
अर्नव
गोस्वामी एक तेज
तर्रार पत्रकार हैं, वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने और
अपने आक्रामक शैली के लिए जाने जाते हैं। बतौर एक निर्भीक राष्ट्रवादी पत्रकार वे देश भर में बेहद लोकप्रिय हैं।
उन्होंने पालघर में
हुए साधुओं की हत्या के मामले में कांग्रेस के अध्यक्ष सोनियां गांधी से कुछ
तीखे सवाल पूछा । बदले में अर्नव गोस्वामी पर हमला हो गया। इस हमले
का आरोपी युवा कांग्रेस का कार्यकर्ता निकला। इसके अलावा अर्नव पर देश भर में लगभग
२०० एफ आइ आर लॉज किए गये, खास कार उन राज्यों में जहां
कांग्रेस की सरकारें हैं।
इसके अलावा मुंबई पुलिस अर्नव गोस्वामी को
हिरासत में लेकर १२ घंटे तक पूछ ताछ करती रही । सारे देश में लौक डाउन चल
रहा है। और ऐसे समय अर्नव को ९.२५ बजे सुवह से शाम ९.२५ तक पूछ ताछ के लिए बिठाया
जाता है, और पूछताछ की जाती है ।
कोन सी ऐसी पूछ ताछ होती है, जिसके लिए १२ घंटे से ज्यादा वक्त लगता है?
पुलिस को कोन सा ऐसा रहस्य खोजना था? कौन सी क्रिमिनल कांसपीरेसी देखनी थी? ऐसी
कौन सी जांच करनी थी, जिसमें बहुत बड़ा सूत्र तलाशना था? आखिर कौन से सवाल वे पूछ रहे थे?
इसीलिए
मैं कहता हूं कि हर पत्रकार को, (
अगर विरोघी विचार के भी हैं तो भी,) आज सब मतभेद भूल कर, अर्नव गोस्वामी के साथ खड़ा होना चाहिए। मगर इस वक्त जो पत्रकार अरनव गोस्वामी के साथ नहीं खड़ा है, वह पत्रकार तो कतई नहीं है, या
वे सब बिके हुए पत्रकार हैं।
जो तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
के पैरोकार थे, वे सब के सब कहां गायब हैं ? क्यों
चुप हैं ? वे सब अपने चैनलों पर इस खबर को क्यों नहीं चला रहे हैं? जरा सोचिए इन
बातों के लिए, जो पबलिक डोमेन में है,
उस बात को पूछने और समझने के लिए मुंबई पुलिस को १२ घंटे की जरूरत पड़ती है। जो
कुछ अर्नव
गोस्वामी ने कहा वह तो टीवी पर कहा है। उसकी
बाकायदा फूटेज होगी । रेकार्डिंग होगी। उसमें टेंमपरिंग हो नहीं सकती। उसने
बाकायदा टेलीविजन पर वो सारी बातें कही है। कानूनी तौर पर जो भी मामला बनता है, उसको दर्ज कीजिए कारवाई चलाइए।
अर्नव
गोस्वामी एक पत्रकार के साथ चैनेल के मालिक भी हैं
। सिर्फ प्रधान संपादक नहीं हैं। उस तरह से वे अपनी लड़ाई लड़ लेंगे। हम आप दूसरे
पत्रकार उनके साथ नहीं भी खड़े होंगे तो भी वे अपनी लड़ाई लड़ लेंगे। पालघर की घटना पर सोनियां चुप क्यों है, यह सवाल तो बनता है न। इस घटना में जो लोग गिरफ्तार हुए
हैं, वे क्रिश्चन मिशिनरी से जुरे लोग
हैं। जो आदमी इन इस घटना में गिरफ्तार लोगों की जमानत करवा रहा है वह सिराज बलसारा
सोनिया के सलाहकार समिति का सदस्य रहा है, जब मनामोहन की सरकार थी।
अर्नव गोस्वामी ने पालघर पर सवाल उठाते हुए सोनिया गांधी के
असली नाम अंटोनियो माइनो के नाम से संबोधित किया । किसी का असली नाम लेना अभद्र
टिप्पणी नहीं है। उस लिहाज से सोचिए
तो केंद्र में भाजपा का शासन है। नरेंद्र मोदी भारत के प्रधान मंत्री हैं। जिस नरेंद्र मोदी के खिलाफ अनेको
पत्रकारों ने अनेको बार विषवमन किया है। किसी के खिलाफ मेादी ने आज तक कुछ नहीं
किया।
जरा सोचिए अगर भाजपा कांग्रेस की तरह
व्यवहार करने लगी तो देश के जितने बड़े पत्रकार आपको दिखते हैं, इन सबका जीवन पुलिस थाने में बीत जाएगा। मैं यह
जिम्म्ेदारी के साथ कह रहा हूं। अनेको पत्रकार ऑफ कैमरा जो बात करते हैं, उसके आधार पर यदि उनको पुलिस बुलाने लगे, उनसे
पूछताछ करने लगे तो उनका पूरा जीवन तो कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने में चला जाएगा।
आप कहते हैं कि
इसमें साजिश नहीं, फासीवाद नहीं,
सामप्रदायिकता नहीं है। मैं कहता हूं इसमें यह सबकुछ है। एक राष्ट्रीय स्तर के स्थापित पत्रकार को इस तरह
पुलिस थाने में १२ घंटे बिठा दिया जाता है। सोचिये । जब इतने बड़े पत्रकार के साथ
यह अभद्रता हो सकती है तो साधारण पत्रकारों के साथ तो कुछ भी हो सकता है। छोटी छोटी खबरों पर कोई भी थाना इंचार्ज किसी
भी पत्रकार को टांग सकता है। फिर कोई क्या कर लेगा?
