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अर्नव को फिर फसाया गया एक फर्जी मुकदमें में

ARNAV GOSWAMI

 

 

 

मुंबई: अर्नव को फिर एक फर्जी मुकदमें में फसाया गया। अदालत इसका सज्ञान लेगी। मगर जो कुछ भी महाराष्‍ट्र में हो रहा है, उसको ठीक से देखने की जरूरत है। अर्नव गोस्‍वामी को महाराष्‍ट्र पुलिस ने सुबह सुबह उठा लिया। वह उन्‍हें गिरफ्तार करके ले गयी।

 

गिरफ्तारी के जो विडियो उपलब्‍ध हैं उससे साफ दिखता है कि पुलिस ने उनके साथ दुव्‍यवहार किया है। पुलिस ने बाकायदा उनके साथ धरपकड़ किया। धक्‍का मुक्‍की की। अशोभनीय व्‍यवहार किया। एक सम्‍मनित आदमी को अपमानित करने के लिए जो कुछ भी किया जा सकता है, वह महाराष्‍ट्र पुलिस ने किया। उनके साथ पुलिस बाजाप्‍ता मैनहैंडलिंग करती हुयी दिखती है।नकालसं‍ळृ उनको गिरफ्तार करने के लिए जो पुलिस जत्‍था आयी उसमें ७० पुलिसकर्मी थे। कई पुलिसकर्मी के हाथ में एके ४७ थे। आखिर पुलिस को इतने पुलिसकर्मियों के साथ इस अभियान में आने की क्‍या जरूरत पड़ी?

 

इस मामले में गिरफ्तारी करने की जरूरत क्‍यों पड़ी ?    

अगर सचमुच अर्नव गोस्‍वामी के खिलाफ किसी तरह का केस होता, अगर अर्नव गोस्‍वामी के खिलाफ मुंबई पुलिस कुछ भी करने की स्थिति में होती, तो इस मामले में उसे गिरफ्तारी करने की जरूरत नहीं होती।

अगर फेक टीआरपी का मामला दुरुस्‍त होता, तो पुलिस उसी मामले में क्‍या उसे गिरफ्तार नहीं कर लेती? मुंबई पुलिस कमिश्‍नर ने प्रेस कानफ्रेंस करके अर्नव और रिपब्‍लिक पर जैसे यह आरोप लगाया उसके पंद्रह मिनट के अंदर उसकी बात झूठी हो गयी। मुंबई पुलिस ने अर्नव गोस्‍वामी को परेशान करने के लिए अनेक मामल बनाए। और वे सभी ध्‍वस्‍त होते चले गये।

सुशांत सिंह की कथित आत्‍महत्‍या के सिलसिले में पुलिस ने अर्नव गोस्‍वामी के ऊपर मामला बनाया कि वे अपने प्रसारण के माध्‍यम से सामाजिक द्वेष पैदा करना चाहते है। सोनिया के खिलाफ जो टिप्‍पणी की उसपर पुलिस ने मामला बनाया।

पालघर में साधुओं के मामले में पुलिस ने अर्नव गोस्‍वामी के ऊपर मामला बनाया कि रिपब्‍लिक टीवी अपने प्रसारण के माध्‍यम से सामाजिक द्वेष पैदा करना चाहती है। मुंबई पुलिस के कमिश्‍नर ने कहा था कि अर्नव गोस्‍वामी ने मुंबई पुलिस को भड़काने की कोशिश की। मगर इसमें से कोई मामला चल नहीं पाया।

 

अब इतने मामलों के बावजूद  अगर   मुंबई पुलिस को एक ऐसे मामले को खोलना पड़ा जो वर्ष २०१८ में बंद हो चुका है। उस मामले में अगर मुंबई पुलिस को अर्नव की गिरफ्तारी करनी पड़ गयी तो इसका मतलब है कि अर्नव गोस्‍वामी को कांग्रेस एनसीपी शिवसेना की सरकार किसी भी मामले में बंद कर देना चाहती है।

 

जबकि उनके खिलाफ मुंबई पुलिस को गिरफ्तार करने का कोई आधार नहीं मिलता है ताकि उसको गलत साबित किया जा सके। ना तो सोनिया गांधी की टिप्‍पणी के मामले में, ना तो पालघर में जब भीड़ ने साधुओं की हत्‍या कर दी और उसपर रिपब्‍लिक टीवी ने जो कवरेज की उसके मामले में, ना तो सुशांत सिंह राजपूत के कथित आत्‍म हत्‍या के मामले में जो कुछ उन्‍होंने कहा उसके मामले में, ना तो परमवीर सिंह के खिलाफ पुलिस विद्रोह करवाने के मामले में। आखिर इन किसी भी मामले में मुंबई पुलिस को अर्नव गोस्‍वामी के खिलाफ कोई आधार नहीं मिलाता है तो क्‍या यह नहीं मानना चाहिए कि यह पूरा का पूरा मामला फर्जी है।

