मुसलमान भारत को अपनी मात्रृभूमि नहीं मानता है : बाबा साहेब अंबेदकर
मुसलमान भारत को
अपनी मात्रृभूमि नहीं
मानता है। मुसलमानों के भाइचारा का सिद्धांत बस मुसलमानों के लिए है। मुसलमानों के
लिए देश के कानून से उपर सरिया है। बाबा
साहेब अंबेदकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान एंड पारटिशन ऑफ
इंडिया में इस बात का विस्तार से जिक्र किया है।
बटबारे के
बाद सारे आबादी का पूरी तरह अदला बदली
बाबा साहेब अंबेदकर
चाहते थे कि बटबारे के बाद मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं और पाकिस्तान के सारे
हिंदु भारत आ जांए। बाबा साहेब अंबेदकर ने अपनी किताब पाकिस्तान और पारटीशन ऑफ
इंडिया में ऐसा लिखा है। उन्होंने यह
किताब ४० के दशक में लिखी थी।
उनका
कहना था कि साम्प्रदायिक शांति तभी हो सकती है जब आबादी का पूरी तरह अदला बदली हो
जाय। वे इस मसले पर एक लम्बा शोध कर चुके थे। उसका आधार था टर्की और युनान (अर्थात
ग्रीस) के बीच जनसंख्यां की अदला बदली। दरअसल १९२३ में एक लम्बे खूनी विवाद के
बाद एक समझौता हुआ था कि ग्रीस में रहने
वाले मुसलमान टर्की और टर्की में रहने वाले सारे इसाई ग्रीस चले जाएंगे। और ऐसा
हुआ भी ।
अम्बेदकर साहब अपने
किताब के पेज १२३ पर लिखते हैं कि टर्की और यूनान इस बात पर सहमत हो गये कि दोनों राज्य
अपनी अपनी सीमा में अपने अपने अल्पसंख्यकों की अदला बदली कर लें। टर्की, यूनान और बुलगारिया में यही हुआ। उन्होंने
सुझाव दिया कि इस समस्या का एकमात्र हल अल्पसंख्यक जनसंख्यां की अदला बदली ही
है। वे कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच भी ऐसा ही होना चाहिए।
साम्प्रदायिक
शांति लाने का टिकाव तरीका अल्पसंख्यकों की अदला बदली
उसी
किताब के पेज १२४ पर वे लिखते हैं कि साम्प्रदायिक शांति लाने का टिकाव तरीका अल्पसंख्यकों
की अदला बदली ही है। यह व्यर्थ होगा कि हिंदु और मुसलमान एक दूसरे को संरक्षण
देने के ऐसे तरीके खोजते रहें जो असुरक्षित पाएं गये हैं, जो यूनान, तुर्की और बुलगारिया जैसे छोटे साधन वाले देश भी पूरा कर चुके हैं, तो यह मानने का कोई कारण नहीं है
कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सकते।
हिंदु
मुसलिम एकता को लेकर अम्बेदकर साहब के पास एक दूर दृष्टि थी। उन्होंने यह कहा था
कि बटबारे के बाद यदि मुसलमान भारत में रह गये तो कभी यहां साम्प्रदायिक शांति
नहीं होगी।
हिंदुस्तान
साम्प्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो पाएगा
अपनी पुस्तक के पेज
१२५ पर वे लिखते हैं कि यह बात स्विकार कर लेनी चाहिए कि पाकिस्तान बनने के बाद
भी हिंदुस्तान साम्प्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो पाएगा। पाकिस्तान तो एक
ही तरह की आवादी बाला देश बन जाएगा। मगर हिंदुस्तान मिली जुली आवादी वाला देश ही
बना रह जाएगा। फिर इस बटबारे का कोई मतलब नहीं बनता।
हिंदु और
मुस्लिम के बीच समस्या बनी रहेगी
