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तुलनात्मक अध्ययन: जानें कि वेब सीरीज क्या है और यह सीरियल और फिल्मों से कैसे अलग है: समर के. मुखर्जी

  

Samar K Mukharjee, MD, Digifilming

  

मुवी अर्थात फिल्‍म (Movie),  टीवी सिरियल ( Serial) और वेब सिरीज (Web-Series) में क्‍या फर्क है, इसे किसी भी प्रोड्यूसर (Producer), लेखक (Writer), निर्देशक (Director), सिनेमैटोग्राफर (Cinematographer) को जरूर जानना चाहिए। 

मुवी, सिरियल और वेब सीरिज में तीन तरह के फर्क होते हैं।

१ बेसिक या बुनियादी (Basic)

२ इमोशनल (Immotional)

३ टेक्‍नीकल (Technical )

बेसिक या बुनियादी फर्क:

प्‍लैटफार्म(Platform)

मूवी का  बेसिक प्‍लैटफॉर्म मुख्‍य रूप से थिएटर है। सीरियल का बेसिक प्‍लैटफॉर्म है टीवी सेट और वेब सीरिज का बेसिक प्‍लैटफॉर्म है इंटरनेट से जुरा कोई भी डेवाइस। यह लैपटॉप डेक्‍सटॉप या स्‍मार्ट मोबाइल हैंडसेट आदि पर देखा जा सकता है।

टाइमिंग (Timing):

दूसरा फर्क टाइमिंग का है। मूवी देखने की एक फिक्‍स टाइमिंग होती है। टीवी शो की भी अपनी फिक्‍स टाइमिंग होती है। वेब सीरिज की कोई फिक्‍स टाइमिंग नहीं है। उसे आप जब चाहें, जहां चाहें, देख सकते हैं।

३. डयूरेशन(Duration)

तीसरा विंदु है डयूरेशन का । आजकल  डेढ़ घंटे से ढ़ाई घंटे की मुवी होती है। टेलीविजन के दो तरह का स्‍लोट होते  हैं। आधे घंटे के स्‍लोट में २२ मिनट का कारीक्रम होता है, बांकी एड का पोर्सन होता है। एक घंटे के स्‍लोट में लगभग ४५ मिनट का प्रोग्राम होता है। बाकी हिस्‍सा प्रचार या कमर्सियल एक्टिविटी का होता है। वेब सीरिज ज्‍यादातर आधे घंटे से पौने घंटे के होते हैं। वैसे पंद्रह बीस मिनट के भी एपीसोड होते हैं।

इमोशनल फर्क:

सबजेक्‍ट(Subject)

मुवी में हर‍ तरह के सबजेक्‍ट लिए जाते हैं। जैसे एक्‍शन, रोमांटिक, इमोशनल, हौरर, थ्रिलर, इत्‍यादि । टीवी शो में मुख्‍यत: फैमिली मैटर पर फोकस किया जाता है। यदि महिलाएं उन्‍हें पसंद करती हैं तो उनको टीआरपी मिलता है। वेब सीरिज यूथ को ध्‍यान में रखकर बनाया जाता है। वैसे तो उसे १५ से ५० वर्ष के लोग देखते हैं मगर वेब सीरिज को  २० से ३५ वर्ष को लोगों को ध्‍यान में रखकर बनाया जाता है।

कम्‍पलिशन (Completion):

फिल्‍म ज्‍यादा से ज्‍यादा ३ घंटे में  Three act structure के तहत पूरी हो जाती है। सीरियल कम्‍पलीट नहीं होती है। उसे एपीसोड वाइज तब तक चलाया जाता है, जबतक उसका टीआरपी ठीक चलता रहता है। उसमें मेन क्‍लाइमेक्‍स आने की जरूरत नहीं पड़ती है। आपका हरेक एपीसोड मनोरंजक होना चाहिए। वेब सीरिज में कोई एक सीरिज कम्‍पलीट नहीं होता है। उसे ऐसा बनाया जाता है कि लोग उसकी  अगली  सीरिज का इंतजार करें। यदि पहली सिरीज कामयाब हो जाती है, तो उसकी दूसरी सीरिज कीमती हो जाती है। उसके सभी क्रू मेंबर दूसरे सीरिज से पैसे बनाते हैं। एक सिरीज में कई एपीसोड होते हैं।

