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क्‍या महाराष्‍ट्र सरकार सीबीआइ जांच को रोक सकती है?

 

Arnav Goswami


 

मुबई: महाराष्‍ट्र सरकार टीआरपी इशू में जिस तरह रिपब्‍लिक टीवी के पीछे पड़ी है, उस पर होनरेबल हाइकोर्ट ने कहा कि पुलिस चीफ का स्‍टेटमेंट इस मुद्दे पर बायस्‍ड है। यूपी के आदित्‍यनाथ योगी सरकार ने २० अक्‍टूबर को टीआरपी इनवे‍स्‍टिगेशन के मामले को सीबीआइ को सूपूर्द कर दिया।

 

महाराष्‍ट्र सरकार इस मामले में सबीआइ की आहट सुनकार घबरा गयी है। महाराष्‍ट्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर सीबीआई का जुरिडिक्‍शन वापस ले लिया है। सवाल यह है कि क्‍या महाराष्‍ट्र सरकार  को यह अधिकार है ऐसा करने का।

 

हंसा जो मेन एजेंसी थी उसकी रिपोर्ट जो छुपायी जा रही थी, उसकी रिपोर्ट में रिपब्लिक टीवी का नाम नहीं था। हंसा ही असल में टीआरपी मामले में कम्‍पलेनेंट है। उसने तीन मिडिया कंपनियों का नाम लिया है जिसपर टीआपी चुराने का आरोप है। मुंबई पुलिस उसकी जगह रिपब्‍लिक टीवी को पकड़ रही है, जिसका आरोप पत्र में नाम ही नहीं है।

हंसा पर कोई तो दवाब पड़ा कि हंसा कोर्ट गया और कोर्ट से गुहार की अर्जी लगाई कि अर्नव गोस्‍वामी यह रिर्पोट इस्‍तेमाल नहीं करे। अदालत ने कहा कि  अर्नव गोस्‍वामी यह रिपोर्ट यूज कर सकता है, क्‍योंकि यह उसकी इनोसेंस सावित करता है।

 

 

Uddhav Thakare, CM Maharashtra

 

यह मिडिया का काम इनफॉरमेशन एंड ब्रॉडका‍स्‍टिंग के अंतर्गत आता है क्‍योंकि यह काम पैन इंडिया चलता है। यह स्‍टेट के डोमेन में नहीं आता है। यह यूनियन लिस्‍ट में आता है। संविधान के सातवें सेड्यूल में इसका उल्‍लेख है।

 

महाराष्‍ट्र सरकार अर्नव गोस्‍वामी और रिपब्‍लिक टीवी को कई मुकदमों में एक साथ फसाना चाहती है इसका हाल ही भंडाफोड़ हो गया है। जिसका एफआई आर में नाम तक नहीं है उसको महाराष्‍ट्र सरकार फसाने का षडयंत्र कर रही थी। अब यह मामला सीबीआइ को चला गया तो स्‍टेट का डोमेन भी चला गया।

 

उसके जवाब में महाराष्‍ट्र सरकार ने कहा कि हम सीबीआइ का जुरिडिक्‍शन अपने राज्‍य में खत्‍म करते हैं। यह  अधिसूचना कल २१ अक्‍टूबर को जारी किया गया। इस नोटिफिकेशन में उल्‍लेख है कि साल १९९९ में प्रिवेंशन ऑफ करप्‍शन एक्‍ट के तहत इनवेस्‍टिगेट करने के लिए जो अनुमति दी गयी थी, वह अनुमति हम वापस लेते हैं।

 

प्रिवेंसन ऑफ करप्‍शन कंकरेंट लिस्‍ट में आता है यह यूनियन और स्‍टेट दोनो के जुरिडिक्‍शन में पड़ता है। दिल्‍ली स्‍पेशल पुलिस एस्‍टैब्‍लिसमेंट एक्‍ट १९४६ से सेक्‍शन ६ में प्रावधान है कि सीबीआइ किसी भी राज्‍य में एंटी करप्‍शन इनवेस्‍टिगेशन कर सकती है। उसको स्‍टेट से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

 

 

मनमोहन सिंह सरकार ने इस सेक्‍शन ६ में ६ए एमेंड किया था । जिसके अनुसार यदि राज्‍य सरकार सीबीआइ को अनुमति नहीं देती है तो वह इनवेस्‍टिगेशन नहीं कर सकती है। यह मामला होनरेवल सुपरीम कोर्ट गया और होनरेवल सुपरीम कोर्ट ने निर्णय दिय कि यह असंवैधानिक है। होनरेवल सुपरीम कोर्ट ने अमेंडमेंट को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि किसी भी हालत में किसी भी एजेंसी को क्रिमिनल इनवेस्‍टिगेशन के लिए नहीं रोका जा सकता है।

जहां तक कि टीआरपी की बात है, यह यूनियन का सबजेक्‍ट है। यूनियन के एजेंसी को स्‍वत: उस पर इनवेस्‍टिगेशन का राइट बनता है। स्‍टेट सरकारों को यह राइट ही नहीं है कि वह किसी भी सेंट्रल एजेंसी जैसे सीबीआइ, ईडी, एनआइए, एनसीबी को जांच से रोक सकती है।

महाराष्‍ट्र सरकार का रवैया ऐसा है जैसे वह केंद्र की होम मिनिस्‍टर या प्रधान मंत्री को किसी राज्‍य में घुसने के लिए राज्‍य सरकार से अनुमति मांगनी पड़े। यह राज्‍य  सरकार का बचकाना रवैया है। मुझे लगता है कि सरकार कुछ भी करले मगर जीत तो अर्नव गोस्‍वामी की ही होगी।

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