| Neeraj Atri, Philosopher | 
पंजाब में एक नया कानून बना है जिसे २९५ AA कहा जाता है। उसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति गुरूग्रंथ सहिब, बाइबल, कुरान, और गीता को फाड़ता है, इनकी बेअदबी करता है तो उसे आजीबन काराबास मिलेगा।
किस तरह समाज को मूर्खता और बेवकूफी के रास्ते पर धकेला जा रहा है। यह समझने के लिए, चलें इस कानून की मिमांसा करते हैं। इसके लिए हमे यह समझना होगा कि सनातन धर्म बांकी धर्मों से अलग क्यों है।
सनातन धर्म का कोई एक फाउंडर नहीं है। इसे किसी ने शुरू नहीं किया। दूसरी बात, इसमें कहीं राजनीति इनवॉल्ड नहीं है। इसे ऋषियों ने, मुनियों ने, विचार करके, मंथन करके लिखा। इसलिए उन्हें हम ज्ञानग्रंथ कहते हैं। उन्हें धर्मग्रंथ तो हमने अब बोलना शुरू किया है। उन्हें धर्मग्रंथ बोलना उचित नहीं है। वे ज्ञान के ग्रंथ हैं।
राजनीति या पौलिटिक्स जैसी कोई चीज हमारे ऋषि मुनियों के चरित्र में अंतर्निहित नहीं था। इसलिए उनलोगों ने उनकी बात भी नहीं की।
धर्म ने नाम पर हमारे यहां जो विदेशी विचारधाराएं हैं, वे प्योरली पोलिटिकल हैं। इन्होंने मजहब का चोला पहन रखा है।
लेकिन, हमारे देश में जो सिख पंथ है, वह इसी मिट्टी से निकला है। इसीलिए उसमें पॉलिटिक्स नहीं है। लेकिन आज, उन गुरुओं के नाम पर, उन्हें रिप्रजेंट करने वाले नेतोओं ने इसमें पॉलिटिक्स को घुसा दिया हुआ है।
सनातन धर्म के तो सभी ग्रंथ ज्ञान के ग्रंथ हैं तो क्या आप सभी को उसी श्रेणी में डालेंगे। फिर तो जितने वेद हैं, वे भी कानून के इसी धारा में आने चाहिए। उपनिषद भी आने चाहिए। रामायण भी आना चाहिए। महाभारत भी आना चाहिए। मनुस्मृति भी आनी चाहिए। ब्राह्मण ग्रंथ भी आने चाहिए थे। तो यह लिस्ट कितनी बड़ी हो जाएगी? किसी को फसाना बहुत आसान हो जाएगा। शायद यही उनका उद्देश्य था, जिन्होंने ऐसा स्टेप लिया। इस तरह के कानून बनाए।
शुरूआत में यह तय किया गया था कि गुरुग्रंथ साहिब की कोई बेअदवी नहीं करेगा। फिर थोड़ा हो हल्ला हुआ। थोड़ी पॉलिटिक्स हुई। तो बांकीओं के नाम भी घुसाए गए। इससे समझ में आती है कि क्यों आज पंजाब की हालत इतनी बुरी हो गयी। किसी तरह की मानसिकता से यह पूरा प्रांत ग्रसित हो रहा है।
बाइबल और कुरान को किससे बराबरी की जा रही है? गुरूग्रंथ साहब से, और भगवत गीता से। इससे बड़ी हिपोक्रिसी, आइरॉनी, विडंबना, आपको कहां मिलेगी?
जो कुरान है, या जो बाइबल है, ये घृणा सिखती है, हिंसा सिखाती है, कतलोगारी सिखती है। काफिरों की महिलाओं के साथ दुराचार की अनुमति देती है। एक तरफ ऐसी किताबें हैं। इन्होंने उन्हें उसी ब्रॉकेट में रखा जिसमें उन गुरुओं, जिन पर इन्हीं आतताइयों ने जुल्म ढाया, ने संकलित किया था।
हैरानी की बात यह है कि जब यह कानून पारित किया जा रहा था, किसी एक पोलिटिकल पार्टी में यह साहस नहीं था, यह हिम्मत नहीं थी कि वह इसका प्रतिकार करे, इसका विरोध करे। निर्विवाद यह कानून पारित हो चुका है।
