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| Subramaniam Swami, BJP MP |
आज से १२ साल पहले २६/११/२००८ की रात को
मुंबई में आतंकी हमला हुआ था। पाकिस्तान से आए १० आतंकियों ने 166 लोगों की जान ली थी और 300 से अधिक लोगों को घायल किया था। मरने और घायल होनेवालों में भारत के अलावा दुनियां के १५ देशों के लोग शामिल थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे स्वयं भारत की तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने करवाया था ताकि भगवा आतंकवाद की कांग्रेस की मनग्रहंत थ्योरी को स्थापित किया जा सके।
सुब्रहमनियम
स्वामी ने कहा कि 26/11 का
मुंबई आतंकी हमला UPA (मनमोहन-सोनिया गाँधी सरकार) और ISI
का ज्वाइंट ऑपरेशन था। जिसका मकसद RSS को बैन
करना और हिंदुत्व को आतंकवाद से जोड़ना था।
उस रात पुलिस ने समझदारी दिखाते
हुए कसाब को जिंदा न पकड़ा होता तो आज कांग्रेस पार्टी 26/11 के उस हमले को
हिंदू आतंकवाद का उदाहरण देकर पेश कर रही होती।
लेट मी से इट नाउ (Let Me Say
It Now): राकेश मारिया
पूर्व आईपीएस ऑफिसर और मुंबई पुलिस के कमिश्नर रह चुके
राकेश मारिया ने अपनी आत्मकथा लेट मी से इट नाउ (Let Me
Say It Now) में मुंबई में 26/11 को
हुए आतंकी हमले में एकमात्र जिंदा गिरफ्तार किए गए आतंकी अजमल कसाब को लेकर बड़े
खुलासे किए हैं।
राकेश
मारिया ने अपनी किताब में दावा किया है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने 26/11 हमले को हिंदू
आतंकवाद का जामा पहनाने की कोशिश की थी। 10 हमलावरों को हिंदू
साबित करने के लिए उनके साथ फर्जी आईकार्ड भेजे गए थे। कसाब के पास भी एक ऐसा ही
आईकार्ड मिला था, जिस
पर समीर चौधरी लिखा हुआ था।
मारिया
ने अपनी किताब में यह भी दावा किया कि मुंबई पुलिस आतंकी कसाब की फोटो जारी नहीं
करना चाहती थी। उन्होंने लिखा, “ दुश्मन (आतंकी
कसाब) को जिंदा रखना मेरी पहली प्राथमिकता थी। कसाब के खिलाफ लोगों का आक्रोश और
गुस्सा चरम पर था। इतना ही नहीं, मुंबई पुलिस के ऑफिसर भी
आक्रोशित थे। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा आतंकी
कसाब को किसी भी हाल में रास्ते से हटाने (मार डालने) की फिराक में थे क्योंकि
कसाब मुंबई हमले का सबसे बड़ा और एकलौता सबूत था।”
पूर्व
आईपीएस ऑफिसर ने लिखा कि पुलिस ने पूरी कोशिश की थी कि आतंकी की डिटेल मीडिया में
लीक न हो। उनका ये भी दावा है कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के गैंग को कसाब को
मारने की सुपारी मिली थी।
26 नवंबर, 2008 को मुंबई में 10 आतंकियों ने तीन
जगहों पर हमला किया था। इन हमलों में 166 लोग मारे गए और
सैकड़ों लोग घायल हुए थे। इन 10 हमलावरों में बस एक अजमल कसाब
ही जिंदा पकड़ा जा सका था। कसाब को 21 नवंबर, 2012 को पुणे के यरवडा
जेल में फाँसी दे दी गई थी।
कसाब, अकेला आतंकी
था जो जिंदा पकड़ा गया था। उसकी गिरफ्तारी के बाद ही मालूम चला था कि पाकिस्तान की
ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा और भारत की कांग्रेस पार्टी चाहते
थे कि अजमल बतौर समीर चौधरी मरे। ताकि दुनियां
हिंदुओं पर ऊँगली उठाए और इस पूरे हमले को भगवा आतंक करार दिया जा सके। अपने इसी
