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भारत में सेकुलरिज्म के नाम पर हिंदुओं के साथ छलावा




भारत में सेकुलरिज्‍म के नाम पर एक पाखंड किया जाता है। आज भी इस देश में एक तरह से मध्‍यकालीन इस्‍लामी शासन की परंपरा कायम है। हालिया उदाहरण तमिलनाडु का है।
तमिलनाडु सरकार द्वारा आधुनिक तरीके से राज्‍य में जजिया टैक्‍स लागू  किया गया है। तमिलनाडु व्‍यायस ऑफ इंडिया ऑरगेनाइजर के हवाले से गत दिनो यह  सरकारी सूचना सामने  आयी है।


हिंदू रिलिजियस संस्‍थाओं को राज्‍य सरकारें अपने नियंत्रण में रख सकती है

कांस्‍टीच्‍यूशन की धारा २५ में यह व्‍यवस्‍था की गयी कि हिंदू रिलिजियस संस्‍थाओं में राज्‍य सरकारें सही व्‍यवस्‍था करने के लिए कानून बना सकती है और उसे अपने नियंत्रण में रख सकती है। व्‍यवस्‍था सही करने के नाम पर बहुत सारे राज्‍यों ने अपने यहां कानून पास किया। किसी ने ट्रस्‍ट ऐक्‍ट बना कर, किसी ने रिलिजियस एंडोमेंट  ऐक्‍ट बना कर, किसी ने रिलिजियस एंडोमेंट एंड चैरिटेबल ऐक्‍ट बना कर, किसी ने बोर्ड ऐक्‍ट बना कर, नया कानून बनाया।

तमिलनाडु में १९५९ में एक कानून बना, हिंदू रिलिजियस एंडोमेंट एंड चैरिटेबल ऐक्‍ट। इस एक्‍ट के तहत राज्‍य सरकार ट्रस्‍ट बनाकर मंदिरों के काम काज का मैनेजमेंट करती  है। मंदिरों के मिसमैनेजमेंट को दुरूस्‍त करने के लिए वहां ट्रस्‍ट बनाया गया और ट्रस्‍ट उसे चला रहा है। ट्रस्‍ट की औडिट राज्‍य सरकार करती है। अर्थात ये ट्रस्‍ट सरकार के नियंत्रण में हैं। ये ट्रस्‍ट सरकार के कानून के हिसाब से चलाए जाते हैं।

तमिलनाडु के मंदिरों से १० करोड़ रूपया वसूलकर मस्जिदों को बांटा गया  


तमिलनाडु सरकार ने कोविड १९ के समय पर यह आदेश पारित किया  कि तमिलनाडु के ४७ बड़े मंदिरों को बतौर सोशल रेस्‍पोंसिबिलिटी सरकार को १० करोड़ रूपया देना पड़ेगा। तमिलनाडु में ३६ हजार छोटे बड़े मंदिर है।

रिलिजियस एंडोमेंट  ऐक्‍ट  के तहत केबल हिंदू मंदिरों से ये जो पैसा लिया गया, वह पैसा रमजान के समय लगभग ३००० मस्जिदों को, गरीबी के नाम पर बांटा गया। इससे रमजान के महीने में उनके खाने पीने की व्‍यवस्‍था की गयी। यह कैसा कानून है? यह कैसा संविधान है? संविधान में यह कैसा प्रावधान है ? यह कैसा मुल्‍क है? 

भारत एक  सेकुलर स्‍टेट भी है और उसमें अल्‍पसंख्‍यक आयोग भी है


१९७६ से भारत एक  सेकुलर स्‍टेट है। यहां ज्ञातव्‍य है कि १९७६ में इंदिरा गांधी की सरकार ने भारत के तमाम विपक्षी नेताओं को जेल में डालने के बाद रात के अंधेरे में संसद के अंदर विना किसी चर्चा के संविधान के प्रियंबल में, जिसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है, उसमें सेकुलर और सोशलिस्‍ट शब्‍द जोड़ दिया।

अगर भारत को सेकुलर बनाना इतना आवश्‍यक था तो इसे विधिवत क्‍यों नहीं किया गया। क्‍यों इसके लिए फ्रौड का सहारा लिया गया। क्‍यों इसे असंवैधानिक तरीके से संविधान में जोरा गया? 

