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| Mahatma Gandhi |
गांधी जी दुनिया के अकेले ऐसे राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने अहिंसा और व्रह्मचर्य को बतौर हथियार राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयोग किया। उन्होंने ऐसा क्यों किया और वे इसमें किस हद तक सफल रहे, इस पर दो तरह की राय है।
क्या गांधी जी भारत के सफलतम राजनेता थे?
अनेक विशेषज्ञों की राय यह है कि एक राजनेता के रूप में गांधी जी भारत के सबसे सफल राजनेता थे। वे जब तक जिंदा थे, कांग्रेस पार्टी के अंदर उनकी तूती बोलती थी। पार्टी के अंदर उनका एक क्षत्र राज था। जिसने भी उन्हें चुनौती दी उसको उन्होंने बाहर का रास्ता दिखा दिया या दीवार से लगा दिया । चाहे वे सुभाष चंद्र बोस हों या सरदार पटेल हों, या दामोदर विनायक सावरकर हों, और अन्य कोई तुर्रम खान। उनकी मर्जी के विना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता था। वे पार्टी के भीतर असिमित ताकत और रुतबा के मालिक थे। उनकी लोकप्रियता उस काल खंड में देश भर में सर्वाधिक थी । इस तरह वे वेशक अति सफल राजनेता थे।
दूसरा नैरेटिव भी है
मगर एक दूसरा नैरेटिव भी है। जिस पर आज मैं प्रकाश डालता हूं। उस हिसाब से देखें तो गांधी जी ना तो सफल महात्मा बन सके ना वे सफल राजनेता थे। गांधी की छवि सतही किस्म के फिल्मी गानो से बनायी गयी है। देदी हमे आजादी बिना खर्ग बिना ढाल। साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। महात्मा गांधी को झूठे और फरेब के सहारे महामानव के रूप में महिमामंडित किया गया है। और बाद में उस इमेज को भजाकर पिछले सत्तर सालों से भारत की जनता को मूर्ख बनाया गया और लूटा गया।
उनका नीजी और पारिवारिक जीवन भी स्नेहपूर्ण नहीं था। उनके परिवार में सामंजस्य का अभाव था। उनकी पत्नी और उनके पुत्र से उनके अच्छे संबंध नहीं थे। बतौर राजनेता उन्होंने बड़ी बड़ी गलती की है। आज इस देश में अनेक समस्याएं हैं, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक, जिसके जनक महात्मा गांधी, उनकी राजनीति, उनकी जिद, उनकी बेवकूफियां, उनके अटपटे प्रयोग ही तो थे। उन्होंने पूरे देश को और विशेषकर भारत के हिंदुओं को ठगा।
गांधी ने एक गरीब देहाती भारतीय ग्रामीण की अपनी छवि बनायी
इस ठगी के के लिए उन्होंने विचारपूर्वक एक रणनीति बनायी। उन्होंने देखा कि देश की जनता का अधिकांश गरीब आदमी है। इसलिए उन्होंने अपना बाहरी पहनावा ओढावा और जीवन पद्धति ऐसी अपनायी जिससे वे एक विशुद्ध गरीब देहाती ग्रामीन लगें। विशुद्ध एक सात्विक हिंदू भक्त दिखयी दें। मगर अंदर से ऐसा नहीं था।
उस समय भारत में रेलवे के चार वर्ग थे: एयर कंडीशन, प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी। इतने गरीब देश में, तीसरे वर्ग अर्थात थर्ड क्लास के टिकट का खर्च उठाना भी देश के लगभग आधे लोगों के लिए मुश्किल था।
गांधी जी तृतीय श्रेणी में यात्रा करते थे। तीसरी श्रेणी में बहुत अधिक भीड़ होती थी। मगर गांधी जी उस भीड़ भरे थर्ड क्लास में यात्रा नहीं करते थे। आप आश्चर्यचकित होंगे कि गान्धी जी तीसरी कक्षा में यात्रा करते जरूर थे, मगर उनके लिए पूरा कम्पार्टमेंट बुक किया जाता था। एक साठ सीट वाला कम्पार्टमेंट जहां कम से कम 80 से 90 व्यक्ति यात्रा कर सकते थे, उसमें वे अकेले यात्रा करते थे। और उनके जीवनी लेखक लिखते हैं कि गांधी जी गरीबों के प्रति दयालु थे। वे गाय का दूध पीते थे, क्योंकि यह सबसे सस्ता था जिसे सबसे गरीब आदमी भी इसे खरीद सकता था। स्वाभाविक रूप से, हर कोई, जब इसे सुनता है तो इस विचार की सराहना करता है। लेकिन शायद आप गांधी जी की बकरी के बारे में नहीं जानते।
