सोनिया गांधी ने अपना फ्रस्ट्रेशन निकालने के
लिए आयोजित की २२ दलों की मिटिंग
हाल ही में,
लॉकडाउन पिरियड के दौरान ही आइएनएस और सी ४ ने एक सर्वे किया था। इस ऑनलाइन सर्बे
में ९३ फीसदी लोगों ने यह कहा था कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में
उनकी सरकार कोरोना वायरस संकट से ठीक तरीके से निपट रही है। और उनको भरोसा है कि
सरकार इससे पार पा लेगी।
कोरोना वायरस संकट से लडने में नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया में
सर्वोच्च स्थान पर
अमेरिका की एक सर्बे कंपनी मौरनिंग कनसल्ट
ने यह कहा था कि कोरोना वायरस संकट काल में,
इस मामले से निपटने के मामले में भारत के
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पूरी दुनिया
में सर्वोच्च स्थान पर हैं। इस सर्वेक्षण में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को ६८ प्वाइंट दिये गये थे। रूस
के पुतिन, अमेरिका के ट्रंप,
आदि का नम्बर तो उनसे काफी नीचे था। चीन के राष्ट्रपति सी जिन पिंग को तो उस
लिस्ट में जगह ही नहीं मिल पायी।
मतलब साफ है कि कोरोना वायरस संकट से निपटने
में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
दुनिया के दूसरे सभी राष्ट्राध्यक्षों से बेहतर और सक्षम साबित हुए हैं। उन्होंने
भारत के लोगों को बचाने की जो योजना बनायी वो सराहनीय है। सर्बेक्षण मानता है कि
भारत के लोग नरेंद्र मोदी पर पूरी तरह भरोसा करते हैं। उनका यह विश्वास है कि वे
आखिरकार हमें इस संकट से बाहर निकालेंगे।
सोनिया गांधी ने आयोजित की २२ दलों की मिटिंग
इस मिटिंग में, जैसा कि दावा किया गया है, २२ दलों के
नेताओं ने भाग लिया। इसमें एच डी देवेगौड़ा, शरद पवार, ममता बैनेर्जी, उद्धव ठाकरे, हेमंत सोरेन, उमर अबदुल्ला, सीता राम येचुरी, राहुल गांधी, एम के स्टालिन, तेजस्वी यादव, आदि सहित कुल २२
दलों के नेताओं ने टेली कानफ्रेंसिंग के जरिए सोनिया गांधी द्वारा बुलाए गये इस
बैठक में भाग लिया। इस बैठक में केजरीबाल, अखिलेश यादव और
मायावती ने भाग नहीं लिया।
सोनिया के आरोप और उसका जवाब
इन सब को लेकर के सोनिया गांधी ने आज शुक्रबार को एक
मिटिंग बुलायी थी। सोनिया ने इस टेली कानफ्रेंसिंग में क्या क्या कहा? वह कहती है कि भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस कोरोना वायरस संकट से निपटने
में अक्षम सावित हुए हैं। कोरोना से जंग में मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफल सावित
हुयी है। ये जो अर्थ व्यवस्था है, ये जो मजदूर संकट है, ये जो पैकेज है, यह मजाक है।
उनके सरकार के पास कोरोना वायरस संकट से निपटने की कोई रणनीति नहीं है।
मगर सोनियां ने यह नहीं बताया कि दुनिया के
किस देश के पास कोरोना वायरस से निपटने की
इससे बेहतर नीति, और रणनीति और और योजना है। क्या किसी देश
ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए अबतक किसी वैक्सिन या दवा खोज लिया है?