अगर यह देश सेकुलर है तो कमाल की बात यह है कि भारत में एक अल्‍पसंख्‍यक आयोग भी है। इस अल्‍पसंख्‍यक आयोग का करोड़ो का बजट है। इस देश में तथाकथित माइनोरीटी के लिए खुलेआम हमारे टैक्‍स का दुरूपयोग होता है, लूट होता है।

यह पाखंड आज तक चल रहा है। कांग्रेस और कुछ अन्‍य रा‍जनैतिक दलों का इसमें स्‍वार्थ है कि वे उसे सार्वजनिक नहीं करते। इस बात को बरसों से छुपाया गया है, मगर अब जनमानस को यह पता चल गया है।

सेकुलरिज्‍म इस्‍लाम और इस्‍लामिक आतंकवाद को बढ़ाबा देता है

यह सेकुलरिज्‍म का पाखंड इस्‍लाम और इस्‍लामिक आतंकवाद को बढ़ाबा देता है, जिहाद को बढ़ाबा देता है, मुसलमानों को इस देश को तोड़ने की इजाजत देता है । यह बहुसंख्‍यक हिंदु समाज का पर कतरता है। यह सेकुलरिज्‍म मुसलमान को वह सब अधिकार देता है जिसका परमिशन भारत का संविधान, आइपीसी, या सीआरपीसी किसी बहुसंख्‍यक या यूं कहें तो किसी हिंदू को नहीं देता है।

इस सेकुलरिज्‍म के बहाने बहुसंख्‍यक हिंदुओं पर रेस्ट्रिक्‍शंस लगाये जाते हैं। इसी का लाभ उठाकर मुसलमान और क्रिश्‍चन आज सुनियोजि तरीके से हिंदुओं पर अत्‍याचार कर रहे हैं। यह धारा सुनियोजित तरीके से हिंदुओं को खत्‍म करने का एक हहियार है। 


भारत का जो संविधान या आईन या कांस्‍टीच्‍यूशन है, उसमें माइनो‍रीटी का डेफिनेशन बहुत वेग या अस्‍पष्‍ट तरके से किया गया है। यूं कहें कि इसको परिभाषित ही नहीं किया गया है।

एक आदेश के जरिए इस देश में माइनो‍रीटी कमीशन भी चल रहा है

एक आदेश के जरिए इस देश में माइनो‍रीटी कमीशन भी चल रहा है। इसे १९९३ के एक नोटिफिकेशन के जरिए स्‍थापित किया गया २००६ में माइनोरिटी मंत्रालय भी बन गया। ये दोनो कानूनी तौर पर गैरकानूनी हैं, गैर संविधानिक हैं। यह भारत के संविधान के मूल भावना के खिलाफ है।

अगर १९७६ में भारत सेकुलर हो गया था, तो फिर १९९३ में  माइनोरिटी मिनिस्‍ट्री क्‍यों बनी? जब सेकुलर स्‍टेट में सब बराबर है? सेकुलरिज्‍म का अर्थ है कि भारत का संविधान सभी संप्रदायों को एक जैसा अधिकार देता है। संविधान की नजर में सभी नागरिक समान हैं। 

आरटीआइ के द्वारा पता चला कि १९९३ से अब तक सरकार के पास कोई ऐसा डकुमेंट नहीं है जिसमें यह परिभाषित किया गया हो कि कौन माइनोरीटी है कौन नहीं है। माइनोरिटी तय करने का अधिकार कया है गिनती, मजहब, भाषा। यह अस्‍पष्‍ट है।