तब जाकर यह कोशिश की गयी कि एक ऐसा मामला निकाला जाय जिससे अर्नव गोस्‍वामी के खिलाफ कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाइ की जा सके। किसी ऐसे मामले में उसे फसाया जाय कि जिससे अर्नव गोस्‍वामी कानूनी तौर पर जमानत न हासिल कर सकें। मामला उनकी गिरफ्तारी से आगे जा सके। वे जब पुलिस की गिरफ्त में जाएं, उनपर जो यातना किया जा सके, अत्‍याचार किया जा सके, वह उनको डराने के काम आये। इसी लिए यह गिरफ्तारी की गयी।

क्‍लोजर रिपोर्ट

जब कोई केस क्‍लोज होता है तो उसकी बाजाप्‍ता कोर्ट के अंदर क्‍लोजर रिपोर्ट लगती है।  उस रिपोर्ट पर कम्‍पलेनेंट को नोटिस दिया जाता है कि पुलिस ने यह क्‍लोजर रिपोर्ट फाइल की है । इसपर यदि आपको कुछ कहना है। यदि आपके पास अन्‍य कोई तथ्‍य हो तो कोर्ट के सामने लाएं। कोर्ट उसकी सुनबाइ करके उसके बाद उस रिपोर्ट को एक्‍सेप्‍ट करता है।

 

आज जिस मामले में अर्नव को गिरफ्तार किया गया है उस मामले की क्‍लोजर रिपोर्ट अदालत दो साल पहले एक्‍सेप्‍ट कर चुकी है।

 

इसके बावजूद उस मामले को फिर से खोलकर उस आधार पर अर्नव गोस्‍वामी को मुंबई पुलिस एरेस्‍ट करती है यह कानून का सरासर उलंघन है। यह सीआरपीसी का उलंघन है।

 

क्‍या मात्र पत्रकारों को इसका विरोध करना चाहिए?

क्‍या यह वक्‍त है‍ कि पत्रकारों को एक होना चाहिए। क्‍या सारे पत्रकारों को इसलिए एक हो जाना चाहिए कि एक पत्रकार को मुंबई पुलिस ने उठा लिया है। यह उससे बहुत आगे का मसला है। यह लोकतंत्र पर हमला है। डेमोक्रेसी खतरे में है। तानाशाही बढ़ रही है। महाराष्‍ट्र सरकार, मुंबई पुलिस, अर्नव गोस्‍वामी को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लेती है कि उन्‍होंने पोलिटिकल मास्‍टरों को चुभने वाले सवाल पूछा। अगर इस आधार पर देश भर में पत्रकारों की गिरफ्तारियां होने लगे तो शायद ही कोई पत्रकार बचा रहेगा। आज नहीं तो कल सबकी गिरफ्तारी हो सकती है।

आई सपोर्ट अर्नव यह कोई हैसटैग भर नहीं है। यह लोगों की मन की बात है। यह आम जनमानस की बात है। यह मास की इच्‍छा की बात है। केंद्र सरकार क्‍या कर रही है ? क्‍यों वे सिर्फ बयान देकर काम चला रहे हैं? किसी भी स्थिति में केंद्र सरकार या उसके  किसी एक नेता के कहने से लोकतंत्र जीवित रहेगा? बेशक केंद्र सरकार की जो भी एजेंसियां है उसे इसको सपोर्ट करने की जरूरत है। मगर लोकतंत्र को बचाने की जिम्‍मेवारी हम सबों की है। लोकतंत्र के खात्‍मा से सबों को तकलीफ हो सकती है।

 

मुंबई पुलिस ने जो फेक टीआरपी का मामला दर्ज किया

 

मुंबई पुलिस ने जो फेक टीआरपी का मामला दर्ज किया, वह मामला शुरू में ही फ्राड निकला। जब हरीश साल्‍बे ने यह मामला सीबीआई को देने की वकालत की तो महाराष्‍ट्र सरकार और मुंबई पुलिस बैक फुट पर चली गयी।

अगर फेक टीआरपी रैकेट चल रहा है तो वह देश के हर हिस्‍से में चल रहा होगा। जहां जहां भी केबल टीवी नेटवर्क है, जहां जहां भी इस तरह की संभावनाएं खोजी जा सकती हैं।  वहां वहां यह चल रही हैं होगी। तो आखिर मुंबई की पुलिस और महाराष्‍ट्र की सरकार क्‍यों इस बात से डरती है? वह क्‍यों यह नहीं चाहती है कि सीबीआई इस मामले की जांच करे। हालांकि जांच तो निश्‍चित तौर पर होगी। महाराष्‍ट्र सरकार कितना भी दम लगा ले, उसे कोई रोक नहीं सकता है।

