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What is the wrong with the original name of Sonia Antonio Mino


मुंबई: अर्नव गोस्‍वामी ने बस यह सबाल उठाया था कि पालघर में जो हिंदु साधुओं की हत्‍या हुयी उस पर एंटोनियो माइनो क्‍यों चुप हैं। यह सच भी है कि उन्‍होंने इस धटना पर कोई संवेदना तक व्‍यक्‍त नहीं की जो कि उनसे अपेक्षा की जाती है, क्‍योंकि वे अपोजिशन की नेतृ हैं। इतना ही नहीं, जब एक मुसलमान आतंकवादी मारा जाता है तो वह आंसू बहाते नहीं थकती हैं और एक ७० वर्षीय साधू की मौब लिंचिंग में कोल्‍ड ब्‍लडेड हत्‍या होती है तो ये तमाम सेकुलर, लिबरल, लिवरांडू, अवार्ड वापसी गैंग, टुकड़े गैंग, वाम पंथी, मुसलमान परस्‍त,  तमाम लोगों को सांप सूघ गया। सब चुप हैं । इनकी संवेदना सिर्फ उनके लिए है जो इन्‍हें वोट देते है। इनके लिए तो हिंदू अछूत है। इससे इनका  दोमुहा चरित्र उजागर होता है।

सोशल मीडिया पर बहुतेरे स्‍वतंत्र पत्रकार लोग बेशक यह सवाल उठा रहे हैं। मगर मेन स्‍ट्रीम मीडिया में केवल रिपबलिक टीवी है जिसने इस मुद्दे को उठाया। और जैसे ही उन्‍होंने इसपर सवाल उठाया, सोनियां गांधी को इतनी मिर्ची क्‍यों लग गयी। यह सोचने वाली बात है।

देर ही सही, संवेदना व्‍यक्‍त कर लेते, दिखावे के लिए ही सही तो उनका क्‍या चला जाता। मगर उलटे उन्‍होंने पूरा खेल दूसरी दिशा में मोड़ने का प्रयास किया। अर्नव गोस्‍वामी पर मानहानि के २०० एफ आइ आर देश भर में करवा दिया। इन्‍होंने ऐसा सिनेरियो बनाने की कोशिश की कि साधुओं की निर्मम हत्‍या कोई महत्‍वपूर्ण विषय ही नहीं है। यह कोई मुद्दा ही नहीं है। अगर कोई महत्‍वपूर्ण मुद्दा है तो वह यह है कि सोनिया गांधी का अर्नव गोस्‍वामी ने अपमान कर दिया।
आखिर ऐसा क्‍या हो गया कि अर्नव गोस्‍वामी ने सोनियां गांधी को उसके पैत्रिक नाम एंटोनियो माइनो से पुकारा? 

 ऐसा लग रहा है कि यह बात सोनियां गांधी को इतनी बुरी शायद नहीं लगती यदि उसे सोनियां गांधी के नाम से पुकारा जाता। आखिर एंटोनियो माइनो नाम में  ऐसी क्‍या बात है कि सोनियां उस नाम से आहत हो जाती है और उसको हमेशा छुपाती रहती है। क्‍या सचमुच उनका नाम एंटोनियो माइनो था भी या नहीं। चलिए थोड़ा उनका इतिहास खंगालते हैं।

सोनियां गाधी का जन्‍म इटली में बिंजेंसा शहर  से २० किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव लूसियाना में ९ दिसम्‍बर १९४६ को हुआ था। उनका असल नाम अनटोनियो माइनो था। उनकी दो बहने हैं अनुष्‍का (एलेग्‍जेंड्रिया माइनो) और नाडिया माइनोउनकी माता का नाम पाऔलौ माइनो तथा उनके पिता का नाम स्टिफनो माइनो था।
स्टिफनो माइनो इटली के तानाशाह बेटिनो मूसोलीनी  की फासीवादी सेना में काम करता था। बाद में वह रूसी सेना द्वारा पकड़ा गया। वह ५ साल तक  रूसी जेल में रहा। उसके बाद उसने माफी की अपील की। उसे इस शर्त पर माफी दी गयी कि वह रूसी गुप्‍तचर संस्‍था केजीबी के लिए जासूसी का काम करेगा।