मुसलमान
पूरे हिंदुस्तान में बिखड़े हुए हैं। इसलिए हिंदुस्तान सजातीय देश नहीं बन
पाएगा। और यहां हिंदु और मुस्लिम के बीच समस्या बनी रहेगी। बाबा साहेब अंबेदकर ने
मुसलमानों में ऐसा क्या देखा कि वे उन्हें पूरी तरह पाकिस्तान भेजने की हिमायत
कर रहे थे। उसके पीछे था दारूल इस्लाम और दारूल हरब का इस्लामी फारमूला।
दारूल इस्लाम
और दारूल हरब
इस किताब के पेज २९५
और २९६ पर वे लिखते हैं कि मुसलिम धर्म के सिधांतों के अनुसार दुनियां दो भागों
में बटी है, दारूल इस्लाम और दारूल हरब। जहां मुसलमानों की
हुकूमत है वह देश दारूल इस्लाम है और वह देश जहां मुसलमान रहते तो है मगर सरकार
किसी और धर्म वाले की होती है ऐसा देश दारूल हरब है।
मुसलिम धार्मिक
कानून के मुताबिक भारत हिंदु और मुसलमान दौनों की मात्रृभूमि नहीं हो सकती। लेकिन
जब इस पर मुसलमानों का शासन होगा तो यह मुसलमानों की धरती बन जाएगी।
कट्टर
इसलामी सोच रखने वाला व्यक्ति देश के लिए बफादार नहीं हो सकता है
बाबा
साहेब अंबेदकर कहते हैं कि हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि यह दृष्टिकोण केवल
एकैडेमिक है। यह सिद्धांतों मुसलमानों को प्रभावित
करने में बहुत कारगर हो सकता है। बाबा साहेब अंबेदकर मुसलमानों की कट्टरता से चिंतित थे। वे मानते
थे कि कट्टर इसलामी सोच रखने वाला व्यक्ति देश के लिए बफादार नहीं हो सकता है।
आगे वे पेज २९९ पर
लिखते हैं कि यह मुसलिम ब्रदरहुड का आधार है कि हर भारतीय मुसलमान यह कहता है कि
वह मुसलमान पहले है और भारतीय बाद में। इसी कारण भारतीय मुसलमानों ने भारत की तरक्की
में बहुत कम भूमिका अदा की। उन्होंने अपनी शक्ति को मुसलिम देशो के लिए व्यर्थ
कर दिया, जो हमने खिलाफत आंदोलन के दौरान देखा था। मुसलमानों
की सोच में मुसलिम देशों का स्थान पहला है और भारत का स्थान बाद में है।
अन्य
महापुरुषों की तरह ही वे हिंदु धर्म में सुधार चाहते थे
पिछले पचास सालों से
हमें पढाया जाता है कि अम्बेदकर सिर्फ हिंदू धर्म के खिलाफ बोलते और लिखते थे। देश के सेकुलर, लिबरल, बामपंथियों ने बाबा
साहेब अंबेदकर को अपना हथियार बनाकर हिंदू धर्म इस देश को बदनाम करने का काम किया
है। वास्तव में वे हिंदु धर्म में सुधार चाहते थे। यही काम तो हिंदु धर्म के तमाम
अन्य महापुरुषों ने किया भी।
यह सच
है कि बाबा साहेब अंबेदकर ने हिंदू धर्म की कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था।
मगर यह आधा सच है। उन्होंने मुसलमानों और इसलामी मानसिकता को भी आइना दिखाया
था। बहुत चालाकी से इतिहास की किताबों में इन बातों को छुपाया गया। बाबा साहेब
अंबेदकर को यह डर लगता था कि मुसलमान भारत में जिहाद छेड़ सकते हैं। यह आशंका आज
भी बनी हुयी है। वे अपनी जनसंख्या बढा रहे हैं और एक ऐसा समय आ सकता है जब वे
संख्या में पर्याप्त हो जायें और तब वे अपना जिहाद आरंभ कर देंगे।


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