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Importance of 16 June 1947 in the history of India ।। भारत के इतिहास में १६ जून १९४७ का महत्‍व

 

Importance of 16 June 1947 in the history of India ।। भारत के इतिहास में १६ जून १९४७ का महत्‍व

आज १६ जून है। आज के दिन ही भारत के बटवारे पर मुहर लगी। १६ जून को भारत के विभाजन का अंतिम निर्णय हुआ था। भारत के विभाजन में महात्‍मा गांधी की मुख्‍य भूमिका थी। मार्च १९४७ में माउंट बेटन को बटबारे के प्‍लान के साथ भारत भेजा गया।  

१६ जून १९४७ को विभाजन के प्रस्‍ताव पर गांधी का मुहर लग गया

३ जून को कांग्रेस कार्य समिति ने प्रस्‍ताव को पारित कर  दिया कि बटबारा तय है। बटबारा तय करने के लिए कांग्रेस कार्य समिति को ऑल इंडिया कांग्रेस कमीटी ( एआईसीसी) की परमीशन लेना जरूरी था। एआईसीसी की परमीशन के बिना यह संभव नहीं था। एआईसीसी में २५० सदस्‍य होते थे। एआईसीसी की बैठक १४, १५ और १६ जून १९४७ को दिल्‍ली में  हुई।  १४ जून को प्रस्‍ताव रखा गया कि भारत का बटबारा होना चाहिए। एक पाकिस्‍तान हिस्‍सा बनेगा। एक भारत हिस्‍सा बनेगा।

पुरुषोत्‍तम दास टंडन का एैतिहासिक भाषण

कांग्रेस के भीतर एक हिंदूवादी धरा होता था। पुरुषोत्‍तम दास टंडन उसके प्रमुख होते थे। तब कांग्रेस एक पार्टी नहीं एक मंच हुआ करता था। उसमें समाजवादी भी थे। बामपंथी भी थे। उसमें हिंदूवादी नेतागण भी जुड़े हुए थे। पुरुषोत्‍तम दास टंडन ने उसमें एक एैतिहासिक भाषण दिया। उन्‍होने बटबारा के विरुद्ध भाषण दिया । उन्‍होने बटबारा के विरुद्ध तर्क दिया तो अखंड भारत के पक्ष में माहौल बनना शुरू हो गया। पुरुषोत्‍तम दास टंडन ने कहा कि हम चाहें तो अभी और संघर्स  कर सकते हैं । उसके बाद खान अब्‍दुल गफ्फार खान की बारी आई। उनका प्रांत पाकिस्‍तान में जाने वाला था। वे भाषण देते देते रोने लग गए। उनको लगा कि यह मेरे साथ क्‍या हो गया। उन्‍होंने कहा कि मैं जीवन भर पाकिस्‍तान के निर्माण का विरोध करता रहा । अब मेरा ही राज्‍य पाकिस्‍तान में जा रहा है। वे फूट फूट के रोने लगे। उन्‍होंने कहा कि आप लोगों ने हमें भेरिओं के हवाले कर दिया। आजादी के बाद वे ४१ बरस जिंदा रहे। १९८८ में वे मरे।  वे अधिकांश समय या तो जेल में रहे या नज़रबंदी में रहे। 

१४ जून को लगा कि विभाजन के पक्ष में कम लोग हैं और उसके विरोध में ज्‍यादा लोग हैं। गोविंद वल्‍लभ पंत और सरदार पटेल के समझाने के बाद भी लोग विभाजन के प्रस्‍ताव को मानने के लिए तैयार नहीं थे। मौलाना आज़ाद India wins freedom में लिखते हैं कि  महात्‍मा गांधी ने बीचबचाव किया। वे १५ जून को  एआईसीसी की बैठक में प्रकट होते हैं। लोगों को उम्‍मीद थी कि गांधी का विरोध करेंगे। वे १९४० से अबतक यह कहते आ रहे थे कि पाकिस्‍तान मेरी लाश पर बनेगा।

