प्रियंका गांधी का यूपी सरकार को बस उपलब्ध कराने का ड्रामा
हुआ फ्लप
योगी आदित्य नाथ को घेरने के चक्कर में प्रियंका गांधी
खुद ही फंस गयी। मसला मजदूरों के लिए यातायात उपलब्ध कराने का था। मजदूरों
की मसीहा बनना भारी पड़ गया।
उन्होंने पत्र लिखकर योगी आदित्य नाथ को कहा कि मजदूरों का दर्द हमे
बर्दास्त नहीं हो रहा है। मैं १००० बस उत्तर प्रदेश के मजदरों को घर वापसी के लिए
आपको देना चाहती हूं।
प्रियंका गांधी के सलाहकार हैं संदीप सिंह । उसने १६ मई को उत्तर
प्रदेश के अपर गृह सचिव अवनीस कुमार अवस्थी को पत्र लिखा। उसमें ३५ लोदी स्टेट का पता तो है, मगर वह किसी लेटर हेड
पर नहीं लिखा गया है। उस पर ना सिगनेचर है, ना मुहर है। लिखा था कि
हमें १००० बस चलाने की अनुमति दीजिए।
लाइम लाइट लेना चाहती थी
उन्होंने सोचा कि इस तरह की बयानबाजी से वह योगी को नीचा दिखा पाएंगी। वह
१००० बसों की बात करके सिर्फ लाइम लाइट लेना चाहती थी। उसने सोचा कि इसपर तो कोई
मुख्य मंत्री तैयार होगा नहीं। प्रियंका गांधी की मंसा यह थी कि आगे जब चुनाव का
मौसम आएगा तो उसे यह आरोप लगाने का मौका मिलेगा कि हमने तो योगी आदित्य नाथ को
सहयोग का औफर किया था मगर उनको तो मजदूरों की परवाह ही नहीं है। उन्होंने हमारे
सहयोग के प्रोपोजल को अस्विकार कर दिया।
उत्तर प्रदेश के अपर गृह सचिव का प्रियंका गांधी को जवाब
लेकिन हुआ कुछ और । जैसे ही यह प्रपोजल
आया तुरत अवनीस अवस्थी ने प्रियंका गांधी
को जवाब भेजा। जवाब इस तरह था कि माननीय
मुख्यमंत्री को संबोधित श्री मती प्रियंका बाड्रा के १६ मई के पत्र का संदर्भ
लेने का कष्ट करें। इस संदर्भ में आप से कहना चाहता हूं कि प्रवासी मजदूर के
संदर्भ में आपके प्रस्ताव को हमने स्विकार कर लिया। अत: १००० बसों की सूची, परिचालकों के नाम सहित
अन्य विवरण उपलब्ध कराने का कष्ट करें।
प्रियंका गांधी की उल्टी गिनती शुरू
अब प्रियंका गांधी की उल्टी गिनती शुरू हो गयी। इन्होंने तो मात्र
चोंचलेबाजी के लिए यह सगूफा छोड़ा था। लिस्ट मांगा गया मगर ३ दिनों तक लिस्ट आया नहीं। योगी आदित्य नाथ
की तरफ से रिमाइंडर आने लगा। तब आनन फानन
में प्रियंका गांधी ने १००० बसों का लिस्ट
भेज दिया । साथ में एक पत्र भी टैग किया गया कि हमने लिस्ट तो दे दिया। अब इसका
इंतजाम किया जाय।
लखनाउ के आरटीओ ने निकाला उन नम्बरों का डिटेल
जब लिस्ट आया तो उसे लखनउ आरटीओ के अपर पुलिस आयुक्त को आर पी द्विवेदी
को भेजा गया। लखनउ के आरटीओ से उन नम्बरों का डिटेल निकला गया। मालूम पड़ा कि
इसमें ज्यादातर नम्बर फर्जी है। इसमें ८७९ तो बसों के नम्बर हैं मगर इसमें २९७ बसें कबार हैं और ४६० बसें फर्जी हैं। उत्तर प्रदेश के उप मुख्य मंत्री ने तो यह आरोप लगाया ही । ३१ थ्री ह्विलर औटो के नम्बर हैं। १