मुसलमान दूसरा सबसे बड़ा मैजोरिटी है वह माइनोरिटी नहीं है

एक ऐसा मजहब जिसके मानने वाले ३० करोड़ लोग हैं, वह भी माइनोरीटी में शामिल है। दर असल मुसलमान दूसरी सबसे बड़ी मैजोरिटी है। उसे भी माइनोरीटी कहा जाता है।  सिख २.५ हैं। पारसी तो मात्र ५० हजार हैं। इस माइनोरीटी के आर में जो लोग १९४७ में ३ करोड़ थे, वे आज ३० करोड़ हो गये हैं।

मुसलमान संविधान को नहीं मानते हैं

लोकतंत्र में संविधान सर्वोपरि होता है, मगर मुसलमान ऐसे माइनोरीटी हैं, जो संविधान को नहीं मानते हैं। उनकी किताब संविधान से ऊपर है। वे सरिया और कुरान को सबसे ऊपर मानते हैं। वे किसी देश की सीमा से उपर हैं। वे अपने को मुस्लिम उम्‍मा का सदस्‍य मानते हैं। मुसलमान यदि मंगल ग्रह पर रहता है तो भी वह उनका भाई है मगर पड़ोस का हिंदू उनकी नजर में काफिर है। वाजिबुल कत्‍ल है। अगर संविधान उनके कुरान और हदीस से मेल नही खाता तो वे उसको निरस्‍त करते हैं।

जो वास्‍तव में माइनोरिटी हैं उन्‍हें माइनोरीटी कमिशन हासिए पर रखता है

१९९३ के नोटिफिकेशन के तहत जिन ६ पंथों को माइनो‍रीटी घोषित किया गया है, वे हैं मुसलमान, क्रिश्‍चन, सि, पारसी और बौद्ध और जैन। ५० हजार पारसी हैं मगर वह कभी माइनोरीटी कमिशन का चेयरमैन नहीं बनाया जाता है। माइनोरीटी कमिशन का चेयरमैन हमेशा मुसलमान ही बनता है। क्‍या वही सबसे कमजोर माइनोरीटी हैं? 
माइनोरीटी कमिशन के द्वारा हजारों करोड़ का वजीफा, स्‍कौलरशिप मिलता है। माइनोरीटी के नाम पर सरकार का खजाना खुला हुआ है। हजारों, लाखों मदरसे भी चल रहे हैं। मदरसों से निकलने वाले ही जैसे मुहम्‍मद, लस्‍करे तोएबा, हिजबुल मुजाहिदीन, आदि में भरती होता है। वही मूसा बनता है, वही दुजाना बनता है। यह माइनोरीटी कमिशन मदरसों को एड देता है।

भारत के ८ राज्‍यों में हिंदू माइनोरीटी में है मगर वे उन सुविधाओं के लाभार्थी नहीं हैं

भारत के ८ राज्‍यों में हिंदू माइनोरीटी में है। मगर उसे माइनोरिटी को मिलने वाला विशेष लाभ का लाभार्थी नहीं समझा जाता है। लक्षदीप में ९८ फीसदी मुसलमान रहते हैं, और २ फीसदी हिंदू रहते हैं। मगर माइनोरीटी कमिशन के आदेश के अनुसार वहां रहने वाले २ फीसदी हिंदू बहुसंख्‍यक हैं और ९८ फीसदी मुसलमान अल्‍पसंख्‍यक हैं। मिजोरम में ९७ फीसदी क्रिश्‍चन हैं और वहां मात्र ३ फीसदी हिंदू रहते हैं। मगर माइनोरीटी कमिशन के आदेश के अनुसार वहां रहने वाले ३ फीसदी हिंदू बहुसंख्‍यक हैं और ९७ फीसदी क्रिश्‍चन अल्‍पसंख्‍यक हैं। मेधालय में ११ फीसदी हिंदू मेजोरीटी में हैं। नागालैंड में, पंजाब में भी हिंदू मेजोरीटी में हैं। जबकि उनकी आवादी सिंगल डिजिट में है। वे अल्‍पसंख्‍यकों के लिए जो भी सुविधा का प्रावधान है उसके लाभार्थी नहीं हैं।