सीन (Scene)

मूवी में सीन छोटे और फास्‍ट होते हैं। वे दो से दस मिनट के होते हैं। अधिकतर सीन छोटे होते हैं। टीवी सीरियल में इसका उल्‍टा है। उसमें सीन की लम्‍बाई ज्‍यादा होती है। सीन स्‍लो हाता है। वेब सीरिज के सीन फास्‍ट होने चाहिए। वह स्‍लो होगा तो लोग उसे स्‍केप कर देंगे। वेब सीरिज के हर सीन का महत्‍व होता है। इसकी कटिंग फास्‍ट होती हैं। उसके किसी सीन में फालतू चीजें नहीं रखी जाती है।

सोंग्‍स (Songs )

अब फिल्‍मों में दो से चार गाने होते हैं । पहले दस दस गाने भी होते थे। फिल्‍मों के गाने हमेशा नये क्रिएट किए जाते हैं। सीरियल में पूराने गानों  के कॉपीराइट खरीद कर भी उनका उपयोग किया  जाता है। वेब सिरीज में प्राय: गाने नहीं होते हैं।

स्‍क्रीप्‍ट  टाइप (Script Type)

मूवी का स्‍क्रिप्‍ट स्‍क्रीन प्‍ले ओरिएंटेड होता है। वे मुख्‍यत: स्‍क्रीन प्‍ले पर काम करते हैं। टीवी शोज में डायलॉग प्रधान होता है। वेब सिरीज में स्‍क्रीन प्‍ले और डायलॉग दोनो पर काफी मिहनत की जाती है।

६ सेंसरशिप (Censorship):

मूवी को सेंसर कराना जरूरी होता है। उसके बिना आप उसे थिएटर तक नहीं ले जा सकते हैं। टीवी में भी एक तरह से सेंसरशिप है। वह उसकी टाइमिंग पर निर्भर करता है। उस हिसाब से उसका एक गाइडलाइन है । वेब सीरिज में कोई सेंसरशिप नहीं है। इसे रियलिस्‍टिक रखा जाता है। तभी आपको लगता है कि यह तो हमारे आसपास भी घटित होता है। इसलिए कई वेब सीरिज में गालियों का खूब प्रयोग होता है, जिससे बचने की जरूरत है।

क्‍लाइमेक्‍स (Climax) एवं रिजोल्‍यूशन (Resolution)

फिल्‍मों में क्‍लाइमेक्‍स भी होता है, साथ ही उसका रिजोल्‍यूशन भी होता है। जब आप फिल्‍म देखकर निकलते हैं तो आपको हर सवाल का जवाब मिल चुका होता  है।

सीरियल में ऐसा नहीं होता है। सीरियल में आगे क्‍या होगा इसका लोग इंतजार करते हैं। वेब सीरिज में यही चीज थोड़ी  दूसरी तरह से प्रस्‍तुत की जाती  है। इसमें वन शॉट गो फैक्‍टर (One Shot go) होता है। इसमें आप एक एपीसोड देख लेते हैं, तो आपका मन होता है कि इसका दूसरा एपीसोड भी देख लें। फिर तीसरा देखें। आपको मालूम है कि यह अधिकतम ८ एपीसोड का है।

8 कंटेट(content) और स्‍टार (Star)

आज फिल्‍म पूरी तरह से स्‍टार ओरिएंटेड है। आदमी अपने फेवरीट स्‍टार को देखने जाता है। टीवी में कंटेट और टाइमिंग का महत्‍व है। आपका कंटेट सही है और आपको प्राइम टाइम या कोई अनुकूल टाइम मिल गया तो आपका सिरियल हि‍ट हो गया। वेब सिरीज में कंटेट का ही महत्‍व है । उसमें स्‍टार फैक्‍टर नहीं है मगर अच्‍छे एक्‍टर दर्शक को आकर्षित करते हैं।

तकनीकी (Technical) फर्क

कैमरा (Camera) : मूवी के लिए हाइ एंड सिनेमा कैमरा की जरूरत होती है। प्राय: रेड या एरी कैमरे का प्रयोग होता है। टीवी सीरियल के लिए प्राय: विडिओ कैमरे का इस्‍तेमाल होता है। वैसे आजकल ऐरी एलेक्‍सा का भी प्रयोग होता है। वेब सीरिज में दो तरह के कैमरे का प्रयोग होता है। एक तो मिररलेस कैमरा और दूसरा रेड और ऐरी का भी प्रयोग होता है, जब प्रोजेक्‍ट का बजट बड़ा हो।

