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| Dr Faiyaz Ahmad Faizi |
भारत में राजनैतिक व्यवस्था ने मुसलमान को एक अलग तरह से चित्रित कर दिया है। यहां दो तरह के मुसलमान हैं। एक वे मुसलमान हैं, जो राजनैतिक व्यवस्था का लाभ उठा लेते हैं, और दूसरे लोग हैं जो उस लाभ उठाने से महरूम रह जाते हैं। पसमांदा आंदोलन के एक्टीविस्ट डा. फैयाज अजमद फैजी ने यह बताया।
डा. फैयाज अजमद फैजी पसमांदा मुसलमानों के अधिकार की लड़ाई बरसों से लड़ रहे हैं, आंदोलन चलाते हैं, जगह जगह उस पर बातचीत करते हैं।
उन्होंने कहा कि विदेशी मुसलमानों ने भारतीय मुसलमानों का हक मारा है। उनका अघिकार छीन लिया है। वे आज भी उनका हक मार रहे हैं।
जो बाह्य मुस्लिम आक्रांता इस देश में आए। वे असराफ थे। वे अरवी, तुर्की और इरानी मूल के थे। उनका एक शासन काल था। जब वह काल खत्म हो गया तो अंग्रेजों का शासन काल आया। तब उन्होंने इस्लाम रिलिजन के नाम पर अंग्रेजों से अपना तुष्टीकरण करवाना शुरू किया। फिर जब भारत आज़ाद हुआ तो नेहरू गांधी को विश्वास में लेकर फिर तुष्टीकरण करवाना शुरू किया। इसी तुष्टीकरण का परिणाम था कि देश दो टुकड़ों में बंंटा।
उस समय जो टू नेशन थ्योरी दी गयी। सेपरेट एलेक्टोरेट की मांग की गयी। सर सैयद उसके जनक थे। उस समय भी पसमांदा आंदोलन ने टू नेशन थ्योरी का विरोध किया था। तब पसमांदा आंदोलन जमायतुल मोमनीन के नाम से, आसिम बिहारी के नेतृत्व में चल रहा था।
देश के जो दबे कुचले मुसलमान हैं उस अशराफ लोग अरजाल और अजलाफ के नाम से पुकारते हैं।
शरीफ का बहुबचन अश्सराफ है। ये अश्सराफ बाहर से आए हुए मुसलमानों के लिए प्रयोग होता है। मुसलमान तुष्टीकरण वास्तव में अश्सराफ तुष्टीकरण है।
कालांतर में हिंदु और बौद्ध आदि धर्मो से कनवर्ट होकर जो मुसलमान बने, उनको इन्होंने अरजाल और अजलाफ कहा। जिल्फ शब्द का बहुबचन है अजलाफ। जिल्फ का अर्थ है असभ्य। रजील का शब्द का बहुबचन है अरजाल। रजील का अर्थ है नीच आदमी।
इस तरह अशराफों ने जो क्लासीफिकेशन किया उसमें मूल भारतीय मुसलमान को नीच आदमीयों और असभ्य आदमीओं की श्रेणी में रखा गया। यह एक अपमान जनक नाम है। मगर भरतीय मुसलमानों ने फिर भी इसे स्वीकार किया। यह जो अरजाल और अजलाफ कैटेगोरी के मुसलमान हैं, उसे पसेमांदा मुसलमान कहा जाता है। पसेमांदा अर्थात जो पीछे रह गया, अर्थात दलित।
जो मुसलमान बाहर से आए, जिसे अशराफ कहा जाता है, उसमें आते हैं सेख, शैयद, मुगल, पठान, । उसके अलावा भारत में जितनी मुसलमान जातियां हैं वे पसेमांदा श्रेणी में आते हैं। उसमें बुनकर हैं, धुनकर है, मोची हैं, स्वच्छकार हैं, मेहतर हैं, भंगी हैं, धोबी हैं, भांट हैं, डोम हैं, नट हैं, दर्जी हैं, बकरबाल हैं, हलालखोर हैं, ये सभी पसमांदा मुसलमान हैं।
आपको इन लोगों की अलग मस्जिद हैं, जैसे नटैहा मस्जिद, भटवा मस्जिद, धोबियानी मस्जिद, आदि। मुसलमानों में खुलेआम भेदभाव है।
मुसलमान समाज में जो भेदभाव है उसे कोई अखबार और मुख्यधारा का मीडिया वाला तवज्जो नहीं देता।
