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| Sonia Gandhi |
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि चीनी सैनिक भारत की सीमा में
घुस आए हैं। लद्दाख के भारतीय क्षेत्र पर चीन ने कब्जा कर लिया है। मगर यह सच्चाई
नहीं, यह अफवाह
है जो राहुल गांधी, कांग्रेस
पार्टी और चीन के पैरोकार भारत में सेना का मनोबल गिरोने के लिए फैला रहे हैं।
भारत चीन की सीमा को
लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहते हैं ।
दोनो देशों की सेना उससे लगभग ५ किमी पीछे अपनी पेट्रोलिंग करती है, जिसे लाइन ऑफ
पेट्रोलिंग कहते हैं। इन दोनों सेनाओं की लाइन ऑफ पेट्रोलिंग के बीच लगभग १० किमी
का फर्क रहता है। इसे ट्रांजिशन एरिया कहते हैं।

Rahul Gandhi

नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद चीन ने हमारी एक इंच जमीन नहीं हड़पी
नरेंद्र
मोदी के सत्ता में आने से पूर्व यह स्थिति थी कि चीनी सेना दो पांच किमि आगे आ जाती थी। हमारी सेना इसकी सूचना
सरकार को देती थी कि वे ५ किमी आगे आ गये हैं, हम क्या करें। तो हमारी सरकार अपनी सेना को आदेश देती
थी कि तुम ५ किमी पीछे चले आओ। यह सिलसिला १९४९ से २०१३ तक लगातार चलता रहा।
चूसुल की संधि के बाद आज चीनी बोर्डर २०० किमी आगे खिसक चुका है
चूसुल की
संधि में हमारा बोरडर मानसरोवर झील था। अर्थात मानसरोवर झील के इस तरफ भारत और दूसरी
तरफ चीन था। लेकिन अब तक कांग्रेस काल की इस हरकत की वजह से, इसी तरीके से वे उस लाइल से लगभग २०० किमी भारत की तरफ
आ चुके हैं। और हमारी सेना २०० किमी पीछे आ चुकी है।
भारत ने डेमचुक पुल को गिरवाया, अब सेना को १५ किमी लंबा घूमना पड़ता है
वे आगे
आते गये और उन एरिया में परमानेंट स्ट्रक्चर बनाते चले गये। डेमचुक गांव पहले
भारत में होता था। उस गांव के बीचोबीच एक नदी बहती है। कांग्रेस काल की बात है कि
सेना ने लोगों की सुविधा के लिये और अपनी पेट्रोलिंग के लिए उस नदी में पीपे का एक
पुल बनया था। चीन ने उस पर औबजेक्शन किया
कि आपके पुल से हमें डिस्टरवेंस होता है । इसे गिरा दीजिए। भारत सरकार ने उस पुल
को गिरवा दिया। अब सेना को पेट्रोलिंग के लिए लगभग १५ किमी आगे जाकर घूमना पड़ता
है। आज उस गांव का एक हिस्सा तो भारत में रह गया । दूसरा चीन में चला गया। यह
प्रैक्टिस पैंसठ सत्तर सालों से लगातार चलता आ रहा है। भारतीय सेना जब भी कोई स्ट्रक्चर
बनाने की कोशिश करती थी, चीन उस
पर ओबजेक्शन करता था। और भारत सरकार अपना काम रोक देती थी। १९४९ से २०१३ तक
लगातार यह प्रैक्टिस चलता रहा। कई बार संसद में इसकी चर्चा भी हुयी मगर पूर्व की
सरकारों ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। नेहरू तो यहां तक कहते थे कि वहां तो
घास का तिनका भी नहीं उगता है। क्यों उस एरिया के लिए इतना परेशान होते हो। पूर्व
की सरकार की इन नीतियों का यह नतीजा निकला कि चीन लगातार अपनी सुविधा से सीमा को
खिसकाता चला गया।
२०१३ में चीन एक ही बार में सीधा २० किमी अंदर आ गया
२०१३ में
चीन एक ही बार में सीधा २० किमी अंदर आ गया। मनमोहन सिंह की सरकार थी और सलमान
खुर्सीद विदेश मंत्री थे । वे इस समस्या के समाधान के लिए चीन गये । वहां वे चीन