२. लेन्‍सेज (Lenses)

मूवी के लिए हाइ एंड प्राइम लेन्‍सेज जैसे मास्‍टर प्राइम लेंस, अल्‍ट्रा प्राइम लेंस  और जूम लेन्‍सेज का इस्‍तेमाल होता है। छोटे बजट के फिल्‍मों में अल्‍ट्रा प्राइम लेन्‍सेज का इस्‍तेमाल होता है। सीपी२ सीपी३ का भी इस्‍तेमाल हो सकता है। टीवी सीरियल में जूम लेंस लगा कर छोड़ दिया जाता है। इससे बार बार लेंस बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है। वेब सीरिज में सिनेमा की तरह ही लेंसेज का प्रयोग होता है। कम बजट की स्‍थिति में मिररलेस और नॉरमल प्राइम लेंस का इस्‍तेमाल होता है। अल्‍ट्रा प्राइम का भी प्रयोग होता है। 

३. फाइनल आउटपुट (Final Output)

मूवी के लिए फाइनल आउटपुट प्राय: २के में दिया जाता है। यहां पर अभी प्राय: २के स्‍क्रीन है। ४के  स्‍क्रीन बहुत कम या नहीं के बराबर हैं। टीवी के लिए प्राय: एचडी या ४के या  इंटरलेस्‍ड (interlaced) आउटपुट दिया जाता है। वेब सीरिज में प्रोग्रेसिव की जरूरत पड़ती है। वे प्राय: ४के आउटपुल लेते हैं।

४. लाइटिंग (Lighting)

मूवी में अधिकतर सिनेमैटिक लाइटिंग का प्रयोग किया जाता है। नैचुरल लाइटिंग का भी प्रयोग होता है मगर सिनेमैटिक लाइटिंग को फौलौ करके। टीवी सिरियल़ में प्राय:फ्लैट लाइटिंग का प्रयोग होता है ताकि सबकुछ कलरफुल दिखायी दे। उनका मेकअप उनकी ज्‍वेलरी सब कुछ निखर कर सामने आए इसलिए प्राय:फ्लैट लाइटिंग का प्रयोग होता है। वेब सीरिज में नैचुरल लाइटिंग का प्रयोग होता है। वे प्राय: लेंस के मायने में  अधिकतम एपर्चर का प्रयोग करते हैं जैसे १.२, १.४, १.५ आदि। इससे लो लाइट में भी अच्‍छी क्‍वालिटी का काम हो जाता है। उन्‍हें दिखाना होता है कि वे जो दिखा रहे हैं वह नैचुरल है।

५. मैक्‍सिमम शॉट टाइम (Maximum Shot Type)

मूवी में अधिकतर लांग शॉट लिया जाता है। टीवी सीरियल में अधिक से अधिक मेडियम और क्‍लोज शॉट लिए जाते हैं। वेब सीरिज में दोनो तरह की बातें हैं। यहां एक बैलेंस रखा जाता है।

६. डबिंग (Dubbing)

फिल्‍मों में डबिंग की जाती है। यहां सिंक साउंड नहीं लिया जाता है। टीवी सीरियल में ज्‍यादातर सिंक साउंड का प्रयोग होता है। वेब सीरिज में दोनो तरह की बातें हैं।

७. सेट(Set) और प्रेमाइसेज(Premises)

फिल्‍मों में बड़े और वास्‍ट सेट तैयार किए जाते हैं। चूंकि फिल्‍मों में बड़े स्‍टार काम करते हैं इसलिए वे सेट बनाकर काम करना बेहतर समझते हैं। टीवी सिरियल ़में फिक्‍स्‍ड सेट होते हैं। उसी में थोड़ा फेर बदल कर वे काम चलाते हैं। कभी कभार वे बाहर आउटडोर का वे इस्‍तेमाल करते हैं। वेब सीरिज में कोशिश यह होती है कि सेट बनाने की जरूरत न पड़े। वे नैचुरल लोकेशन खोजते हैं। ताकि दर्शक को लगे कि कहीं कुछ बनाबटी नहीं है।

 

 

 

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