इरादे को पूरा करने के लिए उस रात मुंबई में घुसने वाले दसों आतंकियों की कलाई पर
भगवा और लाल रंग का कलावा बाँधा गया था, जिससे उनके हिंदू प्रतीत होने में कोई संदेह न रह
जाए।
दसों आतंकियों को भारतीय पते के साथ पहचान पत्र मुहैया
कराए गए थे। सभी के पहचान पत्रों पर हिंदू नाम था। ऐसे में अजमल कसाब का जिंदा
पकड़ा जाना मुंबई पुलिस के लिए एक बड़ी कामयाबी थी। इसके कारण पूरे मामले में कई
खुलासे हुए।
तुकाराम ओंबले की कुर्बानी, संजीव गोविलकर का धैर्य
कसाब को पकड़ने के लिए पुलिस कॉन्स्टेबल तुकाराम ओंबले ने अपने सीने पर 40 गोली खाई थी। उनके बलिदान के कारण ही कसाब को जिंदा पकड़ा जा सका। लेकिन ये बात बहुत कम लोगों को पता है कि उस रात कसाब को जिंदा पकड़वाने में एक पुलिस इंस्पेक्टर संजीव गोविलकर का भी हाथ था।
उस रात कॉन्स्टेबल तुकाराम ओंबले की बहादुरी और डीबी
मार्ग पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर संजीव गोविलकर की समझदारी ने ही कसाब को जिंदा
पकड़वाया।
तुकाराम ओंबले को नमन
पुलिस कॉन्स्टेबल तुकाराम ओंबले के बलिदान के कारण ही कसाब को जिंदा पकड़ा जा सका। उसे मालूम था कि आगे जाने में उसकी मौत निश्चित है। इसके बावजूद तुकाराम ओंबले अपने फर्ज से डिगे नहीं। भारत माता के ऐसे वीर सुपुत्र का देश का शत शत नमन। उनके लिए कोई भी सम्मान छोटा है।
डीवी मार्ग पुलिस स्टेशन के एसिस्टेंट सब इंस्पेक्टर शहीद तुकाराम ओंमले मोटर साइकिल से कसाब के कार का पीछा करते हुए कार के पास पहुंच गये। जैसे ही कार डिवाइडर से टकरा कर रुकी, वैसे ही दोनो फिदायीन आतंकवादियों ने खिड़की से ओंमले पर गोलीवारी शुरू कर दी।
तुकाराम ने बिना वक्त गवाए अपनी बाइक कार के आगे खड़ी कर दी। और दौर कर कसाब के एके ४७ का बैरल पकड़ लिया। कसाब के एके ४७ से गोलियों की बरसात हो रही थी। लेकिन तुकाराम ने गोलियों की परवाह किए बिना सामने से जाकर एके ४७ के बैरल को इतनी जोर से पकड़ लिया कि कसाब चाहकर भी उसे तुकाराम ओंमले की पकड़ से छुड़ा न सका। कसाब के एके ४७ की सारी गोलियां तुकाराम के सीने में उतरती चली गयी। तुकाराम ने हंसते हुए फिदायीन की गोलियों को अपने सीने में उतरने दिया, मगर बैरल नहीं छोड़ा। लेकिन मरने से पहले वो काम कर गये जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। उन्होंने कसाब को जिंदा पकड़ लिया।
इस कुर्बानी की बदौलत तुकाराम कसाब को जिंदा पकड़ने में कामयाब हो गये। राकेश मारिया ने अपनी किताब में लिखा है कि यदि कसाब उस फर्जी आइ डी के साथ मारा गया होता तो अगले दिन अखबारों की हेडलाइन चीख रही होती कि कैसे हिंदू आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला किया और दहशत की मिसाल कायम कर दी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, जिस समय कसाब को पकड़ने के लिए तुकाराम आगे बढ़े, उस समय कसाब ने उनपर बिना रुके गोलिया चलाईं। साथी को
घायल देख अन्य पुलिसकर्मी भी बौखला गए और उसे मारने के लिए आगे बढ़े। लेकिन तभी, गोविलकर ने उन्हें समझाया और सलाह दी कि उसे मत मारो, वही तो सबूत है।
इसके बाद कसाब की गिरफ्तारी हुई। यदि उस दिन पुलिसकर्मियों ने आवेश में आकर कसाब को भी वैसे ही मार गिराते जैसे अन्य आतंकियों को ढेर किया था, तो शायद यह आजीवन राज ही रहता कि उस रात हिंदुओं की वेशभूषा में इस्लामिक आतंकी आए थे।
