Header Ads Widget

 Textile Post

Uddhav Thackeray Completes One year In Maharashtra

Uddhav Thackeray, C M, Maharashtra



आज २८ नवंबर २०२० है। उद्धव ठाकरे को मुख्‍य मंत्री पद की शपथ लिए पूरे एक साल हो गया। भाजपा से अपने संबंध तोड़कर और एनसीपी तथा कांग्रेस के सहयोग से शिवसेना ने उद्धब ठाकरे के नेतृत्‍व में सरकार का गठन किया था। इस एक साल में उद्धव ठाकरे ने बतौर मुख्‍य मंत्री और बतौर शिवसेना प्रमुख क्‍या पाया है और क्‍या खोया है आज इसके आकलन करने का समय आ गया है।

 

उद्धब ठाकरे की एक साल की उपलब्‍धियां

ऐसा लगता है कि उन्‍होंने पाया कुछ नहीं मगर खोया बहुत कुछ है। शिवसेना एक ब्रांड हुआ करता था, जो खत्‍म हो गया। इसको अपने खून पसीने की मिहनत से, सालों साल के जद्दोजहद से बाला साहेब ठाकरे ने खड़ा किया था। वो ब्रांड खत्‍म हो गया। बेशक सत्‍ता अभी भी उद्धब ठाकरे के हाथ में है। यह सत्‍ता भी ऐसे गठजोड़ पर टिकी है कि जरा सी हिली तो हाथ से गयी। शिवसेना नाम मराठी स्‍मिता से निकला है। यह वह स्‍मिता है जो शिवाजी महाराज मानते थे।

 

लैंडमार्क १९८५ और २०१४

 

शिवसेना को जो मिला था वह २०१४ में मिला था। मगर वे समझ नहीं पाए कि उनको क्‍या मिला है। १९६६ में शिवसेना का आरंभ हो गया। उसके बाद वह पूरे महाराष्‍ट्र में पहुची नहीं थी। वह मुंबई, ठाने, पूणे, आदि तक ही सिमित थी। १९८५ में शिवसेना ने मुंबई महापालिका पर कब्‍जा किया। उसके अगले ५ सालों में शिवसेना महाराष्‍ट्र में फैलने लगी। उसका कारण शरद पवार थे। पवार ने अपनी अलग पा‍र्टी को कांग्रेस में मर्ज किया। इससे एक राजनैतिक वैक्‍युम बना। उसमें कोई लीडर नहीं था और कोई पा‍र्टी नहीं थी जो पैन महाराष्‍ट्र हो। लोगों को गैर कांग्रेसी ऑल महाराष्‍ट्र का एक लीडर चाहिए था। वो तो शरद पवार बने थे मगर उनको चीफ मिनिस्‍टर बनने की इतनी जल्‍दी थी कि वे वापस कांग्रेस में चले गये। वे अपने सभी आमदारों के साथ कांग्रेस में चले गये। उन्‍होंने जो एंटी कांग्रस वोट बैंक जमा किया था, उसको लेकर वे जा नहीं सकते थे। उस बोट बैंक को कोई लीडर चाहिए था। उस वैक्‍यूम को शिवसेना ने भर दिया और वह ऑल महाराष्‍ट्र पा‍र्टी बन गयी। बाला साहेब ठाकरे महाराष्‍ट्र के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे।

शिवसेना भाजपा एलाएंस

उस समय महाराष्‍ट्र में भाजपा के नेता प्रमोद महाजन और गोपी नाथ मुंडे थे। उन्‍होंने शिवसेना से अलायंस कर लिया। अलायंस बन गयी। दोनो पार्टियां संयुक्‍त रूप से अच्‍छा परफार्म करने लगी। दोनों लगभग आधी आधी कंसटीचुएंसीयां बांट कर लड़ने लगे। इसमें शिवसेना का बोटबैंक मेजर बोटबैंक था मगर इस अलायंस के कारण शिवसेना यह‍ ऐसेसमेंट ही नहीं कर पायी कि वह कहां कितनी मजबूत है।

 

२०१४ में शिवसेना को अपने बोट बैंक का आंकलन हुआ

 