गांधी ने कहा कांग्रेस कार्य समिति जिसने २ जून को ही फैसला कर लिया था विभाजन का । अगर हम उसके फैसले को बदलते हैं तो पूरी दुनियां को हम यह संदेश देंगे कि जो चुनी हुई कार्य समीति है वह नकारा है। वह फैसला नहीं ले सकती। इसलिए हमे उनके फैसले का अर्थात बटबारे का विरोध नहीं करना चाहिए। गांधी ने कहा कि आप पूरी उंट निगल गए मगर आपको छोटी सी मक्‍खी निगलने में दिक्‍कत हो रही है। आपको हम बता दें कि कांग्रेस कार्य समिति में आला दर्जे के नेता शामिल हैं।  अगर आप लोग कांग्रेस कार्य समिति का विरोध करना चाहें तो आप आज़ाद हैं मगर  आज मैं अपने अंदर ऐसा करने की ताकत नहीं देखता हूं । अगर ताकत देखता तो मैं अकेला बागी बन जाता। गांधी अपने चेलों से लोहा नहीं ले पाए।  

कार्य समीति में जवाहर लाल थे, सरदार पटेल थे। डा. राजेंद्र प्रसाद थे। मौलाना आज़ाद थे । आचार्य कृपलानी थे। ये सब गांधी के चेले थे। क्‍या गांधी अपने चेलों से लोहा नहीं ले सकते थे। 

किसने मांगा था पाकिस्‍तान । भारत में रहने वाले यूपी विहार बंगाल महाराष्‍ट्र तमिल नाडु कर्नाटक आंध्र प्रदेश दिल्‍ली के मुसलमानो ने मांगा था। 

महात्‍मा गांधी का हिंदू नेताओं को ताना

महात्‍मा गांधी पुरुषोत्‍तम दास टंडन और अन्‍य हिंदू नेताओं को ताना मारते हुए कहते हैं कि जो हिंदु आज यहां मौजूद हैं उनका अगर यह दावा है कि हिंदुस्‍तान हमारा है, उसमें हम हिंदुओं को सबसे ऊंचा मानेंगे, तो इसका मतलब है कि कांग्रेस ने बटवारे को मानकर कोई भूल  नहीं की है। कांग्रेस कार्य समिति ने ठीक वही काम किया है जो आपके मन में था। गांधी ने बड़ी चालाकी से बटवारे का सारा ठिकरा कांग्रेस के हिंदुवादी नेताओं पर फोड़ दिया। एक झटके में गांधी ने सारा खेल बदल दिया।

साबरकर ने कभी बटवारे का समर्थन नहीं किया

लोग बाग आरोप लगाते हैं कि सावरकर बटवारे के पक्ष में थे। मगर साबरकर ने कभी बटवारे का समर्थन नहीं किया। साबरकर ने एक डिस्‍कृपशन किया था। छली नेता उसको प्रिस्‍कृपशन की तरह बनाते हैं।

गांधी ने जब माहोल बदल दिया तो सरदार पटेल खड़े हुए। विभाजन को स्‍वीकार करने वालों में सबसे पहले सरदार पटेल थे। उसके बाद नेहरू तैयार हुए। पटेल ने कहा कि अंतरिम सरकार में हमे मुस्लिम लीग को सहयोग नहीं मिल पा रहा था। ज्‍यादातर मुस्‍लिम अफसर से लेकर मुस्‍लिम चपरासी तक मुस्‍लिम लीग के लिए काम कर रहे थे। मुस्‍लिम लीग पूरे भारत में कब्‍जा करने का मंसूबा बुन रही है। हमारे पास कम से कम तीन चौथाई भारत है। जिस भारत का महान विकास करने का अवसर हमे मिलेगा।

उसके बाद नेहरू बोले। कहा कि रावलपिंडी मुल्‍तान कलकत्‍ता नोआखली‍ बिहार में दंगे हो रहे हैं। लोगों के घरों को जलाया जा रहा है। औरतों और बच्‍चों की हत्‍या हो रही है। पंजाब के लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस ने हमे निराश किया। क्‍या हम सेना भेज दें। हमें इन घावों को भरना होगा। उसके लिए हमें विभाजन को आधार बना कर एक योजना बनानी होगी। 

