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Denial of state governments with immigrant laborers







आप्रवासी  मजदूरों के साथ राज्‍य सरकारों का असहयोग



देश के अनेक भागों से आप्रवासी मजदूर घर के लिए निकल पड़े हैं। कहीं उनके पास जाने को सवारी नहीं हैं, कहीं उनके पास खाने को दाना पानी नहीं हैं।

मजदूरों को जानबूझ कर इस हालत में पहुचाया गया है। उद्देश्‍य था कि केंद्र सरकार को पूरी दुनिया में बदनाम किया जाय। पूरी दुनियां में नरेंद्र मोदी की तारीफ होने लगी। यह बात गैर भाजपा पार्टियों को रास नहीं आयी। इस देश में धटिया दर्जे की राजनीति करने वाली पार्टियों और नेताओं को लगा कि इतनी बड़ी महामारी से लड़ने में यदि यह देश सफल हो जाएगा तो उसका सारा का सारा श्रेय तो एक प्रधान मंत्री ले जाएगा, केंद्र की सरकार ले जाएगी, भारतीय जनता पार्टी ले जाएगी।



ये शुरूआत अचानक से नहीं हुयी। यह एक नियोजित तरीके से एक साजिश के तहत किया गया । स्थिति को विगाड़ने का एक माहौल तैयार किया गया। उसके बाद अलग अलग राज्‍यों से, विशेषकर जहां गैर भाजपा की सरकारें है,  असहयोग के स्‍वर उभरने लगे। सबसे पहले दिल्‍ली से, फिर तुरत बाद महाराष्‍ट्र से, पश्चिम बंगाल से, और केंद की विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी की ओर से असहयोग का स्‍वर और असहयोग का रवैया शुरू हुआ। दुष्‍प्रचार शुरू हो गया। 



वे कहने लगे कि मजदूर  जाना चाहते हैं। इसको सबसे ज्‍यादा उकसाने का काम तब  हुआ था, जब आनंद विहार में दिल्‍ली सरकार ने भीड़ जमा कर दी। उस समय मजदूरों को भड़काया गया, उन्‍हें भावुक किया गया। फिर यही काम महाराष्‍ट्र के बांद्रा में किया गया। आदित्‍य ठाकरे ने बांद्रा की घटना के बाद कहा था कि मजदूर घर जाना चाहते हैं। 


आज कल लगातार मजदूरों के सड़कों पर पैदल घर लौटने  की खबरें आ रही हैं। माईग्रेंट लेबर को लेकर देश में हो हल्‍ला और हंगामा किया जा रहा है। अव्‍यवस्‍था और अराजकता पैदा करने की कोशिश की जा रही है।

इस बीच एक फोटो वायरल हो रही है जिसमें  कुछ मजदूर ट्रक पर लद रहे हैं जिसमें महिलाएं भी हैं और छोटे वच्‍चे भी। दृष्‍य मार्मिक है।
अरफा खानम (एक राष्ट्र विरोधी पत्रकार) उस फोटो के साथ लिखती हैं कि “There are 200 countries combating corona virus at this moment but India is the only country in this world that is treating its poor like animals under the able leadership of supreme leader Narendra Modi.”
उसी फोटो को एटैच करके रणदीप सुरजेवाला  ट्विट करते हैं  कि मोदी जी ! इन्‍हीं को जहाज में बैठाने के सपने बेचे थे आपने ?

उसी फोटो के साथ योगेंद्र यादव का ट्विट आता है, वे लिखते है कि फोटो में वो बच्‍चा दिख रहा है, अगर अब भी आपके भीतर कुछ हिलता नहीं है, तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
कोई गोपाल कृष्‍ण भी उसी फोटो को साइट करते हुए कोट करते हैं। एक कोई सुधा बेणु गोपाल भी उसी फोटो के साथ ट्विट करती हैं।


इस इको सिस्‍टम को समझने की जरूरत है। सवाल यह है कि १३५ करोड़ इस देश की आवादी है । इसमें ८० प्रतिशत गरीब जनता है। इसमें उन सबको अपनी बात करने के लिए एक ही फोटो मिली।

अब इस फोटो का सच देखिए। आप गुगल कर सकते हैं। यह फोटो रायगढ के एक अखबार में इस शीर्षक के साथ  छपी है घर लौटने की जद्दोजहद
नीचे विस्‍तार से लिखा है कि छतीस गढ के रायपुर में रविवार को प्रवासियों के घर लौटने की जिद और संघर्स की बानगी देखने को मिली।

छतीसगढ में तो कांग्रेस की सरकार है। फोटो छतीसगढ की है और आरोप प्रधान मंत्री पर लगाया जाता है। यह तो राज्‍य सरकारों की जिम्‍मेदारी बनती है कि इन मजदूरों को राशन पानी और सुरक्षा की व्‍यवस्‍था करे।     



यही तो वो लोग है जिन्‍होंने  मिलकर इस कोरोना के समस्‍या को बढाया। यही लोग तबलीगी जमात के पक्ष में खड़े थे। इन्‍हीं लोगों ने मजदूरों को शहर छोड़ने के लिए उकसाया और मजबूर किया। इसकी शुरुआत आनंद विहार से हुयी थी। रातों रात डीटीसी की बसों ने इन मजदूरों को यूपी बोर्डर पर छोड़ा था। और यही केंद्र सरकार पर आरोप भी लगा रहे हैं। केंद्र से सवाल पूछ रहे हैं कि मजदूद घर के लिए क्‍यों निकल पड़े?  