सोनिया का बचपन इटली के टूरीन शहर से ८ किमी दूर ओरबसानो में बीता। वहां वह रोमन कैथोलिक परिवार में पली बढ़ी। उसने अपनी शुरुआती शिक्षा मारिया आसीलिएट्रिस स्‍कूल में १३ वे वर्ष तक  की। उसके बाद १९६४ में कैम्‍ब्रीज युनिवरसीटी में  वेल एडुकेशन ट्रस्‍ट में उसने अंग्रेजी से ग्रैडुएशन पास किया। उसके बाद कैम्ब्रिज के ट्रिनीटी कालेज में राजीव गांधी की सह पाठी थी । यह उसका दावा है मगर इसे सुब्रहमनियम स्‍वामी गलत सावित कर चुके हैं।  उसने लैनेक्‍स स्‍कूल से स्‍पोकेन इंगलिस भाषा का कोर्स किया। फिर वेरासीटी रेस्‍टोरेंट में एक बेरे का काम किया। यही उसकी मुलाकात राजीव गांधी से हुयी जो उस समय कैम्ब्रिज के ट्रिनीटी कालेज में पढ़ते थे। माधब राव सिंधिया तथा जर्मन पुरूष स्टिगलर भी सोनिया के करीवी थे। राजीव ने कैंब्रीज में मेकैनिकल इंजिनियरिंग मे दाखला ( १९६२-६५) लिया। वे परीक्षा नहीं पास कर सके। ३ साल लगातार फेल होने के बाद १९६६ में  उन्‍होंने लंडन के इम्पिरियल कालेज में दाखला लिया। वहां भी वे पास नहीं कर सके। बिना डिग्री पूरा किया उन्‍होंने कालेज छोड़ दिया। (एन राव के किताब में इसका विस्‍तृत उल्‍लेख मिलता है ) एंटोनियो माइनो से शादी करने के लिए  राजीव गांधी कैथोलिक क्रिस्‍चन वने और उन्‍होंने अपना  नाम  बदलकर रोबरटो रखा तथा  सोनिया से शादी की। उनके दो बच्‍चे हुए। राउल विंची और वियंका विंची ।

इंदिरा गांधी के दवाब पर १९६८ में दोनो का दिल्‍ली में पुन: हिंदू रिति से विवाह हुआरोवरटो फिर से राजीव गांधी, अटोनियों माइनो सोनियां गांधी, राउल भिंची राहुल गांधी, वियंका भिंची प्रियंका गांधी बन गये।

फिर १९६८ में सोनिया अस्‍थायी तौर पर ५ वर्ष के विदेशी परमिट पर भारत में रहने लगी। १९७३ में पुन: आवेदन कर अगले ५ वर्षों के लिए उसने परमिट लिया। वह चाहती तो १९७३ में भारत में नागरिकता ले सकती थी। १९७८ में उन्‍होंने दुवारा अगले ५ वर्षों के लिए परमिट लिया। ये तमाम आवेदन अंटोनियों माइनो के नाम से किये जाते थे। उसने भारतीय नागरिकता ३० अप्रैल १९८३ को ली थी। उसमें भी अपना नाम सोनिया गांधी ऊर्फ अंटोनियों माइनो लिखाया।

रिटायर्ड इंडियन पुलिस ऑफीसर मलय कृष्‍ण धर, जिसने ३० वर्षों तक इंटेलिजेंस ब्‍यूरों में अपनी सेवा दी, ने अपनी किताब ओपेन सीक्रेट में सानियां की पृष्‍टभूमि के बारे में लिखा है कि कि सोनियां गांधी केजीबी के द्वारा भेजी गयी जासूस है।

केजीबी राजीव गांधी को भारी रकम देती रही। स्विटजरलैंड के एक राष्‍ट्रीय समाचार पत्र Schweizer Illustrierte में दुनियां के १४ सबसे ज्‍यादा ब्‍लैक मनी डेपाजिटरों के नाम प्रकाशित हुए थे जिसमें राजीव गांधी का भी नाम था। तब उसके स्विश बैंक में १ ९८ ००० करोड़ अमरीकी डालर जमा थे।