संविधान प्रियंबल को किसी भी स्थिति में बदलने की इजाजत नहीं देता

संविधान स्‍वयं  प्रियंबल को किसी भी स्थिति में बदलने की इजाजत नहीं देता है। संविधान में अन्‍य कोई बदलाव तो हो सकता है मगर वह प्रियंबल में हेर फेर करने की इजाजत नहीं देता और इंदिरा गांधी ने बगैर संसद के सहमति के इसके प्रियम्‍बल को बदल दिया। हमारे जिम्‍मेदार लोग जिनपर हमने भरोसा किया उन्‍होंने आज ७० सालों में हमे वहां खड़ा कर दिया कि यह देश आज फिर दुबारा से १९४७ की हालत में पहुच गया है। सुपरीम कोर्ट जो इतने मुद्दों पर मुखर रहता है वह भी इस मुद्दे पर खामोश है। इसको उसने कभी सुओमोटो नहीं लिया।

भारत में प्रचलित सेकुलरवाद अर्थहीन है, फर्जी है, फ्राॅड है

भारत में जो सेकुलरवाद प्रचलित है उसमें अज्ञानता, गलतफहमी, और धूर्तता तीनो का समावेश है। इन तीन तत्‍वों का अनवरत खेल कई स्‍तरों पर चल रहा है। यह सेकुलरिज्‍म फर्जी है। भारत में इसकी शुरुआत लगभग १०० वरस पहले हुयी जब मोहन दास करमचंद गांधी अर्थात महात्‍मा गांधी का भारतीय राजनीति में पदार्पन हुआ। तबसे हमारे यहां यह शब्‍दों का घालमेल शुरू हुआ।

सबसे बड़ी गरबड़ी यह हुयी कि धर्म और रिलिजन को एक मान लिया गया। धर्म शब्‍द का जो अर्थ है वह रिलिजन से व्‍यक्‍त नहीं किया जा सकता। गांधी जी ने यह कहना शुरू किया कि सभी धर्म बराबर है। यह बात अपने आप में  एक बड़ा फ्रौड है। उन्‍होंने इस धर्म शब्‍द को मिसइंटरप्रेट किया। उन्‍होंने एक गलत परंपरा की शुरुआत की।

रिलिजन शब्‍द एब्राहमिक रिलिजन के लिए है, भारतीय परिपेक्ष में यह अर्थहीन है

यह शब्‍द एब्राहमिक रिलिजन के लिए सही है। वे अपने आप को रिलिजन कहते हैं, मानते हैं। उनका अपना इतिहास है, अपना शास्‍त्र है, निर्देश है।

उन्‍होंने रिलिजन को धर्म के समान मान्‍यता देकर उन्‍हें समान भाव देने की जो परंपरा कायम की उससे धर्म  और रिलिजन का भयंकर धालमेल शुरू हो गया। इसने हमें तरह तरह की समस्‍याओं में उलझा दिया। और जब भारत आजाद हुआ और हमारे संविधान का निर्माण हुआ उसमें भी यही अर्थ संपृक्‍त कर दिया गया।


सेकुलरिज्‍म का यूरोप में एक ऐतिहासिक संदर्भ है, जिसको चर्च से अलग करके नहीं समझा जा सकता है

यह शब्‍द सेकुलरिज्‍म यूरोप से आया है। इसका यूरोप में एक ऐतिहासिक और विशेष संदर्भ है, जिसको चर्च से अलग करके नहीं समझा जा सकता है। सेकुलरिज्‍म या सेकुलर स्‍टेट यूरोप का शब्‍द है। और उसके पीछे लगभग १००० वर्षों की ऐतिहासिक पृ‍ष्‍ठभूमि है।

