Header Ads Widget

 Textile Post

तानाशाही के खिलाफ लड़ाई में आज पूरा देश अर्नव के साथ खड़ा है



ARNAV GOSWAMI

 


 

 मुंबई : आप लोगों ने आपात काल की चर्चा सुनी होगी। इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैये का जिक्र सुना होगा।  उस समय सरकार ने मीडिया हाउसेस पर अंकुश लगाने की कोशिश की थी।

 

मगर अभी जो कुछ हो रहा है वह भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। ऐसा कभी नहीं हुआ कि पुलिस की तरफ से किसी मीडिया हाउस के तमाम एडिटोरियल स्‍टॉफ के खिलाफ़ सामूहिक रूप से एफ आइ आर दर्ज की गयी हो। यह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला दिन है।  यदि हम काला दिन का कोई पैमाना बना सकें, और काले दिनों की सूची बना सकें, तो आज का काला दिन मीडिया के इतिहास में सबसे ऊपर आएगा।

 

जैसा कि बाहर से दिख रहा है कि यह परमवीर सिंह और अर्नव गोस्‍वामी के बीच की लड़ाई है, वैसा है नहीं। यह अर्नव गोस्‍वामी और महाराष्‍ट्र की उद्धव ठाकरे की सरकार के बीच की लड़ाई है।

 

उद्धव सरकार की मीडिया के ऊपर एक ऐसी कार्रवाई करने की कोशिश है, जो एक मिसाल बने। लोगों में आतंक फैले। उद्धव ठाकरे की अगुआइ में महाराष्‍ट्र की कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन की सरकार अर्नव गोस्‍वामी और रिपब्‍लिक टीवी के बहाने  इस तरह का एक उदाहरण पेश करना चाहती है कि गलती से भी कोई आदमी सरकार के काम काज पर आवाज न उठा पाए, सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्‍मत न करे। 

 

 लोकतंत्र में लोगों को अपनी बात रखने की आजादी होनी ही चाहिए। उनको बोलने की स्‍वतंत्रता होनी ही चाहिए। उसपर अंकुश नहीं लगना चाहिए।

 

मगर यह शिवसेना और एनसीपी का पुराना तरीका है। कांग्रेस सीधे तौर पर ऐसा करने से बचती थी। मगर अभी कांग्रेस भी सरकार में है और उसको भी सत्‍ता का नशा चढ़ा हुआ है। इसलिए इस खेल में तीनों पार्टियां शामिल हैं। आज जो उद्धव सरकार कर रही है वह तानाशाही है, फासी वाद है।

 

 वही आदमी बड़ा तानाशाह होता है जो मन से कमजोड़ होता है। बस उसे सत्‍ता और ताकत का इंतजार होता है। उसके मिलते ही वह अपने रंग में आ जाता है। अपने फासीवाद के असल रंग में आ जाते हैं।

 

उद्धव ठाकरे अपनी जो छवि गढने की कोशिश कर रहे थे। वह उनकी वास्तिविक छवि नहीं थी। बाकायदा फिल्‍म अभिनेता और अभिनेत्रियों को एक साथ इसके लिए तैयार किया गया कि वो उद्धव ठाकरे को महान बताएं, वो भी तब जब  मुंबई से बाहर जाने वाले लोगों द्वारा देश भर में महामारी फैल रहा था। मुंबई में सबसे ज्‍यदा लोग महामारी से बचने और अपना जीवन बचाने के कोशिश में नाकामयाब हो रहे थे। लोगों की जान जा रही थी। अस्‍पताल में लोगों को जगह नहीं मिल पा रही थी। कोरोना से मरे हुए लोगों की लाश होस्‍पीटल के वार्डों में बीमार लोगों के साथ रखी रहती थी।

 

इन सब के बीच उद्धव ठाकरे की पीआर मशीनरी पूरे उत्‍हास से काम कर रही थी। इसमें अभिनेता, अभिनेत्री, बड़े चैनलों के पत्रकार, बड़े बड़े ट्विटर सेलीब्रेटीज और बड़े बड़े यू ट्यूबर्स को प्रचार कार्य में लगाया गया।  वे सब यह साबित करने में लगे थे कि महाराष्‍ट्र सरकार बहुत शानदार काम कर रही है।

 

हकीकत यह है कि पूरे देश में जितने लोगों ने कोरोना से अपनी जान गंवायी, उसका एक तिहाइ महाराष्‍ट्र से हैं, और महाराष्‍ट्र में भी सवार्धिक लोग मुंबई के हैं। महाराष्‍ट्र और मुंबई पूरी तरह आज तक खुल नहीं पाया है। आज तक यहां का जन जीवन पटरी पर आ नहीं पाया है।

 

