मुंबई: कोरोना महामारी एक कुदरती कहर है। कोरोना एक जिवित वायरस है। इसके संक्रमण की गति काफी तेज है। यह तेजी से मलटीप्लाई होता है। यह एक साथ सारे विश्व में फैल गया। पिछले एक शताब्दी में यह अपने तरह का अनोखा फेनोमेना है। सौ सवा सौ साल पहले भी इस तरह की महामारी आयी थी। सैन मारकोस कम्पनी के डायरेक्टर मनीष मेहता ने यह जानकारी दी।
मानव ने प्रकृति के साथ छेड़छार किया है, प्रकृति ने उसका यह जवाब दिया है
उन्होंने कहा कि मानव जाति ने प्रकृति के साथ अभूतपूर्व छेड़छार किया है। प्रकृति ने उसका यह जवाब दिया है। यह प्रकृति की ओर से मानव जाति के लिए एक सिगनल है कि हमें दूसरे जीव जंतुओं की भी परवाह करनी चाहिए।
श्री मनीष मेहता ने कहा कि इस कोरोना महामारी के कारण पूरा टेक्सटाइल उद्योग प्रभावित हुआ है। उसमें यार्न वाले, ग्रे वाले, रौ मेटेरियल वाले, पैकिंग और सपलाइ करने वाले, सभी लोग प्रभावित हुए हैं।
हर उत्पादक के पास उसकी क्षमता से ज्यादा उत्पादन उसके स्टॉक में पड़ा है
सैन मारकोस ब्रांड के डायरेक्टर ने कहा कि फैब्रिक उत्पादन पर तो यह असर अंदाज इस लिए नहीं हो पाया कि आज हर उत्पादक के पास उसकी क्षमता से कहीं ज्यादा उत्पादन उसके स्टॉक में पड़ा है। अधिकांश फैब्रिक उत्पादकों के पास उसकी क्षमता से कई गुणा ज्यादा कपड़ा बन कर तैयार पड़ा है। कपड़ा का उत्पादन इतना विशाल था कि जितना कपड़ा बनता था उसे हम खपा ही नहीं पाते थे।
मजदूरों को मिल वालों ने सम्हाल कर नहीं रखा
लेबरों के पलायन के बारे में उन्होंने कहा कि जो लेबर गांब चले गये, उसमें से अधिकांश नहीं लौटेंगे। लेबरों को बहला फुसला कर यहां तक कि जाजती करके गांव लौटने के लिए मजबूर किया गया। मजदूर डरे और सहमे हुए हैं।
सैन मारकोस कम्पनी के डायरेक्टर ने कहा कि मजदूरों को मिल वालों ने सम्हाल कर नहीं रखा। उनके खाने पीने और जरूरतों की मालिकान ने और सरकार ने भी परवाह नहीं की। वे घर जाने के लिए विवस हो गये। जरूरत थी उनके खातों में पैसा डालने की । बड़ी से बड़ी मिलों और कम्पनीओं ने ऐसा नहीं किया। किसी ने ऐसा नहीं किया कि मजदूरों को रूकने का मन हो पाता। बेशक उनकी यह क्षमता थी मगर नीयत नहीं थी। अगर उन्होंने उन्हें महीने दो महीने सम्हाल लिया होता तो यह हाल नहीं होता। मजदूरों को इस कोरोना महामारी में यह भी मेहसूस हो गया कि उसके लिए किसी के पास अपनापन नहीं है। वे मालिकान से, सरकार से, पूरे तंत्र से दुखी होकर, पीडित होकर गये हैं। किसी मकान मालिक ने उनसे यह नहीं कहा कि इस कोरोना महामारी के दौरान हम तुम्हें कुछ रियायत देते हैं।
मानव कल्याण और पुण्य का अवसर सामने से चलकर आया था, मगर मालिकान लोग उस पूण्य का लाभ उठाने से चूक गये
उन्होंने कहा कि मैंने अपने सारे स्टॉफ की परवाह की । मेरा एक भी स्टाफ घर नहीं गया। मगर ऐसा सभी मालिकान को, सभी टेक्सटाइल उत्पादकों को करने की जरूरत थी। व्यापक रूप से ऐसा प्रबंध करने की जरूरत थी। उनके पास मानव कल्याण और पुण्य का अवसर सामने से चलकर आया था। मगर मालिकान लोग उस पूण्य का लाभ उठाने से चूक गये।
1 टिप्पणियाँ
माननीय मनीष जी ने अपने शब्दो द्वारा समाज के प्रती एक शानदार कदम बढाया । मै उनकी सराहना करता हू।ना केवल मानवता बल्कि देश के एक जिम्मेदार नागरिक का कर्त्क़्व्य निभाया।
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