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Corona Lockdown में निराशा से निजात पर बनी सादिक़ शेख की लघु फिल्‍म ‘Suicide Not a Solution’ प्रदर्शन के लिए तैयार

Short Film - Suicide Not a Solution
Short Film - Suicide Not a Solution




मुंबई: बदलते दौर में हर चीज फास्‍ट होती जा रही है। बदलाव की इसी कड़ी में लघु फिल्‍में भी लोकप्रिय हो रही हैं। प्रतिभावान डायरेक्‍टरों, एक्‍टरों और अन्‍य टेक्‍नीसियनों को लघु फिल्‍म यह मौका प्रदान करता है कि वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सके। बड़ी फिल्‍मों की तुलना में लघु फिल्‍म बनाना एक चैलेंजिंग काम है। जहां एक फुल लेंथ फिल्‍म निर्माता को अपनी बात कहने के लिए पर्याप्‍त समय मिलता है वहीं एक सफल लघु फिल्‍म के निर्माता, निर्देशक, एक्‍टर और टेक्‍नीसियनों को बहुत कम समय में अपनी बात रखनी होती है और अपनी प्रतिभा, तैयारी और कुशलता सिद्ध करनी पड़ती है, जो एक चुनौती भरा काम है। मगर आज के समय में खास कर यू ट्यूब, फेसबुक और अभिव्‍यक्ति के अन्‍य मंचों के सामने आने से इस तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। 

Short Film - Suicide Not a Solution
Short Film - Suicide Not a Solution

इसी कड़ी में सादिक़ शेख फिल्‍म्‍स की नयी पेशकश है ‘Suicide Not a Solution’ जिसे सादिक़ शेख ने डायरेक्‍ट किया है। इसमें मुख्‍य भूमिका में हैं शिवम शुक्‍ला, संगीत दिया है नवीन सिंह राठौर ने और सहायक निर्देशक हैं संतोष कुमार शुक्‍ला।

यह एक लड़के की कहानी है जो लॉकडाउन में फस जाता है। सारा शहर बंद है और वह घर के बाहर नहीं जा सकता है। वह जॉबलैस हो जाता है।  वह अकेला घर में ट्रैप हो जाता है। उसके घर के सारे राशन पानी खत्‍म हो जाते हैं। मकान मालिक उसे रूम रेंट के लिए फोन करके परेशान करता है। उपर से गांव में रहने वाले उसके पैरेंट्स का भी फोन आता है कि पैसा भेजो। 
Short Film - Suicide Not a Solution
Short Film - Suicide Not a Solution


उसकी परेशानी यह है कि उसके पास खाने पीने को कुछ बचा नहीं । बस हप्‍ते भर से पानी पीकर उसका गुजारा हो रहा है। वह फोन कर कई लोगों से मदद मांगता है मगर लोग फोन कट देते हैं।  ऐसा भी है कि इसका किसी पर उधार है मगर सामने वाला बंदा  पैसे दे नहीं रहा है। अब इसकी निराशा दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है। वह हर तरीके से टूटता जा रहा है। अब उसे लगता है कि उसके पास जीने का अब कोई चारा नहीं रहा। फिर वह प्‍लान बनाता है कि पंखे से लटककर आत्‍महत्‍या कर लिया जाय। 

फिर ऐसा भी होता है कि वह सपने में देखता है कि उसने सुसाइड कर लिया तभी उसकी निंद टूटती है। फिर उसके मन में सुसाइड का अंतरद्वंद चलता रहता है। इसी अंतरद्वंद में वह एक दिन सुसाइड का सचमुच प्रयास करता है। मगर जैसे ही वह फांसी के फंदे पर लटकता है कि तभी उसके घर का बेल बजता है। वह बाहर देखने जाता है तो यह देखता है कि किसी ने गेट पर अनाज और खाने पीने का अन्‍य सामान जैसे तेल मसाला आदि सभी चीजें जिसकी उसे जरूरत थी, रखी पड़ी हैं साथ उसमें कुछ हजार रूपये भी हैं। मगर दरवाजे पर उसे कोई मिलता नहीं है। फिल्‍म यहीं खत्‍म होती है और यही फिल्‍म का क्‍लाइमेक्‍स भी है।

यह फिल्‍म यह मैसेज देता है कि हमें कभी भी और किसी भी स्थिति में आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। जिसने यह दुनिया का श्रृजन किया है वह इसका परवरिस भी करेगा। 

फिल्‍म काफी मिहनत से बनायी गयी है, ऐसा फिल्‍म के क्राफ्ट से लगता है । इसमें डायरेक्‍टर, टेक्‍नीसियनों, संगीतकार, एडीटर और कलाकारों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। उनका काम सराहनीय है। फिल्‍म निश्चित रूप से देखने लायक है। अनेक फिल्‍म क्रिटिक ने फिल्‍म देखी है और उसकी प्रशंशा की है। पाठक इसे सोशल मीडिया पर देख सकते हैं।

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