राजीव गांधी के अलावा केजीबी राहुल गांधी के एकाउंट में भी पैसे डालती रही। वर्ष १९८२ में केजीबी ने राहुल गांधी के  स्विस बैंक खाते में  २ मिलियन (२० लाख) अमरीकी डालर (अर्थात ९४ करोड़ रूपया) जमा करवाये थे।  यह सब सोनियां मैनेज करती थी।
राजीव और सोनियां को पाकिस्‍तानी बैंकरों के द्वारा पैसे दिए जाते थे। अबू धाबी के बैंक ऑफ क्रेडिट एंड कामर्स में कार्यरत आगा हसन अबधी इनके अ‍वैध धन को वैध करता था।

इंदिरा गांधी के बुलेट प्रूफ कार का ठेका एक जर्मन कंपनी को दिलाने में बोलटर बिंची (अनुष्‍का का पति) ने विचोलिये का काम किया।  बी जी देशमुख तत्‍कालीन कैबिनेट सचिव की किताब से पता चलता है कि उसने इस डील में भारी भरकम कमीशन खाया। बाद में उसे एसपीजी को इटालियन एक्‍सपर्ट से प्रशिक्षण दिलाने का भी ठेका मिला। उसे इसके लिए नकद भुकतान किया गया।  यह ट्रेनिंग असफल रही। सारा पैसा व्‍यर्थ चला गया। रौ के अ‍िधिकारी की शिकायत पर ट्रेनरों को हटाया गया। राजीब गांधी ने ट्रेनिंग रूकवा दी । मगर तब तक बोल्‍टर बिंची को पैसों का भुगतान किया जा चुका था। जो रिकॉवर नहीं हुआ। 
 
इंदिरा गांधी को बेशक गोलियां मारी गयी थी मगर उसकी मौत बहुत ज्‍यादा खून बह जाने से हुया था। जब उनको गोली लगी तो सोनियां उनको एम्‍स के बजाय उसके विपरीत दिशा में डा राम मनोहर लोहिया अस्‍पताल ले जाने पर जोर दिया। ओर फिर  १२ मिनट उस दिशा में चलने के बाद उसने  बीच रास्‍ते में अपना मन बदलते हुए ड्राइबर को एम्‍स चलने का आदेश दिया । इससे २४ मिनट बरबाद हुए। खून काफी बह चुका था।

राजीव गांधी के स्विस बैंक में २ अरब डालर उसके मरने पर सोनिया गांधी को प्राप्‍त हो गया। इसमें एक बड़ा हिस्‍सा केजीबी ने जमा करवाए थे। मलइ कृष्‍णा धर अपनी किताब ओपन सीक्रेट में इंदिरा सरकार के ४ मंत्रियों और २ दर्जन सांसदों का भी जिक्र किया जिन्‍हें जासूसी के लिए केजीबी पैसा देती थी। जब इंदिरा प्रधानमंत्री थी तो रोजाना बिना जांच के  डब्‍बों में भर कर कुछ सामान दिल्‍ली तथा चेन्‍नइ के हबाई अडडे से एयर इंडिया तथा एलीटेलिया के विमान से रोम भेजा जाता था। इस काम मे अर्जुन सिंह सोनिया की मदद करते थे। ये सामान इटली के रिबोल्‍टा स्थित एटनिका तथा बसानो में गणपति में भेजे जाते थे जिसकी मालकिल सोनिया की बहन अनुष्‍का हैं। यहां इनके झूठे बिल बनाए जाते थे फिर इन्‍हें लंडन भेजा जाता था जहां इनकी  नीलामी होती थी। इसी के साथ कुछ कागजात केजीबी के मास्‍को कार्यालय भेजे जाते थे। इन दुकानो के द्वारा कुछ  धन राहुल गाधी के  लंडन स्थित वेस्‍टमिनिस्‍टर बैंक में तथा  होंगकोंग तथा संघई बैंक के लंडन स्थित ब्रांच में  तथा कैमेन द्विप के बैंक औफ अमेरिका के गांधी परिवार के खाते में जमा किए जाते थे। सीबीआई ने १९९३ में भारतीय एंटिक की स्‍मागलिंग करने बालों को खोज निकाला और केस बनाया। मगर अर्जुन सिंह ने इसमें से सोनिया गांधी का नाम निकलवा दिया। तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। अपने पुराने नाम के सामने आने से इतना डर होना अनेक और भी संदेह पैदा करता है।

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