एम्बूलेंस का नम्बर है। एक ट्रक का नम्बर है। २ डीसीएम के नम्बर हैं। १ जेसीपी मैजिक का नम्बर है। ५९
स्कूल बस के नम्बर हैं। इसमें कुछ नम्बर ऐसे हैं जो एग्जिस्ट ही नहीं करते
हैं। पूरी तरह फर्जी नम्बर भी अनेक हैं। उन नम्बरों के न बस हैं, न स्कूटर, न अन्य कोई वाहन हैं ।
उनमें अनेको ऐसे भी नम्बर हैं जिस पर परिवहन विभाग द्वारा बैन लगे हैं। जो पुलिस
स्टेशनों में जप्त कर लिए जाते हैं और सालों साल पुलिस स्टेशनों में पड़े रहते
हैं। आरटीओ में यह सब गोरख धंधा पकड़ में आ गया।
धोखाधरी का मुकदमा दर्ज
योगी तो योगी हैं । उन्होंने लखनउ के हजरत गंज थाने में प्रियंका गांधी के
सचिव संदीप सिंह और यूपी कांगेस के अध्यक्ष अजय लल्लू पर बसों की लिस्ट देने में गलत
जानकारी देने और धोखाधरी का मुकदमा दर्ज कर दिया है।
एनडीडीवी ने दिखाया प्रियंका गांधी के बसों की फर्जी तस्वीर
इसका मतलब यह है कि इनके पास बसें नहीं थीं। और तमाशा इन्होंने शुरू कर
दिया । एनडीडीवी के पत्रकार ने एक तस्वीर भी निकाल दी जिसमें दिखाया गया है कि प्रियंका
गांधी द्वारा बसें दिल्ली में भेजी गयी हैं। मालूम हुआ कि वो पिछले कुम्भ में जो डिपो में बस लगायी गयी थी उस की
तस्वीर थी।
प्रियंका का नया ड्रामा
जब इसका पर्दाफास हुआ तो प्रियंका गांधी ने एक और खेल खेला उसने दूसरी
चिट्ठी लिख दी कि योगी जी हम बस को लखनउ नहीं भेज सकते। तो उसका जवाब तुरत यूपी
सरकार ने दिया कि यह बात कहां से आ गयी । हमने तो आपसे बसों को लखनौउ नहीं मगाया है।
आप वे बसें गाजियाबाद के डीएम को पहुचा दें।
गृह सचिव के पत्र में बसों को लखनउ भेजने की बात थी ही नहीं
उत्तर प्रदेश के अपर गृह सचिव अवनीस कुमार अवस्थी ने बसों की मांग की थी।
उसने तो कही अपने पत्र में यह नहीं लिखा था कि आप बसों को लखनउ भेजें। फिर लखनउ की
बात कहां से आ गयी? यह तो प्रियंका का नया ड्रामा था । अपर गृह सचिव अवनीस कुमार
अवस्थी ने प्रियंका गांधी को सूचना भेजी कि आप को किसने कहा कि यूपी सरकार ने
आपके बसों को लखनउ बुलाया है? जो पत्र हमने आपको भेजा था उसमें हमने आपसे मात्र
बसों के डिटेल और चालकों के डिटेल मांगे थे। उसका कुछ प्रोटोकोल होता है। चालक कहीं
खुद कोरोना का वाहक तो नहीं है? फिर
कांग्रेस निरूत्तर हो गयी।
अभी तक बसों का कुछ पता नहीं
अभी प्रियंका गांधी की दूसरी चिट्ठी आयी है कि बसें अभी आयी नही हैं । हम
राजस्थान से उसे मंगवा रहे हैं। यह मंगलवार २० मई को यूपी और गाजियावाद बोर्डर पर
आ जाएगी ।
कुछ सहज सवाल खड़े होते हैं
अगर आपकी सारी बसें राजस्थान से आ रही हैं तो प्रियंका
गांधी को कुछ सवालों का जवाब देना होगा। आपके ओरैया में जो मजदूर मारे गये, आपने उनको बसों से क्यों नहीं भेजा। आप कांग्रेस शासित राज्यों को
क्यों बसें नहीं दे रही हैं। राजस्थान, महाराष्ट्र, छतीस गढ को आपकी मदद की ज्यादा जरूरत है, उनकी मदद क्यों नहीं करते ?
