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अनेक कं‍पनियां चीन से बाहर जा रही हैं मगर वह भारत नहीं आ रही हैं


Chinese President
Chinese President

लॉकडाउन की वजह से पूरी दुनियां के इनडस्ट्रियल मारकेट पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ा है। अनेकों मल्‍टीनेशनल कंपनियां जैसे गुगल, माइक्रोसोफ्ट, एप्‍पल, आदि चीन से अपना काम समेट रही हैं। मगर वे भारत नहीं आ रही हैं। इनमें से अधिकांश बियतनाम की ओर शिफ्ट हो रही हैं।

चाइना कैसे मैन्‍यूफैक्‍चरिंग हब बन गया ?

बेंग जियो पिंग ने १९७० में यह तय किया कि चीन को सारी दुनियां के लिए मैन्‍यूफैक्‍चरिंग हब बना दिया जाय। वे चाहते थे कि पूरी दुनियां के उत्‍पादक यहां आकर अपने माल का उत्‍पादन करें। इसके लिए उन्‍होंने एक कमप्रेहेनसिव प्‍लान तैयार किया। उन्‍होंने लेबर लॉ में सुधार किया और लेबर मारकेट में सुधार किया। उन्‍होंने सप्‍लाइ के एक चेन का निर्माण किया। चीन  दुनियां की सबसे अधिक अबादी वाला देश है। मजदूरों को स्किल्‍ड बनाने की योजना पर काम किया गया। इसके अलावा तेजी से और निर्वाध उत्‍पादन चले इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाया गया। उनकी जरूरतो को देखते हुए उनकी सारी समस्‍याओं का उपाय निकाला गया। सरकार ने बेहतरीन उत्‍पादन का एक इकोसिस्‍टम तैयार किया।  इससे निर्माताओं को चीन में माल उत्‍पादन करने में उत्‍पादन लागत बहुत कम पड़ने लगा। इसका यह असर हुआ कि सारी दुनियां की कम्‍पनियां चीन में प्‍लांट लगाने को मजबूर हो गयीं। इसी वजह से सारी दुनियां की कंपनियां चीन में शिफ्ट करती गयीं। अगले बीस सालों में चीन बहुत आगे निकल गया। आज तो वह दुनियां की दूसरी सबसे बड़ी इकोनोमी है।

पूरी दुनियां के उत्‍पादन में चीन की हिस्‍सेदारी सर्वाधिक

आज पूरी दुनियां में जो उत्‍पादन हो रहे है उसमें चीन की हिस्‍सेदारी २८.४ प्रतिशत है। यूएसए की हिस्‍सेदारी १६.६ प्रतिशत, जापान की ०७.२ प्रतिशत, जर्मनी की ५.८ प्रतिशत, साउथ कोरिया की ३.३ प्रतिशत, और भारत की हिस्‍सेदारी ३ प्रतिशत है।

अनेक कं‍पनियां चीन से बाहर जा रही हैं मगर वह भारत नहीं आ रही है

मगर पिछले दिनोें चीन से सारी दुनियां में कोरोना पेनडेमिक का संक्रमण फैला। इसके साथ चीन का गुडविल भी खराब हुआ। इस कारण अनेक कं‍पनियों ने चीन से अपना बोरिया बिस्‍तर समेटना आरंभ कर दिया है। मगर वह भारत नहीं आ रही हैं बल्कि वह साउथ ईस्‍ट एशिया की तरफ मूव कर रही हैं। उनके इन पसंदीदा लोकेशनों में बियतनाम का नाम सबसे ऊपर है। इसके कई कारण हैं।
एक कारण तो यह है कि बियतनाम चीन के सिंजियांग से करीब है। सिनजियांग में ऑलरेडी ऐसा बड़ा इंडस्ट्रियल हब है कि यदि उन्‍हें सप्‍लाई चेन के किसी स्‍तर पर परेशानी होगी तो उसकी पूर्ति वे वहां  से कर लेंगे। बियतनाम उसी रूट पर है जिस रूट से चीन के माल का निर्यात होता रहा है अर्थात साउथ चाइना सी। इसके अलावा कुछ ऐसे इसू भी हैं जिसमें बियतनाम भारत से बेहतर है।