उस बकरी को हर दिन लक्स टॉयलेट सोप से नहाया जाता था। उन दिनों उसके भोजन पर प्रति दिन 10 रुपये का खर्चा आता था। उन दिनों दस रुपये एक महीने के लिए स्कूल शिक्षक का वेतन था।
गांधी जी जो कपड़ा पहते थे वे कपड़े अपने जमाने के सबसे महगे कपड़े हुआ करते थे। उनकी धोती, तौनी (पलता तौलिया ), गंजी, अंडर वीयर, बेड शीट, आदि तमाम चीजें उस जमाने की बेहद मंगगे वस्त्र हुआ करते थे। उनके कपड़े, उनका घर, उनका खाना, सब कुछ आपको एक गरीब आदमी का किरदार को प्रस्तुत करता है । लेकिन अगर आप निष्पक्ष भाव से सब कुछ देख सकते हैं, तो आप आश्चर्यचकित होंगे, कि उनके इस्तेमाल में आने वाला सब कुछ महंगा था। उनपर इतना खर्च आता था जिसे एक महल में रहने वाले अमीर आदमी भी नहीं उठा सकता था।
लेकिन इन तथ्यों को छुपाया जाता है जब गाधी जी के बारे में पढाया जाता है। गांधी के आश्रम में एक बुद्धिमान महिला थी, सरोजनी नायडू जो बाद में उत्तर भारत की राज्यपाल बनीं। उसने एक बार मजाक में कहा कि महात्मा गांधी जी को गरीब दिखने के लिए हमें महगा खर्च करना पड़ता है। गांधी जी की गरीबी बहुत महगी है। द पोवर्टी ऑफ गांधी इज वेरी कॉस्टली।
इस रणनीति ने काम किया
लेकिन इस रणनीति ने काम किया। यह प्रयोग भारत की जनता को धोखा देने में सफल रहा। एक राजनेता के रूप में वे सबसे बड़े राजनेता बन गए, क्योंकि गरीब लोगों ने सोचा कि यह वही आदमी है जो हमारा असली प्रतिनिधि हो सकता है, क्योंकि वह एक गरीब आदमी की तरह झोपड़ी में रहता है, वह बकरी का दूध पीता है। वह वह थर्ड क्लास में रेलयात्रा करता है। लेकिन लोग नहीं जानते हैं, कि उनकी गरीबी को बनाए रखने के लिए बहुत खर्च करना पड़ता था।
गांधी ने यह विचार इसाइयों से प्राप्त किया था। वे पढ़ाई करने के लिए इंगलैंड गये और वे ईसाई मिशनरियों के संपर्क में आए और कई बार वे ईसाई धर्म में परिवर्तित होने की कगार पर पहुंच गये थे। मगर कुछ सोच कर अंतत: उन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया और हिंदु ही रह गये। यह उनको काम आया । राजनीति में वे हिंदुओं के तबके एकमात्र सबसे प्रभावशाली नेता थे। यदि आप उनके जीवन को विभाजित करते हैं, तो वे 90% ईसाई, 09% जैन, और मुश्किल से 1% हिंदू थे। उनको हिंदु धर्म का अल्प ज्ञान था। वे हमारे धर्मग्रंथों की दुषित व्याख्या करते रहे। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जिसका मैं बाद में जिक्र करुंगा।
वे गरीब आदमी की तरह जीवन यापन करता हुआ दिखते थे
लेकिन इस देश में बहुसंख्यक हिंदू हैं। हिंदुओं को प्रभावित करने के लिए, उन्होंने पूरी तरह से एक नई तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया, और वह था गरीब आदमी की तरह जीवन यापन करता हुआ दिखना। इसमें वे सफल रहे। हालांकि उन्होंने गरीवों के हित में रचनात्मक कुछ भी नहीं किया। लेकिन वे गरीब आदमी की तरह रहते थे। लोग उनकी पूजा करते थे।
मगर मेरा एक सवाल है कि अगर गरीबों के बीच एक गरीब आदमी की तरह रहना सहानुभूति दया और करुणा है तो फिर वास्तिविक सहानुभूति दया और करुणा क्या है?