कम लोग जानते हैं कि मुसलमानों में भी जातियां हैं, भेद भाव है। मुसलमानों में पसमांदा बहुसंख्यक समाज है। इस देश में कुल करीब सोलह सतरह करोड़ मुसलमान हैं। उसमें लगभग तेहह से चौदह करोड़ पसमांदा मुसलमान हैं। कुल मुसलिम आवादी का ९० प्रतिशत मसमांदा मुसलमान हैं। फिर भी मुसलमानों की लीडरशिप, बागडोर अशराफ के पास है।
पसमांदा मुसलमानों की स्थिति यह है कि वह अशराफ मुसलमानों का गुलाम है। वह अशराफ के मिलीशिया की तरह है। अशराफों का हमेशा से यह प्रयास रहा है कि पसमांदा मुसलमानों के मन में हिंदुओं के विरोध में जहर घोला जाय। उनके ऊपर अरबी और इरानी सभ्यता थोपी जाती है। पसमांदा मुसलमान अभी भी हिंदु कलचर में जी रहा है। उनकी औरते साडि़यां पहनती हैं। अशराफ उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। उन्होंने पसमांदा मुसलमान को गुलाम और मीलिशिया बना कर रखा है।
पसमांदा आंदोलन एक तरह से पसमांदा मुसलमानों की अशराफ मुसलमान से आज़ादी की लड़ाई है।
वीर अब्दुल हमीद या राष्ट्रपति अबुल कलाम को अशराफ हिकारत भरी नजर से देखते हैं, क्योंकि वे पसमांदा मुसलमान थे। वे एथनिसीटी, कलचर और रिजनल ग्राउंड पर भेद भाव करते हैं।
अशराफ मुसलमान आज भी अपने नाम के आगे गर्व से बुखारी, शेरवानी, किरमानी लिखते हैं। जिससे लोगों को पता चल सके कि वे बुखारा के है, शेरवान के हैं, किरमान के हैं। वे पसमांदा मुसलमानो पर आज भी रौब गांठते हैं कि मैं अरब का हूं, मैं तुर्की का हूं, मैं ईरान का हूं, मैं शेरवान का हूं, मैं किरमान का हूं, मैं बुखारा का हूं।
पसमांदा मुसलमानों ने अपना धर्म बदल लिया, बांकी उसकी सारी चीजें भारतीय है। उसकी भाषा, भूषा, रहन सहन, आचार विचार सब भारतीय है। वह भोजपुरी, मैथिली, पंजाबी, तेलगू, तमिल आदि भाषाएं बोलते हैं। मगर अशराफ ने ऐसा बना रखा है कि उसे कि आप पूछेंगे कि तुम्हारी भाषा क्या है तो वह कहेगा कि हमारी भाषा उर्दू है।
उर्दू भाषा अशराफों का एक टूल है। उसके अन्य भी कई टूल हैं जैसे टू नेशन थ्योरी, मुस्लिम तुष्टीकरण, बाबरी मस्जिद आंदोलन, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवरसीटी, आदि। वे कभी पसमांदा मुसलमानों की जो सबसे बड़ी जरूरत है रोजी रोटी उसकी बात नही करता।
सच्चर कमीटी ने एक लाइन दी थी कि दलित मुसलमानों की हालात दलित हिंदुआ से खराब है। अशराफ ने इसे इस तरह प्रचारित किय कि मुसलमानों (सभी) की हालत दलित हिंदुओं से भी खराब है।
पसमांदा मुसलमान बच्चों की फटी टोपियां दिखा कर अशराफ को पूरी दुनिया से चंदा लेने का मौका मिलता है और उसका फायदा वे उठाते हैं। गल्फ देशों के अलावा उन्हें यूराप और अमेरिका से बहुत पैसे आते हैं, जो मदरसों में, और अन्य माइनोरिटी संस्थाओं में आते हैं। उसका फायदा अशराफ मुसलमान उठाते हैं।
वही अशराफ मुसलमान पसमांदा मुसलमानों को सरकारों के खिलाफ उकसाते हैं। वे उन्हें उकसाते हैं कि यह हिंदु शासक हैं। ताकि पसमांदा मुसलमान उनके मिलिशिया बने रहें। यह सब उन्होंने अपने सत्ता वर्चस्व को मेंटेन करने के लिए कर रखा है।




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