के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर साइन किया जिसमें उन्होंन वह २० किमी का इलाका चीन को दे दिया । और चीन
ने मेमोंरेडम में यह माना कि अब वह इसके आगे नहीं बढेगा। मगर वह २० कीमी से पीछे
भी नहीं हटेगा। आज तक वह इलाका चीन के कब्जे में है।
भारतीय कांग्रेस पार्टी और कोम्युनिस्ट पार्टी ऑफ
चाइना के बीच समझौता
भारत की गांधी परिवार वाली कांग्रेस पार्टी और कोम्युनिस्ट पार्टी ऑफ
चाइना के बीच अगस्त २००८ में एक समझौता हुआ था। भारतीय कांग्रेस पार्टी और कोम्युनिस्ट
पार्टी ऑफ चाइना के बीच बाकायदा एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग बनी थी। उस समय सी
जिन पिंग उपराष्ट्रपति के तौर पर हू जिन ताओ के बाद चीन की सत्ता में नम्बर दो थे। एमओयू
पर चीन की तरफ से कोम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के अंतर्राष्ट्रीय विभाग के
मंत्री ने और कांगेस की तरफ से राहुल गांधी ने दस्तखत किये थे। उस अवसर पर सी जिन
पिन और सोनिया गांधी मौजूद थे। एमओयू में यह मजबून था कि दोनो पार्टियां एक दूसरे
को जानकारियां साझा करेंगी। एक दूसरे से सीखेंगी और एक दूसरे को सिखाएगी।यह एमओयू
चीन के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि चीन के आधिकारिक सीसीटीवी चैनेल ने उस ३० मिनट
के मिटिंग का बाजाप्ता टेलिकास्ट किया।
चीन के कोम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना का दुनिया भर के कोम्यूनिस्ट
पार्टियों से समझौते होते हैं। वे एक दूसरे से बहुत कुछ साझा करते हैं। यह बात समझ
में आती है मगर भारत की कांग्रेस पार्टी और कोम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के बीच
में एक समझौता एक समझौता हो यह बात सामान्य लोगों के समझ से बालातर है। २००८ में भारत की कांग्रेस पार्टी और कोम्युनिस्ट
पार्टी ऑफ चाइना के बीच कौन सा समझौता हुआ था। यह एक सवाल खड़ा करता है।
रेयर एंड क्रूसियल एम ओ यू
बिजिंग में पत्रकार सैबल दास गुप्ता ने टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए खबर लिखा
था । उन्होंने इस एम ओ यू के बारे में लिखा था कि इट वाज ए रेयर एंड क्रूसियल एम ओ
यू। रेयर इसलिए कि यह अपने आप में चौकाने वाली घटना थी। क्योंकि भरतीय
कांग्रेस पार्टी कोई कोम्यूनिस्ट पाटी तो है नहीं। फिर उसने कोम्यूनिस्ट
पार्टी ऑफ चाइना के साथ इस तरह का समझौता क्यों किया।
२०१२ और २०१३ में लद्दाख में चीनी सेना ने अतिक्रमण किया
यही सीजिनपिन २०१२ में चीन के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन हो गये।
और मार्च २०१३ में वे चीन के राष्ट्रपति हो गये। २०१२ और २०१३ में ही लद्दाख में चीनी सेना पिपल्स
लिबरेशन आर्मी ने अतिक्रमण किया और वे भारत की सीमा में घुस आए। और उसने भारत की
जमीन कब्जा किया। वो जमीन अभी भी उनके कब्जे में है। यह तथ्य है। उस समय श्याम
शरण विदेश सचिव थे । उन्होंने बाजाप्ता प्रधान मंत्री और रक्षा मंत्री को इससे
अवगत कराया था। उसको यूपीए की सरकार ने डिसक्लोज नहीं किया । उस मामले को मनमोहन
सिंह सरकार ने दबा दिया।
डोक्लाम विवाद के समय राहुल और चीनी एम्बैसेडर का गुप्त मुलाकात