यदि कोई बीमार है और एक चिकित्सक को उसका इलाज करने के लिए बुलाया जाता है तो क्या बीमार की मदद करने के लिए डाक्टर को बगल के दूसरे बिस्तर पर लेट जाना चाहिए। अगर कोई डाक्टर ऐसा करता है तो क्या उसे आप सही डाक्टर कहेंगे ? डॉक्टर को स्वस्थ रहना होगा ताकि वह बीमार लोगों की मदद कर सके।
अगर वह खुद सहानुभूति दिखाने के लिए खुद बीमार हो जाता है या बीमार
दिखने का अभिनय करता है तो इससे उसकी मदद नहीं होगी। यह बात जब मेरे जैसे कम अक्ल
को समझ में आती है तो गाधी जी जैसे महापुरुष महानेता महात्मा राष्ट्रपिता
अंहिंसा के पुजारी सदी के महानायक गांधी जी को यह बात क्यों समझ में नहीं आयी यह
बात मेरी समझ से ऊपर है।
गरीबों
की मदद के लिए गांधी जी ने कुछ भी रचनात्मक काम नहीं किया। वे गरीब होने का बस
नाटक करते रहे। उनके पास तब के अति अमीर उदयोगपति बिरला जी का ब्लैंक चेक हमेशा
पड़ा रहता था। गांधी जी ने अपने लिए एक भूकंप प्रूफ कुटिया बनवाया था।
अहिंसा और ब्रह्मचर्य
गांधी जी का जीवन दो प्रमुख अवधारणाओं अहिंसा और व्रह्मचर्य के ईद गीर्द घूमता है। ये दोनों अवधारणाएं भारत के लिए नयी नहीं हैं। भारत की सभ्यता संस्कृति में मानव जीवन को चार भागों में बांटा गया है : व्रह्मचर्य, गृहस्ति वानप्रस्थ और सन्यास ।
भारत में अहिंसा और व्रह्मचर्य का बहुत महत्व है मगर यह व्यक्तिगत जीवन के पहलू हैं। यह सार्वजनिक जीवन या राष्ट्रीय राजनीति जीवन का पहलू नहीं है। यह राज्य का अंग नहीं है। वशिष्ठ मुनि जैसे ब्रह्महर्षि आर और राजा जनक जैसे राजर्षि और अनेक मुनियों ने, साधुओं ने इसका पालन किया मगर यह राज्य का और राजनीति का अंग कभी नहीं बना। राजनीति में इसका पहला और आखरी प्रयोग राष्ट्रपिता अंहिंषा के पुजारी महात्मा मोहन दास करमचंद गांधी ने किया।
गाँधी और गाँधीवाद की छत्रछाया में तथा गांधी की गलतियों के कारण हमारी मातृभूमि भारत माता का विभाजन हुआ। हमारे लाखों भाइ बंधु मारे गए। लाखों माताओं, बहनों को बलात्कार सहने पड़े। करोड़ों बंधु विस्थापित हुए। करोड़ों धर्मभ्रष्ट हो कर इस्लाम स्वीकार करने पर विवश हुए।
72 वर्ष पहले हम पाकिस्तान, बांग्लादेश से निकाल दिए गए। 28 वर्ष पहले कश्मीर से निकाले गए। यह पापकर्म अभी तक बंद नहीं हुआ। कौन जिम्मेवार है इसके लिए ?