क्रिश्‍चन चर्च वहां राजकीय शासन भी चलाता था। ४थी शताब्‍दी से १५ वी शतब्‍दी तक यूरोप में जो राजकीय व्‍यवस्‍था रही वह चर्च की राजनैतिक व्‍यवस्‍था थी। राज्‍य या तो चर्च के अधीन था या उसके कोलैबोरेशन में था। १५ और १६ वीं शताब्‍दी में जब रिफौरमेशन, रेनेशा, एनलाइटेनमेंट का दौर शुरू हुआ तो वाल्‍टेयर, रूसो, थौमस हौब्‍स, जॉन लौक, लेबियाथन जैसे आधुनिक लोकतांत्रिक चिंतकों ने जो पहला काम किया, वह यह था कि उन्‍होंने चर्च के दावों का, उनके विश्‍वास का, उनके काम का खंडन किया । इन पश्चिमी दार्शनिकों ने चर्च के दावों का इतना मुकम्‍मल खंडन किया कि उसके बाद चर्च के थियो‍लौजिस्‍टों के लिए उन आलोचनाओं का उत्‍तर देना मुश्किल हो गया।

४थी शताब्‍दी के क्रिश्‍चन थियोलौजिस्‍ट सेंट औगस्‍टाइन ने चर्च को सर्वोपरि बताया

इससे पहले भी ४थी शताब्‍दी के सेंट औगस्‍टाइन, जिनको एक मात्र सबसे  महत्‍वपूर्ण क्रिश्‍चन थियोलौजिस्‍ट पोलिटिकल थिंकर कहा जाता है, उनका कहना यह था कि चर्च के अलावा किसी को शासन करने का अधिकार नहीं है। और जो चर्च की अधीनता स्विकार नहीं करता या जो क्रिश्‍चन नहीं है उसे शासन में रहने का अधिकार नहीं है, उसे धरती पर रहने का अधिकार नहीं है।

मगर एक हजार वर्षों के बाद उसे चुनौती दी गयी। तब एक नयी राज्‍य व्‍यवस्‍था यूरोप में कायम हुयी, जिसने अपने आप को चर्च से अलग किया, उसने अपने को सेकुलर कहा।

मगर भारत में तो ऐसी कोई थियोलौजिकल राज्‍य व्‍यवस्‍था, मजहबी राज्‍य व्‍यवस्‍था, रिलिजियस राज्‍य व्‍यवस्‍था कभी नहीं थी।

भारत में जो धर्म का शासन था उसका अर्थ बिलकुल अलग था। यहां धर्म का अर्थ कोई फेथ नहीं है। यूरोपियन टरमिनौलौजी में धर्म का दूसरा अर्थ है फेथ। यहां धर्म के लिए दूसरा शब्‍द है आचरण, कनडक्‍ट, सदाचार।

धर्म और रिलिजन या मजहब बुनियादी रूप से दो अलग धारणाएं हैं

धर्म और रिलिजन या मजहब बुनियादी रूप से दो अलग धारणाएं हैं। आजादी के बाद जिनलोगों ने संविधान का निर्माण किया उन्‍होंने इन दोनो शब्‍दों को एक कैटेगोरी में डाल दिया गया। और उसके अनुरूप भारत का संविधान बनाया गया। इससे एक भयंकर शैक्षिक और वैचारिक जटिलता का आरंभ हुआ। इससे भारत देश की  बड़ी हाणि हुयी। जब हमारा संविधान बना तो इन शब्‍दों को, इन दोनो अवधारणाओं को एक मानकर सारी नीतियां बनायी गयीं। यह तो ऐसा ही है कि आप गाय और बाघ को एक ही पिंजरे में रख देते हैं क्‍योंकि दोनो जानवर हैं।

