ रुपये मूल्य
का अनाज किसानो से खरीदा जा चुका है।
वित्त मत्री निर्मला
सीतारमण ने कहा है कि “ Facilitative legal framework will be created to enable
farmers for engaging with processors aggregators, large retailers, exporters,
etc.” यह जो लीगल फ्रेम वर्क
तैयार होना है वो कैसे तैयार हो रहा है यह अभी देखना है। किसान रिटेलर के साथ, किसान
प्रोसेसर के साथ, किसान मिलर के साथ, किसान
एग्रीगेटर के साथ, कैसे वह काम करेगा, और कैसे
उसकी कृषि उपज विकेगी, कैसे उसे बेचकर वह अपनी कमाई करेगा, और इस
तरह कैसे गांव आत्मनिर्भर बनेगा? इसके लिए जो कानूनी दायरा बनेगा यह अभी देखना
है। इसमें राज्य सरकारों को भी बहुत ध्यान देना होगा और उन्हें ध्यान देना भी
चाहिए।
हालांकि
राज्य सरकारों को यह काम पहले ही करना चाहिए था। मगर वे अबतक ऐसा करने में विफल
रहे हैं। बिहार में मंडियां ही नहीं है। ऐसे बहुत सारे अन्य राज्य भी हैं। वहां
मंडी समीति नहीं हाती है। वहां एपीएमसी कानून लागू ही नहीं होता है। बिहार अकेला
राज्य नहीं है जहां कृषि उपज के मामले में अब तक कुछ नहीं हुआ। अभी उत्तर प्रदेश
और मध्य प्रदेश ने किसानो को एपीएमसी के दायरे से बाहर निकाल लिया है। उसका फायदा
उसे अब मिलेगा।
केंद्र सरकार ने तो किसानो
के हित को ध्यान में रखकर यह ऐलान तो कर दिया मगर किसानो को तभी लाभ मिलेगा जब
राज्य सरकारें उस कानून में अपने लिए लाभ खोज ले और किसानो को वह लाभ ट्रांसफर कर
दे, और किसान लपक कर उसे ले ले।
आज का यह ऐलान ग्रामीण
अर्थव्यवस्था के लिए और ग्रामीण भारत के लिए महत्वपूर्ण है। वित्त मत्री
निर्मला सीतारमण ने कहा है कि “The central law for farmers to have a choice to sale the produce at an
attractive price, no barriers in inter-state trade.” दो राज्यों में सामान लाने ले जाने में कोई संकट न हो
इसकी बात वह कर रही थीं।
इस देश में
असली दिक्कत तो यही रही है कि किसान अपनी उपज की कीमत ही तय नहीं कर सकता है। उद्योग
जगत में छोटा से छोटा उत्पादक भी अपने उत्पाद की कीमत तय करने के लिए स्वतंत्र
है मगर किसान अपनी उपज की कीमत तय नहीं कर सकता है। आजादी के इतने वर्ष बीत गये, किसानो को यह इजाजत अब तक नहीं मिली थी। अगर राज्य और किसान इसका लाभ ले
जाय तो किसानो की हालत और देश की हालत
बहुत बेहतर हो जाएगी।
Electronic National
Agriculture Market से ७८५ मंडियां जुड़
चुकी हैं। इसे १००० करने की कोशिश है। भविष्य में हो सकता है कि सारी उपज औनलाइन
ही ट्रेड होने लगे। यह इस दिशा में शुरूआती कदम तो है।
ब्रोकेन
सपलाइ चेन को रिपेयर करने के लिए एक और स्कीम है, जिसके लिए वित्त मत्री निर्मला सीतारमण ने ५०० करोड़ का प्रोवीजन किया
है। सबसीडी ट्रांसपार्टेशन के तहत ५० प्रतिशत की सबसीडी मिलेगी अर्थात जिस इलाके
में ज्यादा है अगर वहां से आप उस इलाके में उपज ले जाते हैं जहां उसका अभाव है तो
आपको ट्रांसपोरटेशन में ५० प्रतिशत की सबसीडी मिलेगी। स्टोरेज में भी यही
प्रावधान किया गया है। वेयर हाइस, और कोल्ड
स्टोरेज में रखने का जो खर्च आएगा उसमें भी ५० प्रतिशत की सबसीडी मिलेगी।
माइक्रो फूड एंटरप्राइज के
बनने के लिए सरकार ने १० हजार करोड़ का प्रावधान किया है। ऐसी इकाइयां यदि आप लगा
रहे हैं तो उसको सपोर्ट करने के लिये यह प्रावधान किया गया है। हरबल कलटीवेशन के
लिए ४००० करोड़ का प्रावधान किया गया है। दुग्ध क्षेत्र के
विकास के लिए १५००० करोड़ का
प्रावधान किया गया है। डेयरी इनफ्रास्टक्चर फंड है उसमें अब नीजी निवेशक भी आ सकेंगे।
कृषि क्षेत्र की बुनियादी सुविधा और उसके
इनफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए, ग्रामीण और कृषि अर्थव्यवस्था और उससे
जुड़ी जितनी चीजें हैं, उन सबको दुरुस्त करने में ये १ लाख
करोड़ रूपये खर्च किया जाएगा।
ज्ञातव्य है कि कर्ज माफी से किसानो की हालत नहीं सुधरी।
उल्टे उनका नुकसान ही हुआ। मगर इस तरह के कदम से किसान की स्थिति सुधर सकती है।
जरूरत यह है कि राज्य सरकार इसका लाभ ले और यह लाभ किसानो तक ट्रांसफर करे। मोदी सरकार की कोरोना संकट को एक अवसर
में बदलने के लिए सराहना की जानी चाहिए।


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