कोरोना संकट की लड़ाई जीत नहीं सके २१ दिनों में
वे कहती हैं कि भारत के
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि
२१ दिनों में हम कोरोना वायरस संकट की लड़ाई जीत लेंगे। मगर वे २१ दिनों में वे ये
लड़ाई नहीं जीत सके।
इसका जवाब यह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने भरसक यह कोशिश की। मगर दिल्ली सरकार ने उत्तर भारतीय मजदूरों के बिजली पानी काटा। उन्हें घर जाने को उकसाया। आनंद विहार में मजदूरों की भीड़ लगवा दिया। इन्हीं लोगों ने तबलीगी जमात वालों की बैकिंग की। इन्हीं लोगों ने बांद्रा में प्रवासी मजदूरों की भीड़ लगवायी। इन्हीं लोगों ने लॉक डाउन को विफल करने का हर प्रयास किया।
इसका जवाब यह है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने भरसक यह कोशिश की। मगर दिल्ली सरकार ने उत्तर भारतीय मजदूरों के बिजली पानी काटा। उन्हें घर जाने को उकसाया। आनंद विहार में मजदूरों की भीड़ लगवा दिया। इन्हीं लोगों ने तबलीगी जमात वालों की बैकिंग की। इन्हीं लोगों ने बांद्रा में प्रवासी मजदूरों की भीड़ लगवायी। इन्हीं लोगों ने लॉक डाउन को विफल करने का हर प्रयास किया।
४ घंटे के नोटिस पर लॉक डाउन घोषित
उनका आरोप है कि ४ घंटे के
नोटिस पर लॉक डाउन घोषित कर दिया गया। हमने वो भी मान लिया। मैं पूछता हूं कि क्या उन्होंने या विपक्षी दलों ने
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर या देश पर एहसान किया। अगर आप नहीं मानते तो क्या
करते ? सच तो यह है कि इन तमाम विपक्षियों ने सरकार का असहयोग किया। वे तब जमाती
मुसलमानों के साथ खड़े दिखे।
आज पूरी दुनिया, WHO
यहां
तक कि चीन भी भारत की और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर रहा है कि उन्होंने
समय रहते लॉकडाउन की घोषणा करके लाखों जिंदगियों को बचाया है।
जो इसके विशेषज्ञ हैं उनका कहना है कि यदि समय से भारत
में लॉकडाउन की घोषणा नहीं होती तो भारत में अबतक १ करोड़ से अधिक लोग संक्रमित
होते, और ५ लाख से ज्यादा लोग अब तक मर चुके
होते।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर लगाया
विफलता का आरोप
सोनिया कहती हैं कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी
सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। सच तो यह है कि सरकार हर मोर्चे पर सफल रही हैं। विपक्ष ही
अपनी भूमिका नहीं निभा रहा है। वह हर तरह से राष्ट्र विरोधी गतिविधिययों में संलग्न
है। इस कोरोना जैसे महामारी में वह लोगों का सहयोग करने नहीं आया। आजकल वह ट्विटर पर
सकृय है। विपक्ष ने पूरी कोशिश की कि इस महामारी से निपटने में प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी की सरकार विफल हो जाय और फिरभी सरकार इस महामारी से निपटने में
यथासंभव सफल रही है।
मजदूर घर के लिए जाने के लिए मजबूर
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी
कहती हैं कि लाखों मजदूर बिना खाना पानी और दवा के सड़क पर नंगे
पांव घर जाने के लिए मजबूर हैं।
मोदी सरकार ने उनके लिए बसों की, ट्रेनों की व्यवस्था नहीं की।
तो मेरा कहना है कि केंद्र सरकार
ने जो बेहतरीन हो सकता है वह किया। यह राज्य सरकारों पर निर्भर करता है कि वह
उसका कितना फायदा ले सकता है। उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा मजदूर देश के विभिन्न
भागों में काम करते हैं । वहां अब तक ९०० से अघिक ट्रेने आ चुकी हैं और लगभग आज तक १३ लाख मजदूर उत्तर प्रदेश लौट
चुके हैं।
अबतक स्पेशल श्रमिक ट्रेनो के जरिए २० लाख से ज्यादा
मजदूरों को एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुचाया जा चुका है। हजारों की संख्या
में बसें चलाकर भी मजदूरों को एक राज्य से दूसरे राज्य तक पहुचाया जा चुका है। प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी को भी भगवान भरेसे नहीं छोड़ा। उन्होंने सभी राज्यों
को फंड एलोकेट किया और उनसे अपील की कि अपने अपने राज्यों के मजदूरों की समस्या
का वे निदान करें। यह राज्यों की जवाबदेही बनती है कि वे उनकी परवाह करें। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी झूठ बोल रही हैं।
२० लाख करोड़ के पैकेज को बताया क्रूर मजाक
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी
कहती हैं कि २० लाख करोड़ का पैकेज की ५
दिनों में घोषणा की वह एक क्रूर मजाक है।
मैं पूछता हूं कि इसमें क्रूड़ मजाक कैसे हुआ? यह अलग अलग सेक्टर में
राहत देने के लिए और अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पैकेज घोषित किया गया
है और उसकी जानकारियां दी गयी हैं वह उनके लिए क्रूड़ मजाक कैसे हो गया।
श्रम कानूनों में बदलाव सोनिया को स्विकार
नहीं
फिर सोनिया कहती है कि
कई राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव किया है, जो हमे
स्विकार नहीं है।
इसका उत्तर यह है कि ऐसी बहुत सारी मल्टीनेशनल कंपनियां हैं जो अपनी
कंपनियों को चीन से निकाल रही हैं। उनमें से बहुत सारी कंपनियों का रुख भारत की
तरफ होने वाला है। इसमें अमरिका और यूरोप की बहुत सारी कंपनियां भारत में पूंजी
निवेश के संकेत दे चुके हैं। लेकिन हमारे यहां की जो अब तक की श्रम कानून
हैं उसके कारण वे विदेशी कंपनियां यहां आने से हिचकती रही हैं। पूंजी निवेश को
आकर्षित करने के लिए उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और करनाटक की सरकारों ने अपने श्रम कानून
में फौरी तौर पर कुछ बदलाव किए हैं। सोनिया कहती हैं कि उनको मंजूर नहीं है। मगर
उनसे मंजूरी की जरूरत क्या है। ज्यादा से ज्यादा केंद्र सरकार को उस पर आपत्ति
करने का अधिकार है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी
से मंजूरी और स्विकृति का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है।
हां यह तो सोनियां के
आपत्ति से स्पष्ट है कि वह नहीं चाहती हैं कि विदेशी पूंजी निवेश भारत आए। आज
अमेरिका और यूरोप के देशों का भारत में पूंजी निवेश के लिए आकर्षण बढा है। क्या
भारत को इसका फायदा नहीं उठाना चाहिए ?