उत्तर
प्रदेश के योगी सरकार का परफॉरमेंस
जब महामारी का संकट
आया, और उसमें प्रोएक्टिव, टाइमली, संवेदनशीलता के साथ, यदि किसी ने बेहतर तरीके से काम किया, तो योगी आदित्यनाथ ने किया। कहां कहां क्या क्या
और कब कब करना है, उसको विवेकपूर्व समझते हुए उन्होंने बिना समय
गवाये निर्णय लिया और काम किया। उसका परिणाम यह हुआ कि यदि किसी राज्य में अबतक
सबसे ज्यादा कामगार और मजदूर और छात्र छात्राएं घर लौटे हैं तो वे उत्तर प्रदेश
में लौटे हैं।
योगी ने
अन्य राज्यों से अपने लोगों को सबसे पहले लाना शुरु किया
जब देश भर की राज्य
सरकारे सोच रही थी और अनिर्णय की दशा में थी तो योगी आदित्यनाथ ने अपने राज्य के
लोगो को अन्य राज्यों से शुरु कर दिया। सबसे पहले कोटा से उन्होंने बस भेजकर
उनके घर पहुचाया। नौकरी करने वाला तो अपने परिवार के साथ रहते है। ये छात्र
छात्राएं तो अपने परिवार से दूर अकेले रहते हैं । उसको उन्होंने प्राथमिकता दी। उनको
बसें लगाकर बुला लिया। अलग अलग राज्यों में भी उन्होंने बात करना शुरु किया कि वे कैसे लाए जा सकते
हैं। उसके लिए उन्होंने नोडेल अफसरों को काम पर लगाया।
जब
सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली के सीमा पर २० हजार लोगों
की भीड़ जमा हो गयी उस वक्त उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बसें लगायी। उनको घर तक पहुचाया।
उत्तर प्रदेश के
लिए अब तक ९१४ ट्रेनो की व्यवस्था कर दी गयी है। इसमें ६५६ श्रमिक विशेष ट्रेन
यूपी आ चुकी हैं। ८ लाख ५२ हजार से अधिक कामगार, श्रमिक, मजदूर को लाने में कामयाबी मिली है। कुल १६ लाख
लोगों के लाने का इंतजाम हो चुका है। २५८ और ट्रेने आने की भी बात हो चुकी है।
योगी सरकार
ने हर जिला अधिकारी को २०० बसें दे रखी है
योगी आदित्यनाथ की
सरकार ने हर जिला अधिकारी को २०० बसें दे रखी है कि आप अपने जिले से अगले जिला की
सीमा तक इन प्रवासियों को पहुचाएं। सड़क से कोई कामगार, श्रमिक, मजदूर पैदल नहीं
जाना चाहिए। योगी सरकार की तरफ से निर्देश दिया गया है कि जिस भी राज्य से उत्तर
प्रदेश के प्रवासी कामगार आ रहे हैं वह उनसे पैसे न ले। जो भी आएंगे उनके बदले
योगी की सरकार पैसे भरेगी।
विपक्ष का
संकट
इस सब के बीच में
विपक्ष का एक संकट बहुत बड़ा हो गया है। पहले तो वे नरेंद्र मादी और अमित शाह से
लड़ रहे थे । अब उनको योगी आदित्य नाथ से लड़ना पड़ रहा है। विपक्ष का संकट यही
है कि वह मुद्दों से नहीं लड़ रहा है। वह व्यक्तियों से लड़ रहा है। और इसीलिए वह
असफल हो रहा है। वह नरेंद्र मोदी से लड़ने लगता है। वह अमित शाह से लड़ने लगता है।
वह योगी आदित्यनाथ से लड़ने लगता है। वह हरियाना में मनोहर लाल खट्टर से लड़ने
लगता है।
अभी
प्रवासी मजदूरों की समस्या है। उनका संकट है। उनका दर्द बहुत बड़ा है। अगर सचमुच
पूरी कांग्रेस पार्टी और पूरा विपक्ष लग जाता तो उन राज्यों में जहां वे
सरकार में हैं वहां तो वे आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकते थे। मगर वे ऐसा नहीं कर
पाए। उसका परिणाम यह है कि आज प्रियंका गांधी बाडरा उत्तर प्रदेश सरकार से भावुक
अपील कर रही हैं। इसकी कोई जरूरत नहीं थी। आज भी सुबह मुंबई के बांद्रा में
प्रवासी मजदूर फिर से जमा हो गये और हंगामा काट रहे थे। बबाल मचाए हुए थे। महाराष्ट्र
में सबसे ज्यादा समस्या है।
प्रियंका
गांधी के भावुक अपील के पीछे की मंसा
बहुत जरूरी है कि
इसे समझा जाय कि प्रियंका गांधी बाडरा ने को ऐसा क्यों करना पड़ रहा है । इन्होंने
अपने राज्यों में कुछ नहीं किया। और योगी आदित्यनाथ की छवि न बन जाय, एक और बड़ा नेता न तैयार हो जाय इसलिए ये उस व्यक्ति
से लड़ने पर आमदा हो गये हैं। इन्हीं लोगों ने इससे पूर्व मोदी से यही लड़ाई लड़ी
थी। परिणाम यह निकला कि मोदी जी और भी बुलंदी पर पहुचते चले गये। इन्हीं लोगों ने
उनको देश का बड़ा नेता बना दिया, दुनिया का बड़ा
नेता बना दिया। अब ये योगी से भिड़े हैं।
निश्चित
तौर पर योगी काम कर रहे हैं। समर्पित होकर काम कर रहे हैं। इनको योगी को नीचा
दिखाने के लिए कुछ नहीं मिला तो बस पोलिटिक्स शुरू किया।
जरा
सोचिए कि उत्तर प्रदेश के ओरैया में जो दर्दनाक हादसा हुआ, उसकी मूल वजह राजस्थान पुलिस का
वह फैसला था जिसमें उसने मजदूरों को बस से उतार कर ट्रक पर बैठा दिया।


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