खिलाफत आंदोलन में हिंदुओं को धकेलना
आज से लगभग सौ साल पहले 17 अक्टूबर 2019 को गाँधी जी ने तुर्की के शुद्ध विदेशी, आक्रमणकारी, आततायी खलीफा की सत्ता को बचाने के लिए छेड़े गए ख़िलाफ़त आंदोलन में हिन्दुओं धकेल दिया। कांग्रेस और गाँधी की छवि के लिये यह वाहियात और बहुत हानिकारक होती अतः इस आंदोलन को कांग्रेस ने इतिहास में असहयोग आंदोलन लिखवाया। गाँधी जी ख़िलाफ़त आंदोलन की धुरी थे। गांधी ने हिंदुओं को आहवान किया वे खिलाफत आंदोलन में भाग लें। उन्होंने कहा कि ये अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन है। दर असल यह तुर्की के खलीफा जिसको अहमद कमाल पासा ने तुर्की की गद्दी से बेदखल किया था उसको पुनर्स्थापित करने का आंदोलन था। इसका अंग्रेजों के खिलाफ भारत की आजादी के आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था। मगर गांधी जी हिंदुओं को यह झांसा देने में सफल रहे कि वह खिलाफत आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई है। यह अंग्रेजों को हटाने का अवसर है। मगर ऐसा था नहीं।
गाँधीजी ने ही ख़िलाफ़त को वैचारिक आधार दिया। उनके अनुसार "ख़िलाफ़त आंदोलन किसी व्यक्ति पर केंद्रित न हो कर एक ऐसे विचार पर केंद्रित है जो एक साथ लौकिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक है। यदि तुर्क अपनी रक्षा नहीं कर सकते, यदि संसार के मुसलमान अपनी विचार-शक्ति और सक्रिय सहानुभूति द्वारा तुर्कों का साथ नहीं दे सकते तो दोनों कष्ट उठाएंगे। ........ वीरधर्म यह है कि इस संकट की घडी में तुर्कों का साथ दिया जाये" {यंग इण्डिया 4-5-1921, } ........"यदि हिंदू चाहते हैं कि मुसलमानों के साथ शाश्वत मैत्री स्थापित हो जाये तो उन्हें इस्लाम के सम्मान की रक्षा के यज्ञ में अपने आपको उनके साथ होम कर देना चाहिए" { इण्डिया एन्ड पाकिस्तान वी.बी. कुलकर्णी }
यह आंदोलन असफल हो गया। इसका भयानक परिणाम मोपला विद्रोह के रूप में केरल के हिंदुओं को भोगना पड़ा। और गांधी जी मूक दर्शक बनकर यह बर्बरता देखते रहे।
तुर्की के राष्ट्रवादी नेता मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने 3 मार्च 1924 को ख़िलाफ़त का अंत कर दिया। इस प्रकार, भारत का ख़िलाफ़त आंदोलन भी अपने आप समाप्त हो जाना चाहिए था मगर ऐसा नहीं हुआ। केरल के ख़िलाफ़त के मुल्ला नेताओं ने स्थानीय मोपला मुसलमानों में प्रचार किया कि ख़िलाफ़त आंदोलन सफल हो गया है और समय आ गया है कि सभी काफ़िरों को समाप्त कर दारुल-इस्लाम की स्थापना कर दी जाये।