 यह पीआर मशीनरी उद्धव जी की छवि को शानदार बना रही थी। वह समय के साथ स्‍वत: ध्‍वस्‍त हो गयी। लोगों को लगने लगा कि इस आदमी ने तो कुछ रचनात्‍मक काम ही नहीं किया। प्रशासनिक स्‍तर पर वे बेहद नाकाम रहे है। संगठन के स्‍तर पर पार्टी को आगे बढाने में उन्‍हे कोइ सफलता नहीं मिली। और इस दिशा में उन्‍होंने कोई कोशिश भी नहीं की। उन्‍होंने अपनी पार्टी को थोड़ा भी नहीं बढाया है।  आदित्‍य ठाकरे की छवि को चमकाने की कोशिश की गयी। इसमें भी वे नाकाम रहे। आदित्‍य ठाकरे ने अब तक कोई काम नहीं किया है। उनके अय्यासी के किस्‍से आम लोगों को भी पता है।  

 

क्‍यों सरकार रिपब्‍लिक टीवी के पीछे पड़ी है?

 

जहां तमाम टीवी चैलेल या तो बिक गये या डर गये वहीं  रिपब्‍लिक टीवी से, अर्नव गोस्‍वामी और उनकी टीम से उन्‍हें धक्‍का लगा। बेशक अर्नव गोस्‍वामी लाउड हैं। मगर उनकी विश्‍वसनीयता का सारा देश कायल है। कोई भी अर्नव गोस्‍वामी के इमानदारी और कमिटमेंट पर सवाल नहीं उठा सकता है। आज वे अपनी बेबाक और इमानदार पत्रकारिता के लिए देश के अंदर और बाहर सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।  

 

जिस तरह से रिपब्‍लिक टीवी के नेटवर्क को टारगेट करने की कोशिश की गयी है, उसमें यह बहुत जरूरी था कि उसका डिफेंस भी उतनी आक्रमकता से की जाय। और यह उन्‍होंने किया।

 

 आज पूरा देश अर्नव के साथ खड़ा है। यह सोशल मिडिया का कमाल है। सोशल मिडिया ने उस परम्‍परा को ध्‍वस्‍त किया जिसमें पत्रकारिता के चंद लोग बेवजह के मठाधीश बनकर और कौकस बनाकर काम करते थे। अर्नव गोस्‍वामी ने उन मठाधिशों को छोटा कर दिया।

 

उन्‍होंने सरकार को असहज करने वाले सवाल पूछे। पालधर में साधुओ की हत्‍या, सुशांत सिंह राजपूत की मौत, दिशा सलियान की मौत, ऐसे अनेक मुद्दों पर जब बड़े बड़े मीडिया हाउसों ने महाराष्‍ट्र सरकार पर कुछ कहने से परहेज किया वहीं अर्नव गोस्‍वामी ने सवाल पूछ कर सरकार को असहज कर दिया।

 

 ये चुभने वाले सवाल यदि महाराष्‍ट्र सरकार को नहीं बर्दास्‍त हो रहे हैं तो संदेह और बढ़ जाता है कि क्‍या सचमुच कोई बड़ी साजिश है। क्‍या कुछ है जिसे छुपाना जरूरी है, जिसकी कवरिंग की जा रही है। क्‍या सरकार में बैठे लोगों को बचाने की कोशिश हो रही है? अब यह संदेह बड़ा हो जाता है।

 

सरकार के घबराहट का यह आलम है कि उसके इशारे पर  मुंबई पुलिस ने रिपब्‍लिक टीवी के १००० कर्मचारियों पर एफ आइ आर  दर्ज की है।

 

क्‍या हुआ? कम्‍पलेन है क्‍या?

 

 कौन हैं कम्‍पलेनेंट? कम्‍पलेनेंट कोई व्‍यक्ति नहीं है, कोई संस्‍था नहीं है। किसी की तरफ से ऐसी कोई मांग नहीं हुयी। कम्‍पलेनेंट है:  पुलिस का एक सब इंस्‍पेक्‍टर, शशिकांत पवार। वे स्‍पेशल ब्रांच वन में काम करते हैं।

 

ये जनाब २२ अक्‍टूबर की रात सात बजे रिपब्‍लिक टीवी देख रहे थे। उस पर एक खबर आयी। उस खबर में लिखा था द बिगेस्‍ट स्‍टोरी टुनाइट। रिवोल्‍ट अगैंस्‍ट परमवीर। कम्‍पलेनेंट आगे कहता  है: कि एंकर ने आरोप लगाया कि परम वीर सिंह मुंबई पुलिस का नाम खराब कर रहे हैं। और वह अपनी वर्दी का उपयोग पर्सनल स्‍कोर सेट करने के लिए कर रहे हैं।

 

 

शशिकांत पवार जी !  इसमें किसी को कोई संदेह है क्‍या ? आपको इसमें कोई भ्रम होगा मगर पूरे देश को यह दिखायी पड़ता है। यह तो ओपेन सेक्रेट है।  