२०१७ में जब डोक्लाम में भारत चीन सीमा विवाद हुआ तो राहुल गांधी उस समय
के चीन के एम्बैसेडर के साथ चुपके से मुलाकात कर रहे थे। इसको भी पहले कांग्रेस
पार्टी ने छुपाया । मगर बाद में उस मुलाकात की हकीकत लीक हो गयी तो उन्हें स्वीकारना
पड़ा।
यह देश विरोधी हरकत है। भारत और चीन की सेना आमने सामने खड़ी थी, और विपक्षी पार्टी के
नेता के तौर पर राहुल गांधी दुश्मन देश के राजनयिक के साथ बैठक कर रहे थे। संसद में अधिरंजन चौधरी नेता प्रतिपक्ष हैं। उन्होंने
चीन के खिलाफ एक ट्विट किया था। बाद में उनको दबाव में अपना ट्विट वापस लेना पड़ा।
वही राहुल गांधी नये नये सवाल खड़े कर रहे हैं
उन्होंने सवाल खड़ा किया कि सेना को बिना हथियार के क्यों भेज दिया गया।
तो विदेश मंत्री एस जय शंकर ने उसका जवाब दिया कि सेना बिना हथियार के नहीं होती
है लेकिन एलएसी के दोनो तरफ तीन किलो मीटर तक किसी भी विवाद की स्थिति में हथियारों
के इस्तेमाल नहीं करने का समझौता भारत और चीन के बीच है। और यह पहले की सरकार ने
किया था। सेना ने उसी प्रोटोकोल का पालन किया।
२०१४ में मोदी सरकार ने अपने बोर्डर एरिया में कनेक्टिविटी पर काम शुरू किय
२०१४ में देश में
नरेंद्र मोदी की सरकार आयी । उसने तय किया कि हम अपने बोर्डर एरिया में सब जगह
कनेक्टिविटी बनाएंगे। ताकि पड़ोसियों से यदि हमारा युद्ध होता है तो हमारा सप्लाई
लाइन दुरुस्त रहे।
इस बार भी
यही हुआ कि हम अपना बोर्डर रोड बना रहे थे तो चीन ने ओबजेक्शन किया । चीन समझता
था कि इस बार भी पहले जैसा भारत अपनी गतिविधि रोक कर पीछे हट जाएगा। मगर ऐसा हुआ
नहीं ।
भारत सरकार ने स्पष्ट
कहा कि यह हमारा इलाका है और हम इसमें स्ट्रक्चर बनाएंगे । आपको इसमें दखल देने
का कोई हक नहीं बनता। हम आपके रोकने से रोड और स्ट्रक्चर बनाना नहीं रोकेंगे। हम
अपनी सोवरेंटी को बरकरार रखने के लिए प्रतिवद्ध हैं। हम अपने बोर्डर एरिया को
सुरक्षित रखने के लिए सड़क बनाएंगे। आपको जो उखाना
है, उखार
लें। आज झगड़ा इसी बात का है।
२०१३ के पूर्व भारत का कई इलाका चीन ने अपने कब्जे में कर लिया
२०१३ के पूर्व भारत का
कई इलाका चीन ने इसी तरह अपने कब्जे में कर लिया जिसका उल्लेख लद्दाख के एक खासदार
जामयांग शेरिंग नामग्याल ने अपने एक इंटरव्यू में किया है।
उन्होंने
कहा कि चीन ने कांग्रेस के कार्यकाल में भारत के कई क्षेत्रों पर कब्जा किया था।
इसका व्यौरा इस तरह है। १९६२ में अक्साई चीन में चीन ने ३७२४४ वर्ग किमी में कब्जा
कर लिया था। जब पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रधान मंत्री थे। संसद में उन्होंने
जवाब दिया था कि जोने दो वहां तो एक तिनका भी नहीं उगता है।
यूपीए के
मनमोहन सिंह के शासनकाल में २००८ में
चुमुर क्षेत्र में पंगांक और चौवजी धाटी में २५० किमी लंबाई की जगह चीन ने हथिया
ली। उसी साल २००८ में चीनी सेना ने देमचोक
में जोरावर किले को ध्वस्त कर दिया। भारत ने काई प्रतिक्रिया नहीं की। २०१२ में पीएलए ने वहां ऑबजर्विंग प्वाइंट
बनाया। १३ सीमेंट वाले घरों के साथ चीनी कॉलोनी भी बनायी। भारत ने काई प्रतिक्रिया
नहीं की। चीन ने २००८ से २००९ में डुंगती और डेमजोक के बीच भारत के डूम चेले यानी