इस जिहाद की भयंकरता का अनुमान इससे लगाएं कि इसमें 2,266 दंगाई पुलिस द्वारा मारे गए। 1,615 घायल हुए। 5,688 बंदी बनाये गए। 38,656 ने आत्मसमर्पण किया। 1,500 हिन्दुओं की हत्या हुई। 20,000 हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। अनगिनत हिंदू स्त्रियों पर बलात्कार हुए।
मालाबार की हिन्दू महिलाओं द्वारा तत्कालीन वायसराय की पत्नी लेडी रीडिंग को दिए गए प्रतिवेदन के शब्द देखें "हमारे जिन परिजनों ने अपने पूर्वजों का धर्म त्यागने से इंकार कर दिया, उनके क्षत-विक्षत परन्तु बहुधा अधमरे शरीरों से कुँए और तालाब पट गये। गर्भवती महिलाएं खंड-खंड में काट डाली गयीं। कैसा वीभत्स दृश्य था। गर्भ से अजन्मे शिशुओं के लोथड़े माताओं के कष्ट-विक्षत शवों से बाहर लटक रहे थे। हमारे मंदिरों को अपवित्र को अपवित्र करके धराशायी कर दिया गया। देवी-देवताओं की मूर्तियों को चूर-चूर कर फेंक दिया गया। फूल मालाओं के स्थान पर उनके गले में गौमांस के लोथड़े लटका दिए गये........{गाँधी एंड एनार्की, शंकर नायर }
मगर गाँधी ने मोपला दंगाइयों के लिए कहा "वे धर्मभीरु लोग हैं, जो उसके लिये युद्ध कर रहे हैं जो उनके विचार में धर्म है और उस रीति से युद्ध कर रहे हैं जो उनके विचार में धर्म सम्मत है" {पाकिस्तान बी.आर. अम्बेडकर }
दिल्ली में 23 नवंबर, 1919 को ‘अखिल भारतीय खिलाफत कांफ्रेंस’ हुई जिसकी अध्यक्षता गांधी जी ने की थी। इसमें आंदोलन की योजना बनी जिसमें सरकार द्वारा दी गई उपाधियां लौटाने, सरकारी नौकरियों का बहिष्कार करने, टैक्स न देने का आह्वान किया गया। ये आह्वान इतिहास में गाँधी जी और कांग्रेस के देश की स्वतंत्रता के योगदान की तरह पढ़ाये जाते हैं जबकि यह तुर्की में इस्लामी ख़िलाफ़त के लिए गाँधी जी और कांग्रेस का योगदान था।
गाँधी जी ने इस आंदोलन को शुरू करते समय तुर्कों की ख़िलाफ़त अरब और अन्य इस्लामी देशों की चिंता नहीं की। अरबी मुसलमान स्वयं तुर्की ख़लीफ़ा की खाट खड़ी करना चाहते थे और और वे इसमें सफल भी रहे। तुर्की ख़िलाफ़त सामान्य इस्लामी व्यवहार के अनुसार चलती थी अर्थात गैरमुस्लिमों के लिये भयानक रूप से निर्दयी और क्रूर थी। इसने 1915 में आर्मेनिया के पंद्रह लाख ईसाइयों अर्थात काफ़िरों को बुरी तरह मार डाला।
गांधी जी के व्रह्मचर्य पर प्रयोग
भारतीय समाज में व्यक्ति शिक्षण काल में व्रह्मचर्य का पालन करते रहे हैं। महर्षि वशिष्ठ और महर्षि विश्वाणमित्र राजा दिलिप मांधाता, ऋतुपर्ण, राजा सगर, भगवान राम, भगवान कृष्ण आदि ने जीवन का शिक्षण काल बतौर व्रह्मचारी जिया था। बाद में वे गृहस्थ हुए।
क्या आपने इसमें से किसी के व्रह्मचर्य के प्रयोग के बारे में सुना या पढा है? और इसकी जरूरत क्या है, खासकर उस राजनेता के लिए जिसपर एक गुलाम राष्ट्र को आजादी दिलाने का जिम्मा हो ?