नेहरू कह रहे थे कि दंगे रोकना है तो हमे विभाजन करना होगा

नेहरू कह रहे थे कि दंगे रोकना है तो हमे विभाजन करना होगा। मगर यह कैसी दूर दृष्‍ट‍ि थी। मगर सच तो यह है कि विभाजन स्‍वीकार करने पर भी दंगे नहीं रुक सके। उससे ज्‍यादा दंगे हुए । उससे ज्‍यादा लोग मारे गए। विभाजन के कारण २८ लाख लोग मारे गए। १ करोड़ लोग बेघर हुए। 

पलायन वादी सोच की धज्‍जियां उड़ाई आचार्य कृपलानी ने

इस पलायन वादी सोच की धज्‍जियां उड़ाई आचार्य कृपलानी ने। उन्‍होंने कहा कि आज मैं गांधी के साथ नहीं खड़ा हुआ हूं। मुझे लगता है कि गांधी को समस्‍या को हल करने का कोई उपाय नहीं मिल पाया। आज वे स्‍वयं अपना मार्ग खोज रहे हैं। नोआखली और विहार में महात्‍मा गांधी के प्रयासों से कुछ सुधार हुआ मगर इससे पंजाब की आग नहीं बुझ रही है। उन्‍होंने कहा कि आपका अहिंसा का सिद्धांत अब काम नहीं कर रहा है। ़पंजाब और सिंध में जो आग लगी है उसे आप नहीं बुझा पा रहे हैं। हिंदुओं का कत्‍ल हो रहा है। मैं निराश हो चुका हूं इसलिए मैं विभाजन के लिए अपनी सहमति दे रहा हूं।

१६ जून को यह प्रस्‍ताव पास हो गया। इस प्रस्‍ताव के पक्ष में १५७ सदस्‍यों ने मतदान किया। २९ लोगों ने विरोध में मतदान किया और ३२ लोगों ने वहिष्‍कार  किया। ये ३२ लोगों समाजवादी थे। लोहिया जेपी अरुणा आसिफ अली आदि।

इनलोगों ने हाथ उठाकर घुटने टेके थे। जबकि इन लोगों को भारत रत्‍न और अन्‍य पुरस्‍कार से नबाजा गया। देश भर में इनके पुतले लगाए गए। इनके नाम पर सड़कों के नाम रखे गए।

मौलाना आजाद स्‍वीकार करते हैं कि १४ जून को विभाजन के खिलाफ माहौल बन गया था। हो सकता है कि प्रस्‍ताव पारित नहीं होता मगर १५ जून को गांधी आते हैं और सारा माहौल बदल देते हैं।

फैसले की अंतिम घड़ी में गांधी विभाजन के पक्ष में खड़े हो गए

कैंपवेल जॉनसन माउंटवेटन के मीडिया सलाहकार थे। वे अपनी डायरी में लिखते हैं कि फैसले की इस घड़ी में गांधी जी इस विभाजन के पक्ष में खड़े हो गए। कांग्रेस के उन ताकतवर नेताओं के सामने उन्‍हीं की पार्टी के हिंदुवादी नेताओं ने जो विरोध किया था, वे गांधी के विराट व्‍यक्तित्‍व के सामने ठहर नहीं सका।

वे कहतें हैं कि जो माहौल कांग्रेस के अंदर हिंदूवादी नेताओं ने बनाया था वे महात्‍मा गांधी के विराट व्‍यक्तित्‍व के सामने ठहर नहीं सका। इससे विभाजन तय हो गया।

बी पी मेनन (भारतीय व्‍यूरोक्रेट के पितामह) लिखते हैं कि समस्‍या तो उसी समय हल हो गई थी, जब गांधी जी ने विभाजन के प्रस्‍ताव का समर्थन कर दिया। 