नरेंद्र मोदी ने सारी शक्तियां अपने पास
केंद्रित कर ली है
फिर वो कहती हैं कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सारी शक्तियां
अपने पास केंद्रित कर ली है। मगर ऐसा तो है नहीं। अगर ऐसा होता तो उनके अपने
मंत्रिमंडल के सदस्य का असंतोष सामने आ गया होता। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने
तो सबको फुल फ्लेजेड निर्णय लेने की छूट दे रखी है। और हर मंत्री अपने कैपेसिटी
में ऐसा कर भी रहा है। क्या वे दूसरों को मनमोहन समझती हैं। मनमोन सिंह को
सोनिया ने प्रधानमंत्री बना तो दिया मगर बताया नहीं कि आप प्रधान मंत्री हैं। मनमोहन बाबू को तो प्रधान मंत्री
पद से हटने के बाद समझ में आया कि वे भारत के प्रधान मंत्री थे।
उन दिनो सोनिया गांधी की सरपरस्ती में एक एडवाइजरी
कमीटी का गठन किया गया था, उसमें कुछ बामपंथी और घोर राष्ट्र विरोधी
विघटनकारी लोग उनके सलाहकार के रूप में काम करते थे। जो सोनिया फैसला करती थी
मनमोहन जी मान लेते थे। यह तो अच्छी बात है कि आज हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी में निर्णय लेने की क्षमता है।
प्रधान मंत्री भी १० जनपथ जाकर उनके आदेश का इंतजार
करे
क्या वह चाहती है कि एनडीए का प्रधान मंत्री नरेंद्र
मोदी भी १० जनपथ जाकर उनसे सलाह ले, उनके आदेश का इंतजार करे और उनकी अनुमति से
फैसले करे? उनको देश ने ३०३ सीट देकर मैंडेट दिया है। क्या फिरभी उनको निर्णय
लेने का अधिकार नहीं है ? इसी अधिकार के लिए तो उनको मैनडेट मिला है। विपक्षी दलों
की सहमति लेने की क्या जरूरत है? यह
दिखाता है कि सोनिया और विपक्ष फ्रस्टेटेड है। इस मिटिंग से उन्होंने अपना
फ्रसट्रेशन ही निकाला है।
उन राज्यों के मुख्य मंत्रियों को समझाना
चाहिए जहां कांग्रेस का राज है
अगर मौजूदा कोरोना वायरस से निपटने की उनकी चिंता है
तो उन्हें उन राज्यों के मुख्य मंत्रियों को समझाना चाहिए कि वे भी योगी
आदित्य नाथ की तरह सकृयता का सबूत पेश करें।
अर्थ व्यवस्था संकट में है
फिर वह कहती हैं कि अर्थ व्यवस्था
गहरे संकट में है। वह जीएसटी का भी जिक्र करती हैं। फिर वह नोट बंदी का भी जिक्र
करती हैं। वह कहती हैं कि २०१७ से ही अर्थव्यवस्था ढलान पर जा रही है। लगातार ७
तिमाही से अर्थव्यवस्था का डाउन फौल हुआ है। यह भयानक संकेत है।
कोरोना संक्रमण के इस दौर में अर्थव्यवस्था का नीचे
जाना आज ग्लोबल फेनोमेना है। यह सिर्फ भारत में नहीं हो रहा है। तमाम देशोंमें , जो अतिविकसित
देश हैं वहां भी अर्थवयवस्था नीचेजा रही हैं। आज पूरी दुनिया मंदी के इस दौर का
सामना कर रही है। सारीदुनिया में उत्पादन रुका हुआ है। अर्थव्यवस्था का संकट तो
हर देश में है। अमेरिका, ब्रिटेन,जर्मनी, स्पेन, इटली, फ्रांस, जापान,चीन, सब का तो यही
हाल है। आज एक देश बताइए जिसकी अर्थव्यवस्था ऊपर जा रही हो।
इनको केवल मोदी की आलोचना करनी है
इनको केवल मोदी की आलोचना करनी है। आज मोदी के सामने
दुनिया का कोई नेता नहीं है। यह बात सोनिया को नहीं पचती है। सोनिया का यही संकट
है। इसी लिए वह बीस बाइस नेताओ को टेली कानफ्रेंसिंग कर मिटिंग करती हैं और प्रमाण
पत्र बांटती हैं कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार हर
मोर्चे पर विफल है। उनको यह भी मुगालता है कि उनके प्रमाणपत्र को देश और दुनिया
मान भी लेगी।


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