व्रह्मचर्य के प्रयोग राष्ट्र और राजनीति के संदर्भ में पहली बार महात्मा गांधी ने किया। इससे आप उनकी मानसिकता को समझ सकते हैं। महात्मा गांधी ने न सिर्फ स्वयं व्रह्मचर्य धारण किया बल्कि अपने अनेक साथियों, उनकी बहनों, पुत्रियों को भी धारण करवाया। फिर व्रह्मचर्य को परखने के लिए वे किशारियों, तरुनियों, को वे अपने साथ एक ही विस्तर पर नग्न सुलाते थे। वे परस्पर नग्न होकर मालिस करते और कराते थे। बे उन तरुनियों और महिलाओं के साथ नग्न होकर स्नान करते थे। अपने व्रह्मचर्य की परीक्षा के लिए वे इस तरह के अटपटे प्रयोग करते थे। जिसे वे सत्य के साथ प्रयोग कहते थे। ये सारे प्रयोग स्वयं गांधी साहित्य में संकलित हैं।
सरदार वल्लभ भाई पटेल, और अन्य कई इसका विरोध करते रहे। गांधी जी सत्य का प्रयोग कहकर अपना बचाव करते रहे। गांधी के सत्य का प्रयोग महिलाओं के साथ नग्न होकर सोने, नहाने, मालिस करने और करवाने के अलावा कुछ नहीं था - जहां तक मेरी समझ में आता है।
गांधी जी ने स्वेक्षा से व्रह्मचर्य का नितांत निजी अर्थ निकाला। इसी तरह अहिंसा पर भी उनकी धारणा उसके मूल अर्थ से विपरीत थी। हमारे शास्त्र में अहिंसा का अर्थ किसी के सामने झुकना नहीं है। गांधी ताउम्र मुसलमान को तुष्टीकरण के लिए झुकते रहे।
गांधी गीता के जिस स्लोक अहिंसा परमो धर्म: से अहिंशा की महिमा प्रतिपादित करते हैं, वह वस्तुत: गीता में कहीं उपलब्ध ही नहीं है। इसका कहीं कोई आधार नहीं है। गीता में तो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जिस कर्तव्य पालन का उपदेश किया है उसमें अहिंसा परमो धर्म: का कोई जिक्र तक नहीं है।
गीता में तो भगवान कहते हैं कि कर्म किए जा और फल की इच्छा मत कर। वह तुम्हारे हाथ में नहीं है। उसे भगवान को तय करने दो। गांधी जी ने भगवान कृष्ण के उपदेश की भ्रामक व्याख्या की। उसे जबरदस्ती अहिंसा से जोर दिया। यह भी एक प्रपंच है। यह फासिज्म है। गांधी जी ने इसे प्रयोग में लाया।
यदि गांधी जी इसे अपने व्यतक्तिगत जीवन तक सिमित रखते तो सहा जा सकता था। मगर जिस तरह उन्होंने राजनीति में इसका प्रयोग किया उसका दुष्परिणाम हिंदु धर्म, और भारत राष्ट्र के लिये भयानक हुआ।
गांधी की निर्मिति
आदमी का बाल काल किशोर अवस्था और उसके तरुण जीवन पर प्रभाव डालता है। कुछ साल पहले सॉथबीज़ {Sotheby's} ने "गाँधी जी के साउथ अफ़्रीक़ा में रहने वाले उनके प्रगाढ़ मित्र हरमन कलेन बाख़ को लिखे गए उनके कई पत्र" नीलाम किए।
यह बहुत उत्पाती विषय था और इस पर बड़ा वबाल होने की आशंका थी अतः उन्होंने इसके प्रमाण भी एकत्र किये। यह प्रमाण गाँधी जी के स्वयं हरमन कलेन बाख़ को लिखे गए पत्रों से मिलते हैं। हरमन कलेन बाख़ ने भी अपने भाई को लिखे पत्रों में खुद को गाँधी जी का "अंतरंग मित्र" कह कर उल्लेख किया है। कलेन बाख़ अत्यंत धनी, तगड़े बॉडीबिल्डर और सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी थे। यह मित्रता इतनी प्रगाढ़ थी कि हरमन कलेन बाख़ ने ही गाँधी जी को 1100 एकड़ भूमि निःशुल्क दी। जिस पर उन्होंने टॉलस्टॉय फार्म बनाया। आइये ज्ञात और लिखित प्रमाणों द्वारा पुष्ट इस पुस्तक के विवास्पद प्रसंगों को जाना जाये।