आप
पत्रकारों के लिए यह चेतावनी है कि यदि आप उनके साथ नहीं खड़े होंगे तो भी वे अपनी
लड़ाई लड़ लेंगे । वे इतने सक्षम हैं, सामर्थवान है, साधन
संपन्न हैं, लेकिन कल आप के उपर ऐसा कुछ हुआ, तो शायद आप लड़ने की स्थिति में
नहीं होंगे। इसलिए पत्रकार के तौर पर मिडिया में भरोसा रखने वाले चौथे स्तंभ के
लिए आज आप सब को अर्नव गोस्वामी के साथ खड़ा होना चाहिए। और सिर्फ खड़ा ही नहीं
होना चाहिए। तर्को के साथ, तथ्यों
के साथ, मजबूती से खड़ा होना चाहिए। यह जो एन एम जोशी मार्ग पुलिस स्टेशन में हुआ है, यह सीधे सीधे फासीवाद है। भारत में इदिरा गांधी ने
आपात काल में यही किया था। यह कांग्रेस का मूल चरित्र है ।
गृह मंत्री होते हुए अमित शाह पर जिस तरह की टिप्पण्णी
पत्रकार करते हैं, क्या गृह मंत्री ने
किसी के भी विरूद्ध कुछ किया?
आप अर्नव गोस्वामी की शैली से असहमत
हो सकते हैं, मगर बतौर पत्रकार उनकी निष्ठा पर कौन सवाल उठा सकता है? कुछ पत्रकार कहते हैं कि वे
अर्नव को पत्रकार नहीं मानते। अगर अर्नब पत्रकार नहीं हैं, तो आप सब लोग पत्रकार के नाम पर अपना पेंदा बचाने
वाले लोग हैं। आप सब पत्रकारों की कुंडली निकालें तो अधिकांश तो बिके हुए भांड
हैं। जो पैसा देता है उसके गाने गाते हैं। यह तो पत्रकारिता नहीं है। यह भांडगिरी
है।
अगर उसके खिलाफ कोइ पुख्ता प्रमान
नहीं है ओर पुलिस इस तरह उससे इनटेरोगोट करती है। पत्रकार को इंटेरोगेट करने का
मतलब क्या है? कौन सी साजिश कोन सी मिस्ट्री ? आज अगर आप पत्रकार हैं, और आप अर्नव के साथ नहीं है,
तो यह आप के लिए यह चेतावनी है कि आप गलत कर रहे है। अर्नव को आपकी या मेरी जरूरत
नहीं है । लेकिन स्वस्थ पत्रकारिता का तकाजा है कि उनका साथ दिया जाय। बतौर ४था
पिलर मिडिया का यह दायित्व है कि अरनव गोस्वामी के साथ
खड़ा हुआ जाय।
यह
फासीवाद है, आपातकाल है, जो इंदिरा गांधी ने लगाया
था। यह फासीवाद है जो मुसोलनी ने लगाया था। जिसकी सेना में सोनिया के पिताजी
सिपाही थे। पत्रकारों का समर्थन हो, न हो, जनता का एक बडा वर्ग है जो अरनव
गोस्वामी के साथ खड़ा है।

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