सिंघु बोर्डर पर जिन लोगों ने हत्या की वे ऐसा कर सकते हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि जिनके शासक ऐसे संवेदनहीन हो जाएंगे, जहां पर आम जनता इतनी मूर्ख होगी, वहां पर कुछ भी किया जा सकता है। और करने बे बाद बचा भी जा सकता है।
ये नए नए जो मजहब हैं वे बीते दो हज़ार साल में आए हैं। जबकि सनातन धर्म या वैदिक धर्म हज़ारों साल से चला आ रहा है। इसकी इतनी सारी पुस्तकें हैं। मगर आज तक कभी किसी को बेअदवी जैसी कानून बनाने की जरूरत नहीं पड़ी। किसी को दंड विधान करने की आवश्यकता नहीं पड़ी।
जरा सोचिए। यदि कोई सृष्टि का बनाने वाला है, उसने अरबों खरबों तारे बनाए, जिसमें एक हमारा सूर्य है, उस सूरज के आसपास एक छोटा सा ग्रह है पृथ्वी जो सूर्य का चक्कर लगाती है। तो इन अरबों खरबों विशाल पिंडों में हमारी धरती की औकात क्या है? उस धरती पर एक कोई आदमी कोई किताब फाड़ रहा है, कोई कागज फाड़ रहा है, या किसी तरह उससे बेअदवी हो गयी तो क्या उस बनाने वाले की, उस सृष्टि निर्माता का क्या विगड़ सकता है? उसकी बेअदबी हो सकती है? उसको किसी तरह का चोट या दुख पहुंच सकता है? कितनी मूर्खतापूर्ण विचारधारा है यह। किस तरह की सोच है यह?
ईश्वर इतना महान है कि उसको इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह इन सब छोटी बातों का विचार भी नहीं कर सकता। वह इन सब दुनियावी बातों से ऊपर है। वह विकार रहित है। वह निरपेक्ष है। परमात्मा नित्य है, नाशरहित है, अजन्मा है, पुरातन है, सनातन है। इसकी बेअदवी भी नहीं हो सकती है। इसका कोई कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता है। परमात्मा को शस्त्र काट नहीं सकता । आग जला नहीं सकती। पानी गीला नहीं कर सकता। हवा सुखा नहीं सकती। परमात्मा अवयक्त है, अचिंत्य है। वह विकार से रहित है, वह दुख सुख काम क्रोध सबसे रहित है।
अगर मान भी लें कि किसी के कागज फाड़ने से या दूसरे तरह की बेअदवी से परमात्मा का कुछ नुकसान हो गया तो भी हमें उसका प्रतिकार करने की जरूरत नहीं है। परमात्मा स्वयं प्रतिकार कर लेगा। वह तो हमसे कहीं कहीं ज्यदा ताकतवर है।
कहा जाता है कि सनातन धर्म लोग मूर्तिपूजा करते हैं, पत्थर को पूजते हैं। वह पत्थर जरूर है हालांकि उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गयी है। फिरभी चलें। इसे छोड़ें। वह भी तो किताब है। कागज ही तो है। मगर उसकी पूजा करनी है।
वे इस आयातित विचारधारा के लोग हैं जो बेअदवी, तौहीन आदि बातें करते हैं। मैं भगवद्गीता पढ़ता हूं। उस पर आचरण करने की कोशिश करता हूं। मेरा यह मानना है कि इससे अच्छी पुस्तक इस संसार में नहीं है।
मगर यदि कोई मेरे सामने भगवद्गीता फाड़ता है तो क्या मुझे उस पर क्रोध आना चाहिए। नहीं। मेरे मन में जो भगवद्गीता है, जो उसका भाव है, जो उसका ज्ञान है, वह उस कागज के फटने से नष्ट नहीं होगा। मेरे लिए वह वास्तव में कागज है। अगर कोई उसे फाड़ देता है तो मैं दूसरी ला सकता हूं। मैं उस किताब फाड़ने वाले से नहीं लड़ुंगा।
 

.jpg)
.jpg)










.jpg)
.jpg)
 

 
 
 
0 टिप्पणियाँ
Please do not enter any spam links in the comment box.