 

कांग्रेसी नेताओं ने चाहा कि इस तरह को एक नियम बना देते हैं कि केंद्रिय एजेंसियों को महाराष्‍ट्र में कोई जांच शुरू करने से पहले राज्‍य सरकार से इजाजत लेनी पड़ेगी।

 

आउटपुट एडीटरों के विरुद्ध भी मामला दर्ज किया गया

जो लोग टीवी चैनेल के अंदर काम करते हैं उनके विरुद्ध भी मामला दर्ज कर लिया है। उसके उपरांत उन्‍हें पूछताछ के लिए बुलाया गया। न्‍यूजरूम इंचार्ज जिन्‍हें आउटपुट एडीटर कहते हैं, उनको बुलाकर घंटों पूछताछ करते हैं। अर्नव से बारह बारह घंटे की पूछताछ, उनके सीपीओ प्रदीप भंडारी से पूछताछ,  जमानत के बावजूद उसको थाने में बिठाना, उसका मोबाईल छीनना, उसको धमकाना, यह सब पुलिस ने कर लिया।

 

 

जिसकी क्‍लोजर रिपोर्ट लग चुकी है, उसकी फिरसे शिकायत दर्ज होती है

इन सब के बावजूद जब महाराष्‍ट्र सरकार को कुछ नहीं सूझता है, तो वह एक पुराना मामला जो क्‍लोज हो चुका है, जिसकी क्‍लोजर रिपोर्ट लग चुकी है, । उसकी फिरसे शिकायत दर्ज होती है। और सीधे महाराष्‍ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ट्विट करके कहते हैं कि उस मामले में जो चांज होनी चाहिए थी, वह नहीं हुयी। उस कारण से इस मामले में न्‍याय नहीं मिला। अब हम उस मामले में न्‍याय करेंगे। इसी लिए फिर से जांच खोल दी गयी है।

यह जांच इतनी तेजी में खोल दी गयी कि सुबह सुबह मुंबई पुलिस अर्नव गोस्‍वामी के घर  पहुंचती है, उसको उस पुलिस वैन में लेकर जाती है, । ऐसा दृष्‍य बहुत कम देखने में मिलता है। वो पुलिसवैन जिसमें अपराधियों को और आतंकवादियों को ले जाया जाता है। ऊपर से पुलिस अर्नव को धकियाते हुए जबर्दस्‍ती गाड़ी में ले जाती है।

 

ऐसा साहस बहुत कम पत्रकारों में होता है

ऐसा साहस बहुत कम पत्रकारों में होता है। आप एक उदंड, फासीवादी, तानाशाह सरकार के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। यह साहस कितने पत्रकारों में है। अर्नव तो पत्रकारो के लिए आदर्श है। उसकी निर्भीक पत्रकारिता के कारण सारा देश उसका दीवाना है। पब्‍लिक में उसकी इमेज सभी अन्‍य पत्रकारों से ऊंची है।

 

चैनल बंद कराने की कोशिश की गय, एडीटोरियलय डेस्‍क के लोगों को धमकाने की कोशिश की गयी, उनलोगों को रात में उठाकार पूछताछ की गयी कि वे डर जायें और अर्नव के खिलाफ बयान दे दें।

 

यह इतना भर मसला नहीं है कि एक पत्रकार गिरफ्तार हो गया है इसके खिलाफ पत्रकारों को खड़ा होना चाहिए। यह मसला यह है कि देश में जो भी लोकतंत्र का समर्थक है, जिसको यह लगता है कि यदि लोकतंत्र जीवित रहेगा तो हम किसी भी अन्‍य मुश्‍किल से निबट लेंगे।

 

चुने हुए मुख्‍यमंत्री का अपमान

उनका गुस्‍सा है कि चुने हुए मुख्‍यमंत्री का अपमान किया गया है। सच तो यह है कि मुख्‍यमंत्री ने तो पूरे जनमत का अपमान कर दिया है। राज्‍य की जनभावना का अपमान किया है। मगर वहां कोई दिक्‍कत नहीं है।

मुख्‍यमंत्री का अपमान के हिसाब से तो  अबतक देश के अधिकांश पत्रकारों की गिरफतारी भाजपा सरकार को करा देनी चाहिए थी। ऐसा तो नहीं है कि पहली बार किसी मुख्‍यमंत्री की आलोचना हो रही है। और आपको यदि यह लगता है कि मुख्‍यमंत्री की आलोचना करने पर मामला बनता है कि इसी आशय का केस अदालत में अर्नव के खिलाफ क्‍यों नहीं लगाते है। ये फर्जी मामले क्‍यों बनाते हैं? कानून को अपना काम करने क्‍यों नहीं देते?