इन पत्रों को तत्कालीन भारत सरकार ने खरीद लिया और संभवत: नष्ट कर दिया। कांग्रेस सरकार को गांधी जी के उन पत्रों को नष्ट करने की क्या आवश्यकता पड़ी। कांग्रेस के लिए गाधी एक ब्रांड है जिसे बेचकर वे जनता से बोट मांगते हैं और अपनी सत्ता को कायम रखते हैं। यह पत्र सार्वजनिक होने पर कांग्रस सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकता था। मगर ये पत्र नेट पर उपलब्ध हैं , आप पढ सकते हैं।
गांधी और बॉडी बिल्डर क्लेन बाघ साउथ अफ्रीका के साउथ बेस में ४ सोलों तक एक ही घर में रहते थे। इस मैत्री प्रसंग के बारे में जोज़ेफ़ लेलीवेल्ड ने अपनी पुस्तक The Great Soul Mahatma Gandhi, The Founder Of Modern India And His Struggle में लिखा है कि : गांधी और जर्मन यहूदी बॉडी बिल्डर क्लेन बाघ के बीच यौन संबंध थे। वर्ष 1909 में गांधी जी ने लंडन से क्लेडन बाघ को एक पत्र लिखा था, जिसमें गाधी क्लेन बाघ के साथ बिताए अपने पुराने दिनों को याद करते हुए लिखते हैं कि तुम किस तरह हमारे शरीर को अपने प्रेम पास में ले लेते थे और इसमें हमें और तुम्हें दोनो को कितनी मानसिक शांति मिलती थी। यह हमारे लिए गुलामी से मुक्ति का एक एहसास होता था।
गांधी जी और क्लेन बाघ एक ही कमरे में सोते थे। उनके विस्तर अगल बगल में होते थे। गांधी क्लेन बाध को अपर हाउस कहते थे और क्लेन बाध गांधी को लोअर हाउस कहकर पुकारते थे। ऐसे अजीब संवोधन इतिहास में कहीं नहीं मिलते हैं। जोजफ लैली लिखते हैं कि जर्मन यहूदी बॉडी बिल्डर क्लेन बाघ और गांधी पति पत्नी जैसे संबंध में रहते थे।
क्या गांधी असफल रहे ?
वह एक महत्वहपूर्ण कालखंड था जब गांधी राजनीति में आए । समाज उनसे क्या अपेक्षा करता था। क्या वे उन अपेक्षाओं पर खरे उतरे? गांधी क्यों असफल रहे ? यह उनकी पृष्ठभूमि पर नजर डालने से समझ आता है।
गांधी की छवि सतही किस्म के फिल्मीक गानो से बनायी गयी है। सच यह है कि साबरमती के अश्रम में सब कुछ ठीक ठाक नहीं था। कस्तूरबा वहां हाहाकार मचाके रखती थी। और उसके लिए पूरी तरह महात्मा गांधी जिम्मेवार थे। गांधी की अटपटटी हरकतों से कस्तू्रबा परेशान रहती थी। गांधी और कस्तूवरबा का दाम्पत्य जीवन झंझटों से भरा था। उसका कारण महात्मा गांधी की अटपटी सोच थी। वे कहते थे कि संभोग पाप है। स्त्री-पुरुष के बीच शारिरिक संबंध त्याज्य। है। पति पत्नी को भाई बहन की तरह रहना चाहिए। मगर गांधी का अपना पूरा जीवन व्रह्मचर्य के बजाय सेक्स संवंधी प्रयोगों के ईद गीर्द ही घूमता रहा।
ब्रह्मचर्य के प्रयोग और परीक्षा