बहुसंख्‍यक हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक दर्जा मिला है


धर्म और रिलिजन को एक कैटेगोरी में रखकर हमारे यहां राजनैतिक और शैक्षिक  नतियां बनायी गयी। इससे देश को भयंकर हाणि पहुची है।

इसी भ्रम या घालमेल के तहत भारत के संविधान में अल्‍पसंख्‍यक धाराएं धारा २५ से धारा ३० जोड़ी गयी। ये धाराएं अल्‍पसंख्‍यकों को एक तरह से विशेषाधिकार देता है और बहुसंख्‍यक हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देता है।
ये जो ६ धाराएं हैं उनका मंतव्‍य क्‍या है? उसमें माइनोरिटी धर्म, जाति, भाषा, और नस्‍ल के आधार पर तय किया गया है। जबकि भारत में नस्‍ल या रेस जैसा कोई मामला बनता नहीं है। यह भी एक भ्रम है कि माइनोरीटी की परिभाषा का आधार क्‍या है। संविधान की एक धारा में इन चारों को माइनोरीटी की परिभाषा का आधार माना गया है। दूसरी धारा में बस दो चीजें रह जाती है और व्‍यवहार में हम बस धर्म को माइनोरीटी की परिभाषा का आधार देखते हैं। इतना भ्रम है हमारे संविधान में। भाषा, जाति और नस्‍ल के आधार पर माइनोरीटी कौन है और उसके लिए सरकार ने आज तक क्‍या किया है यह कहीं दिखायी नहीं पड़ता है। इसलिएि धारा २५ से ३० भारतीय राजनीति में एक तरह का सरदर्द है। यह बहुत सारी समस्‍याओं की जड़ है।

माइनोरिटी के अधिकार तो सुनिश्चित किए गये हैं मगर मैजोरिटी के नहीं 

संविधान में माइनोरिटी के अधिकार तो सुनिश्चित किए गये हैं। मगर मैजोरिटी के अधिकार सुनिश्चित नहीं  किए गये हैं। संविधान में माइनोरिटी का उल्‍लेख है मगर पूरे संविधान में मैजोरिटी का कहीं उल्‍लेख नहीं है। संविधान मूल कानून है। उसके आधार पर दूसरे कानून बनते हैं। इसका यह अर्थ है कि हिंदुओं का वैधानिक रूप से इस देश में कोई अधिकार नहीं हैं

बहुसंख्‍यक हिंदू उन्‍हें प्रतारित करते थे इसका कोई रेकार्ड नहीं है 

अगर उनकी यह मान्‍यता थी कि बहुसंख्‍यक हिंदू उन्‍हें प्रतारित करते थे, इसका कोई रेकार्ड नहीं है। यह हिंदू का स्‍वभाव ही नहीं है। हिंंदुओं ने दुनिया के प्रतारित जातियों को शरण दिया है। हिंदुओं में धिम्‍मी का कोई कानसेप्‍ट नहीं है। हिंदुओं में गुलामी का कानसेप्‍ट नहीं है। 

एक माइनोरिटी और दूसरा गैर माइनोरिटी

संविधान में माइनोरिटी के अधिकार हैंइस तरह भारतीय संविधान में एक ऐसी व्‍यवस्‍था की गयी है कि जिसमें दोहरी नागरिकता बन गयी है। इस देश में दो प्रकार के नागरिक हैं, एक माइनोरिटी और दूसरा गैर माइनोरिटी। आप उसे माइनोरिटी और मेजोरिटी नहीं कह सकते। क्‍योंकि संविधान में मेजोरिटी का कोई उल्‍लेख नहीं है। इसलिए एम माइनोरिटी कौम्‍यूनीटी का आदमी दोहरे अधिकार का उपयोग करता है। वह एक नागरिक के रूप में भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और वह एक माइनोरिटी के रूप में भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। हिंदुओं को सिर्फ नागरिक के रूप में अदालत के पास जाने की अनुमति है।

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