 

 

इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है कि जिस तरह से इस पूरे मामले में अर्नव गोस्‍वामी और रिपब्‍लिक टीवी के खि‍लाफ महाराष्‍ट्र सरकार के इशारे पर परम वीर सिंह पुलिस का इस्‍तेमाल कर रहे हैं, यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है।

रिपब्‍लिक टीवी के एग्‍जेक्‍यूटिव एडीटर निरंजन नारायण स्‍वामी, डेपुटी एडीटर श्रवन सेन, एंकर शिवानी गुप्‍ता, डेपुटी न्‍यूज एडिटर सागरिका मित्रा, न्‍यूज रूम इंचार्ज एवं अन्‍य  एडिटोरियल स्‍टाफ पर एक साथ एफआइआर की गयी है।

 

रिपब्‍लिक टीवी के एंकर ने लिखा कि जो ट्वाइलेट पेपर है, पेन है, मुंबई पुलिस इसका भी हिसाब किताब रिपब्‍लिक टीवी से मांग रही है।

 

किसी भी कम्‍पनी  के  हिसाब किताब का बकायदा ऑडिट होता है। उसकी रिपोर्ट जमा होती है। सीए बाकायदा जांच करता है। यह कंपनी के बैलेंस सीट में बाकायदा दर्ज होता है। सबाल यह है कि रिपब्‍लिक टीवी के पैरेंट कंपनी के बैलेंस सीट से क्‍यों नहीं ले लेते?

 

दूसरा सवाल है कि, क्‍या पुलिस का यह काम है कि वह मीडिया हाउसेस से पूछेगी कि आपके आमदनी और खर्च का हिसाब हमें दीजिए। क्‍या यह पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है? यह पुलिस का जुरिडिक्‍शन नहीं हैं।

 

परमवीर सिंह ने अपने पूरे केरियर को दाव पर लगा दिया है। उद्धव ठाकरे तो नेता हैं। मौका परस्‍त हैं। मौका पाकर निकल लेंगे। परमवीर सिंह को अदालत में जवाब देना भारी पड़ सकता है।   

उद्धव ठाकरे जनता की नब्‍ज नहीं जानते हैं

उद्धव ठाकरे ऐसे  नेता हैं जो जनता की नब्‍ज नहीं जानते हैं। वे जनता की नब्‍ज समझने को तैयार भी नहीं हैं। उद्धव ठाकरे का प्रोबलेम यह है कि वे नीजी तौर पर मजबूत आदमी नहीं हैं। साहसी नहीं हैं। भीतर से कमजोर हैं। इसीलिए उनके अंदर का तानाशाह जो छिपा बैठा था। बाहर से उनका बहुत सौम्‍य, सहज, विनम्र, सरल चेहरा सामने आता था, उसके अंदर महत्‍वाकाक्षा छुपी थी।  उनके अंदर की महत्‍वाकांक्षा तब देखने को मिली जब उन्‍होंने मुख्‍य मंत्री के पद के लालच में अपनी पूरी विचार धारा को गिरवी रख दिया।

 

राज ठाकरे इस मामले में बढियां नेता हैं। उनके जो मन में होता है वही वे सामने से कहते हैं। राज ठाकरे को यदि लगता है कि यह करना चाहि‍ए तो वह काम वे छाती ठोक कर करते हैं।

 

उद्धव ठाकरे को जो भी करना होता है वह दबे छिपे करते हैं। गुपचुप करते हैं। उनके अंदर कुछ और बाहर कुछ और है।

 

शिवसेना ने भाजपा से बहुत कम सीटें जीती । उन्‍हें सीएम की कुर्सी पाने का या मांगने का कोई अधिकार नहीं था। बाकायदा चुनाव से पहले सीटों का बटबारा करके दोनों पार्टियां जनता के बीच चुनाव लड़ने  गयी थी।

 

ये धटनाक्रम उद्धव ठाकरे के राजनैतिक चरित्र को उजागर करता है

ये जो धटना क्रम हो रहे हैं वह उद्धव ठाकरे के पूरे राजनैतिक चरित्र को उजागर करता है। क्‍यों भाजपा के साथ चुनाव लड़ने के बावजूद उद्धव ठाकरे भाजपा के साथ सरकार नहीं बना पाए। इतने सालों से भाजपा और शिवसेना का गठबंधन चल रहा था। उसमें जो ज्‍यादा सीटें पाता था वह सीएम पद का दावेदार होता था। तो क्‍या बात हुयी कि सीटों के इतने अंतर के बावजूद उद्धव ठाकरे सीएम की कुर्सी के लालच में पड़ गये। शिवसेना के विचारधारा का उन्‍होंने त्‍याग कर दिया।

