इस महामारी के समय एनजीओ संस्थाओं को आज सहयोग के लिए
तत्पर होना चाहिए! चाइनिज वायरस के खिलाफ इस देश में, और सारी दुनिया
में आज एक जबरदस्त मुहिम चल रही है। आज हमारे देश और समाज को, खासकर लोअर इनकम
ग्रुप को, अलग अलग शहरों में फंसे मजदूरों को सहयोग और
सहायत की जरूरत है। एनजीओ संस्थाओं को
इसमें सहयोग के लिए तत्पर होना चाहिए।
मजदूरों के भोजन,
रहने के इंतजाम की चिंता पूरे देश में कहीं सुनाई नहीं दे रही है। अनेक लोग भूख से
मर रहे हैं। देश में इतने राजनैतिक दल हैं,
इतने स्वयंसेवी संगठन हैं। एक मात्र राष्ट्रीय स्वयं सेबी संघ
(RSS) देश के हर हिस्से में काम कर रहा है, और
लगातार लोगों की मदद कर रहा है। उसके अलावा भी कुछ गिनती की ऐसी संस्थाएं हैं जो
इस काम में लगी हैं। लेकिन बांकी एनजीओ कहां हैं?
इस देश में लगभग ३२ लाख NGO
काम करते हैं। १३० करोड़ की आवादी के देश में अगर ३२ लाख एनजीओ काम कर रहे हैं। तो
कहां काम कर रहे हैं? क्या काम कर रहे हैं? ये ३२ लाख एनजीओ क्या प्रति एनजीओ दस दस लोगों के खना पानी का इंतजाम नहीं कर
सकते हैं? आज ३० से ३५ करोड़ लोग जबरदस्त
जरूरत मंद हैं, जिनकी मुश्किले बड़ी हैं, जो
प्रवासी हैं, जिनके पास खाना नहीं है। क्या इन जबरदस्त
जरूरत मंद ३५ करोड़ लोगों की मदद के लिए ३२
लाख एनजीओ कुछ नहीं कर पा रहे हैं?
आज हजार शहरी आवादी पर ४ एनजीओ काम करते
हैं। आज हजार ग्रामीण आवादी पर २.५ एनजीओ
काम करते हैं। भारत में जितने स्कूल हैं,
उससे दुगुने एनजीओ हैं। इसमें से ६०
प्रतिशत गांवों में काम कर रहे हैं,
मगर गांवों की दशा दिशा नहीं बदल पायी। ४१ प्रतिशत एनजीओ समाजसेवा कर रहे हैं। १ प्रतिशत
पर्यावरण की चिंता में व्यस्त हैं।
ये लोग अपने को सिविल राइट एक्टिविस्ट
कहते हैं। तो क्या एनजीओ का बड़ा हिस्सा एक्टिविज्म में लगा है? वे समाज के
वास्तविक हित के लिए कुछ नहीं करना चाहते हैं। वे बस समाज में अस्थिरता पैदा करने
में लगे हैं। ये जो ३२ लाख एनजीओ काम कर
रहे हैं, उनका भारत के निर्माण में,
जब आज देश में बुड़े दिन आ गये हैं, क्या
भूमिका है? ये जितनी एनजीओ काम करते हैं,
उनमें से १० प्रतिशत भी अपना फाइनानसियल स्टेटमेंट पेश नहीं करता था। इनको फाइनानसियल स्टेटमेंट पेश करने की बाध्यता ही
नहीं थी। अब कई बड़ा बदलाव हुए हैं।
ज्यादातर एनजीओ यह कहकर इस विपदा में सामने नहीं आ रहे है
कि उनके पास फंडिंग नहीं है। ऐसा इसलिए है कि उनकी सामाज में कोई साख नहीं है। मुझे
नहीं लगता कि अगर कोई एनजीओ अपनी साख बना कर काम कर रहा है तो आज इस महामारी के
समय कोई उसे फंडिंग न करना चाहे।
प्रधान मंत्री केयर फंड में लोग पैसे डाल रहे हैं न, क्योंकि उसको
विश्वास है कि प्रधान मंत्री पर कि ये पैसे किसी गलत जगह नहीं जाएगा।
अगर एक एनजीओ एक एक बेड देता तो देश में
आज एक दिन में ३० से ४० लाख बेड तैयार हो जाते। अगर एक एनजीओ १० लोगों को खाना
खिलाने की जिम्मेवारी ले लेता तो ४ करोड़ लोगों को रोज खाना मिल जाता। अगर एक एनजीओ
१ आदमी के रहने की जिम्मेवारी ले लेता तो ४० लाख
लोगों के रहने का इंतजाम हो जाता। ये आंकड़े भर नहीं हैं।
यह दिखाता हैं कि अतीत में हमारे यहां की
व्यवस्था अच्छी थी। समाज के अमीर लोग धर्मशाला बनवा देते थे। उसमें कोई भी रह
सकता था । मर्जी हो तो आप उसमें पैसे दें न मर्जी तो नहीं दें।
एनजीओ तो आज कारोबार बन गया। इसमें फौरेन कंट्रीव्यूशन
शामिल हो गया है। बहुत से एनजीओ सरकारी फंडिंग से चलते हैं। उसमें कमीशन का बड़ा
मामला होता है। ग्रामीण अभियंत्रन सेवा में ३० प्रतिशत फंड से काम होता था और ७० प्रतिशत
कमिशन का बांट बखरा होता था। इस तरह से काम होता था । आज के एनजीओ का भी वही हाल
है। इस देश में एनजीओ की भूमिका संदेह के दायरे में है।
अगर आदमी करना चाहे तो कुछ भी मुश्किल नहीं
है। एक से एक अमीर लोगों ने प्रधान मंत्री कोश में अच्छा खासा धन दान किया है। मनीस
मुंद्रा (करवी हवा, मसान, न्यूटन जैसी फिल्म के निर्माता) ने देश भर में वेंटीलेटर वेड आदि भेज रहे हैं
मदद कर रहे हैं। और भी लोगों को एनजीओ को सामने आना चाहिए।

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