आचार्य कृपलानी लिखते हैं कि पुरुषोत्‍तम दास टंडन के नेतृत्‍व में विभाजन के प्रस्‍ताव का जबरदस्‍त विरोध किया गया था। लेकिन महात्‍मा गांधी ने खुद एआईसीसी के सदस्‍यों को (१५ जून) कहा कि वह इस प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर ले। हालॉंकि गाधी जी जानते थे कि विभाजन के प्रस्‍ताव  से समस्‍या का हल नहीं होगा। उन्‍होंने अपने सभी नेताओं पर विश्‍वास करने का अनुरोध किया। यदि गांधी जी सलाह ना देते तो शायद विभाजन का प्रस्‍ताव पारित नहीं होता। उस दिन एक नए आंदोलन की शुरुआत होती। बटवारे के खिलाफ और मुस्‍लिम लीग के खिलाफ, जिन्‍ना के खिलाफ। लेकिन वह हो न सका।

राम मनोहर लोहिया भी उस बैठक में शामिल थे। उन्‍होंने एक पुस्‍तक लिखी है विभाजन के गुनेहगार। लोहिया ने बटवारे के लिए हिंदुओं को, मुसलमानों को , कांग्रेस को और खुद को भी जिम्‍मेवार ठहराया है। वे ६० की दशक में लिखते हैं कि मुझे आज इस बात का बड़ा दुख होता है कि जब हमारे इस महान देश का विभाजन हो रहा था,  तब एक भी व्‍यक्‍ति ने न तो अपने प्राणों का बलिदान दिया न तो जेल गया। मैं भी भारत के विभाजन के खिलाफ जेल नहीं गया। 

मौलाना आजाद अपनी किताब इंडिया विंस फ्रीडम में लिखते हैं कि वे बटवारे के विरोध में थे। मगर लाहिया अपनी किताब में लिखते हैं कि उस बैठक में मौलाना आज़ाद ने कुछ नहीं बोला। मीटिंग में आराम से वे सिगरेट फूकते रहे।  

महात्‍मा गांधी का पलट जाना

ज्ञातवय है कि  गांधी जी १९४० में २३ मार्च लाहौर अधिवेशन में कहते हैं कि पाकिस्‍तान मेरी लाश पर बनेगा। पाकिस्‍तान बनाने से पहले मेरे दो टुकरे कर दो। मेरी लाश के दो टुकरे कर दो।

मगर जिस दिन उन्‍हें यह कहने की जरूरत थी (१५ जून १९४७) कि नहीं बनेगा पाकिस्‍तान और बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा, उस दिन वे पलट गए। यदि उस दिन वे ये कहते कि पाकिस्‍तान मेरी लाश पर बनेगा तो आज भारत का इतिहास दूसरा होता। 

लियोनॉर्ड मोसले  की किताब है ब्रिटिश राज के अंतिम दिन । लियोनॉर्ड मोसले ब्रिटेन के एक बड़े पत्रकार थे। उन्‍होंने ६० के दशक में जवाहर लाल का इंटरव्‍यू लिया था। जवाहर लाल ने यह माना । मोसले ने पूछा कि आप लोग बटवारे के लिए तैयार कैसे हो गए। आप तो बटवारे के विरोधी थे। तो नेहरू ने कहा कि हम थक गए थे। हम बुड्ढे हो गए थे । हम जेल जाने से डड़ने लगे थे, और यदि बापू यह‍ कहते कि विभाजन के लिए तैयार नहीं होना है, तो हम उनकी बात मानते और एक नया आंदोलन छेड़ देते। 

ज्ञातव्‍य है कि नेहरू एक बार जेल गए १९२३ में उसके बाद कम ही जेल गए जेल टूरिज्‍म होता रहा। फिर भी वे जेल जाने से डरते रहे। नेहरू भी गांधी को जिम्‍मेदार बता रहे हैं।

महात्‍मा गांधी का आमरण अनसन

महात्‍मा गांधी आमरण अनसन छोटी छोटी बातों पर करते रहे, मगर विभाजन के विरुद्ध उन्‍होंने आमरण अनसन नहीं किया।