मीडिया की भूमिका विवादित
रही
नवंबर
26, 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले के दौरान मीडिया की
भूमिका काफ़ी विवादित रही। ख़ासकर, एनडीटीवी की
बरखा
दत्त जैसे पत्रकारों ने जिस तरह की रिपोर्टिंग की, उससे सैकड़ों लोगों
की जान आफत में आ गई।
देश
की वित्तीय राजधानी को 10 आतंकियों ने एक तरह से 4 दिनों तक बंधक बना
कर रखा। 166 लोग मारे गए, जिनमें कई विदेशी नागरिक भी थे।
9 आतंकी
मार गिराए गए और अजमल कसाब ज़िंदा पकड़ा गया।
पाकिस्तानी
आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने इस पूरी वारदात की साज़िश रची थी। भारत में जो प्रसारण
हो रहा था पाकिस्तान में भी दिखायी जा रही थी। आतंकवादियों को पाकिस्तान से निर्देश
दिए जा रहे थे। एन डी टीवी इस तरह धटना का
प्रसारण कर रहा था जिसेसे आंतकवादियों को अपना काम करने में सहूलियत हो रही थी। होटल
से संपर्क करके जो सूचना उन्हें मिल रही थी उसे वे सुरक्षा की परवाह किए बगैर प्रसारित
कर रहे थे।
अगस्त
2012 में प्रोपगेंडा पोर्टल न्यूज़लॉन्ड्री को दिए गए इंटरव्यू में बरखा
दत्त ने स्वीकार किया था कि मुंबई हमले के दौरान टीवी चैनलों और उनके पत्रकारों ने
जिस तरह की रिपोर्टिंग की, उससे
सैकड़ों लोगों की जान ख़तरे में आ गई थी। विवादित पत्रकार बरखा दत्त ने यह भी कहा कि
टीवी चनलों की रिपोर्टिंग ऐसी थी कि कई सुरक्षा बलों के जवानों की जान भी ख़तरे में
पड़ गई थी।
पत्रकार
कुंते ने मुंबई हमले के दौरान हुई एक मौत को लेकर बरखा को जिम्मेदार ठहराया था।
आरोप है कि बरखा दत्त ने मुंबई हमले के दौरान फँसे एक व्यक्ति के किसी संबंधी को
फोन किया और उसकी लोकेशन उजागर कर दी। सब कुछ टीवी पर लाइव चल रहे होने के कारण
आतंकियों को उस व्यक्ति के छिपे होने का स्थान मालूम पड़ गया।
आरोप लगा था कि बरखा दत्त ने ओबेरॉय होटल के मैनजरों को कॉल किया, जिसके बाद पता चला कि वहाँ कई लोग बंधक बनाए गए हैं। आतंकियों को ये बात भी टीवी से पता चल गई।
इस हमले की सेटिंग और भगवा आतंकवाद पर छपी पुस्तक का विमोचन
दिगविजय सिंह ६ दिसम्बर २००८ को एक किताब रिलिज की। किताव का नाम था, २६/११ आर एस एस की साजिश। इसे लिखा था उर्दू सहारा न्यूजपेपर के एडीटर अजीज बर्नी ने।
२६ नवंबर को हमला होता है। २७ और २८ नवंबर तक हमला चलता रहा। यह बुक लिखी गयी । यह छपी । बाइंडिंग हुयी। कवर पेज डिजायन हुआ। ये सब ८ दिनों के अंदर कैसे हो गया। किताब लिखने में महीनों और बरसों लगते हैं। ऐसा लगता है कि इसका अधिकांश पहले ही लिखा जा चुका होगा। यह सब पूर्व निर्धारित था। इस षडयंत्र में यह लेखक बराबर शामिल था। उस किताब की लांचिंग पर दिगविजय सिंह के साथ मौलाना मदनी थे, महेश भट्ट भी थे। ये देश के वे गद्दार हैं जो पाकिस्तान के साथ खड़े रहते हैं।
नेवी का सर्वेलांस
नेवी ने जो सीमा चौकसी कर रखी है वह इतनी टाइट सेकुरिटी है कि आप एक छोटी नाव से भी भारत की सीमा में नहीं घुस सकते हैं। जबरदस्त सर्वेलांस का बंदोबस्त होता है। समंदर की सीमा में पूरा सेकुरिटी सिस्टम लगा हुआ है। फिर ऐसा क्या हुआ था कि आधे घंटे के लिए सर्वेलांस को बंद किया गया था। क्या उनको सेफ पैसेज दिया गया ?
