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ARNAB GOSWAMI, The Modi of Journalism

ARNAB GOSWAMI. CEO. Repubic World


मुंबई: शरद पवार, उद्धव ठाकरे और सोनियां गांधी ने अर्नब गोस्‍वामी को पत्रकारिता का मोदी बना दिया। आज वे जेल से रिहा कर दिए गये। मैं खुश हूं, सारा देश खुश है। भारतीय जो विदेशों में रहते हैं, वे भी खुश हैं। सबको बधाइ हो।   

सत्‍ता के मद में अंधे होकर कोई सरकार किसी के बोलने की आजादी पर लगाम न लगा पाए, इसकी लड़ाई में सबों को शामिल होना चाहिए। इसका रास्‍ता निकलना चाहिए। इसके लिए जो जहां हैं वहीं से आवाज उठाइए। ये आवाज सुनी जाएगी।

अर्नब गोस्‍वामी आज जेल से रिहा, स्‍वागत में अपार भीड़

अर्नब गोस्‍वामी आज जेल से रिहा कर दिए गये। इससे पूरे देश में खुशी की एक लहर दौड़ गयी। अर्नव का इस मौके पर स्‍वागत करने के लिए जो हुजूम जुटी उससे लगा कि अर्नव को लोग बेइंतहा चाहते हैं, पसंद करते हैं। अर्नब गोस्‍वामी आज मीडिया का मोदी बन गया। शरद पवाद और उद्धव ठाकरे ने इसकी बुनियाद रख दी।

 

अर्नब गोस्‍वामी के तलोजा जेल से निकलते हुए जिस तरह पब्‍लिक उसके स्‍वागत के लिए खड़ी थी, वह दिखाता है कि कितनी जनता उनके साथ उनके समर्थन में खड़ी है। यह लड़ाई की शुरुआत है यह अंत नहीं है।

वेंडेटा पॉलिटिक्‍स में अर्नब गोस्‍वामी की गिरफ्तारी हुयी थी

जिस तरह अलोकतांत्रिक तरीके से वेंडेटा पॉलिटिक्‍स में अर्नब गोस्‍वामी की गिरफ्तारी हुयी, कानून को ताक पर रख दिया गया, इस पर हम सबको ध्‍यान देने की जरूरत है।

 

यह मामला सर्वोच्‍च न्‍यायालय  ने स्‍वत: संज्ञान नहीं लिया। हरीश साल्‍वे अर्नब के लिए मुंबई हाइ कोर्ट में भी खड़े हुए,  सुपरीम कोर्ट में भी खड़े हुए। लेकिन मूल बात यह है कि इतने बड़े पत्रकार, इतने बड़े चैनेल के सीईओ, को भी ८ दिन कोरेंटीन सेंटर और जेल में गुजारने पड़े। उसने तो दुनियां के सबसे बड़े वकीलों में से एक हरीश साल्‍वे को हायर कर लिया। तब भी इतनी मसक्‍कत करनी पड़ी।  तो ऐसे में एक साधारण पत्रकार या ब्‍लोगर को सरकार लपेटे में ले ले तो वह क्‍या करेगा ?




अर्नब गोस्‍वामी तो अपनी लड़ाइ लड़ लेंगे

 

अर्नब गोस्‍वामी तो अपनी लड़ाइ लड़ लेंगे। लेकिन अगर कोई कमजोर है, उनका क्‍या होगा ? क्‍या इस देश में कोई ऐसा तंत्र बन पाएगा, क्‍या न्‍यायालय की दृष्टि इस तरफ जाएगी, कि अदालत में किसी अर्नब गोस्‍वामी के लिए किसी हरीश साल्‍वे को खड़ा होने की आवश्‍यकता न हो। 

 

इस मामले में जिस तरह का वर्ताव किया गया, उस पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय की नज़र कब जाएगी, यह भी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न  है। यह लोकतंत्र की मजबूती के प्रमाण नहीं है।

अर्नब गोस्‍वामी की गिरफ्तारी के विरोध में  प्रदर्शन

जिस दिन अर्नब गोस्‍वामी की गिरफ्तारी हुयी है, उस दिन से भारत के विभिन्‍न शहरों में और दुनियां के विभिन्‍न शाहरों में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। दिल्‍ली, मुंबई, कोलकाता, मद्रास, बंगलूरू, पटना,खनऊ आदि भारतीय शहरों  के अलावा लंडन, न्‍यूआर्क वाशिंगटन सहित यूरोप और आस्‍ट्रेलिया के कई शहरों में अर्नब गोस्‍वामी की रिहाई के लिए प्रदर्शन हुए। यह अपने आप में अभूतपूर्व है। इससे पहले किसी पत्रकार के पक्ष में लोग इस तरह सड़कों पर नहीं आए। 

 

यह लोकतंत्र के मजबूत होने का प्रमाण नहीं

जरूरत है कि एक ऐसा इको सिस्‍टम बने कि कोई सरकार इस तरह की हरकत भविष्‍य में न कर सके। अर्नब गोस्‍वामी के पास तो इतना बड़ा चैनेल है, इतना बड़ा वकील है, उसके पास संसाधन की कोई कमी नहीं है। मगर सामान्‍य पत्रकार ऐसी हालत में क्‍या कर पाएगा ? यह लोकतंत्र के मजबूत होने का प्रमाण नहीं है।

 

देश के किसी राज्‍य में यदि कोई राज्‍य सरकार निरंकुश हो जाय, पुलिस निरंकुश हो जाय, तो किसी पत्रकार या सामान्‍य आदमी के लिए न्‍याय पाने को क्‍या रास्‍ता है ? क्या कोइ न्‍यायालय या सर्वोच्‍च न्‍यायालय इस मामले में स्‍वत: संज्ञान लेगा ? और क्‍या ऐसा तंत्र तैयार नहीं हो सकता कि अदालत स्‍वयं संज्ञान ले ? इस बात को लेकर हमे चिंता और चर्चा करने की जरूरत है।  

 

 

यदि शासन और सत्‍ता आम आदमी या आम पत्रकार को मदांध होकर दबाने की कोशिश करे तो उसके पास उबरने का उपाय क्‍या है ? वह कैसे न्‍याय प्राप्‍त कर सकता है। इसके लिए हमे खड़ा होना चाहिए, बोलना चाहिए, लिखना चाहिए, जो जहां है उसे वहीं से आवाज उठाना चाहिए। हमें अभिव्‍यक्ति की आजादी के लिए खड़े होने का समय आ गया है। एक सभ्‍य विमर्स की जरूरत है।

 

कोइ राज्‍य सरकार यदि सत्‍ता के मद में अंधी होकर अगर किसी के खिलाफ क्रूर, अत्‍याचारी, दम‍नकार, शोषणकारी व्‍यवहार करती है, तो उसको किस तरह न्‍याय मिले इसका एक रास्‍ता तैयार होना चाहिए। लोकतंत्र इसी से मजबूत होगा।  

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