प्राचीन व्यापार विंदु को कब्जा कर लिया और भारत सरकार को सूचना मिली मगर सरकार
ने न तो इस पर कोई प्रतिक्रिया की न इस बात को सार्वजनिक होने दिया।
बात इतनी तक ही नहीं है।
पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह ने देश को इस तरह ट्रीट किया जैसे भारत इनके बाप
की जागीर हो।
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| Jawahar Lal Nehru |
नेहरू ने अनेक बेवकूफियां की
अमेरिकी
राष्ट्रपति John F Kennedy को पता
चला कि चीन न्युकलियर विपोन बनाने वाला है, तो उसने
नेहरू को आफर किया कि चीन के न्युकलियर विपोन बनाने से पहले आप अपना न्युकलियर
विपोन बना सकते हैं। हम आपको रेडी मेड न्युकलियर विपोन देते हैं। बाद में हम टेक्नोलॉजी
भी देंगे। हम आपको बनाना भी सिखा देंगे। नेहरू ने कहा हम शांतिप्रिय देश हैं । हम ऐसा
नहीं करेंगे। ( संदर्भ: M K Rasgotra की किताब A Life In Diplomacy)
UNSC के परमानेंट मेंबरशिप के ऑफर को नेहरू ने ठुकराया
नेहरू को
आफर किया गया कि ताइबान के हटने से जो यूनाइटेड नेशन्स सेकुरिटी काउंसिल के परमानेंट
मेंबरशिप की एक सीट खाली हो रही है, वह आप ले
लीजिए। हमारा
आपको पूरा समर्थन है, क्योंकि
हम इसमें चीन को शामिल नहीं करना चाहते हैं। मगर चाचा नेहरू ने उसको रिजेक्ट कर
दिया। और इसके लिए इन्होंने स्वयं चीन को सपोर्ट किया। तब चीन से उनकी गहरी दोस्ती
थी। उन्होंने कहा कि यह नैतिक नहीं है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय मामले में देशहित
सर्वोपरि होता है। नैतिकता तो व्यक्तिगत चरित्र का हिस्सा है। और नेहरू कितने
चरित्रवान थे यह किसी से छुपा नहीं है। दरअसल नोबेल पीस प्राइस के लिए वे दरिया
दिली दिखा रहे थे। वैसे उन्हें वो भी नहीं मिला। बाद में १९६२ में चीन ने हम पर
हमला किया था। इसमें भारत की बुरी तरह हार हुयी।
नेहरू ने जम्मू कश्मीर विधान सभा में कश्मीर को ज्यादा सीटें दिलवा दी
प्रधान मंत्री पंडित
जवाहर लाल नेहरू ने जम्मू कश्मीर विधान सभा में कश्मीर को ज्यादा सीटें दिलवा
दी। जम्मू कश्मीर राज्य तीन भागों में बटा है, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख।
सबसे ज्यादा आवादी जम्मू की है। मगर ७५ में से ४३ सीटें कश्मीर को मिला । प्रधान
मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने धारा ३७० लागू किया। ३७० के कारण पाकिस्तान का
डोमिनेंस बढा ।
नेहरू कश्मीर के मुद्दे को यूएन में ले गये
प्रधान
मंत्री जवाहर लाल नेहरू कश्मीर के मुद्दे को यूएन में ले गये। आर्मी ने २ हप्ते
का और समय मांगा था। आर्मी ने कहा था कि हम पूरा कश्मीर ले लेंगे। जेनेरल मानिक
शाह उस कश्मीर औपरेशन के प्रमुख थे । उन्होंने अपनी जीवनी में इसका उल्लेख किया
है। जवाहर लाल नेहरू ने एक अनडिसप्यूटेड ईसू को डिसप्यूटेड बना दिया। हरी सिंह
ने कश्मीर का भारत में विलय कर दिया था। कानूनन वह भारत का हिस्सा था। उसपर ऐसा
कोई विवाद नहीं था कि उसे यूएनओ में ले जाया जाय। दूसरी बात कि भारत जीत रहा था।
और पाकिस्तानी सेना तितर वितर होकर भाग रही थी।
१९६२ युद्ध और हिंदी चीनी भाई भाई की उदारता
हेंडरसन
ब्रुक्स-भगत रिपोर्ट एक विश्लेषण की रिपोर्ट है। इसे "ऑपरेशन रिव्यू"