१९८९ से २०१४ तक इनको पता ही नहीं चला कि उनकी जगह कहां है। २०१४ में बीजेपी ने अलायंस तोड़ी इसमें शिवसेना को फायदा था। इससे शिवसेना को हर जगह लड़नी पड़ी। उसको पहली बार पता चला कि किस कंसचीचुएंसी में उनकी क्‍या ताकत है। २०१४ में शिवसेना के ६३ आमदार (एमएलए) चुनकर आए। इसके अलावा ३६ ऐसी कंसचीचुएंसीयां थीं जहां जहां वे दो, तीन, चार हजार मतों से हारे थे। उनको कैंमपेन करने का समय नहीं मिला था। अगर एलायंस एक आध महीने पहले टूटती और शिवसेना पूरी ताकत से चुनाव प्रचार कर पाती तो कम से कम उसे तीस से पैंतीस सीटें और मिलतीं। शिवसेना नब्‍बे से सौ एमएलए चुनकर ला सकते थे। इसमें अगर उन कंसचीचुएंसीयों को भी जोड़े जहां शिवसेन तीसरे नम्‍बर पर थी तो कुल १९८ ऐसी कंसचीचुएंसी बनती थी, जहां शिवसेना की अच्‍छी पकड़ थी। 

 

बीजेपी ने अपने मतलब से एलायंस तोड़ा मगर इससे यह सिद्ध हो गया कि शिवसेना का बोट बैंक महाराष्‍ट्र में कितनी मजबूत और कंसोलिडेटेड है। शिवसेना को तब पता चला कि किस कंसचीचुएंसी में उसकी क्‍या ताकत है।

शिवसेना और देवेंद्र फड़नवीस

शिवसेना को किसी भी हालत में देवेंद्र फड़नवीस की सरकार से बाहर नहीं आना चाहिए था। अगर वे साथ साथ सरकार नहीं चलाने की दशा में थे तो भी उनके लिए यह बेहतर था कि देवेंद्र फड़नवीस की सरकार को बाहर से ही समर्थन दे देते। इससे शिवसेना की इमेज ऐसी बनती कि इनको सत्‍ता का मोह नहीं है। इसका लाभ उन्‍हें भविष्‍य में होता।

 

अगर आप सत्‍ता में नहीं हैं तो आपके लोग मिनिस्‍टर भले न बने मगर सरकार तो आपकी मेहरबानी पर चलती। उसे ये चाहिए था कि वे सारा समय अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्‍यान केंद्रित करते। फिर उन्‍हें २०१९ में किसी के साथ जाने की जरूरत नहीं थी। वह अपनी तकत से सत्‍ता तक पहुंच सकती थी। यह साफ लगता है कि आज शिवसेना में कोई रननीतिकार नहीं है। आज एक आम आदमी भी समझ सकता है कि शिवसेना ने क्‍या गवाया।

 

शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाकर अपना आधार खोया

शिवसेना ने भाजपा से संबंध तोड़ा, कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया और वह सत्‍ता में आ गयी यह फैसला गलत था। उसने अपना ब्रांड वैल्‍यू खो दिया। जिनके खिलाफ आपकी पा‍र्टी बनी है, उसी से आपने हाथ मिलाया। पवार की पार्टी भी तो कांग्रेस ही है। महाराष्‍ट्र में कांग्रेस के दो धड़े हैं।

 

आज आंध्र पदेश में चंद्रशेखर राव की स्थिति देखे सकते हैं। यूपी में अखिलेश यादव की स्थिति देख सकते हैं। अगर अखिलेश उस समय कांग्रेस के साथ नहीं जाते तो उनकी इतनी बुरी हालत नहीं होती। शिवसेना ने कांग्रेस के साथ जाकर वही गलती की है। कांग्रेस की छवि इसदेश में राष्ट्र विरोधी, मुसलमान परस्त, और आकंठ भ्रष्‍टाचार में डूबी पार्टी की है। किसी भी राजनैतिक पार्टी के लिए उसके पास एक लौंगटर्म प्रोग्राम होना चाहिए। पौलिटिक्‍स में टिकाउ होना जरूरी होता है। आज शिवसेना में रणनीतिकार का अभाव है।

शिवसेना का भविष्‍य

१९७७ में जनता पा‍र्टी बनी थी। आज उसका कहीं नाम नहीं है। १९६६ में शिवसेना बनी । आज उसकी कोई ब्रांड वैल्‍यू नहीं बची। बाला साहेब के इतने सालों की मिहनत को सत्‍ता के मोह में उद्धव ठाकरे ने मिट्टी में मिला दिया। हो सकता है कि वे अपना ५ सालों का कार्यकाल भी पूरा कर लें मगर शिवसेना को अपनी खोयी जमीन वापस लेना तो मुश्‍किल काम लगता है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