ज्ञातव्‍य है कि इन माइग्रेंट लेबरों में ज्‍यादातर उत्‍तर भारत के यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम आदि के लोग थे। आपको याद होगा कि केजरीबाल ने रातों रात एनाउंस किया था कि यूपी बोर्डर पर आप लोगों के लिए बसें लगायी गयी है। आप जाएं। उसमें भी कौन निकले थे दिल्‍ली छोड़कर, बस यही लोग थे। ये सारा प्रपंच चल कहां से रहा है? ये मजदूर कहां से भाग रहें हैं, दिल्‍ली से, महाराष्‍ट्र से, छतीस गढ से । इन सभी जगह गैर भाजपा सरकारें हैं।

केंद्र सरकार ने तो फंड एलोकेट कर दिया मगर उसे मजदूरों तक तो राज्‍य सरकार ही तो पहुचाएगी। राज्‍य सरकार इसमें विफल रही हैं। लोगों को खाना नहीं मिल रहा है। दिल्‍ली में मुसलमानों को सबकुछ मिल रहा है वहीं हिंदू मजदूरों को नहीं। उत्‍तर भारतीयों को जान बूझ कर कांग्रेसी सरकारों ने भागने को मजबूर किया। जान बूझ कर मजदूरों को खाना नहीं दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने ८० करोड़ लोगों के लिए राज्‍य सरकारों को राशन दे दिया है फिर खिला कौन नहीं रहा है?  वह पैसा कहां जा रहा है। 

केंद्र सरकार ने तो पैसा भेज दिया । फिर कौन नहीं दे रहा है मजदूरों को? दिल्‍ली सरकार, महाराष्‍ट्र सरकार, छतीसगढ सरकार। और ये अहवाह फैलाने वाले अराजकता फैलाने वाले आरोप किस पर लगा रहे हैं केंद्र सरकार, पर ।
दोषी कौन है।  जानबूझ कर इन सरकारों ने ऐसे हालात पैदा किये जिससे मजदूर यहां से भाग जाय।

अगर इन लोगों को खाना मिल जाता तो क्‍या ये लोग भागने को मजबूर होते ? नहीं। गरीबों को कोई महल नहीं चाहिए। उसे दो वक्‍त का खाना मिल जाय तो वह नहीं भागेगा। केंद्र सरकार सब कुछ दे रही है। राज्‍य सरकार को अपने जेब से तो कुछ देना भी नहींहै। यह पैसा कहां जा रहा है? कौन , खा रहा है इन पैसो को?

पीयूस गोयल रेल मंत्री के वेरीफायड ट्विटर हैंडिल पर लिखा है कि रेलवे रोजाना ३०० श्रमिक स्‍पेशल  ट्रेनो को चलाकर कामगारों को घर पहुचाने को तैयार है लेकिन मुझे दुख है कि कुछ राज्‍यों जैसे पश्चिम बंगाल ,राजस्‍थान, छतीसगढ , झारखंड द्वारा इन ट्रेनो को अनुमति नहीं दी जा रही है। जिससे श्रमिकों को घर से दूर कष्‍ट सहना पड़ रहा है। सोचिए, अनुमति कौन नहीं दे रहा है पश्चिम बंगाल, राजस्‍थान, छतीसगढ , झारखंड की सरकारें। भगाया कहां से जा रहा है दिल्‍ली , महाराष्‍ट्र से ।

षडयंत्र देखिए मजदूरों को दिल्‍ली, महाराष्‍ट्र, से  भगाया जा रहा है, जब वे जाने को तैयार हैं तो उनकी ट्रेन को अनुमति नहीं मिलती है। फिर उन्‍हें उकसाया जा रहा है कि  सड़क पर पकड़कर या रेल लाइन पकड़ कर निकल लो। उसके फोटो खीज कर वायरल किया जा रहा है। ताकि केंद्र सरकार बदनाम हो।
इनके पीछे फोटोग्राफरों को दोराया जा रहा है। ५००० रुपये प्रति फोटो और उपर से पौआ भी मिलेगा। इस लालच में फोटोग्राफर भी निहाल हो रहे हैं। इन फोटो को वायरल करके केंद्र सरकार को अंतराष्‍ट्रीय स्‍तर पर बदनाम किया जा रहा है। और कौन कर रहे है ये तमाम साजिश ।

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