कहा जाता है, जो 1962 के
चीन-भारतीय युद्ध के कारणो की जांच करने के लिए इसे गठित किया गया।
इस रिपोर्ट के लेखक
भारतीय सशस्त्र बलों के अधिकारी थे: लेफ्टिनेंट-जनरल टी.बी. हेंडरसन ब्रुक्स और
ब्रिगेडियर प्रेमिंद्र सिंह भगत। ब्रिगेडियर प्रेमिंद्र
सिंह भगत को विक्टोरिया क्रॉस से
नवाजा जा चुका था और वे भारतीय सैन्य अकादमी के कमांडेंट रह चुके थे।
यह रिपोर्ट जब तैयार
हो गयी तो उसमें युद्ध के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार प्रधान मंत्री जवाहर लाल
नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्णामेनन को ठहराया गया था। नेहरू ने उसे संसद में पेश
नहीं किया । उसे हमेशा के लिए दबा दिया गया । मगर यह रिपोर्ट ऑस्ट्रेलिया में
ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार नेविल मैक्सवेल को हाथ लगी और उसके द्वारा यह प्रकाशित की गई
थी।
ऑस्ट्रेलियाई
पत्रकार नेविल मैक्सवेल के अनुसार, रिपोर्ट में दावा किया
गया है कि भारत सरकार,
जो क्षेत्र को पुनर्प्राप्त करने के लिए उत्सुक थी, ने एक
सतर्क नीति की वकालत की लेकिन सेना मुख्यालय ने एक ऐसी नीति तय की जो सैन्य रूप से
बिना सोचे समझे की गई थी।
17 मार्च 2014 को, मैक्सवेल
ने अपनी वेबसाइट पर इसे पोस्ट किया। मैक्सवेल ने रिपोर्ट पर आधारित अपनी पुस्तक भारत
का चीन युद्ध लिखा ।
टी.बी. हेंडरसन ब्रुक्स और ब्रिगेडियर प्रेमिंद्र सिंह भगत रिपोर्ट
१९६२ के भारत चीन युद्ध में
भारत के हार के कारणो का पता लगाने के लिए एक कमीशन बनाया गया जिसके प्रमुख थे
एंडरसन ब्रुक्स और भगत । मगर उसे नेहरू ने सार्वजनिक नहीं किया। मगर बाद में वो
लीक हुआ और उसको विदेशों के कुछ अखबारों ने छापा। जिसमें यह बताया गया था
कि इस हार के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवारी भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू
और उसकी फौरवार्ड पॉलीसी थी।
दूसरी जिम्मेवारी रक्षा
मंत्री वी के कृष्णमेनन की थी जिसने सेना को अतिशय कमजोर दशा में ला खड़ा किया
था। वे सैन्य नेतृत्व के साथ वार्ता का व्यौरा नहीं रखते थे। किसी भी बड़े
फैसले के समय किसी को अहम जिम्मेदारी नहीं दी जा सकी। उन्होंने जो भी फैसले लिए
वे बिलकुल लापरवाही भरे थे।
तीसरा नम्बर आता है
इंटेलिजेंस ब्यूरो चीफ बी एम मलिक का। आइ बी के पास जो भी जानकारी थी वह बिलकुल
काल्पनिक थी । उसका धरातल से कोई लेना देना नहीं था। उन्हें ऐसा लग रहा था कि
भारत चीनी सीमा के पार जाकर अपनी चौकी बना लेंगे तो चीनी इस पर अपनी प्रतिक्रिया
नहीं देंगे। वे बदले में अपनी सेना का प्रयोग नहीं करेंगे।
सच्चाई यह है कि चीन १९६०
से ही इस फॉरवार्ड भारतीय पोस्ट बनाने से सचेत हो गया और अपनी तैयारी में जुट
गया। भारत के आइबी को कुछ पता ही नहीं चला।
चीन ने लड़ाई नहीं शुरु की, नेहरू की फौरवार्ड पौलीसी लड़ाई के लिए तात्कालिक कारण बना
देखा जाय तो चीन ने लड़ाई
नहीं शुरु की। यही नेहरू की फौरवार्ड पौलीसी लड़ाई के लिए तात्कालिक कारण बना। यह
नेहरू की काफी मूर्खतापूर्ण रणनीति थी। बिना किसी
पूर्व सूचना के इनलोगों ने भरतीय सेना को गलतफहमी में डाल दिया। और चीनी