अंतर्आत्‍मा की आवाज ईश्‍वरीय प्रेरणा ये सब कहां चला गया? ट्रेन डिरेल, अहमदाबाद में मजदूरों का हड़ताल जैसी बातों पर वे अनसन करते थे। आजादी के बाद भी दो अनसन किया। एक कलकत्‍ता में मुसलमानों को बचाने के लिए २३ सितंबर १९४७ को, दूसरा  १९४८ जनवरी के दूसरे हप्‍ते में पाकिस्‍तान को ५५ करोड़ रुपए दिलाने के लिए ।

पाकिस्‍तान मेरी लाश पर बनेगा यह भारतीय राजनीति का पहला जुमला था। गांधी ने इसका पूरा इस्‍तेमाल किया और जब वक्‍त आया तो वे पलट गए।

सरदार पटेल भी बटवारे पर राजी हो गए। मगर उसकी वजह थी । अंतरिम सरकार में वे गृह मंत्री थे और और उनको मुस्‍लिम अधिकारियों ने बहुत परेशान किया। लियाकत अली खान वित्‍त मंत्री थे। उसने गृह मंत्रालय का पूरा बजट रोक दिया। मुस्‍ल‍िम सीविल अधिकारी और पुलिस अधिकारी भी सरदार का असहयोग कर र‍हे थे। सरदार पटेल को लगा कि हम मुसलमानो के साथ देश का विकास नहीं कर सकते। यह प्‍यारे लाल नैयार ने भी लिखा, यह राजमोहन गांधी ने भी लिखा है। वी शंकर भी लिखते हैं जो सरदार के पीर्सनल सेक्रेटरी थे।

सरदार पटेल की सोच

सरदार पटेल की बटवारे की जो सोच थी वह यह कि जब धर्म के आधार पर बटवारा हो रहा है तो जो हमको ७५ प्रतिशत भारत मिल रहो है वह एक धर्म का होगा। और २५ प्रतिशत जो पाकिस्‍तान होगा वह दूसरे धर्म को होगा। अंबेदकर का भी यही विचार था। जनसंख्‍या की अदलाबदली होनी चाहिए। अगर इस देश का बटबारा धर्म के अधार पर हुआ है। वे शंकल्पित थे कि मुसलमानों को पाकिस्‍तान जाना चाहिए । खासकर उन मुसलमानों को जाना चाहिए जो जिन्‍ना के झंडे उठा रहे थे। जेा कहते थे कि लड़कर लेंगे पाकिस्‍तान। 

लेकिन नेहरू की सोच दूसरी थी। नेहरू की सोच थी कि  हमे प्रधान मंत्री का पद मिलेगा। यह जिन्‍ना के रहते मुश्‍किल था। फिर इंटरनैशनल लीडर बनने का ख्‍वाब भी था उनका।

नेहरू का पूर्वाग्रह

राम मनोहर लोहिया लिखते हैं कि १९४६ में जब हिंदुओं का नरसंहार हो रहा था। २६ दिसंबर को जब भारत के अंतरिम सरकार के पीएम नेहरू नोआखली पहुंचे, तो पहले से ही लाहिया पहले से गांधी के साथ वहां थे। जब मैं (लाहिया) और नेहरू वहां धूम रहे थे तो वहां नदियां, झारियां जैसी अजीब भौगोलिक स्थिति थी। उमस थी। नेहरू ने लोहिया को कहा कि राम मनोहर, मैं इस तरह का भारत नहीं चाहता। लोहिया लिखते हैं कि वहां की भोगोलिक स्थितियां थी, उसने नेहरू के नजर में भारत का बटवारा तय कर दिया। उस समय तक माउंटबेटन प्‍लान आया भी नहीं था। लोहिया की  पुस्‍तक का कभी किसी ने खंडन नहीं किया। नेहरू १९४६ में ही बटवारे का मन बना चुके थे। उन्‍हें सत्‍ता की इतनी भूख थी। वे २८ लाख हिंदु जो काट दिए गए उन्‍होंने पाकिस्‍तान नहीं मांगा था। 

उनको नहीं मालूम था कि इन नेताओं में क्‍या डील हुई है। वो रेडक्‍लीफ कौन है। बापू तुम्‍हारी लाश पर नहीं मगर २८ लाख भारतीयों के लाश पर भारत का बटवारा हुआ। 

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