 

 

क्‍या है यह विद्रोह या डिसअफेक्‍शन का केस? आरोप है कि अर्नव गोस्‍वामी और उनका चैनेल मुंबई पुलिस में विद्रोह कराना चाहता है। Police incitement to disaffection Police act 1922.  यह तब का कानून है जब देश आजाद नहीं हुआ था। यदि किसी के खिलाफ कोई मामला बनता है तो ६ महीने की जेल और २०० रूपये का जुर्माना या दोनो। लेकिन महाराष्‍ट्र में १९९२ में  इसमें  बदलाव किया गया। इसमें ५००० रुपये का जुर्माना या ३ साल का जेल या दोना कर दिया गया। इसे कोगनीजेबल और ननबेलेबल करार दिया गया है।

 

इस धटना क्रम को आप ध्‍यान से देखिए। आम तौर पर जो  मामला दर्ज होता है उसमें हर इंडिविजुअल पर स्‍पेसिफिक चार्ज होता है। मगर इस तरह से पूरे एडिटोरियल स्‍टाफ के खिलाफ आपातकाल में भी कोई मामला नहीं दर्ज हुआ।

 

यह पूरी तरह से मीडिया लोकतंत्र और अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के ऊपर यह हमला है। यह सरकार तानाशाही करने पर तुली है।

 

पुलिस ने रात में छापा मारा और ऐसे कुछ लोगों को तैयार किया कि कुछ ऐसे लोग मिल जांय जो यह कहे कि इससे हम क्रोधित हो गये, उत्‍तेजित हो गये। ताकि जो यह विद्रोह वाली धाराएं हैं इसको वे कहीं से भी जस्‍टिफाइ कर सकें, न्‍यायोचित ठहरा सकें। लेकिन यह प्रयोग खतरनाक है।

 

यदि आप सामान्‍य नागरिक हैं और लोकतंत्र में यकीन रखते हैं, अभिव्‍यक्‍ति की स्‍वतंत्रता की बात करते हैं, सरोकार की बात करते हैं, यदि आप स्‍वस्‍थ लोकतंत्र चाहते हैं  तो उन सभी लोगों को महाराष्‍ट्र सरकार के खिलाफ उसकी इस तानाशाही के खिलाफ खड़े होना चाहिए।

 

यह मुद्दा इतना भर नहीं है कि एक पत्रकार को दबाने की कोशिश की जा रही है। उसके खिलाफ हर संभव साजिश की जा रही है। इतना भर मसला नहीं है। मसला उससे बहुत आगे है।

 

यह तानाशाही है, यह फासीवाद है

यह तानाशाही है, यह फासीवाद है, यह लोक तंत्र को खत्‍म करने की बड़ी साजिश है। इनकी कोशिश यह है कि ३ वर्षों के लिए रिपब्‍लिक मीडिया के पत्रकारों को जेल भेज दिया जाय।

 

जो भी आदमी पत्रकारिता में जाता है, वह यह सोच कर जाता है कि उसका सामना असहज करने वाली स्थितियों से हो सकता है। मगर जरा सोचिए कि यदि आपको रोज रोज पुलिस बुलाने लगे तो आपके घर परिवार सब पर असर पड़ता है। इस पूरे मामले में मुंबई पुलिस महाराष्‍ट्र सरकार के इशारे पर रिपब्‍लिक मीडिया के खिलाफ दुराग्रह के साथ किसी भी हद तक जाने या गिरने को तैयार है।

 

 

राज्‍य के भाजपा इकाई को इसे बड़ा मुद्दा बनाना चाहिए

 

राज्‍य के भाजपा इकाई को इसे बड़ा मुद्दा बनाना चाहिए। और पूरे महाराष्‍ट्र में आंदोलन खड़ा करना चाहिए। दुर्भाग्‍य यह है कि जो मीडिया बॉडीज हैं, एडिटर्स गिल्‍ड हैं, उनकी तरफ से जो प्रतिक्रिया आ रही है, वह डरे डरे और दबे दबे आ रही है। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि किस तरह इस पर प्रतिकिया देनी चाहिए। एडिटर्स गिल्‍ड की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। एडिटर्स गिल्‍ड में नये लोग आ गये हैं, मगर क्‍या वे भी अपने दुराग्रहों से, अपने पक्षपाती विचारों से ऊपर उठ पाएंगे, और अगर नहीं उठेंगे तो पूरी की पूरी लोकतात्रिक व्‍यवस्था का नुकसान होगा।

 

अदालत का जहां तक मामला है, उसे निश्चित रूप से इसमें दखल देना चाहिए। अब इस मामले की जांच किसी भी हालत में मुंबई पुलिस करने के योग्‍य नहीं हैं, यह सिद्ध हो गया है। इसकी जाच सीबीआइ ही कर सकती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