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Chinese Karona virus has brought some possibilities for India






मुंबई :  संकट संभावनाओं को लेकर आता है। चायनिज कोरोना  वायरस के कारण  बेशक आज हम सब संकट से गुजर रहे हैं । मगर यह भारत के लिए संभावनाएं भी लेकर आया है। देखना यह है कि हम उनका क्‍या लाभ उठा पाते हैं।   

इस महामारी के कारण चीन से बहुत सारी कम्‍पनियां सिफ्ट कर रही हैं। उन कम्‍पनियों के लिए भारत एक स्‍वाभाविक विकल्‍प है। इसलिए भारत के लिए यह एक बड़ा मौका भी है। इसके बाद जिओ पालिटिकलल इक्‍वेशन  बदलेगा। हाणि लाभ के इस खेल में लाभ का बड़ा हिस्‍सा भारत के पक्ष में आता हुआ दिख रहा था। क्‍या भारत उस अवसर को ठीक से भुना पा रहा है ? इस संदर्भ में कंट्राडिक्‍ट्री रिपोर्ट्स आ रही हैं।

चीन से बहुत सारी कम्‍पनियां बाहर निकलने की कोशिश कर रही हैं। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया का चीन के औटो और एलेक्‍ट्रोनिक्‍स  क्षेत्र में भारी इनवेस्‍टमेंट है। ये कम्पिनियां चीन से बाहर निकलना चाहती हैं। वे विकल्‍प तलाश रही हैं। चीन से निकलने वाली कम्पिनियां वियतनाम, मलेशिया, ताइवान, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलिपिंस, और भारत को विकल्‍प के रूप में देख रही हैं। अभी NOMURA  ने NPRI  नोमुरा प्रोडक्‍शन, रिलोकेशन इंडेक्‍स रिपोर्ट पेश की है, कि ये चीन से निकलने वाली कम्पिनियां कहां जा सकती हैं।  

उसमें भारत के लिए संभावनाएं कम हैं । इस रिपोर्ट के तीन पैमाने हैं। पहला जो कम्‍पनियां चीन में काम कर रही थी, उनका आधार क्‍या था, उनको कहां कहां निर्यात करने का प्रोस्‍पेक्‍ट था । एमएनसीज के हिसाब से जिस शहर में रिलोकेट किया जाना है, उसका गुणवत्‍ता  सर्वेक्षण के हिसाब से क्‍या स्‍टेटस है ? विदेशी निवेश को आकर्षित करने की क्षमता उस देश उस स्‍थान में  कितनी है? उल्‍लेखनीय है कि भारत का एफडीआइ अच्‍छी है।

लेकिन जब इन पैमानो पर नोमुरा ने इनको देखा तो उसकी पहली पसंद वियतना रही MPRI index  में दूसरा मलेसिया, तीसरा सिंगापुर, और  चोथा स्‍थान भारत का रहा । कम्पिनियों के रिलोकेट करने के लिए जो MPRI index  में प्‍वाइंट दिए गये हैं वह इस तरह हैं- वियतनाम पहली पसंद  ३.५, दूसरी १.७ मलेसिया, तीसरी १.७  सिंगापुर, चोथी १.६ भारत, पांचवीं १.२ थाइलैंड, ६ठी ०.४ फिलिपिंस, सातवीं ०.३ इंडोनेशिया।

इस रिपोर्ट को देखकर लगता है कि भारत सरकार को युद्ध स्‍तर पर काम करना चाहिए। चीन से जो कम्‍पनियां निकलेंगी उनका स्‍वभाविक विकल्‍प भारत होना चाहिए। मगर यह रिपोर्ट तो कुछ अलग बात बता रही है।  उसने ५६ कम्‍पनियों पर आधारित यह रिपोर्ट बनायी।  ५६ में से २६ कम्‍पनियां वियतनाम जा रही हैं।  ११ कम्‍पनियां ताइवान जा रही हैं। और ८ कम्‍पनियां थाइलैंड जा रही हैं। ५६ में से सिर्फ ३ कम्‍पनियां भारत आ रही हैं। यह अच्‍छा संकेत नहीं है।

वियतनाम चीन जैसा ही कौम्‍यूनिष्‍ट देश है, जो धीरे धीरे कैपिटलिस्‍ट होता जा रहा है। थाइलैंड राजशाही वाला देश है। मलेशिया एक इस्‍लामी देश है। अगर ये देश चीन से निकलने वाली कम्पिनियों की पसंद बन रही है, तो भारत सरकार को अपनी नीति और उसके क्रियान्‍वन के हिसाब से देखना चाहिए कि कहां गड़बड़ हो रहा है।

भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए। उसे प्रयास करना ही चाहिए कि किस तरह ज्‍यादा से ज्‍यादा कम्पिनियां भारत आ जाये। आज भारत में इसके लिए एक अनुकूल वातावरण भी है। केंद्र में एक ऐसी सरकार भी है जो इमानदार है, जिसमें निर्णय लेने की और उसे क्रियान्वित करने की क्षमता भी है। आज हम पुराने भ्रष्‍ट सरकारी तंत्र से मुक्ति पा चुके हैं। तो इससे बढि़यां समय क्‍या हो सकता है?

अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान दूसरे देशों पर भारत को प्राथमिकता दे भी रही हैं। लेकिन भारत सरकार को इसके लिए आक्रामक नीति लागू करने की जरूरत है। सरकार को केस टू केस स्‍टडी करके उनसे बातचीत करनी चाहिए । राज्‍यों के मुख्‍य मंत्रियों से बात कर उन्‍हें प्रोत्‍साहित करनी चाहिए। फेडरल स्‍ट्रक्‍चर की भावना पालन करने का समय आ गया है । राज्‍यों में प्रतिस्‍पर्धा होनी चाहिए कि चीन से आने वाली कम्‍पनियों को कौन ज्‍यादा आकर्षित करता है। सारा काम  तुरंत किया जाना चाहिए । टेलीनॉल, जानसन एंड जानसन, एम्‍फीनॉल जैसी अनेक कम्‍पनियां अपना कारोबार चीन से समेटना चाहती हैं। जापानी कम्‍पनियां रिको, सोनी, एक्सिस बाहर जाने की योजना बना चुकी हैं। जापानी संसद ने चीन में स्थित जापानी कम्पिनियों को रिलोकेट करने हेतु २.२ विलियन डालर के मदद का प्रपोजल दिया है। हमारा भारत कहां है? यह ऐतिहासिक अवसर है। यह हाथ से निकल गया तो हमें अफसोस के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा।

नाइके थाइलैंड और वियतनाम के अलावा भारत आने की संभावना तलाश रही है। रीको की प्रिटर उत्‍पाद इकाई जुलाइ में ही थाइलैंड चली गयी। पैनासोनिक बाहर जाने की संभावना तलाश रही है। जापानी कार  कम्‍पनी माजदा चीन के जियांगसू से भारत नहीं आयी, वह मैक्सिको गुआंगजुगाटो चली गयी। उसने इसी महामारी के बीच सिफ्ट कर लिया।  
यह तब हो रहा है, जब कि भारत सरकार ने विदेशी कम्‍पनियों को भारत लाने के लिए कोरपोरेट टैक्‍स में भारी कमी की है। यह ३५ से २५ प्रतिशत और कुछ चीजों में १७ प्रतिशत तक कमी की गयी है। इससे कम्‍पीटिटिव टैक्‍स स्‍ट्रक्‍चर नहीं हो सकता।  इसके बावजूद ये कम्पिनियां क्‍यों नहीं आयी। भारत के पास बड़ा एडवांटेज है। वह बांकी किसी के पास नहीं है। भारत चीन के बाद वह दुनियां का सबसे बड़ा बाजार है। नोमुरा का पहला पैमाना है बाजार। भारत में उत्‍पादित अधिकांश सामान तो भारत में ही खप जाएगा। यहां तो निर्यात का कोई चक्‍कर भी नहीं है।

मोदी साहब के पहले कार्यकाल  में फोन बनाने के मामले में बहुत सारी कम्‍पनियां भारत आयी और उन्‍हें बहुत सफलता मिली। हालांकि वह चाइनिज कम्‍पनियां हैं।  अब यह क्रूसियल मौका है। ताजा यूबीएस की मारकेट रिपोर्ट  यह है कि चीन से बाहर आने वाली कम्‍पनियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्‍त देश भारत है। यूबीएस ने ५०० बड़ी कम्‍पनियों के सीनियर एक्‍सक्‍यूटिवों से बात करके यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके बावजूद वियतनाम, थाइलैंड, सिंगापुर, आदि बाजी मार रहे हैं। यह सही नहीं हो रहा है। यह दोष किस पर जाएगा। सरकारी अमला पर, और  नीतियों को लागू करने में उसकी  शिथिलता पर ही सारा दोष जाएगा न । यह वक्‍त है कि सरकार तय करे, योजना बनाए और देश के अलग अलग हिस्‍से में चीन के हर शहर से मैन्‍यूफैक्चिरिंग इकाइयों को भारत लेकर आना  चाहिए। यह अवसर किसी को नहीं मिला। इससे भारत के  ६५ विलियन डालर का ट्रेड डेफिसिट खत्‍म हो जाएगा, अगर इस अवसर का लाभ उठा लिया। मेक इन इंडिया की सफलता के लिए यह जरूरी है कि ये कम्‍पनियां भारत आ जाय।

लेकिन भारत में सब कुछ बंद ही रहेगा तो वे कम्पिनियां भारत थोड़े आएंगी। भारत में जो कम्पिनियां है, इस माहौल में भी उनका काम करना शुरू होना चाहिए। इसका कुछ उपाय करना होगा। यही देख कर वे कम्पिनियां भारत में आएगी। चीन में जब महामारी आयी तो वह नहीं सम्‍हाल पाया। अगर उस प्रकोप से, उसके कहर से, भारत में कम्पिनियां शुरू ही नहीं हो पाएगी तो कैसे कोई कम्पिनी यहां आएगी।

निश्चित तौर पर भारत के पक्ष में बहुत सी बातें हैं। बड़ी कम्‍पनियां आएंगी तो छोटी कम्‍पनियां उसके पीछे आ जाएंगी। एक्‍सलरीज पीछे आ जाएंगी। वेंडर्स पीछे आ जाएंगे। आप अपने देश के कम्पिनियों को, इंडस्‍ट्रीज को खोलिए। स्‍टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसेड्योर लगाइए। इकोनोमिक एक्टिवीटीज चलाना पड़ेगा। इस काम के लिए सरकार की तैयारी है क्‍या? भारतीय मैन्‍यूफैकचरिंग हब को चालू करना ही पड़ेगा। ३ मई से पहले हमे इसके लिए सारी तैयारी कर लेनी होगी। 
यह भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर है। यह भारत को  आधुनिक दृष्टि से विश्‍व गुरु बना सकता है। भारत को चूकना नहीं चाहिए। इसीलिए तो भारत रिजनल कम्‍परेहेंसिव पार्टनर शिप (आससीइपी) से बाहर आया था। चंदवरदाई की कविता की इन पंग्तियों के साथ हम इस लेख की इति करते हैं।

चार बांस चौबीस गज अंगुलि अस्‍त प्रमाण।
ऐते पे सुलतान है, चूको मत चौहान।।                           


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