भगवा आतंकवाद का नाटक से पाकिस्तान को क्या फायदा था?
यदि पाकिस्तान को भारत से बदला लेना था तो उसे भगवा आतंकवाद करवाने में क्या फायदा था? इस तरह माथे में तिलक लगाकर और हाथ में कलाबा बांध कर और हिंदू नामों के आइडेंटीटी कार्ड लेकर आने में तो पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं होने वाला था।
आखिर भगवा आतंकवाद दिखाने का फायदा किसको होना था। यह फायदा तो उसको होना था जो कुछ ही समय पहले से भगवा आतंकवाद का प्रचार कर रहे थे। यह था कांग्रेस पार्टी के सहजादे, और उनको साथ देने वाले लोग जैसे भारत के तब के गृह मंत्री और अन्य जो उनके इस कांस्पीरेसी में शामिल थे। दिगविजय सिंह के अलावा शिवराज पाटिल, सुशील कुमार शिंदे, चिदंबरम और सोनियां गांधी इस कांसपीरेसी के प्रमुख प्लेयर थे। पाकिस्तान ने इन्हें फैसिलिटेट किया। अकेले भारत सरकार के सहयोग के बगैर ऐसा होना मुश्किकल ही नहीं असंभब है।
तबके पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने अपनी पुस्तक में साफ लिखा है कि यदि अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा गया होता तो इस एटैक को भगवा आतंकवाद के रूप में देखा गया होता। कसाब एक हिंदू समीर दिनेश चौधरी के रूप में मर गया होता। उसके आइडेंटीटी कार्ड में लिखा था कि वह अरुनदय डिग्री एंड पीजी कॉलेज, दिलखुश नगर हैदरावाद का छात्र है।
कांग्रेस को हिंदू आतंकवाद सावित करना था। पाकिस्तान ने इसमें उनकी मदद की। अंधा क्या मांगे दो आंख। यह प्लानिंग भारत में कांग्रेस पार्टी के द्वारा की गयी थी।
पाकिस्तान को भारत में भगवा आतंकवाद का नाटक करने की क्या जरूरत थी ? यह बात तो समझ आती है कि पाकिस्तान को पाकिस्तान में ही भगवा आतंकवाद दिखाने का फायदा तो हो सकता है मगर भारत में नहीं। वह पाकिस्तान के अंदर इस बहाने हिंदुओ पर अत्याचार कर सकता था। उसे देश से खदेर सकता था। फिर उसे यह नाटक भारत में करने की क्या जरूरत आन पड़ी ? यह बात समझ स परे है।
तैयारी तो जबरदस्त थी, मगर वे इसमें असफल रहे
तैयारी तो जबरदस्त थी। पहली बार ऐसा हुआ कि आतंकवादी गले में आइडेंटीटी कार्ड लेकर आतंकी बारदात को अंजाम दे रहा हो। सर में तिलक लगाता हो। हाथ में कलावा बांधता है। अपने मेकअप पर इतना ध्यान देता हो। आखिर इनता हिंदू दिखने की क्या जरूरत थी। इसमें मुख्य भूमिका भारत सरकार और भारत के गृह मंत्रालय की थी। मगर वे इसमें असफल रहे।


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