सेना ने भारतीय सेना को गाजर मूली की तरह
मार डाला, काट डाला, और लाशों के ढेड़
लगा दिए।
नेहरू की इकोनोमिक पोलिसी घटिया स्तर की थी
नेहरू कहते थे कि
प्राइवेट सेक्टर होना ही नहीं चाहिए। वे हर चीज सरकार के कंट्रोल में रखना चाहते थे। उन्होंने क्लोज इकोनोमी की
नीति अपनाई। उनके जमाने में भारत कुछ भी एक्सपोर्ट नहीं करता था। उसने भारत के
औद्योगिक विकास में अवरोध डाला। उन्होंने प्राइवेट कंपनियों को कुछ नहीं करने
दिया।
आजादी के
बाद हमारी ग्रोथ रेट सिर्फ ४ फीसदी रही। जबकि गदहे देशों की ग्रोथ रेट ५.२ से अधिक
भी। जापान और जर्मनी की तो ग्रोथ रेट १०० प्रतिशत के करीब थी। यूरोप के अन्य
देशों की ४० से ७० फीसदी ग्रोथ रेट थी । मगर नेहरू की नीतियों के कारण भारत का
कायदे से औद्योगिक विकास नहीं हो सका।
नेहरू ने भाषा के आधार पर राज्यों का बटबारा किया
जवाहर लाल नेहरू ने भाषा
के आधार पर राज्यों का बटबारा किया। राजेंद्र प्रसाद और पटेल इसके सख्त विरोधी
थे। वे लोग कहते रहे कि यह देश को एक जूट होने में बाधा बनेगा। नेहरू ने उनकी
अनसूनी की । बाद में इसके दुष्परिणाम सामने आए।
नेहरू ने कोको आइलैंड १९४८ में बर्मा को गिफ्ट में दे दिया
जवाहर लाल
नेहरू ने कोको आइलैंड १९४८ में बर्मा को गिफ्ट में दे दिया। बाद में बर्मा ने इसे
चाइना को यह लीज पर दे दिया। यहां से चाइना भारत की नौसेना पर नजर रखता है।
नेहरू ने कबाव वैली १९६२ में बर्मा को गिफ्ट में दे दिया
जवाहर लाल नेहरू ने कबाव
वैली १९६२ में बर्मा को गिफ्ट में दे दिया। यह कश्मीर से कम सुंदर नहीं है। यहां
बड़ी संख्या में टूरिस्ट आते हैं । अगर यह भारत में ही रहता तो यह भारत की इकोनोमी को बढाता ।
नेहरू ने ग्वादर पोर्ट को हाथ से जाने दिया
जवाहर लाल नेहरू ने ग्वादर
पोर्ट को हाथ से जाने दिया । यह ओमान के सुलतान के पास था । उसने नेहरू को १.५ मिलियन मे ऑफर किया था। बाद
में पाकिस्तान ने ३ मिलियन में खरीदा। यदि आज यह भारत का होता तो नेवी को स्ट्रैटेजिक
एडवांटेज मिलता।
१९५२ में नेपाल भारत में शामिल होना चाहता था
१९५२ में
नेपाल भारत में शामिल होना चाहता था। त्रिभूवन विक्रम शाह ने जवाहर लाल नेहरू को अनुरोध
किया कि आप भारत में इसे शामिल कर लीजिए। नेहरू ने कहा इससे हमारे दूसरे देशों से
संबध खराब हो सकते हैं। यह आपके लिए भी ठीक नहीं रहेगा। नेपाल में कितने टूरिस्ट आते हैं।
नेहरू ने कॉमन सिविल कोड नहीं लागू किया
जवाहर लाल
नेहरू ने कॉमन सिविल कोड नहीं लागू किया। अम्बेदकर साहब ने इसका विरोध किया । वे
कहते थे कि सभी के लिए समान कानून होना चाहिए। नेहरू ने मुसलिम बोट के लिए ऐसा
किया। शादी, डिवोर्स, प्रोपर्टी, आदि में
हिंदू सिविल कोड सिर्फ हिंदुओं पर लागू होते हैं। सिख, बौद्ध, जैन पर
भी पर लागू होते हैं। मगर मुसलिमों को एक तरह की फ्रीडम दे दी गयी कि आप अपना
धार्मिक कानून साइड में चलाते रहो। यह फेनोमेना अनडेमोक्रेटिक है। डमोक्रेटिक का
मतलब है कि आपका संविधान सब पर समानरूप से लागू होता है। किसी के लिए विशेष कानून
नहीं होना चाहिए। भारत में मुसलिम परसोनल लॉ अलग चलता है। बॉकी के लिए हिंदू कोड।



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