३१ वर्ष की आयू में गांधी जी ने अपनी पत्नी के साथ व्रह्मचर्य का संकल्प ले लिया। इसके बावजूद वे एक संतान के पिता बन गये। ४० वर्ष की आयू में वे अपने सबसे अच्छे दोस्त हेनरी पोलर की पत्नी मिली पोलर से एक विशिष्ट आत्मीअयता महसूस करने लगे। ४१ वर्ष की आयू में वे १९ वर्षीय मौड नामक लड़की से प्रभवित हो गये और वे उसे अपने आश्रम फिनिक्स में ले आए। ४८ वर्ष की आयू में गांधी जी सुंदर नीली आखों वाली २२ साल की डेनिस लड़की स्टार फयरिेंग के मोहपास में पड़ गये। उसे माइ डियर हनी चाइल्ड कहकर पुकारने लगे। माइडियर हनी चाइल्ड़ आज रात मुझे सोते समय तुम्हारी बहुत याद आयी, ऐसा उन्होंने स्टार फयरिेंग को लिखे एक पत्र में लिखा। ५१ वर्ष की आयू में गांधी जी रवींद्र नाथ ठाकुर की बहन की पुत्री सरला देवी चौधरी के प्रेम में पड़ गये। वे लाहोर में उनकी कोठी में ठहरे। उसके पति रामभुज चौधरी लाहौर के आर्यसमाज के नेता थे और उस समय जेल में थे। उनकी पत्नी सरला देवी को गांधी जी ने अपनी आध्यकत्मिक पत्नी माना। वे कहते थे कि सरला देवी उनके सपनो में आती हैं। लाहौर में इस पर काफी विवाद मचा। ५६ वर्ष की आयू में गांधी जी ३५ वर्ष की मर्लिन स्लेट के प्रेम में पड़ जाते हैं और उसे अपनी मीरा बना देते हैं। ६० वर्ष की आयू में गांधी जी १८ साल की प्रेमा को प्रेम करने लगते हैं। ६४ वर्ष की आयू में गांधी जी २४ साल की अमेरिकन लड़की नीला सिको के प्रेम में आवेशित हो जाते हैं। ६५ वर्ष की आयू में वे ३५ साल की जर्मन महिला मग्रेट स्पीगल को कपड़े पहनाना सिखाते हैं।
६९ वर्ष की आयू में गांधी जी सुशीला नायर से प्राकृतिक चिकित्सा के नाम पर नग्न होकर मालिस कराते हैं। उसके साथ नंगा स्नान भी करते हैं। यही सुशीला नायर बाद में गांधी द्वारा प्राथमिकता नहीं मिलने पर आश्रम में हंगामा खड़ा कर देती है। गांधी की पोती मनु बहन ने अपनी डायरी में इन चीजों का जिक्र विस्तांर से किया है।
व्रह्मचर्य के प्रयोग में फंसी उन महिलाओं के बीच जबरदस्त जलन का वातवरण रहता था। सरदार वल्लमभ भाई पटेल ने २५ जनवरी १९४० को गांधी को एक पत्र लिखकर कहा कि कृपा करके आप यह प्रयोग रोक दें। पटेल ने इसे गांधी का भयंकर भूल बताया था। इस कारण उनके मन में पटेल के प्रति गहरी पीड़ा थी। जानकारों का मानना है कि इसी के कारण गांधी ने पटेल को प्रधानमत्री नहीं बनने दिया। गांधी ने इन व्रह्मचर्य के प्रयोग को सत्य का प्रयोग बताया। ऐसा प्रयोग विश्व इतिहास में दूसरा नहीं दिखता है।
७२ वर्ष की आयू में गांधी जी अपना व्रह्मचर्य जांच करने के लिए बाल विधवा लीलावती हसर, नग्न होकर सोते हैं कि क्या अभी भी उनके अंदर काम वासना शेष है। वे पटियाला के मैडम अबदुल सलाम, कपूरथला राज परिवार की राजकुमारी अमृत कौर, जय प्रकाश नारायन की पत्नी प्रभावती जैसी अनेक महिलाओं के साथ इसी तरह का प्रयोग करते हैं। ७७ वर्ष की आयू में गांधी जी अपनी पोती मनु और पौत्र वधु आभा के साथ नग्न स्थिति में सोते हैं। मनु बापू के चचेरे भाई की पोती थीं और आभा रिश्ते के भाई की पौत्र वधू थीं। यह सब गांधी साहित्य में लिखित है।
पाठक अंदाजा कर सकते हैं कि गांधी जी जिनसे देश को यह आशा थी कि वे देश हित में कुछ प्रोडक्टिव करेंगे उनका ज्यादा समय व्रह्मचर्य और अहिंसा पर उनके नीजी प्रयोग में बीत गया जिसका इस देश बहुत नुकसान उठाना पड़ा।


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