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राजनैतिक गिद्धों से सावधान रहिए, उसे मार भगाइए : हर्ष वर्धन त्रिपाठी

 

Harshvardhan Tripathi, Journalist and Thinker

 

 

गिद्धों को मुरदों का इंतजार होता है। वे  तब बेचैन हो जाते हैं जब लम्‍बी अवधि तक उन्‍हें लाश नहीं दिखती है। गिद्धों की उस बैचैनी को हमने महसूस किया है, जब गुजरात में दंगे होना बंद हो गये तब से।

 

गुजरात दंगों के लिए बदनाम था। हर दूसरे या तीसरे साल वहां सांप्रदायिक दंगे होते थे। हिंसा होती थी। लोगों के जान माल का नुकसान होता था। तब राजनैतिक गिद्धों का व्‍यापार बढि़यां चल रहा था।

 

मगर जब गुजरात में दंगा होना बंद हो गया तो उस प्रजाति में असंतोष फैला। उसने दंगा करने की पूरी तैयारी की। उसने एक वर्ग विशेष में भय, धृणा, नफरत, गुस्‍सा के बीज पैदा करने की तमाम कोशिश की। सोशल मीडिया के व्‍यापक होने के कारण आज एक तरफ तो प्रोपैगैंडा तेजी से फैल जाता है मगर वह उतनी ही तेजी से एक्‍सपोज़ भी हो जाता है।   

 

आज भारत में लगातार हर कुछ समय के अंतराल से योजनावद्ध तरीके से हिंसा, द्वेष, दंगा, लूट मार, आदि की साजिशें देखी जा रही हैं और साथ ही एक्‍सपोज्‍़ड भी हो रही हैं। उस साजिश को अलग अलग समय पर अलग अलग नाम दिए जा रहे हैं। कभी उसे जेएनयू छात्र आंदोलन का नाम दिया जाता है, कभी उसे जामिया छात्र आंदोलन का नाम दिया जाता है, कभी उसे मुसलमान हित में आंदोलन का नाम दिया जाता है, कभी उसे किसान आंदोलन का नाम दिया जाता है। इससे भी बात नहीं बनती तो उसे वे सिक्‍ख और जाठ आंदोलन के रूप में पेश किया जाता है।

 

ये पंजाब, हरियाना और पश्‍चिमी उत्‍तर प्रदेश के तथाकथित किसान नैतिक दृष्टि से नंगे और निर्वस्‍त्र हो चुके हैं। उन गिद्धों के लिए ये इजी टारेगेट बन गये हैं। इन गिद्धों को जब मुर्दे नहीं मिलते तो वे अकेले में विचरण कर रहे किसी जानवर का शिकार करते हैं। उसे पहले धायल करके मार देते हैं और बाद में आराम से खाते हैं। ये राजनैतिक गिद्ध, ये वौद्धिक गिद्ध वही कर रहे हैं।

 

मजे की बात यह है कि देश के लिए जो आशंका होती है, वह इनके लिए संभावना होती है। देश का जब बुरा हो रहा होता है, वही इनके लिए अच्‍छा हो रहा होता है। जब देश बेहतरी की तरफ जाता है, तो उन्‍हें लगता है कि कुछ गड़बड़ हो रहा है।

 

नवनीत सिंह, २४ वर्ष का नव विवाहित लड़का था। वह ऑस्‍ट्रेलिया से लौटा था।  उसे इन गिद्धों ने मार दिया। उनकी हत्‍या कर दी ।  

 

प्रियंका बाड्रा के कृत्रिम आंसू और रामपुर यात्रा

प्रियंका बाड्रा चली गयीं २०० किमी दूर नबनीत के यहां राम पुर । मगर वह दिल्‍ली पुलिस जो धायल हुए और दिल्‍ली के अस्‍पतालों में भर्ती हैं उनके पास मिलने नहीं जा सकीं।

 

हां, जिस भीड़ ने हमला किया था, दिल्‍ली पुलिस  ने जिन्‍हें गिरफ्तार किया, उनलोगों को छुड़ाने के लिए दवाब बना रहे हैं। दिल्‍ली पुलिस के जवानो पर जिस तरह बर्बर हमला हुआ उसपर एक भी प्रतिक्रिया इन लोगों की तरफ से नहीं आयी। उसमें से किसी से मिलने प्रियंका दीदी  और राहुल बाबा नहीं गये। यही इनका मूल चरित्र है। ये गिद्ध हैं। इनको मुर्दे की तलाश है। किसान आंदोलन में इन्‍होंने ढ़ूंढ लिया उस मुर्दे को।

 

इस रणनीति से वे उन पत्रकारों के बचाना चाहती हैं, जिसने अफवाह फैलाया था कि नवनीत पुलिस की गोली से मरा गया। जैसे राजदीप सरदेसाई, कारवां मैगेजिन, सिद्धार्थ वरदराजन और अन्‍य। वे इस मसले को एक राजनैतिक मंच देना चाहती हैं।   

सड़कों पर दंगा की कोशिश

इनकी कोशिश बस यही है कि किसी भी तरह सड़कों पर दंगा हो। किसी एक वर्ग को दूसरे वर्ग से धृणा हो जाय। दंगा फसाद फैले और इनकी दुकान चलती रहे। ग्रेटा थनबर्ग के टूल किट से सामने आया देश विरोधी साजिश का दस्‍तावेज। इस राष्‍ट्र विरोधी गिरोह का वह डोजियर सामने आ गया है जिसे हासिल करने के लिए इंटेलिजेंस एजेंसियों को काफी मसक्‍कत करनी पड़ती है।

 

अब सामने आ गया है कि इन तमाम राजनैतिक गिद्धों ने सब कुछ जानते हुए खालिस्‍तान समर्थकों को इस किसान आंदोलन में सामिल किया। एंटी इंडिया होना इनके स्‍वभाव का हिस्‍सा है। हम देशवासियों को इनके विरुद्ध खड़ा होना पड़ेगा। हमारे सामने कोई विकल्‍प नहीं है। साजिश बहुत गहरी है। अब यह छिपी नहीं है। इनका मकसद लोकतंत्र को लहू‍लुहान करना है। इनका मकसद है लोकतंत्रिक व्‍यवस्‍था में मजबूत हो रहे लोगों को डराना है। इस देश के लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था को ध्‍वसत करने का प्रयास चल रहा  है। गिद्ध प्रजाति पर नज़र रखिए और जहां नजंर आ जाए उसे मार कर भगाइए।

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