 

इस फासिज्‍म के विरुद्ध सभी को नहीं खड़ा होना चाहिए

अर्नव के खिलाफ अब तक जितनी भी रिपोर्ट दर्ज हुए, सब फर्जी साबित हो चुके हैं। इस फासिज्‍म के विरुद्ध सिर्फ पत्रकारों को नहीं खड़ा होना चाहिए। जो भी लोकतंत्र का समर्थक है, जिसको भी लग रहा है कि महाराष्‍ट्र सरकार फासीवाद लाने की कोशिश कर रही है, आपात काल लाने की कोशिश कर रही है, उन सबों को अर्नव गोस्‍वामी के पक्ष में और महाराष्‍ट्र सरकार के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।

 

मेडिया के कॉमपीटिटर्स चुप

मेडिया के कॉमपीटिटर्स चुप। टाइम्‍स नाउ और इंडियन एक्‍सप्रेस ने इसमें सरकार का समर्थन किया है। बहुत सारे लोग विरोध कर रहे हैं, बहुत सारे चुप हैं, और ताली बजाने बालों की भी कमी नहीं है। जर्मनी में नाजियों ने इसी तरह राष्‍ट्र का संहार किया था। NAZI, नात्‍सी  या नाज़ी। 

नैशनल सोशलिस्‍ट। इन्‍होंने एक एक करके ग्रुप टारगेट किया। उन्‍होंने कोमुनिस्‍टों को पकड़कर टौर्चर किया, गायब कर दिया। बांकी लोग ताली बजाते रहे। फिर सोशलिस्‍टों का जो दूसरा गुप था उसको मारा। बांकी लोग ताली बजाते रहे। फिर ट्रेड युनियन वालों को मारा। बांकी लोग ताली बजाते रहे। फिर जियूज को मारा। कैथोलिक और प्रोटेस्‍टेंट लोग ताली बजाते रहे। यह ताली बजाने का काम तबतक चलता रहा जब तक जो लोग ताली बजा रहे थे उनकी समस्‍या नहीं खड़ी हुयी । एक जर्मन कबि ने इसपर एक कबिता लिखी जिसका अंग्रेजी अनुवाद है :

First they came for the communist. I did not speak out because I was not a communist. Then they came for the socialist. I did not speak out because I was not a socialist. Then they came for the trade unionist. I did not speak out because I was not a trade unionist. Then they came for the Jews. I did not speak out because I was not a Jews. Then they came for me.  There was no one left to speak out for me.

 

 

अब कौन सी नयी एवीडेंस आ गयी?

टाइम्‍स नाउ जिन वादियों को दिखा रहा है उन्‍हें कोर्ट में अवसर दिया गया था। इस सुसाइड रिपोर्ट को अदालत के सामने पेश किया गया था जिसे कोर्ट ने उसका सज्ञान लेने से मना करके क्‍लोजर रिपोर्ट को माना था। तो अब कौन सी नयी एवीडेंस आ गयी?

 

अर्नव का कद तो आम लोगों की नज़र में और ऊंचा हो गया है

सच यह है कि इनको किसी तरह अर्नव को बेइज्‍जत करनी थी। मगर यह ध्‍यान रहे कि जब इस तरह से बेइज्‍जती की जाती है, भरी पब्‍लिक में, जब जनता देख रही होती है, तो उससे बेइज्‍जती नहीं होती है। उससे उसकी इज्‍जत में दस गुणा बढ़ोतरी होती है। इजाफा होता है। अर्नव का कद तो आम लोगों की नज़र में और ऊंचा हो गया है।  

क्‍या आपको लगता है कि इस तरह आप उसके चैनेल को खत्‍म कर देंगे ? उसके चैनेल को खत्‍म करना आपके बस की बात नहीं है। अगर उसपर अत्‍याचार का हद हो जाएगा तो वह अपना हेडक्‍वार्टर सिफ्ट कर लेगा। क्‍या कर लोगे आप ? रोक लोगे उसको ? आप नहीं रोक पाएंगे।

यह जो हो रहा है वह अत्‍याचार है, दमन है । इसका प्रतिकार होना चाहिए। सबको मिलकर करना चहिए। अर्नव गोस्‍वामी के इस गिरफ्तारी के खिलाफ और महाराष्‍ट्र सरकार के इस तानाशाही के खिलाफ सबों को खड़े होना चाहिए। हमे अर्नव का साथ देना चाहिए।

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