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| #Sukhvir-Badal |
पंजाब में अमरेंदर और बादल में लड़ाई तेज हो गयी है। आज सुखबीर बादल पर हमला हुआ। उनकी जान भी जा सकती थी। बच गये।
जलालाबाद में शिरोमणि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल की गाड़ी पर हमला करने के मामले में कांग्रेस के विधायक और उनके बेटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. शिअद प्रमुख के साथ हुई जलालाबाद की घटना के सिलसिले में कांग्रेस विधायक रामिंदर सिंह आवला और उनके बेटे समेत 60 अन्य अज्ञात आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. पंजाब के फाजिल्का जिले के जलालाबाद नगर निकाय के चुनाव के लिए नामांकन दायर करने के दौरान मंगलवार को कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष हो गया. इस दौरान शिअद प्रमुख की कार को क्षतिग्रस्त कर दिया गया जिसमें चार लोग जख्मी हो गए. अधिकारियों ने बताया कि बादल सुरक्षित हैं
पंजाब में कांग्रेस, अकाली और आम आदमी पार्टीयां लगातार विभाजक राजनीति कर पैर पसारना चाहती हैं। ये तीनों ही सिरफिरे सिक्खों की भावनाओं को हवा दे रहे हैं। आम पंजाबी इनके झासे में नहीं आ रहा है। वह तीनो किसान कानून का समर्थक है। अभी पंजाब में दहशत का वातावरण है और वे सब चुप हैं।
आम पंजाबी आशंकित है, डरा हुआ है। अमरेंदर और बादलों की लड़ाई में आम आदमी पार्टी भी शामिल है। मगर नेता के तौर पर पंजाब में यही दोनो नज़र आते हैं। ये सब पंजाब के लोगों के दिल में जहर भरने का काम कर रहे हैं। अभी जो हो रहा है वह पंजाब ड्रामे का पहला सीन है।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएगा, हर पिंड में, हर गांव में इस तरह के संधर्ष होंगे। अभी इन सब पार्टियों का सम्मलित प्रयास है कि कृषि कानून का विरोध के बहाने ये केंद्र की सरकार को फसा कर रखें और उसे विकास का कम करने ही नहीं दें।
मगर जैसे जैसे ये चुनाव नजदीक आएंगे, इनके आपसी लड़ाई तेज होंगी। ये जो ४० यूनियने हैं, इनके जो नेता हैं, उसमें कुछ कम्यूनिस्ट लीडरान हैं, कुछ कांग्रेस से जुरे नेता हैं, कुछ अकाली दल से जुरे नेता हैं, कुछ आम आदमी पार्टी से जुरे नेता हैं।
बहुतायत पंजाबी अभी भी घर पर बैठा है
बहुतायत पंजाबी अभी भी घर पर बैठा है, चाहे वह सिक्ख है या ग़ैर सिक्ख है। वे इनके बहकाबे में आने को तैयार नहीं हैं। उन्हें स्पष्ट समझ में आ चुका है कि नरेंद्र मोदी ने आम किसानो के हित में यह कानून लाया है। इस कानून ने किसानो को विकल्प दिया है। अब वह मंडी का मोहताज नहीं रहेगा। अब उसे उचित मूल्य मिल पाएगा।
इन विभाजनकारी ताकतों ने कृषि कानून के हवाले से आम लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की। इसे होंद और प्रतिष्ठा से जोड़ दिया। इसे सिक्खिज़्म से जोड़ दिया। इसे गुरुद्वारों से जोड़ दिया। इसके बावजूद आमतौर पर सामान्य पंजाबी तैयार नहीं हो रहा है।
पंजाब में भी इन्हें जन सामान्य का समर्थन नहीं है
पंजाब से यदि इन्हें उस तरह का समर्थन मिलता, जिसका दावा वे नेता करते हैं, जो सिंघु, टिकरी बोर्डरों पर बैठे हैं, तो क्या उन्हें २३ पार्टियों और राष्ट्र विरोधी ताकतों से समर्थन लेने की जरूरत पड़ती?
इन लोगों ने गांवों में जाकर परिवारों को मजबूर किया कि हर परिवार से कम से कम एक आदमी को जाना ही पड़ेगा। अगर आप नहीं भेजेंगे तो आप पर १५०० से ५००० का जुर्माना लगाया जाएगा।
ऐसे में कौन होगा जो एसे सरपंचों को, मुखिया को आगामी समय में दुबारा चुनेगा? अभी तो ये एक साथ हैं, मगर आगे का परिदृष्य बदलेगा, जब विधान सभा चुनाव नजदीक आ जाएंगे। वह मुखिया, सरपंच अकाली समर्थक होगा। वह फिर कांग्रेस के लोगों को धमकाने और बोट लूटने की कोशिश करेगा। जहां कांग्रेस का दवाब होगा वहां बह अकालियों के साथ यही करेगा। आम आदमी पार्टी भी अपनी जमीन बनाने के लिए एसे ही हथकंडे अपनाएगी।
पंजाब के आम आदमी को शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने का अधिकार भी अभी छिना हुआ है। हालांकि वह जानता है कि यह कानून आम किसानों के हित में है। मगर वह बोल भी नहीं पा रहा है। उनका यह भरास चुनाव का एक बड़ा विंदु बनने जा रहा है।
आने वाले समय में पंजाब में मारपीट की घटनाएं बढ़ेंगी। इसमें पुलिस को टूल को रूप में इस्तेमाल किया जाएगा, इसकी पूरी संभावना है। कैप्टैन अमरेंदर भाजपा नेताओं के विरुद्ध ऐसा करते आ रहे हैं। मगर इसका खामियाजा आगे मिलेगा। अभी तो यह भाजपायीयों के विरुद्ध इस्तेमाल हो रहा है। आगे ये दो पार्टियों के बीच आपसी संधर्ष में इस्तेमाल होगा। यह बेहद खतरनाक है।
अमरेंदर, बादल और अरविंद केजरीबाल लोगों में जहर भरने के काम को अंजाम दे रहे हैं। जबकि पंजाब का बहुसंख्यक इनका समर्थन नहीं कर रहा है। वे २५ जनवरी तक या कहें कि २६ जनवरी के ११ बजे तक इनलोगों के साथ सहानुभूति रखते थे। २६ जनवरी की धटना देखने के बाद वह खत्म हो गयी। उन्होंने इसे अराजकता कहना शुरू कर दिया।
खालिस्तानियों का आज के पंजाब में कोई साख नहीं है
खालिस्तानियों का आज के पंजाब में कोई साख नहीं है। पिछले विधान सभा एक मात्र खालिस्तान समर्थक पाटी को पूरे राज्य में कुल मात्र ४९ हजार मत मिले।
पंजाब की राजनीति अभी और गहराएगी। झगरे और बढ़ेंगे। यह जहर की खेती अंतत: इन्हीं का नुकसान करेगी। लग रहा है कि कहीं भाजपा पंजाब में अपनी राजनैतिक जमीन न तैयार कर ले। जैसे जैसे किसानो को लाभ मिलने लगेगा यह स्वयं होना शुरू हो जाएगा।






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