कुछ ऐसे इसू भी हैं जिसमें बियतनाम भारत से बेहतर है

बियतनाम में लैंड एक्विजिशन का सिस्‍टम भारत से आसान है। भारत में लैंड एक्विजिशन अत्‍यंत जटिल है। भारत में जमीन अधिग्रहण में अनेक बाधाएं हैं। किसान कई बार जिद्द पर आ जाते हैं कि हमे बेचना नहीं है। कभी नेतागीरी के कारण पंगा हो जाता है। कभी केस मुकदमा हो जाता है। कभी पर्यावरण विभाग ही अरंगा लगा देता है। भारत में नेशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल उद्योग के लिए  हमेशा से बाधा खड़ी करते रहे हैं। इनका जरूरत से ज्‍यादा हस्‍तक्षेप होता है।

दूसरी बात है कि कम्‍पनियों के लिए जो शुरूआती प्रोसेडयोर हैं वे दो दिनो में ही पूरे हो जाते हैं। भारत में यही काम २८ दिनो में होता है।

इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के लिहाज से भी बियतनाम भारत से अच्‍छा है। जहां भी फैक्‍ट्री लगाया जाता है वहां बिजली पानी सड़क पहुचाने का काम सरकार कर देती है। आप बस फैक्‍ट्री लगायें।

सोशल आस्‍पेक्‍ट से भी बियतनाम भारत से अच्‍छा है। वहां का समाज इंडस्ट्रियलाइजेशन को बढ़ावा देता है। भारत के समाज में इतनी जागरुकता नहीं आयी है।  

हेल्‍थ हाइजिन और मेडिकल फैसिलिटी में भी बियतनाम भारत से अच्‍छा है।बियतनाम में मेडिकल सेवा का ढांचा भारत से अच्‍छा है। यदि मजदूर बीमार पड़ जाय तो भारत में उसका आसानी से इलाज नहीं होता है मगर इस मायने में बियतनाम भारत से अच्‍छा है। वहां सरकार और कंमनी मिलकर दबा दारू का खर्च उठाते हैं।

बियतनाम की करेंसी है डौंग और भारत की करेंसी रूपया है। डौंग का फ्लकचुएशन क्रौलिंग पैटर्न पर होता है और रूपया का फ्लकचुएशन फ्री फ्लॉटिंग पैटर्न पर होता है। फ्री फ्लॉटिंग पैटर्न में रूपया का मूल्‍य कितना भी घट या बढ सकता है। क्रौलिंग पैटर्न में फ्लकचुएशन की एक सीमा तय कर ली जाती  है कि इसका मैक्सिमम और मिनिमम क्‍या होगा। यह सभी बातें विदेशी कंपनियों को भारत आने से रोकती हैं। मगर फिर भी आशा की किरण यह है कि मौजूदा सरकार इस दिशा में काम कर रही है।


नरेंद्र मोदी सरकार इस दिशा में प्रोएक्टिव है। सरकार भारत को सारी दुनियां के लिए मैन्‍यूफैक्‍चरिंग हब बनाना चाहती है वे चाहते थे कि पूरी दुनियां के उत्‍पादक यहां आकर अपने माल का उत्‍पादन करें। इसके लिए  भारत सरकार एक कमप्रेहेनसिव प्‍लान तैयार करने की दिशा में काम भी कर रही है। लेबर लॉ में सुधार किया जा रहा है और लेबर मारकेट में भी सुधार किया जा रहा है। भारत  दुनियां की दूसरी सबसे अधिक अबादी वाला देश है। मजदूरों को स्किल्‍ड बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है। इसके अलावा तेजी से और निर्वाध उत्‍पादन चले इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए सरकार कारीक्रम बना रही है। सरकार उत्‍पादन का एक इकोसिस्‍टम तैयार कर रही है।  

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